हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

14 May 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (08 मई, 2023 से 12 मई, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    माल की तरह "बेची गईं" नौकरियां: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2016 में भर्ती किए गए 36,000 'अप्रशिक्षित' प्राइमरी टीचर्स की नियुक्ति रद्द की

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 36,000 "अप्रशिक्षित" प्राथमिक विद्यालय शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी। उन्हें 2016 में पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड ने भर्ती किया था। जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की सिंगल जज बेंच ने कहा, "बोर्ड की ओर से 2016 में आयोजित चयन प्रक्रिया में हुई घोर अवैधता से यह स्पष्ट है कि बोर्ड और इसके अधिकारियों सहित इसके पूर्व अध्यक्ष (जिन्हें बड़े पैमाने पर पैसों के लेनदेन के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तारी किया है) ने पूरे मामले को एक स्थानीय क्लब के मामले की तरह अंजाम दिया, और अब यह धीरे-धीरे प्रवर्तन निदेशालय की जांच से सामने आ रहा है कि प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की नौकरियां वास्तव में कुछ ऐसे उम्मीदवारों को बेची गईं, जिनके पास रोजगार खरीदने के लिए पैसा था। इस नतीजे में किए गए भ्रष्टाचार की पश्चिम बंगाल राज्य में जानकारी नहीं थी। पूर्व शिक्षा मंत्री, बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और कई बिचौलिए, जिनके माध्यम से नौकरियों को एक माला की तरह बेचा गया था, अब सलाखों के पीछे हैं और सीबीआई और ईडी की जांच अब पूरी तरह जारी है।"

    केस टाइटल: प्रियंका नस्कर व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जम्मू-कश्मीर पुलिस नियमावली बिना कारण बताए प्रोबेशनर को डिस्चार्ज करने की अनुमति देती है लेकिन बिना जांच के कोई कलंकित साइटेशन नहीं दिया जा सकता: हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू एंड कश्मीर पुलिस नियमावली के तहत प्रोबेशन पीरियड व्यक्ति की छुट्टी के लिए कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए माना है कि एक व्यक्ति को निर्णय के पीछे के कारणों को निर्दिष्ट किए बिना छुट्टी दी जा सकती है। हालांकि, अगर निर्वहन आदेश में अवलंबी की सेवा में कमियों का हवाला दिया जाता है तो इसे कलंक माना जा सकता है और कानूनी कार्यवाही में नहीं हो सकता।

    चीफ जस्टिस कोटेश्वर सिंह और जस्टिस वसीम सादिक नरगल की खंडपीठ ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अवलोकन किया, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी), जम्मू द्वारा पारित निर्णय का विरोध किया, जिसके आधार पर डिस्चार्ज के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: शमीम अहमद बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ज्ञानवापी - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई को 'शिव लिंग' को नुकसान पहुंचाए बिना उसका वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को 'शिव लिंग' का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया है, जो कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर कथित तौर पर पाए गए हैं, जिससे इसकी उम्र का पता लगाया जा सके। जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा-I की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। हाईकोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के 14 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली 4 महिला हिंदू उपासकों द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सुदर्शन न्यूज, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को मुस्लिम व्यक्ति पर जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाने वाली खबरों को हटाने का आदेश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुदर्शन न्यूज सहित कुछ समाचार चैनलों और यूट्यूब, गूगल और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को उन समाचार रिपोर्टों के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया, जिनमें एक मुस्लिम व्यक्ति पर एक महिला को जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया गया है।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की पीठ अज़मत अली खान द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें दिल्ली की महिला द्वारा 19 अप्रैल को दर्ज की गई एफआईआर के संबंध में ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित समाचार आइटम और वीडियो को हटाने की मांग की गई, जिसमें उस पर जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया गया।

    केस टाइटल: अज़मत अली खान बनाम भारत संघ व अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    असेसमेंट को फिर से खोलने के लिए बैंक स्टेटमेंट और सहायक दस्तावेजों पर अविश्वास करने के कारण देने की जिम्मेदारी एओ की: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि मूल्यांकन को फिर से खोलने के लिए बैंक स्टेटमेंट और सहायक दस्तावेजों पर अविश्वास करने के कारण बताने की जिम्मेदारी एओ की है। जस्टिस धीरज सिंह ठाकुर और जस्टिस कमल खाता की खंडपीठ ने पाया कि एओ ने इनकम टैक्स एक्ट की धारा 148 के सपठित धारा 147 के तहत शक्तियों के प्रयोग में असेसमेंट को फिर से खोलने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा से अधिक कार्य किया है।

    केस टाइटल: एम/एस. अदिति कंस्ट्रक्शन बनाम आयकर उपायुक्त

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    फैमिली कोर्ट को तब कदम उठाना चाहिए जब पत्नी पति के व्यभिचार को साबित करने के लिए सबूत जुटाने में मदद लेना चाहती है, निजता का अधिकार पूर्ण नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि एक पत्नी फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक याचिका में पति के खिलाफ व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए सबूत या दस्तावेजों को जुटाने की तलाश कर सकती है और यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा, ‘‘... जब एक पत्नी ऐसे सबूतों को जुटाने के लिए अदालत की मदद लेती है, जो उसके पति की ओर से व्यभिचार को साबित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे, तो अदालत को कदम उठाना चाहिए; यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा, जो अदालत को एक ऐसे सबूत पर विचार करने के लिए एक मार्ग देता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य या प्रासंगिक नहीं हो सकता है।”

    केस टाइटल-एसए बनाम एमए

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 34, एसआरए | वाद संपत्ति में वादी सह-भागीदार हो तो बिक्री विलेख रद्द करने के मुकदमे में कब्जे की राहत की आवश्यकता नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में पाया कि वादी द्वारा बिक्री विलेख को रद्द करने के मुकदमे में कब्जे की राहत की मांग करने की आवश्यकता नहीं है, जब वादी वाद संपत्ति में सह-हिस्सेदार है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 के प्रावधान के तहत मुकदमा नहीं चलेगा।

    केस टाइटल: मनोरमा और अन्य बनाम सुधा और अन्य। [CRR 288/2023]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    कोर्ट घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम मामले में हलफनामे पर साक्ष्य की अनुमति दे सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के नियम 6(5) के साथ पठित धारा 28 (1) के तहत मामले में हलफनामे पर साक्ष्य की अनुमति दे सकता है।

    जस्टिस समीर जे दवे की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, “अदालत अपने विवेक से हलफनामे पर साक्ष्य की अनुमति दे सकती है और डी.वी. के उद्देश्यों और उद्देश्यों पर विचार कर सकती है। अधिनियम की धारा 28(2) के दायरे सहित, अदालत नियम 6(5) के साथ पठित धारा 28 की उप धारा (1) के तहत उल्लिखित प्रक्रिया से विचलित हो सकती है और अपनी स्वयं की प्रक्रिया तैयार कर सकती है जिसमें एक हलफनामे के माध्यम से साक्ष्य की अनुमति शामिल होगी।“

    केस टाइटल: समीरकुमार चंदूभाई जोशी बनाम गुजरात राज्य व अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    [OXXII R4 CPC] मृत व्यक्ति के पक्ष में पारित डिक्री शून्य: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक मृत व्यक्ति के पक्ष में पारित डिक्री शून्यत है और इस प्रकार निष्पादन योग्य नहीं है। जस्टिस जीएस अहलूवालिया की खंडपीठ ने ऑर्डर XXII रूल 4 सीपीसी के तहत एक आवेदन की सुनवाई के दरमियान उक्त अवलोकन किया, जिसे उत्तरदाताओं द्वारा उन्हें उस व्यक्ति के कानूनी प्रतिनिधियों के रूप में रिकॉर्ड पर लाने के लिए दायर किया गया था, जो उनके पक्ष में डिक्री पारित होने से पहले गुजर गया था।

    केस टाइटल: रनिया बाई बनाम टेकमणि राठौड़ व अन्य [एस.ए. 1171/2014]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जन सुरक्षा अधिनियम | निवारक हिरासत गिरफ्तारी नहीं, 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी की आवश्यकता नहीं: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंउ लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए जाने को दंड कानून के तहत अपराध करने के लिए गिरफ्तारी नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा, यह हिरासत में लिए गए व्यक्ति की पृष्ठभूमि के आधार पर उसके किसी भी संभावित हानिकारक कार्य से बचने के लिए एक निवारक उपाय है और इसलिए, 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है,

    केस टाइटल: मुंतजिर अहमद भट बनाम यूटी ऑफ जेएंडके।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 73, साक्ष्य अधिनियम | विवादित हस्‍तलिपि से तुलना करने से पहले नमूना दस्तावेज को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 के तहत विवाद में शामिल सभी पक्षों को पहले एक नमूना दस्तावेज स्वीकार करना चाहिए, ‌फिर विवादित हस्ताक्षर या दस्तावेज की हस्तलिपि की तुलना उससे की जानी चाहिए।

    उक्त प्रावधान में निर्धारित आवश्यकताओं की व्याख्या करते हुए जस्टिस विभु प्रसाद राउत्रे की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 अदालत को नमूना या स्वीकृत दस्तावेजों के साथ लेखन की तुलना करने का अधिकार देती है। धारा 73 में प्रयुक्त वाक्यांश 'स्वीकृत या अदालत की संतुष्टि के लिए साबित' इस बात पर विचार करता है कि कथित दस्तावेज में लेखन या हस्ताक्षर की तुलना के लिए लिया गया नमूना दस्तावेज़ निर्विवाद होना चाहिए और विवाद के सभी पक्षों को नमूना हस्ताक्षर या आधार दस्तावेज़ में लेखन को स्वीकार करना चाहिए।

    केस टाइटल: बसी बेवा व अन्य बनाम रायमण‌ि मझियानी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    एमवी एक्ट की धारा 166 | खड़े वाहन से दुर्घटना होने पर भी मुआवजा दिया जा सकता है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि मोटर वाहन अधिनियम (एमवी एक्ट) की धारा 165 के तहत नियोजित अभिव्यक्ति "मोटर वाहनों का उपयोग" में आपत्तिजनक वाहन के कारण होने वाली दुर्घटना शामिल है, जब वह गतिमान नहीं है और स्थिर/खड़ी स्थिति में है।

    जस्टिस विभु प्रसाद राउत्रे की एकल पीठ ने मोटर वाहन दावा ट्रिब्यूनल के विपरीत कहा, “…वाहन के चालक-सह-मालिक द्वारा मृतक को आमंत्रित किया गया, जिससे वह वाहन को खाई से निकालने में मदद कर सके और इस तरह की वापसी के क्रम में दुर्घटना तब हुई जब अपराधी ट्रक मृतक पर पलट गया। इसलिए "मोटर वाहन का उपयोग" खंड के विस्तारित विवरण को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया कि मृतक की मृत्यु आपत्तिजनक ट्रक के उपयोग से उत्पन्न ऐसी चोटों से हुई।"

    केस टाइटल: लतिका साहू व अन्य बनाम रमेश नायक और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जब एक बार आपराधिक अदालत एक व्यक्ति को लापरवाही से ड्राइविंग का दोषी ठहरा चुकी है तो मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण यह नहीं मान सकता कि चालक को कोई और व्यक्ति था: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बार जब सक्षम आपराधिक अदालत दुर्घटना करने वाले वाहन के चालक को दोषी पाता है, उसे तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने और मौत का कारण बनने के आरोप में दोषी ठहराता है तब मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण का निष्कर्ष कि कार का चालक कोई अन्य व्यक्ति था, स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस एन एस संजय गौड़ा की सिंगल जज बेंच ने ट्रिब्यूनल के उस निष्कर्ष को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बीमा कंपनी भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं थी क्योंकि अथौल्ला खान (ड्राइवर) दुर्घटना में शामिल नहीं था, क्योंकि एमएलसी रजिस्टर और घाव प्रमाण पत्र में चालक, जिसने दुर्घटना की थी का नाम अमीर जान खान का पुत्र अख्तर दिखाया गया, जिसने दुर्घटना की थी।

    केस टाइटल: दिलशाद और अथौल्ला खान और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 138, एनआई एक्ट: शिकायत का आधार बनाने वाली लोन की रकम साक्ष्य और जिरह के बाद संशोधित नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को लोन की रकम को बदलने के लिए शिकायत याचिका में संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती है,क्योंकि लोन की रकम ही शिकायत का आधार बनाती है, विशेषकर जब शिकायतकर्ता ने उसी रकम को बताते हुए सबूत पेश किया है। उक्त टिप्पणियों के साथ जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने एक ऐसे आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस प्रकार के संशोधन की अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: छायाकांत आचार्य बनाम समिताव पाण‌ि

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ज्ञानवापी 'विवादास्पद' टिप्पणी केस - पुनरीक्षण याचिका पर वाराणसी कोर्ट ने अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी को फिर नोटिस जारी किया

    वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद के संबंध में कथित रूप से विवादास्पद टिप्पणी करने के लिए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग वाली एक पुनरीक्षण याचिका पर शनिवार को एक बार फिर नोटिस जारी किया। इससे पहले 28 मार्च को कोर्ट ने उन्हें नोटिस जारी किया था , लेकिन कोर्ट में कोई पेश नहीं होने के कारण कोर्ट ने उन्हें दोबारा नोटिस जारी कर दिया।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    केरल पुलिस एक्ट की धारा 57 के तहत एफआईआर लापता व्यक्ति का पता लगाने के लिए है, इसे सीआरपीसी की धारा 154 की तरह एफआईआर नहीं मान सकते: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि केरल पुलिस अधिनियम ('केपी एक्ट') की धारा 57 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) का रजिस्ट्रेशन केवल लापता व्यक्ति का पता लगाने के उद्देश्य से है और इसे सीआरपीसी की धारा 154 के तहत एफआईआर नहीं मान सकते।

    जस्टिस के बाबू की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने केपी एक्ट की धारा 57 की व्याख्या करते हुए देखा, "जब स्टेशन हाउस अधिकारी को संदेह करने के लिए यथोचित रूप से पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है कि कोई व्यक्ति लापता है और यह विश्वास करने की परिस्थितियां हैं कि ऐसा व्यक्ति खतरे में है या संरक्षकता के कानूनी संरक्षण के तहत नहीं है या ऐसे व्यक्ति को खतरे में डाला जा सकता है या किसी को रोकने के लिए फरार हो सकता है किसी भी न्यायालय द्वारा घोषित कानूनी अधिकार को लागू करने से, सूचना को संज्ञेय अपराध के लिए निर्धारित प्रक्रिया के समान तरीके से रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा। स्टेशन हाउस अधिकारी लापता व्यक्ति का पता लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई करेगा।"

    केस टाइटल: मुहम्मद शिराज @ शिराज बनाम केरल राज्य व अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जब शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक मुकदमा शुरू करने में असामान्य देरी हो तो प्रारंभिक जांच आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि जब शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक मुकदमा शुरू करने में असामान्य देरी होती है तो मजिस्ट्रेट के लिए प्रारंभिक जांच का आदेश देना आवश्यक हो जाता है। जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा कि यह जांच अभियोजन प्रक्रिया में किसी भी संभावित बाधा की पहचान करने और देरी के कारणों को निर्धारित करने में मदद कर सकती है, जैसे साक्ष्य या गवाहों का गुम होना।

    केस टाइटल: हरबचन सिंह बनाम सीनियर पुलिस सुपरिटेंडेंट श्रीनगर और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यह आवश्यक नहीं कि आपराधिक मुकदमे के लंबित होने के तथ्य को छुपाने पर नियोक्ता कर्मचारी को बर्खास्त करे : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि एक नियोक्ता उस कर्मचारी को बर्खास्त करने के लिए बाध्य नहीं है जो उसके खिलाफ आपराधिक मामले के लंबित होने के तथ्य को छुपाता है। जस्टिस रोहित बी देव और जस्टिस अनिल एल पंसारे की खंडपीठ ने कहा कि किसी उच्च पद पर किसी व्यक्ति का कोई तथ्य छुपाना, जो प्रकृति में संवेदनशील हो सकता है, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी, जो संवेदनशील पद पर नहीं है, उसके द्वारा किसी तथ्य को छुपाने की तुलना में एक अलग आधार हो सकता है।

    केस टाइटल - बुद्धेश्वर पुत्र बाबूलाल लिल्हारे बनाम महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story