परोपकारी सरोगेसी का अर्थ बाहरी व्यक्ति के माध्यम से सरोगेसी होना चाहिए, अधिनियम में 'आनुवांशिक रूप से संबंधित' खंड परोपकार और तर्क, दोनों के खिलाफ: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
27 April 2023 2:35 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कि सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 का यह प्रावधान कि एक सरोगेट मां को इच्छुक जोड़े से "आनुवांशिक रूप से संबंधित" होना अनिवार्य है, परोपकार और तर्क दोनों के खिलाफ है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा,
"धारा 2(1)(जेडजी) में आया शब्द "आनुवांशिक रूप से संबंधित" का आशय केवल यह हो सकता है कि सरोगेसी के जरिए पैदा होने वाला बच्चा आनुवंशिक रूप से इच्छुक जोड़े से संबंधित होना चाहिए। ऐसा ना होने पर, आनुवंशिक रूप से संबंधित शब्दों का कोई अर्थ नहीं होगा...।"
इस प्रकार, पीठ ने जोर देकर कहा कि परोपकारी सरोगेसी का अर्थ होना चाहिए- किसी बाहरी व्यक्ति के माध्यम से सरोगेसी।
भारत में व्यावसायिक सरोगेसी प्रतिबंधित है, लेकिन सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है। धारा 2(1)(बी) 'परोपकारी सरोगेसी' को परिभाषित करती है।
सरोगेसी के इस रूप में, सरोगेट मां की ओर से किए गए चिकित्सा खर्चों को छोड़कर, सरोगेट मां या उसके आश्रित या उसके प्रतिनिधि को कोई शुल्क, खर्च, फीस, पारिश्रमिक या किसी भी प्रकार का मौद्रिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है।
धारा 2(1)(जेडजी) एक "सरोगेट मदर" को एक ऐसी महिला के रूप में परिभाषित करती है, जो अपने गर्भ में भ्रूण के आरोपण से सरोगेसी के माध्यम से एक बच्चे को जन्म देने के लिए सहमत होती है, (जो आनुवंशिक रूप से इच्छुक दंपत्ति या इच्छुक महिला से संबंधित है) ...
इस याचिका में दंपति ने अपने जैविक बच्चे को खो दिया था और चूंकि मां का गर्भाशय हटाने के लिए पहले ही सर्जरी हो चुकी थी, इसलिए वे सरोगेसी का विकल्प चुनना चाहते थे।
याचिकाकर्ताओं को तब दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें पहली इच्छुक पिता की आयु थी, जिसने 55 वर्ष की सीमा पार कर ली थी। बेंच ने युगल के लिए ट्रिपल टेस्ट विकसित करके इसका समाधान किया।
दूसरी चुनौती प्रस्तावित सरोगेट मदर से संबंधित थी, जो दंपति की पारिवारिक मित्र थी, (आनुवंशिक रूप से युगल से संबंधित नहीं थी)।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पूरी प्रक्रिया में कोई वित्तीय विचार नहीं है क्योंकि वे सभी एक दूसरे से जुड़े हुए परिवार हैं या एक परिवार की तरह हैं। हालांकि, धारा 2(1)(zg) उनके माता-पिता बनने के रास्ते में आ रही है।
यूनियन ऑफ इंडिया के वकील ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि प्रावधान याचिकाकर्ताओं के अनुरूप नहीं है, इसे कानून के विपरीत नहीं ठहराया जा सकता है।
"अधिनियम को लागू करते समय विस्तृत विचार-विमर्श किया गया है क्योंकि समृद्ध भारतियों और विदेशियों के लिए यह देश सरोगेसी के लिए गर्भ उधार देने का केंद्र बन गया था, जो देश के ग्रामीण इलाकों में गरीब महिलाओं की दुर्दशा का फायदा उठाते।"
शुरुआत में हाईकोर्ट ने प्रावधान की सीमित प्रकृति पर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा, "प्रावधान अधिनियमन के पीछे के दर्शन या सिद्धांत के विपरीत है।"
पीठ ने कहा कि परोपकारिता अपने सही अर्थों में एक ऐसी स्थिति को दर्शाती है जहां एक व्यक्ति किसी और के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है, यहां तक कि खुद के लिए जोखिम या कीमत पर भी। इस प्रकार, यदि अधिनियम की धारा 2(1)(जेडजी) से परोपकारी सरोगेसी को जोड़ा जाएगा तो यह विरोधाभास होगा, क्योंकि सरोगेट मां को इच्छुक जोड़े से आनुवंशिक रूप से संबंधित होना अनिवार्य है।
अदालत ने टिप्पणी की, "यदि ऐसा है, तो परोपकार भ्रम है अगर सब कुछ परिवार के भीतर होता है।"
अंत में, पीठ ने दंपति के आवेदन पर राज्य सरोगेसी बोर्ड/उपयुक्त प्राधिकारी/निर्धारित प्राधिकरण को ट्रिपल टेस्ट - आनुवंशिक, शारीरिक और आर्थिक, पर अर्हता प्रमाण पत्र देने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: एच सिद्धाराजू और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य।
केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 586/2023
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 162