हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

30 April 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 अप्रैल, 2023 से 28 अप्रैल, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    ऑर्डर XLI रूल 22 सीपीसी | डिक्री धारक के लिए अपील में क्रॉस-ऑब्जेक्शन दर्ज करना अनिवार्य नहीं है, यदि डिक्री में संशोधन की संभावना नहीं: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि डिक्री धारक के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह अपील में एक लिखित प्रति-आपत्ति प्रस्तुत करे, यदि वे यह दावा कर रहे हैं कि डिक्री संशोधित करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि डिक्री धारक को उन मामलों में अपनी प्रति-आपत्ति दर्ज करनी होगी, जहां उनका तर्क है कि डिक्री को संशोधित किया जा सकता है- एक डिक्री धारक क्रॉस-ऑब्जेक्शन दाखिल करके निष्कर्षों को चुनौती दे सकता है। हालांकि यदि डिक्री धारक के पक्ष में दी गई डिक्री, निष्कर्षों को रद्द करने के बाद भी संशोधित करने के लिए उत्तरदायी नहीं है तो लिखित रूप में प्रति-आपत्ति दाखिल करना आवश्यक नहीं है और डिक्री धारक हमेशा अपीलीय कोर्ट के समक्ष मौखिक रूप से चुनौती देकर निष्कर्षों पर आपत्ति जता सकता है। हालांकि, जहां डिक्री को संशोधित किया जा सकता है, वहां लिखित में क्रॉस-ऑब्जेक्शन अनिवार्य है।"

    केस टाइटल: श्रीमती हिरिया बाई बनाम बूटा व अन्य [एसए 154/2017]

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    प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना किसी भी व्यक्ति को आजीविका के स्रोत से वंचित नहीं किया जा सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसल में कहा कि भले ही कोई व्यक्ति किसी अथॉरिटी को, उसकी ओर से से मांगे गए दस्तावेजों को सौंप देता है, यह अथॉरिटी को उस व्यक्ति के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की अवहेलना करने की खुली छूट नहीं देता है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना कोई खोखली औपचारिकता नहीं है। किसी भी व्यक्ति को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना और कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसकी संपत्ति या आजीविका के स्रोत से वंचित नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: जहूर अहमद भट बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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    मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति और अनुग्रह राशि का भुगतान उसे मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे से वंचित नहीं करता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना में मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति और अनुग्रह राशि (स्वैच्छिक) भुगतान उसे मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे से वंचित नहीं करता। जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल द्वारा दूरसंचार कंपनी में सहायक तकनीशियन के परिवार को दिए गए मुआवजे के खिलाफ रिलायंस जनरल इंश्योरेंस की अपील को खारिज कर दिया, जिसकी मोटर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।

    केस टाइटल- रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मंजुला कबीराज दास और अन्य।

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    धारा 190 (1) (बी) सीआरपीसी | मजिस्ट्रेट धारा 164 सीआरपीसी के बयान के आधार पर भी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है, यदि उसकी प्रथम दृष्टया संलिप्तता पाई जाती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में क‌हा कि सीआरपीसी की धारा 190 (1) (बी) के संदर्भ में एक पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अपराध का संज्ञान लेने वाला एक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए बयान के आधार पर भी सम्मन जारी कर सकता है, भले ही ऐसे व्यक्ति को पुलिस रिपोर्ट या एफआईआर में आरोपी के रूप में आरोपित नहीं किया गया हो।

    जस्टिस मंजू रानी चौहान की खंडपीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि किसी अपराध का संज्ञान लेने पर व्यक्तियों को बुलाने से पहले, मजिस्ट्रेट को उनके पास उपलब्ध सामग्रियों की जांच करनी होती है ताकि प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि पुलिस द्वारा भेजे गए के अलावा, कुछ अन्य व्यक्ति अपराध में शामिल हैं।

    केस टाइटलः आसिफ अहमद सिद्दीकी बनाम यूपी राज्य और अन्य [Appl U/S 482 No. - 5500 of 2023]

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    सीपीसी | जम्मू-कश्मीर में लिखित बयान दाखिल करने के लिए 120 दिन की अवधि अनिवार्य, कोर्ट के पास इसे बढ़ाने का अधिकार नहीं: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908, जहां तक जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में इसकी प्रयोज्यता है, प्रतिवादी को लिखित बयान दर्ज करने के लिए अधिकतम 120 दिनों की अवधि प्रदान करता है, जिसमें विफल रहने पर प्रतिवादी लिखित बयान दर्ज करने का अधिकार खो देता है। उसके बाद कोर्ट लिखित बयान को किसी भी प्रकार से रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति नहीं देगी।

    केस टाइटल: राजिंदर सिंह मन्हास बनाम अनिल गैंद और अन्य।

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    परोपकारी सरोगेसी का अर्थ बाहरी व्यक्ति के माध्यम से सरोगेसी होना चाहिए, अधिनियम में 'आनुवांशिक रूप से संबंधित' खंड परोपकार और तर्क, दोनों के खिलाफ: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कि सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्‍ट, 2021 का यह प्रावधान कि एक सरोगेट मां को इच्छुक जोड़े से "आनुवांशिक रूप से संबंधित" होना अनिवार्य है, परोपकार और तर्क दोनों के खिलाफ है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा, "धारा 2(1)(जेडजी) में आया शब्द "आनुवांशिक रूप से संबंधित" का आशय केवल यह हो सकता है कि सरोगेसी के जर‌िए पैदा होने वाला बच्चा आनुवंशिक रूप से इच्छुक जोड़े से संबंधित होना चाहिए। ऐसा ना होने पर, आनुवंशिक रूप से संबंधित शब्दों का कोई अर्थ नहीं होगा...।"

    केस टाइटल: एच सिद्धाराजू और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य।

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    बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए पूर्वव्यापी नाम और लिंग परिवर्तन को सक्षम करने के लिए शिक्षण संस्थानों को निर्देशित करने का आदेश दिया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि वह राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थानों को अपने रिकॉर्ड में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए पूर्वव्यापी नाम और लिंग परिवर्तन को सक्षम करने के लिए निर्देश जारी करे। जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के पास ऐसे परिवर्तनों के लिए अपनी वेबसाइटों पर एक फॉर्म होना चाहिए, यानी नाम में बदलाव और लिंग में बदलाव को ध्यान में रखते हुए।

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    एनडीपीएस मामले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद धारा 36ए (4) के तहत हिरासत बढ़ाने के आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि एनडीपीएस मामले में एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद, अभियुक्तों की हिरासत को 180 दिनों से अधिक बढ़ाने का आदेश लागू नहीं होता है। अदालत ने कहा कि एक याचिकाकर्ता को हिरासत के विस्तार के उक्त आदेश को ऐसे समय में चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है जब यह अस्तित्व में नहीं है।

    जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा: "वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं ने जांच पूरी होने से पहले हिरासत की अवधि बढ़ाने के आदेश का विरोध नहीं किया। जांच के निष्कर्ष पर और शिकायत प्रस्तुत करने पर आरोप पत्र दाखिल करने के बाद 180 दिनों से अधिक हिरासत में रखने का विवादित आदेश अब जीवित नहीं है। एक वादी को ऐसे समय में किसी आदेश को चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती जब वह अब अस्तित्व में नहीं है।"

    केस का शीर्षक: रे महाराज सिंह और अन्य बनाम कस्टम

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    भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत कला या व्यंग्य के लिए सेलिब्रिटी के नाम, छवियों का उपयोग करने की अनुमति ; प्रचार के अधिकार का उल्लंघन नहीं करते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कला, व्यंग्य, समाचार या संगीत के लिए सेलिब्रिटी के नाम या छवियों का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के एक पहलू के रूप में स्वीकार्य होगा और सेलिब्रिटी के प्रचार के अधिकार का उल्लंघन नहीं करेगा।

    टाइटल: डिजिटल कलेक्टिबल्स पीटीई लिमिटेड और अन्य बनाम गैलेक्टस फनवेयर टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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    मध्यस्थता अधिनियम का उल्लंघन होता है तो पार्टी किसी भी स्तर पर मध्यस्थ की नियुक्ति को चुनौती दे सकती है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अगर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का कोई उल्लंघन होता है तो एक पक्ष किसी भी स्तर पर मध्यस्थ की नियुक्ति को चुनौती दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि भले ही अवार्ड देनदार ने मध्यस्थता की कार्यवाही में भाग लिया हो या, एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति की जानकारी होने के बाद, धारा 13 के संदर्भ में उक्त नियुक्ति को चुनौती देने में विफल रहा हो, यह उसे A&C एक्ट की धारा 12(5) के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए धारा 34 के तहत उक्त नियुक्ति को चुनौती देने के अधिकार से वंचित नहीं करेगा ।

    केस टाइटल: पी चेरन बनाम मेसर्स जेमिनी इंडस्ट्रीज एंड इमेजिंग लिमिटेड

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    निचली अदालतों द्वारा तथ्यों और कानून पर गलत निष्कर्ष अनुच्छेद 227 के तहत अदालत में जाने का औचित्य नहीं दे सकता है जब तक कि निचली अदालतों के आदेश के कारण न्याय का स्पष्ट गर्भपात न हुआ हो: जम्मू- कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत निचली अदालत द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें एक विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा गया था। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों द्वारा तथ्यों और कानून पर गलत निष्कर्ष अनुच्छेद 227 के तहत अदालत में जाने का औचित्य नहीं दे सकता है जब तक कि निचली अदालतों द्वारा पारित आदेश के कारण न्याय का स्पष्ट गर्भपात न हुआ हो।

    केस टाइटल: अजय ऑटो मोबाइल्स बनाम टीवीएस मोटर कंपनी लिमिटेड और अन्य

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    जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र, सेवा विवाद अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड स्वायत्त निकाय है, जिसका सरकार द्वारा कोई व्यापक या गहरा नियंत्रण नहीं है। इसलिए बैंक के कार्य निजी कानून के दायरे में आते हैं, जिसमें इसके कर्मचारियों के साथ सेवा विवाद भी शामिल है। इसलिए उक्त याचिका न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं।

    उप महाप्रबंधक गुलाम रसूल डार द्वारा दायर सर्विस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया गया, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर सहकारी समिति अधिनियम (सीएसए) के तहत रजिस्टर्ड बैंक द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसने उनकी निलंबन अवधि को अवकाश माना था।

    केस टाइटल: गुलाम रसूल डार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक

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    जमानत के लिए अन्य मापदंडों को संतुष्ट करने के बाद NDPS Act की धारा 37 की कठोरता को कम करने के लिए वर्जित मात्रा पर विचार किया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि अभियुक्त से जब्त किए गए मादक पदार्थ की मात्रा को अन्य कारकों के अलावा पैरामीटर के रूप में भी माना जा सकता है, जो जमानत प्रदान करने के उद्देश्यों के लिए नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) की धारा 37 के तहत कठोरता को कम करने के लिए है।

    NDPS Act की धारा 37 के अनुसार, न्यायालय अभियुक्त को जमानत तभी दे सकता है जब वह संतुष्ट हो कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि वह इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।

    केस टाइटल: जिजेंद्रन सी.एम. बनाम केरल राज्य

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    धारा 27(2) पॉक्सो एक्ट | महिला पीड़ित की जांच पुरुष चिकित्सक ने की, अभियुक्त इसे कवच के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 27(2) के तहत जनादेश का अनुपालन न करने पर किसी आरोपी के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।उक्त प्रावधान के अनुसार पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण केवल महिला डॉक्टरों ही कर सकती है।

    संगम कुमार साहू की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, उक्त प्रावधान का महत्वपूर्ण उद्देश्य "न्यायिक कार्यवाही के हर चरण में बच्चों के हित और भलाई की रक्षा करना है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 27 (2) को बालिकाओं को शर्मिंदगी से बचाने और यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल किया गया है कि वे सहज रहें। इसका अभिप्राय अभियुक्तों के पक्ष में सुरक्षा कवच बनाना नहीं है।”

    केस टाइटल: बरिका प्रधान बनाम ओडिशा राज्य

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    एससी/एसटी एक्ट- ‘ समन जारी करने के आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन सुनवाई योग्य’: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक अपराध के लिए एक अभियुक्त को समन जारी करने के आदेश को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर करके चुनौती दी जा सकती है।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने रामावतार बनाम मध्य प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 589 और बी वेंकटेश्वरन बनाम पी भक्तवतचलम 2023 लाइवलॉ (एससी) 14 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए ये आदेश दिया। इनमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी अधिनियम से उत्पन्न होने वाली आपराधिक कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का आह्वान करते हुए रद्द किया जा सकता है।

    केस टाइटल - देवेंद्र यादव और 7 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 11043 of 2023]

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    धारा 190 सीआरपीसी के तहत कोई सिस्टम उपलब्ध नहीं है जो मजिस्ट्रेट को स्वत: या किसी आवेदन पर आगे की जांच के लिए निर्देश देने का अधिकार देता हो : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि धारा 190 सीआरपीसी मजिस्ट्रेट को स्वतः संज्ञान लेकर किसी मामले में आगे की जांच के निर्देश देने का अधिकार नहीं देती है। जस्टिस संजय द्विवेदी की पीठ ने कहा कि एक बार मामले का संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रेट आगे की जांच के लिए निर्देश नहीं दे सकता है- याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा दिए गए मामलों पर विचार करने के बाद और सीआरपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार, यह स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 190 में, अभिव्यक्ति "संज्ञान लेना" का अर्थ है कि मजिस्ट्रेट को आगे की कार्रवाई करने के लिए शिकायत में उल्लिखित तथ्यों पर अपने विवेक को लागू करना चाहिए । मजिस्ट्रेट चार्जशीट में रखी गई सामग्री के आधार पर, यदि संज्ञान लेने से संतुष्ट है तो सीआरपीसी की धारा 190 के तहत प्रदान की गई शक्ति का प्रयोग करते हुए, वह संज्ञान ले सकता है या अभियुक्त को आरोप मुक्त कर सकता है लेकिन धारा 190 सीआरपीसी के तहत कोई सिस्टम उपलब्ध नहीं है जो मजिस्ट्रेट को स्वत: या यहां तक कि किसी व्यक्ति द्वारा आवेदन पर आगे की जांच के लिए निर्देश देने का अधिकार देता हो।

    केस : कृष्णा पति त्रिपाठी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य। [डब्ल्यू पी 29159/2022]

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    मुस्लिम कानून के तहत बच्चों की कस्टडी का मां का अधिकार पूर्ण या श्रेष्ठ नहीं, पिता 7 साल से अधिक उम्र के बेटे का वैध अभिभावक: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 2022 में मुस्लिम पिता के खिलाफ कथित तौर पर अपने 8- और 10 साल के बेटों को उनकी मां की कस्टडी से अगवा करने के लिए दायर एफआईआर खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत पिता अपने पुत्र के नाबालिग होने के दौरान कानूनी अभिभावक होता है, और मां सात साल की उम्र तक ऐसे बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकती है।

    केस टाइटल: एमडी आसिफ बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    हाईकोर्ट के सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अप्रूवर को जमानत देने में धारा 306 बाधा नहीं : जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया है कि सीआरपीसी की धारा 306 (4) (बी) सीआरपीसी के संदर्भ में अप्रूवर को को जमानत नहीं दी जा सकती है जो हिरासत में है, हालांकि, एक उपयुक्त मामले में हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी निहित शक्तियों से अप्रूवर को जमानत पर रिहा कर सकता हैं।

    जस्टिस मोहन लाल ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 306 (4) (बी) को रद्द करने की प्रार्थना की थी, जो अप्रूवर को जमानत पर रिहा करने के लिए ट्रायल कोर्ट की शक्तियों पर कथित रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए अनुचित था।

    केस: तारिक अहमद डार बनाम एनआईए

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    एफआईआर में लगाए गए आरोपों की सत्यता ट्रायल में परखी जाएगी, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट ऐसा नहीं कर सकताः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि हाईकोर्ट को धारा 482 सीआरपीसी के तहत आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पूरी तरह से शिकायत में लगाए गए आरोपों या उसके साथ लगे दस्तावेजों के आधार पर आगे बढ़ना होगा।

    जस्टिस के बाबू की सिंगल जज बेंच ने पश्चिम बंगाल राज्य बनाम स्वपन कुमार गुहा (1982), केरल राज्य बनाम ओसी कुट्टन (1999), एम/एस निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021), और मीनाक्षी बाला बनाम सुधीर कुमार और अन्य में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया और कहा कि कि हाईकोर्ट के पास ऐसे दस्तावेजों में लगाए गए आरोपों की शुद्धता या अन्यथा की जांच करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    केस टाइटल: XXX और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    अन-रजिस्टर्ड रेलिंक्विशमेंट डीड साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि विरासत में मिली संपत्ति को छोड़ने का दस्तावेज तब तक साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं है जब तक कि वह रजिस्टर्ड न हो। नागपुर खंडपीठ के जस्टिस एमएस जावलकर ने बहन के बंटवारे के मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसने रेलिंक्विशमेंट डीड (Relinquishment Deed) पर हस्ताक्षर किया, यह देखते हुए कि भाई ने कभी डीड प्रस्तुत नहीं किया।

    अदालत ने कहा, "इस तरह डीड को रजिस्टर्ड करने की आवश्यकता है अन्यथा यह साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं है। वर्तमान मामले में रेलिंक्विशमेंट डीड स्वयं ही प्रस्तुत नहीं किया गया और न ही यह प्रतिवादी का मामला है कि यह रजिस्टर्ड था। इस प्रकार, अपील की अनुमति दी जा सकती है।"

    केस टाइटल- चंद्रभागा कोल्हे बनाम सूर्यभान पुत्र चंपात्रा शेंडे

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    जुवेनाइल जस्टिस | शिकायतकर्ता की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड स्वीकार्य नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) नियम, 2012 के नियम 12 के तहत प्रावधान के अनुसार, शिकायतकर्ता के आधार कार्ड पर उनकी आयु निर्धारित करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ नाबालिग की उम्र निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड की विश्वसनीयता के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय से भिन्न है।

    केस टाइटल: मनोज कुमार यादव बनाम म.प्र. राज्य (सी.आर.आर. 1641/2021)

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