एफआईआर में लगाए गए आरोपों की सत्यता ट्रायल में परखी जाएगी, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट ऐसा नहीं कर सकताः केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

24 April 2023 3:37 PM IST

  • एफआईआर में लगाए गए आरोपों की सत्यता ट्रायल में परखी जाएगी, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट ऐसा नहीं कर सकताः केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि हाईकोर्ट को धारा 482 सीआरपीसी के तहत आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पूरी तरह से शिकायत में लगाए गए आरोपों या उसके साथ लगे दस्तावेजों के आधार पर आगे बढ़ना होगा।

    जस्टिस के बाबू की सिंगल जज बेंच ने पश्चिम बंगाल राज्य बनाम स्वपन कुमार गुहा (1982), केरल राज्य बनाम ओसी कुट्टन (1999), एम/एस निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021), और मीनाक्षी बाला बनाम सुधीर कुमार और अन्य में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया और कहा कि कि हाईकोर्ट के पास ऐसे दस्तावेजों में लगाए गए आरोपों की शुद्धता या अन्यथा की जांच करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    मामले में पहला याचिकाकर्ता दूसरी प्रतिवादी का पति है, जबकि अन्य दो याचिकाकर्ता दूसरी प्रतिवादी की क्रमशः सास और ससुर हैं। पहले याचिकाकर्ता और दूसरी प्रतिवादी का ईसाई रीति-रिवाजों अनुसार विवाह हुआ था, जिसके बाद दोनों मुंबई में अपने वैवाहिक घर में एक साथ रहने लगे।

    यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने दूसरी प्रतिवादी को अपनी मांगों को पूरा करने के लिए परेशान किया। उसके साथ शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया और उसकी संपत्ति का गबन किया गया।

    इस प्रकार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई और आईपीसी की धारा 498-ए सहप‌‌ठित धारा 34 के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने वाले याचिकाकर्ताओं को प्रक्रिया जारी की तथा ट्रायल कोर्ट ने उपरोक्त प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं के ‌खिलाफ आरोप फ्रेम किया।

    एडवोकेट अब्दुल जैल ए और एमए सल्फिया ने यह तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष एफआईआर और अन्य सामग्री ने आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध का खुलासा नहीं किया था, और इस प्रकार एफआईआर रद्द करने की जानी चाहिए।

    दूसरी ओर लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि एफआईआर में आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध गठित करने के लिए आवश्यक सामग्री का पता चलता है।

    उत्तरदाताओं की ओर से पेश वकीलों ने भी मीनाक्षी बाला बनाम सुधीर कुमार और अन्य (1994) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि केवल दुर्लभतम मामलों में ही न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग उस मामले में कार्यवाही को रद्द करने के लिए कर सकता है, जहां ट्रायल कोर्ट ने पहले ही याचिकाकर्ताओं / अभियुक्तों के खिलाफ धारा 239 और 240 सीआरपीसी के तहत आरोप तय कर दिया है।

    धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट को निहित शक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा,

    "...यह सामान्य बात है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए और वह भी दुर्लभतम मामलों में। अंतिम रिपोर्ट या शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता या अन्यथा की जांच शुरू करना इस न्यायालय के लिए उचित नहीं था।

    एक ऐसे मामले में, जहां अभियोजन पक्ष की ओर से लगाए गए आरोप संज्ञेय अपराध का खुलासा करते हैं, अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा की गई सामग्री की सत्यता पर एक निष्कर्ष, धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते समय हाईकोर्ट के लिए विचारणीय नहीं है"।

    न्यायालय ने मीनाक्षी बाला मामले में किए गए अवलोकन पर भी ध्यान दिया,

    "एक बार सीआरपीसी की धारा 240 के तहत आरोप तय किए जाने के बाद हाईकोर्ट के लिए अपने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में धारा 239 और 240 सीआरपीसी में संदर्भित दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेजों पर भरोसा करने के लिए उचित नहीं होगा; और न ही सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को उन दुर्लभ मामलों को छोड़कर लागू करना उचित होगा, जहां फोरेंसिक अनिवार्यताएं और दुर्जेय मजबूरियां इस तरह की कार्य को उचित ठहराती हैं।"

    उक्त मामले में, न्यायालय ने कहा था कि इस तरह के असाधारण मामलों में भी हाईकोर्ट केवल उन दस्तावेजों पर गौर कर सकता है जो बेदाग थे और जिन्हें कानूनी रूप से प्रासंगिक साक्ष्य में बदला जा सकता था।

    उसी के आधार पर न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि,

    "वर्तमान मामले में, अदालत के समक्ष रखी गई सामग्री आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए आरोपों को प्रकट करती है। अनुलग्नक ए1 एफआईआर और अंतिम रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की शुद्धता या अन्यथा ट्रायल के दरमियान परीक्षण किए जाने वाला मामला है।"

    उक्त टिप्पण‌ियों के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: XXX और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 200

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