धारा 73, साक्ष्य अधिनियम | विवादित हस्‍तलिपि से तुलना करने से पहले नमूना दस्तावेज को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

Avanish Pathak

9 May 2023 10:27 AM GMT

  • धारा 73, साक्ष्य अधिनियम | विवादित हस्‍तलिपि से तुलना करने से पहले नमूना दस्तावेज को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 के तहत विवाद में शामिल सभी पक्षों को पहले एक नमूना दस्तावेज स्वीकार करना चाहिए, ‌फिर विवादित हस्ताक्षर या दस्तावेज की हस्तलिपि की तुलना उससे की जानी चाहिए।

    उक्त प्रावधान में निर्धारित आवश्यकताओं की व्याख्या करते हुए जस्टिस विभु प्रसाद राउत्रे की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

    “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 अदालत को नमूना या स्वीकृत दस्तावेजों के साथ लेखन की तुलना करने का अधिकार देती है। धारा 73 में प्रयुक्त वाक्यांश 'स्वीकृत या अदालत की संतुष्टि के लिए साबित' इस बात पर विचार करता है कि कथित दस्तावेज में लेखन या हस्ताक्षर की तुलना के लिए लिया गया नमूना दस्तावेज़ निर्विवाद होना चाहिए और विवाद के सभी पक्षों को नमूना हस्ताक्षर या आधार दस्तावेज़ में लेखन को स्वीकार करना चाहिए।

    मामला

    लंगा मांझी नामक व्य‌क्ति की दो पत्नियां मूल वादी थीं। वर्तमान प्रतिवादी लंगा मांझी की बेटी है। दोनों वादियों की मृत्यु के बाद बेटी ने उन्हें प्रतिस्थापित किया था। वाद अनुसूची- 'बी' भूमि मूल रूप से लंगा मांझी की थी।

    मूल वादी ने आरोप लगाया था कि मूल प्रतिवादी के पिता और उसके बाद, प्रतिवादी ने वाद अनुसूची-बी भूमि पर जबरन कब्जा कर रखा है। इसलिए, उन्होंने उक्त भूमि पर अपने अधिकार, स्वामित्व, हित और कब्जे की घोषणा के साथ-साथ मध्यवर्ती लाभ की प्रार्थना की।

    प्रतिवादियों का मामला यह है कि वाद भूमि मूल प्रतिवादी के पिता मधु माझी ने 8 फरवरी, 1947 को 3,500/- रुपये की प्रतिफल राशि का भुगतान कर खरीदी थी। संबंधित 'चुक्त‌ि-पत्र' (सशर्त बिक्री विलेख) Ext.A के तहत पेश किया गया था।

    Ext.3 के तहत एक दस्तावेज अदालत के समक्ष पेश किया गया था, जो वर्तमान मामले से असंबद्ध ग्रामीणों की एक कार्यवाही का कथित दस्तावेज है, जहां Ext.A के मुंशी, हरिहर माझी ने अपने हस्ताक्षर किए थे। लंगा मांझी पूरी तरह से अनपढ़ थे, जिन्होंने अपने बाएं अंगूठे का निशान Ext.A पर लगाया था, जिसे हरिहर मांझी ने लिखा था।

    हालांकि, Ext.3 के तहत हरिहर मांझी के हस्ताक्षर प्रतिवादी ने स्वीकार नहीं किए गए थे। Ext.3 को चिह्नित करने के समय, प्रतिवादियों ने इसका विरोध किया था और प्रतिवादी द्वारा आपत्ति के नोट के साथ ट्रायल कोर्ट द्वारा चिह्नित किया गया था।

    ट्रायल कोर्ट ने वादी के खिलाफ निर्णय देते हुए वाद को खारिज कर दिया और लंगा माझी द्वारा मूल प्रतिवादी के पिता के पक्ष में बिक्री की पुष्टि की। व्यथित होकर, वादी ने जिला न्यायाधीश, बारीपदा के समक्ष अपील दायर की।

    अपीलीय अदालत ने अपील की अनुमति दी और अभियोगी के पक्ष में यह कहते हुए मुकदमे का फैसला सुनाया कि Ext.A एक जाली दस्तावेज है। जिला न्यायाधीश द्वारा यह आयोजित किया गया था कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए Ext-A पर हस्ताक्षर की तुलना Ext-3 से करने पर, Ext-ए पर मुंशी हरिहर मांझी के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं पाए गए।

    जिला जज के निर्णय से व्यथित होकर मूल प्रतिवादियों ने द्वितीय अपील में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायालय ने निर्णय लेने के लिए निम्नलिखित प्रश्न पेश किया- "क्या भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 के तहत दो दस्तावेजों के बीच हस्ताक्षर की तुलना नमूना दस्तावेज के संबंध में पार्टियों की स्वीकृति के बिना पूर्ण और संतोषजनक होगी?"

    निष्कर्ष

    न्यायालय की राय थी कि धारा 73 के तहत प्रयुक्त वाक्यांश 'स्वीकृत या अदालत की संतुष्टि के लिए साबित' के लिए आवश्यक है कि कथित दस्तावेज में लेखन या हस्ताक्षर की तुलना के लिए लिया गया नमूना निर्विवाद होना चाहिए और विवाद के सभी पक्षों आधार दस्तावेज में नमूना हस्ताक्षर या लेखन को स्वीकार करना चाहिए।

    इसने कहा, यदि एक पक्ष नमूना दस्तावेज को स्वीकार करने से इनकार करता है, या विवाद करता है, तो यह आवश्यक है कि न्यायालय पहले संतुष्ट हो कि नमूना दस्तावेज पर हस्ताक्षर या लेखन संबंधित व्यक्ति का होना साबित होता है और उसके बाद ही तुलना के लिए आगे बढ़ना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्तमान मामले में, Ext.A पर Ext.3 के साथ हस्ताक्षर की तुलना करने से पहले विद्वान प्रथम अपीलीय न्यायालय धारा 73 के तहत इस बुनियादी आवश्यकता पर ध्यान देना भूल गए हैं। वह Ext.A पर हस्ताक्षर की तुलना Ext.3 के साथ करने के लिए आगे बढ़े, जो कि मूल नियम का उल्लंघन था कि Ext.3 के तहत हस्ताक्षर प्रतिवादी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था और विवादित था। "

    इसलिए, प्रथम अपीलीय न्यायालय का संपूर्ण निष्कर्ष, जो जिला न्यायाधीश की राय पर आधारित था कि Ext.A पर हरिहर माझी के हस्ताक्षर Ext. 3 पर हस्ताक्षर से अलग हैं, को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: बसी बेवा व अन्य बनाम रायमण‌ि मझियानी

    केस नंबर : सेकंड अपील नंबर 251, 1991

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Ori) 57

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