धारा 138, एनआई एक्ट| 'यदि चेक राशि के साथ अन्य राशि अलग से इंगित की गई है तो भी नोटिस अमान्य नहीं ': इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

15 May 2023 2:10 PM GMT

  • धारा 138, एनआई एक्ट| यदि चेक राशि के साथ अन्य राशि अलग से इंगित की गई है तो भी नोटिस अमान्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि एक डिमांड नोटिस पर चेक राशि के साथ अन्य राशियों का उल्लेख एक अलग हिस्से में विस्तार से किया गया है, तो उक्त नोटिस को एनआई एक्ट, 1881 की धारा 138 (बी) की कानूनी शर्तों में गलत नहीं ठहराया जा सकता है।

    1881 अधिनियम की धारा 138 (बी) के अनुसार, चेक के अनादरण पर आदाता या धारक को नियत समय पर चेक आहर्ता को, बैंक से उसकी ओर से दिए गए चेक को भुगतान न होने पर उसकी वापसी की सूचना प्राप्त होने पर,तीस दिन के भीतर लिखित रूप में नोटिस देकर उक्त राशि के भुगतान की मांग करनी होगी।

    मौजूदा मामले में आवेदक (प्रशांत चंद्रा) को विरोधी पक्षों से 50 लाख रुपये का चेक प्राप्त हुआ था। जब इसे बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो यह "अपर्याप्त धन" के कारण अनादरित हो गया।

    एनआई एक्ट की धारा 138 (बी) के अनुसार, आवेदक ने विरोधी पक्षों से भुगतान करने की मांग करते हुए एक डिमांड नोटिस जारी किया। इसके बाद जब 15 दिन की निर्धारित अवधि में भुगतान नहीं किया गया तो आवेदक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने धारा 203 सीआरपीसी के तहत उसकी शिकायत को इस निष्कर्ष के साथ खारिज कर दिया कि आरोपी व्यक्तियों को दिया गया डिमांड नोटिस खराब था, क्योंकि 4 अगस्त, 2022 के डिमांड नोटिस में 50 लाख रुपये की चेक राशि का ब्रेक-अप था और 50 लाख रुपये की अन्य राशि का उल्लेख किया गया था।

    ट्रायल कोर्ट ने आगे यह दर्ज किया गया था कि केवल चेक राशि की मांग की जा सकती थी और 50 लाख और त्रैमासिक ब्याज की मांग नहीं की जा सकती थी। और इस तरह शिकायतकर्ता की ओर से जारी किया गया नोटिस नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 (बी) के प्रावधानों के अनुरूप नहीं था।

    ट्रायल कोर्ट के 25 अप्रैल, 2023 के आदेश के खिलाफ आवेदक ने हाईकोर्ट का रुख किया और ‌डिमांड नोटिस को 50 लाख रुपये की चेक राशि का वैध नोटिस मानने के लिए संबंधित अदालत को और निर्देश देने की मांग की और आरोपी व्यक्तियों को कानून के अनुसार समन भेजने और जल्द से जल्द मुकदमे का समापन करने का निर्देश देने की मांग की।

    निष्कर्ष

    जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि कानून के स्थापित सिद्धांत के अनुसार मांग नोटिस को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए, न कि नोटिस के केवल एक हिस्से पर विचार करना चाहिए और डिमांड नोटिस पर, धारक या प्राप्तकर्ता उक्त राशि के लिए भुगतान करने की मांग कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा, जब धारक चेक राशि के साथ अन्य प्रकार की अन्य राशियों की मांग करता है, तो उसे उस राशि को नोटिस में विवरण के साथ निर्दिष्ट करना होगा और यदि ऐसा किया जाता है, तो यह ऐसे मांग नोटिस के सत्यापन को प्रभावित नहीं करता है।

    कोर्ट ने सुमन सेठी बनाम अजय के चुरीवाल और अन्य (2000) 2 सुप्रीम कोर्ट, 380 के मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसले का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने माना था कि प्रोविज़ो क्लॉज (बी) के अनुसार अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अनुसार, चेक राशि के लिए मांग की जानी चाहिए, हालांकि, "चेक राशि" के अतिरिक्त, ब्याज, जुर्माना आदि के रूप में कोई अन्य राशि अलग से इंगित की जाती है, तो इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है।

    इसे देखते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर डिमांड नोटिस में चेक राशि के साथ अन्य राशियों का अलग से हिस्से में विस्तार से उल्लेख किया गया है तो उक्त नोटिस में दोष नहीं लगाया जा सकता है। इन टिप्पणियों/निर्देशों के साथ, आवेदन की अनुमति दी जाती है और उक्त आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाता है।

    कोर्ट ने पक्ष को सुनने के बाद नया आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस निचली अदालत में भेज दिया।

    केस टाइटलः प्रशांत चंद्र बनाम यूपी राज्य, प्रधान सचिव, गृह के माध्यम से, लखनऊ और अन्य [Appl U/S 482 No. - 4587 of 2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 148

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story