फैमिली कोर्ट को तब कदम उठाना चाहिए जब पत्नी पति के व्यभिचार को साबित करने के लिए सबूत जुटाने में मदद लेना चाहती है, निजता का अधिकार पूर्ण नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

Manisha Khatri

10 May 2023 9:00 PM IST

  • फैमिली कोर्ट को तब कदम उठाना चाहिए जब पत्नी पति के व्यभिचार को साबित करने के लिए सबूत जुटाने में मदद लेना चाहती है, निजता का अधिकार पूर्ण नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि एक पत्नी फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक याचिका में पति के खिलाफ व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए सबूत या दस्तावेजों को जुटाने की तलाश कर सकती है और यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा,

    ‘‘... जब एक पत्नी ऐसे सबूतों को जुटाने के लिए अदालत की मदद लेती है, जो उसके पति की ओर से व्यभिचार को साबित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे, तो अदालत को कदम उठाना चाहिए; यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा, जो अदालत को एक ऐसे सबूत पर विचार करने के लिए एक मार्ग देता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य या प्रासंगिक नहीं हो सकता है।”

    धारा 14 में कहा गया है कि फैमिली कोर्ट किसी भी ऐसी रिपोर्ट, बयान, दस्तावेजों, सूचना या किसी अन्य मामले को सबूत के रूप में प्राप्त कर सकती है, जो उसे लगता है कि यह अदालत को विवाद से निपटने के लिए सहायता कर सकता है, भले ही वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत अन्यथा प्रासंगिक या स्वीकार्य होगा या नहीं।

    अदालत ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती देते हुए पति की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया। फैमिली कोर्ट ने पत्नी के उन आवेदनों को अनुमति दी थी,जिसमें उस होटल के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने की मांग की गई थी, जहां उसका पति कथित रूप से एक महिला के साथ व्यभिचार में लिप्त था और होटल के कमरे के रिकॉर्ड को समन किया गया था।

    पक्षकारों की शादी 1998 में हुई थी और एक बच्ची का जन्म 2000 में हुआ था। हालांकि, पिछले साल पत्नी ने फैमिली कोर्ट के सामने एक याचिका दायर की थी, जिसमें पति के खिलाफ व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की गई थी। उसने आगे आरोप लगाया कि पति का इस व्यभिचारी रिश्ते से एक नाजायज बच्चा भी है।

    यह उसका मामला था कि जब तक कि फैमिली कोर्ट द्वारा निर्देशित जानकारी को रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता है, तब तक वह अपने पति के खिलाफ आरोप साबित करने में सक्षम नहीं हो सकती है।

    हाईकोर्ट के समक्ष पति के वकील ने व्यभिचार और क्रूरता के आरोपों का विरोध किया और कहा कि वह केवल अपनी एक दोस्त से मिला था, जो अपनी बेटी के साथ उस समय संयोग से उसी होटल में रूकी थी।

    यह प्रस्तुत किया गया कि फैमिली कोर्ट ने फिशिंग जांच और पूछताछ का निर्देश नहीं दिया था ताकि पत्नी के लिए सबूत एकत्र किया जा सके।

    पति ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा मांगी गई जानकारी का प्रकटीकरण उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और इससे उस महिला और उसके नाबालिग बच्चे की भी निजता का उल्लंघन होगा।

    पति को राहत देने से इनकार करते हुए, जस्टिस पल्ली ने कहा कि पत्नी ने न केवल विभिन्न तस्वीरों को रिकॉर्ड पर रखा है, जिसमें पति को महिला मित्र के साथ ‘‘करीब निकटता’’ में दिखाया गया है, बल्कि कमरे और तारीखों का विवरण भी प्रदान किया है, जिस-जिस दिन उसके अनुसार उसका पति उस महिला के साथ रहा था।

    कोर्ट ने कहा,“प्रतिवादी याचिकाकर्ता की पूर्व पत्नी है, जिसके पास स्पष्ट रूप से अपने पति के व्यभिचार के कृत्यों में लिप्त होने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 का सहारा लेकर, वह केवल उन सबूतों को जुटाने की कोशिश कर रही है, जो वह यथोचित मानती है कि वह व्यभिचार के उसके आरोप को साबित करेंगे, जिसका इसकी प्रकृति के कारण केवल परिस्थितियों से ही अनुमान लगाया जा सकता है।’’

    इसके अलावा, यह माना गया कि पत्नी पति के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनाने में सक्षम रही है और यह कि वह जो जानकारी मांग रही है, वह व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए प्रासंगिक होगी।

    यह देखते हुए कि अदालत को पत्नी और पति के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा, अदालत ने कहाः

    ‘‘... मैं प्रतिवादी की याचिका को स्वीकार करने के लिए इच्छुक हूं। याचिकाकर्ता का दावा पूरी तरह से निजता के अधिकार पर आधारित है, जैसा कि के.एस. पुटुस्वामी (सुप्रा) और जोसेफ शाइन (सुप्रा) में माना गया है,जो एक पूर्ण अधिकार नहीं है; दूसरी ओर, प्रतिवादी की प्रार्थना न केवल नैतिकता पर आधारित है, बल्कि हिंदू विवाह अधिनियम और फैमिली कोर्ट्स एक्ट के तहत दिए गए विशिष्ट अधिकारों पर भी आधारित है। इसलिए, मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि प्रतिवादी का अधिकार प्रबल होना चाहिए और इसलिए, उपरोक्त आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।’’

    अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेश केवल रिकॉर्ड को पेश करने से संबंधित हैं और इस सवाल पर विचार नहीं करते हैं कि क्या रिकॉर्ड अपने आप में पति के खिलाफ व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त होगा?

    यह देखते हुए कि सबूतों की पर्याप्तता का निर्धारण करने का चरण अभी तक आना बाकी है, अदालत ने कहाः

    “लगाए गए आदेशों के माध्यम से फैमिली कोर्ट ने ऐसे रिकॉर्ड मांगे हैं जो केवल प्रतिवादी के पति से संबंधित हैं, न कि उसकी दोस्त या उसकी बेटी से संबंधित हैं। इसलिए, किसी भी तरीके से उनके अधिकार का उल्लंघन किए जाने का कोई सवाल नहीं है।”

    केस टाइटल-एसए बनाम एमए

    साइटेशन- 2023 लाइवलॉ (डीईएल) 390

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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