हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

21 May 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 मई, 2023 से 19 मई, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 B के तहत तलाक की डिक्री देने के लिए दोनों पक्षों की निरंतर पारस्परिक सहमति आवश्यक: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी (2) के तहत तलाक की डिक्री देने के लिए दोनों पक्षों की निरंतर पारस्परिक आपसी सहमति आवश्यक है। हाईकोर्ट ने स्मृति पहाड़िया बनाम संजय पहाड़िया (2009) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

    जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजितकुमार न कहा, "ये केवल पार्टियों की निरंतर आपसी सहमति पर है कि उक्त अधिनियम की धारा 13बी के तहत तलाक के लिए एक डिक्री अदालत द्वारा पारित की जा सकती है। यदि तलाक के लिए याचिका औपचारिक रूप से वापस नहीं ली जाती है और लंबित रहती है तो उस पर तारीख जब अदालत डिक्री देती है, तो अदालत का वैधानिक दायित्व होता है कि वह पार्टियों की सहमति सुनिश्चित करने के लिए उनकी सुनवाई करे। दो से तीन दिनों के लिए पार्टियों में से एक की अनुपस्थिति से, अदालत उसकी सहमति नहीं मान सकती है।"

    केस टाइटल: जयराज आर. बनाम काव्या जी. नायर

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    किसी व्यक्ति को 'उपयुक्त प्रथम दृष्टया साक्ष्य' के बिना मुकदमे की कठोरता से गुजरने के लिए मजबूर करना मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक फैसले में टिप्‍पणी की कि ट्रायल कोर्ट की ओर से आरोप तय होना एक निर्णायक कार्रवाई है और शक्ति का महत्वपूर्ण अभ्यास है। किसी व्यक्ति को बिना किसी प्रथम दृष्टया साक्ष्य के ट्रायल की कठोरता से गुजरने के लिए मजबूर करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा, "किसी व्यक्ति को उपयुक्त सामग्री या साक्ष्य के बिना ट्रायल की कठोरता से गुजरने के लिए मजबूर करना निश्चित रूप से उसके मौलिक अधिकारों का प्रत्यक्ष उल्लंघन होगा।

    केस टाइटल: जितेंद्र सिंह बनाम राजस्थान राज्य एसबी आपराधिक पुनरीक्षण याचिका संख्या 265/2023

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    अनुच्छेद 226 | वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता खुद किसी उपयुक्त मामले में रिट याचिका पर विचार करने से हाईकोर्ट को वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता एक उचित मामले में स्वयं हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत उसकी शक्ति से वंचित नहीं करती है, हालांकि आमतौर पर एक रिट याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए जब कानून की ओर से प्रभावी और वैकल्पिक उपाय प्रदान किया गया हो।

    जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने गोदरेज सारा ली लिमिटेड बनाम एक्साइज एंड टैक्सेशन ऑफिसर कम असेसिंग अथॉरिटी 2023 लाइवलॉ (एससी) 70, राधा कृष्ण इंडस्ट्रीज बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 222 और व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन बनाम ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार, मुंबई और अन्य (1998) 8 एससीसी 1 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखा।

    केस टाइटलः निदेश के माध्यम से डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ और अन्य बनाम डॉ चारू महाजन और अन्य [विशेष अपील संख्या - 228/2023]

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    जम्मू एंड कश्मीर सिविल सर्विस रेगुलेशन | पूरी तरह से बरी सरकारी कर्मचारी के निलंबन की अवधि को 'ऑन ड्यूटी' समय माना जाना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू एंड कश्मीर सिविल सर्विस रेगुलेशन के अनुच्छेद 108-बी के आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब सरकारी कर्मचारी किसी भी गलत काम से पूरी तरह मुक्त हो जाता है तो वह पूर्ण वेतन और भत्ते प्राप्त करने के हकदार होते हैं जैसे कि वे कभी बर्खास्त, हटाया, अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त या निलंबित नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में ड्यूटी से अनुपस्थिति की अवधि को ड्यूटी पर बिताया गया समय माना जाता है।

    केस टाइटल: वाजिद अली बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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    [एनडीपीएस एक्ट की धारा 59] विशेष अदालत 180 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में विफल रहने पर जांच अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एनडीपीएस एक्ट की धारा 59 के तहत जांच अधिकारी (आईओ) के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के निर्देश देने वाले आदेश को बरकरार रखा, जिसमें प्रथम दृष्टया निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में विफलता रहने का आरोप लगाया गया है। एक्ट की धारा 59 के तहत जो अधिकारी अधिनियम के तहत निर्धारित अपने कर्तव्य को निभाने में विफल रहता है या जो किसी अभियुक्त के साथ सांठगांठ करता है, उसे एक वर्ष तक के कारावास और/या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

    केस टाइटल: आशीष देवीदास मोरखड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य [आपराधिक पुनर्विचार आवेदन नंबर 106/2022]

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    ट्रायल को टालना या अपील की सुनवाई में देरी ही सजा कम करने का आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल सुनवाई में देरी या अपील पर निर्णय लेने में देरी को सजा कम करने का एक वैध कारण नहीं माना जा सकता है, खासकर तब जब अपीलकर्ता को अपील प्रक्रिया के दौरान अंतरिम जमानत दी गई हो।

    जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम बनवारी लाल और अन्य, 2022 लाइवलॉ (एससी) 357 का उल्लेख करते हुए कहा, "... सुनवाई में देरी या अपील के फैसले में देरी सजा को कम करने का आधार नहीं हो सकती है, खासकर जब अपील की लंबितता के दौरान, अपीलकर्ता को 08.11.2016 के आदेश के संदर्भ में अंतरिम जमानत दी गई हो और वह आज भी जमानत पर हैं।"

    केस का टाइटल: नज़ीर अहमद गनई बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।

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    आर्टिकल 21 के तहत दूसरे रिश्ते की मंजूरी के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते जब पहली पत्नी इक्विटी से वंचित होः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि जो व्यक्ति अपनी जीवन साथी के साथ भी समानता का व्यवहार नहीं करता है, वह आर्टिकल 21 के तहत अपने दूसरे रिश्ते की मंजूरी के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने एक मुस्लिम व्यक्ति और उसकी दूसरी पत्नी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस संजय वशिष्ठ की बेंच ने कहा, ‘‘यह अदालत इस पहलू की अनदेखी नहीं कर सकती है कि इस तरह की याचिकाएं याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरे की धारणा को चित्रित करते हुए सुरक्षा मांगने के बहाने दायर की जाती हैं, लेकिन इनका वास्तविक उद्देश्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए पारित किए गए अदालत के आदेश की मुहर के तहत उनके अवैध संबंधों की स्वीकृति प्राप्त करना होता है।’’

    केस टाइटल-एक्स बनाम राज्य

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    एनडीपीएस एक्ट की धारा 52ए के तहत सैंपल लेने के लिए आवेदन 72 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए, इसे एनसीबी की मनमर्जी पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 52ए के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष मादक पदार्थ या नशीले पदार्थ का नमूना लेने के लिए आवेदन 72 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए। जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि इस तरह के आवेदन को अभियोजन एजेंसी होने के नाते नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की "मनमर्जी" पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

    टाइटल: काशिफ बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो

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    योजना प्राधिकरण प्रस्तावित अधिग्रहण के लिए किसी भूस्वामी को अपनी संपत्ति सरेंडर करने के लिए मजबूर करता है तो यह जबरन वसूली के बराबर: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने ग्रामीण बैंगलोर में होसकोटे तालुक के योजना प्राधिकरण द्वारा जारी एक समर्थन को रद्द कर दिया है, जिसमें उसने एक निजी भूस्वामी को अपनी भूमि का एक हिस्सा, यह दावा करते हुए मुफ्त में देने का निर्देश दिया था कि उक्त टुकड़े को राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिए निर्धारित किया गया है, और अगर वह ऐसा करता है तो ही शेष भूमि पर उसकी ओर से पेश निर्माण योजना को अनुमोदित किया जाएगा।

    केस टाइटल: विनोद दामजी पटेल बनाम होसकोटे योजना प्राधिकरण और एएनआर

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    घातक हथियार का उपयोग आईपीसी की धारा 307 के तहत अपराध गठित करने के लिए पर्याप्त, अगर चोट पहुंचाने का प्रयास हत्या के इरादे से किया गया हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि धारा 307 के प्रावधानों को लागू करने के लिए एक घातक हथियार का उपयोग मात्र पर्याप्त है और अपराध का गठन करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हमले के परिणाम में चोट लगनी चाहिए। जस्टिस सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा, "अपेक्षित इरादा होने पर एक प्रयास ही पर्याप्त है। हत्या के इरादे की मौजूदगी का पता अन्य परिस्थितियों से लगाया जा सकता है, बजाय कि चोट की प्रकृति के।"

    केस टाइटलः कमल सिंह बनाम यूपी राज्य . [CRIMINAL APPEAL No. - 1496 of 1995]

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    बच्चे की कस्टडी के आदेश कठोर और अंतिम नहीं, बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्हें बदला जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे की कस्टडी के मामलों में पारित आदेशों को कठोर और अंतिम नहीं बनाया जा सकता है और बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनमें परिवर्तन किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि कस्टडी के आदेश को हमेशा वादकालीन आदेश माना जाता है।

    अदालत ने आगे कहा, "हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 26 के तहत न्यायालय को कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान या अधिनियम के तहत कोई डिक्री पारित होने के बाद बच्चों की कस्टडी, भरण-पोषण और शिक्षा के संबंध में कोई भी आदेश पारित करने या कोई व्यवस्था करने का अधिकार दिया गया। इस खंड के तहत किए गए आदेश समय-समय पर विविध, निलंबित या निरस्त किए जा सकते हैं। इस धारा का उद्देश्य नाबालिग बच्चे के कल्याण के लिए उचित और उचित प्रावधान करना है।

    केस टाइटल: रंजन कुमार गुप्ता बनाम पूजा देवी सिविल विविध क्षेत्राधिकार नंबर 330/2018

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    धारा 153 आईपीसी | अभिव्यक्ति दंगा भड़काने की हद तक उकसाने के लिए दुर्भावनापूर्ण या जानबूझकर किए गए अपराध संकेत दे: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153 के दायरे और सीमा की व्याख्या की है। यह धारा दंगा भड़काने की हद तक उकसाने के लिए दुर्भावनापूर्ण या जानबूझकर किए गए अपराध को संदर्भित करती है। जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की सिंगल जज बेंच ने स्पष्ट किया कि प्रावधान में दो अभिव्यक्तियों, 'दुर्भावनापूर्ण' या 'जानबूझ कर' की उपस्थिति इंगित करती है कि कथित कृत्य में अनुमानित या स्पष्ट रूप से द्वेष या बुराई का उच्च स्तर होना चाहिए।

    केस टाइटल: संजीव एस बनाम केरल राज्य

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    ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण के लिए हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका: वाराणसी कोर्ट ने मस्जिद समिति से 19 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा

    वाराणसी जिला न्यायालय ने अंजुमन इस्लामिया मस्जिद समिति (वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली कमेटी) को सर्वेक्षण की मांग करने वाली 4 हिंदू महिला श्रद्धालुओं द्वारा दायर आवेदन पर अपना जवाब/आपत्ति दर्ज करने के लिए 3 दिन का समय (19 मई तक) दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का पता लगाने के लिए कि क्या मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर के पहले से मौजूद ढांचे पर किया गया।

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    लोक सेवक से ऑन-स्पॉट रिकवरी के बाद दर्ज एफआईआर के मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत पूर्व स्वीकृति की जरूरत नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट एक फैसले में कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए किसी लोक सेवक के खिलाफ किसी भी जांच या अन्वेषण के लिए सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता को अनिवार्य करती है, जहां कथित अपराध एक आधिकारिक "निर्णय" से संबंधित है।

    जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ ने कहा, रिश्वत लेकर निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन में शक्तियों के अवैध, अनुचित प्रयोग के सामान्य आरोपों की एक सार्वजनिक स्रोत रिपोर्ट के आधार पर जांच और ऑन-स्पॉट ‌रिकवरी के बाद दर्ज की गई एफआईआर के‌ लिए धारा 17ए के तहत पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।

    केस टाइटल: अभिषेक शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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    धारा 138, एनआई एक्ट| 'यदि चेक राशि के साथ अन्य राशि अलग से इंगित की गई है तो भी नोटिस अमान्य नहीं ': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि एक डिमांड नोटिस पर चेक राशि के साथ अन्य राशियों का उल्लेख एक अलग हिस्से में विस्तार से किया गया है, तो उक्त नोटिस को एनआई एक्ट, 1881 की धारा 138 (बी) की कानूनी शर्तों में गलत नहीं ठहराया जा सकता है।

    1881 अधिनियम की धारा 138 (बी) के अनुसार, चेक के अनादरण पर आदाता या धारक को नियत समय पर चेक आहर्ता को, बैंक से उसकी ओर से दिए गए चेक को भुगतान न होने पर उसकी वापसी की सूचना प्राप्त होने पर,तीस दिन के भीतर लिखित रूप में नोटिस देकर उक्त राशि के भुगतान की मांग करनी होगी।

    केस टाइटलः प्रशांत चंद्र बनाम यूपी राज्य, प्रधान सचिव, गृह के माध्यम से, लखनऊ और अन्य [Appl U/S 482 No. - 4587 of 2023]

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