मुस्लिम कानून के तहत बच्चों की कस्टडी का मां का अधिकार पूर्ण या श्रेष्ठ नहीं, पिता 7 साल से अधिक उम्र के बेटे का वैध अभिभावक: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

25 April 2023 6:35 AM GMT

  • मुस्लिम कानून के तहत बच्चों की कस्टडी का मां का अधिकार पूर्ण या श्रेष्ठ नहीं, पिता 7 साल से अधिक उम्र के बेटे का वैध अभिभावक: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    Andhra Pradesh High Court 

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 2022 में मुस्लिम पिता के खिलाफ कथित तौर पर अपने 8- और 10 साल के बेटों को उनकी मां की कस्टडी से अगवा करने के लिए दायर एफआईआर खारिज कर दी।

    अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत पिता अपने पुत्र के नाबालिग होने के दौरान कानूनी अभिभावक होता है, और मां सात साल की उम्र तक ऐसे बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकती है।

    जस्टिस के श्रीनिवास रेड्डी ने कहा,

    "कानूनी अभिभावक निश्चित रूप से वैध अभिभावक है, और यदि वह नाबालिग बच्चे को मां की कस्टडी से लेता है, जो निश्चित रूप से कानूनी या प्राकृतिक अभिभावक नहीं है। हालांकि मां बच्चे की कस्टडी की तब तक हकदार है जब तक कि वह विशेष आयु तक पहुंचता है। इसके बाद पिता द्वारा बच्चे को ले जाए जाने को अपहरण का अपराध करने वाला नहीं कहा जा सकता। इस मामले में पक्षकार मुस्लिम कानून द्वारा शासित होती हैं। इस प्रकार, यह पिता ही है जो अपने पुत्र के नाबालिग होने के दौरान कानूनी अभिभावक है और मां ऐसे बच्चे की 7 वर्ष की आयु तक कस्टडी का दावा कर सकती है।

    कोर्ट आईपीसी की धारा 363 सपठित धारा 34 के तहत पिता के खिलाफ 2022 में दर्ज एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह आरोप लगाया गया कि उसने अन्य लोगों के साथ मिलकर अपने 10 साल और 8 साल के दो बेटों का अपहरण कर लिया, जो अपनी मां की कस्टडी में थे।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि सभी आरोपों को सही मानते हुए भी आईपीसी की धारा 363 सपठित धारा 34 के तहत अपराध इस कारण से नहीं बनता है कि यहां याचिकाकर्ता सुन्नी मुसलमान हैं, जो सुन्नी मुस्लिम कानून द्वारा शासित हैं।

    यह तर्क दिया गया कि मुस्लिम कानून के सुन्नी स्कूल के तहत मां अपने लड़के की कस्टडी की तब तक हकदार है जब तक कि बच्चा 7 साल की उम्र पूरी नहीं कर लेता।

    वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता नंबर एक, जो बच्चों का पिता है और याचिकाकर्ता नंबर 2 जो बच्चों का मां है, लगभग 8 साल और 10 साल की उम्र के बच्चों को उनके नाना-नानी से छीन लिया है।

    वकील ने तर्क दिया कि इसलिए आईपीसी की धारा 363 के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए उनके पिता द्वारा बच्चों को ले जाना किसी भी तरह से अपहरण के अर्थ में नहीं आएगा।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि बच्चे मां की कस्टडी में हैं। इस प्रकार, भले ही पिता नाबालिग बच्चों को उनकी मां की कस्टडी से ले लेता है तो वह आईपीसी की धारा 363 के तहत अपहरण के लिए उत्तरदायी है।

    कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 363 से स्पष्ट है कि जो कोई भी सोलह वर्ष से कम आयु के पुरुष, अठारह वर्ष से कम आयु की महिला, या किसी भी अस्वस्थ व्यक्ति को ले जाता है या फुसलाता है। ऐसे अवयस्क या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के कानूनी अभिभावक की कस्टडी से बाहर ऐसे अभिभावक की सहमति के बिना कानूनी संरक्षकता से अपहरण का अपराध करने के लिए कहा जाता है।

    इसने आगे कहा कि उस प्रावधान के स्पष्टीकरण के अनुसार, वैध अभिभावक में वह व्यक्ति शामिल होता है जिसे कानूनी रूप से ऐसे नाबालिग की देखभाल या कस्टडी सौंपी जाती है। इसमें स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक संरक्षक शामिल है।

    अदालत ने कहा,

    "चूंकि पक्षकार मुस्लिम हैं, वे मुस्लिम कानून द्वारा शासित हैं। सुन्नी स्कूल ऑफ मुस्लिम लॉ के तहत बच्चे के 7 साल की उम्र तक पहुंचने तक और शिया स्कूल के तहत 2 साल तक पहुंचने तक मां बच्चे की कस्टडी की हकदार है। (देखें) डीके मुल्ला द्वारा 'प्रिंसिपल्स ऑफ, मोहम्मद लॉ', 15वां एडन पृष्ठ 297)।"

    इसने आगे कहा कि इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मुस्लिम कानून के तहत बच्चे के लिंग के आधार पर मां को केवल निश्चित उम्र तक ही अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी का अधिकार है।

    अदालत ने आगे कहा,

    "यह स्वीकृत तथ्य है कि वह प्राकृतिक अभिभावक नहीं है। दूसरी ओर, पिता अकेला प्राकृतिक अभिभावक है। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो सुन्नी कानून के अनुसार उसका निष्पादक कानूनी अभिभावक होता है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "आईपीसी की धारा 361 'कानूनी संरक्षकता' की बात करती है और नाबालिग को कानूनी अभिभावक के रख-रखाव से बाहर ले जाती है। मां को नाबालिग की कस्टडी का अधिकार सिर्फ खास उम्र तक ही है। यह पिता को आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं बनाएगा यदि वह बच्चे को मां की कस्टडी से लेता है। इसका कारण यह है कि जब पिता बच्चे को मां की कस्टडी से लेता है तो वह केवल बच्चे को कानूनी अभिभावक की हिरासत में ले रहा है।”

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह पिता है जो अपने पुरुष बच्चों के नाबालिग होने के दौरान उनके कानूनी अभिभावक हैं और मां ऐसे बच्चे की 7 साल की उम्र तक बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकती है।

    अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता के बच्चे वर्तमान में अपने नाना-नानी के साथ रह रहे हैं, जबकि शिकायतकर्ता खुद हैदराबाद में काम करती है।

    अदालत ने कहा,

    "वह अपनी नौकरी के कारण कहीं और रह रही है। ऐसी परिस्थितियों में पिता जो बच्चों का कानूनी अभिभावक होता है, बच्चों को दादा-दादी से दूर ले जाता है, किसी भी तरह से अपहरण के दायरे में नहीं आएगा। मां का अधिकार बच्चों की अभिरक्षा पूर्ण अधिकार नहीं है और यह अधिकार वैध अभिभावक के अधिकार से ऊपर नहीं है। यह इस हद तक स्पष्ट है कि यह अकेले पिता हैं जिन्होंने बच्चों को शिकायतकर्ता के माता-पिता की कस्टडी से छीन लिया था।"

    उपरोक्त के आलोक में अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 के तहत अपराध नहीं बनता है, क्योंकि वह पिता है और बच्चों का कानूनी अभिभावक है।

    अदालत ने कहा,

    "आरोपों को सच मानने के आधार पर भी कोई अपराध नहीं बनता। इसलिए यहां याचिकाकर्ताओं को आपराधिक मुकदमे की कठोरता से गुजरना पूरी तरह से अनुचित होगा, जिससे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

    केस टाइटल: एमडी आसिफ बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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