धारा 138, एनआई एक्ट: शिकायत का आधार बनाने वाली लोन की रकम साक्ष्य और जिरह के बाद संशोधित नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

Avanish Pathak

8 May 2023 7:54 AM GMT

  • धारा 138, एनआई एक्ट: शिकायत का आधार बनाने वाली लोन की रकम साक्ष्य और जिरह के बाद संशोधित नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    Orissa High Court

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को लोन की रकम को बदलने के लिए शिकायत याचिका में संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती है,क्योंकि लोन की रकम ही शिकायत का आधार बनाती है, विशेषकर जब शिकायतकर्ता ने उसी रकम को बताते हुए सबूत पेश किया है।

    उक्त टिप्पणियों के साथ जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने एक ऐसे आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस प्रकार के संशोधन की अनुमति दी गई थी।

    पीठ ने कहा,

    “फिर भी, तथ्य यह है कि ऋण राशि में बदलाव नहीं हो सकता क्योंकि वही शिकायत का आधार बनती है। यह निश्चित रूप से मामले की प्रकृति और चरित्र को बदल देगा। जाहिर है, शिकायतकर्ता को मुकदमे के बीच में ही अपने मामले की नींव बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    विपक्ष ने ‌निचली अदालत में परिवाद दायर कर यह दावा किया ‌था कि अभियुक्त-याचिकाकर्ता ने उनसे 6,60,000 रुपये की राशि 15 दिनों के भीतर वापस करने के आश्वासन के साथ ली थी। हालांकि, उन्होंने रकम नहीं चुकाई। बहुत अनुनय-विनय के बाद, याचिकाकर्ता ने 7,20,000/- रुपये की राशि का चेक जारी किया।

    हालांकि, जब उक्त चेक बैंक में प्रस्तुत किया गया, तो यह अपर्याप्त धन के आधार पर बाउंस हो गया। इसलिए, शिकायतकर्ता ने आरोपी को राशि की वसूली के लिए एक कानूनी नोटिस जारी किया, लेकिन भुगतान नहीं होने पर उसने शिकायत दर्ज की।

    सुनवाई के दरमियान, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों की जांच के बाद, शिकायतकर्ता ने सीपीसी के आदेश 6, नियम 17 के तहत शिकायत याचिका के साथ-साथ अपने साक्ष्य हलफनामे में संशोधन करने के लिए एक याचिका दायर की। यह विशेष रूप से दावा किया गया था कि 6,60,000/- रुपये के आंकड़े को प्रतिस्थापित करते हुए शिकायत याचिका में 7,20,000/- का उल्लेख किया जाना चाहिए। इसी तरह साक्ष्य हलफनामे में भी बदलाव की मांग की गई।

    याचिकाकर्ता ने यह स्टैंड लेते हुए एक लिखित आपत्ति दायर की कि प्रस्तावित संशोधन मामले की प्रकृति और चरित्र को बदल देगा, जिससे उसके प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा होगा। हालांकि, निचली अदालत ने याचिका मंजूर कर ली। इसलिए, याचिकाकर्ता ने इस तरह के संशोधन की अनुमति देने वाले आदेश को रद्द करने की प्रार्थना के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि उसने 6,60,000/- रुपये लिए थे, जिसके एवज में उसने 7,20,000/- रुपये का चेक जारी किया। चेक के बाउंस होने पर, शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस दिया और शिकायत याचिका दायर की जिसमें 6,60,000/ रुपये का उल्लेख किया गया था।, उन्होंने इतनी ही रकम का जिक्र करते हुए सबूत भी पेश किया। अब, राशि को बदलकर 7,20,000/- करने की मांग करते हुए, शिकायतकर्ता अधिक राशि प्राप्त करना चाहता है।

    अदालत ने शिकायतकर्ता के वकील द्वारा जारी कानूनी नोटिस का अवलोकन किया, जिसमें पता चला कि आरोपी ने 6,60,000/- रुपये की राशि ली थी। शिकायत बिल्कुल उन्हीं तथ्यों पर दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने एक हलफनामे के रूप में अपना साक्ष्य भी उन्हीं तथ्यों को बताते हुए प्रस्तुत किया। इसी आधार पर आरोपितों ने उससे जिरह की।

    हालांकि, उसके बाद उन्होंने यह स्टैंड लेते हुए शिकायत में संशोधन की मांग की कि 6,60,000/ रुपये गलत टाइप किए गए थे। शिकायतकर्ता के तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

    "यह अदालत यह समझने में विफल रही है कि इसे टाइपोग्राफ़िकल त्रुटि के रूप में कैसे माना जा सकता है जब कानूनी नोटिस में ही ऋण राशि का उल्लेख 6,60,000/- रुपये के रूप में किया गया है।

    इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने अपने साक्ष्य हलफनामे में यह भी कहा है कि 30 नवंबर, 2019 को याचिकाकर्ता ने 6,60,000/ रुपये की राशि ली थी। शपथ पर इस तरह के बयान पर उसकी जिरह की गई थी। इसके अलावा, उन्होंने अपने साक्ष्य हलफनामे में कहा कि यह उनके लिखे अनुसार तैयार किया गया था और इसकी सामग्री को समझने के बाद, उन्होंने इस पर अपना हस्ताक्षर किया था।

    दोबारा, जिरह में शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने याचिकाकर्ता-आरोपी को 6,60,000/- रुपये दिए थे। इस प्रकार, रिकॉर्ड पर सभी सामग्रियों को ध्यान में रखने के बाद, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि ऋण की राशि वास्तव में 6,60,000/- रुपये बताई गई थी और ऋण राशि में बदलाव नहीं हो सकता क्योंकि वही शिकायत का आधार है।

    अदालत ने टिप्पणी की, "यह विश्वास नहीं किया जा सकता है कि शिकायत याचिका में तथाकथित टाइपिंग त्रुटि शिकायतकर्ता के संज्ञान में तब आई जब उसने मामले में सबूत पेश किए।"

    तदनुसार, याचिका में संशोधन की अनुमति देने वाले अवर न्यायालय के आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: छायाकांत आचार्य बनाम समिताव पाण‌ि

    केस नंबर: Case No.: CRLMC No. 1218 of 2023

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Ori) 56


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