अनुच्छेद 226 | वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता खुद किसी उपयुक्त मामले में रिट याचिका पर विचार करने से हाईकोर्ट को वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

19 May 2023 2:15 PM IST

  • अनुच्छेद 226 | वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता खुद किसी उपयुक्त मामले में रिट याचिका पर विचार करने से हाईकोर्ट को वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता एक उचित मामले में स्वयं हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत उसकी शक्ति से वंचित नहीं करती है, हालांकि आमतौर पर एक रिट याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए जब कानून की ओर से प्रभावी और वैकल्पिक उपाय प्रदान किया गया हो।

    जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने गोदरेज सारा ली लिमिटेड बनाम एक्साइज एंड टैक्सेशन ऑफिसर कम असेसिंग अथॉरिटी 2023 लाइवलॉ (एससी) 70, राधा कृष्ण इंडस्ट्रीज बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 222 और व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन बनाम ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार, मुंबई और अन्य (1998) 8 एससीसी 1 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखा।

    पीठ ने कहा,

    "... संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र का प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। यह भी समान रूप से तय है कि वैकल्पिक वैधानिक उपाय की उपलब्धता एक पूर्ण रोक नहीं है, बल्कि यह स्वयं का थोपा गया अनुशासन/प्रतिबंध का नियम और सार्वजनिक नीति है,

    और वर्लपूल कॉर्पोरेशन (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए अपवाद के अंतर्गत आने वाले कुछ मामलों में, वैकल्पिक वैधानिक उपाय की उपलब्धता के मद्देनजर भी, यह न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने का निर्णय कर सकता है।"

    मामला

    न्यायालय राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ की ओर से दायर एक विशेष अपील/ इंट्रा-कोर्ट अपील, जिसमें एकल न्यायाधीश की ओर से पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अपीलकर्ता-संस्थान की ओर से उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति, जो प्रतिवादी संख्या एक (डॉ. चारू महाजन) की ओर से दायर रिट याचिका की स्थिरता/ सुनवाई की योग्यता के संबंध में थी, को खारिज कर दिया गया था।

    अपने आदेश में, एकल न्यायाधीश ने अपीलकर्ता-संस्थान को रिट याचिका में प्रतिवादी संख्या एक -याचिकाकर्ता की ओर अंतरिम राहत प्रदान करने के लिए किए गए अनुरोध पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए भी कहा था।

    प्रतिवादी संख्या एक-मूल याचिकाकर्ता डॉ चारू महाजन को (दिसंबर 2016 में संस्थान के निदेशक की ओर से जारी आदेश के तहत प्रसूति और स्‍त्री रोग विभाग में मातृत्व और बाल कल्याण-सह-व्याख्याता/सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया था। हालांकि 2018 में जनहित याचिका दायर की गई, जिमें संस्थान में शिक्षण संकायों के चयन में कथित कदाचार के संबंध में तत्कालीन निदेशक के निर्णय पर सवाल उठाए गए।

    इसके बाद महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा ने एक जांच की, जिसमें कुछ विसंगतियां पाई गईं और उचित कार्रवाई करने के निर्देश के साथ मामला राज्य सरकार के समक्ष लंबित था।

    बाद में इस मामले पर बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने विचार किया, जिसमें यह पाया गया कि प्रतिवादी संख्या एक-याचिकाकर्ता को संबंधित विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर अनियमित रूप से नियुक्त किया गया था और उसी के अनुसार निदेशक मंडल ने निर्णय लिया कि निदेशक को इसके लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए। प्रतिवादी संख्या एक-याचिकाकर्ता की सेवा को समाप्त करने के लिए उसकी नियुक्ति को शुरू से ही शून्य माना गया और फलस्वरूप, उसे बर्खास्त कर दिया गया।

    बर्खास्तगी को उन्होंने एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी, जिसमें उन्होंने निदेशक मंडल के उस प्रस्ताव को भी चुनौती दी, जिसमें उनकी नियुक्ति को शुरू से ही शून्य माना गया था।

    उनका प्राथमिक मामला यह था कि जांच के दरमियान, उन्हें उन गवाहों से जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई, जो उनके मामले के लिए आवश्यक थे।

    जब मामला एकल न्यायाधीश के समक्ष पेश हुआ तो संबंधित संस्थान ने रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने के संबंध में आपत्ति उठाई। यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी संख्या एक के पास अपनी शिकायत के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान अधिनियम, 2015 की धारा 42 के तहत एक वैकल्पिक उपाय था, हालांकि जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, एकल न्यायाधीश ने आदेश के माध्यम से आपत्ति को खारिज कर दिया। जिसके बाद खंडपीठ के समक्ष मौजूदा अपील दायर की गई।

    अपने आदेश में सिंगल जज ने व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया कि उनके सामने पेश किए गए मामले के तथ्यों ने उन्हें रिट याचिका पर विचार करने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करने के लिए राजी किया।

    व्हर्लपूल (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे अपवादों की पहचान की थी, जिनकी मौजूदगी होने पर एक रिट अदालत को एक रिट याचिका पर विचार करने को न्यायोचित ठहराया जाएगा, भले ही पक्ष ने कानून की ओर से दिए गए वैकल्पिक उपाय का लाभ नहीं उठाया हो।

    (i) जहां रिट याचिका किसी मौलिक अधिकार के प्रवर्तन की मांग करती है;

    (ii) जहां नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हो;

    (iii) जहां आदेश या कार्यवाहियां पूरी तरह अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं; या

    (iv) जहां किसी अधिनियम की शक्तियों को चुनौती दी जाती है।

    डिवीजन बेंच की टिप्पणियां

    शुरुआत में, न्यायालय ने कहा कि रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान करते हुए इस न्यायालय में आने वाले पक्ष द्वारा एक वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता समाप्त नहीं होने से मामला न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं हो जाता है, कि एक रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं रह जाएगी।

    न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या प्रतिवादी संख्या एक के लिए अधिनियम 2015 की धारा 42 के तहत एक वैकल्पिक वैधानिक उपाय की उपलब्धता के मद्देनजर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विवेक के प्रयोग के लिए एकल न्यायाधीश का मामला बनाना उचित था या नहीं?

    इसका उत्तर देने के लिए, न्यायालय प्रथम दृष्टया इस राय पर पहुंचा कि जांच के दौरान कुछ गवाहों से जिरह करने के लिए प्रतिवादी संख्या एक- याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना के लिए एक तर्क मौजूद था और यह कि बिना किसी न्यायोचित कारण के गवाहों की जिरह से इनकार या गवाहों को बुलाने से इनकार करना, जैसी की प्रार्थनी की गई थी, निश्चित रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

    इसे देखते हुए, अदालत ने पाया कि जिस जांच के आधार पर रिट याचिका में दिए गए आदेश को पारित किया गया है वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन से ग्रस्त है और इसलिए, प्रतिवादी संख्या एक द्वारा स्थापित मामला - याचिकाकर्ता व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन (सुप्रा), मैसर्स राधा कृष्ण इंडस्ट्रीज (सुप्रा) और गोदरेज सारा ली लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों में से एक अपवाद के अंतर्गत आता है।

    इसके साथ ही विशेष अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटलः निदेश के माध्यम से डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ और अन्य बनाम डॉ चारू महाजन और अन्य [विशेष अपील संख्या - 228/2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 154

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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