हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 Feb 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 फरवरी, 2023 से 24 फरवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट द्वारा पहले दर्ज किया गया डाइंग डिक्लेरेशन पुलिस अधिकारी को फिर से रिकॉर्ड नहीं करना चाहिए: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी को मरने से पहले दिए गए बयान को फिर से दर्ज नहीं करना चाहिए, जो पहले से ही एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया, जो ऐसा करने के लिए कानून के तहत सक्षम और बेहतर प्राधिकारी है।

    जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने पुलिस द्वारा मृत्यु पूर्व बयान दर्ज करने के तरीके को अस्वीकार करते हुए कहा, "चूंकि देहाती नालसी की रिकॉर्डिंग से कुछ घंटे पहले 24-7-2012 को कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा मरने से पहले का बयान दर्ज किया गया, हम यह समझने में विफल रहे कि हेड कांस्टेबल ने बिना किसी डॉक्टर के प्रमाण पत्र के घायल पीड़ित का बयान दर्ज करने के लिए क्या उसकी फिटनेस के आधार पर और मरने से पहले दिए गए बयान को दर्ज करने के लिए अधिकृत सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक बार दर्ज किए जाने के बाद मरने से पहले दिए गए बयान को रिकॉर्ड करने की आवश्यकता के बिना राजी किया।

    केस टाइटल: सुमित्रा बांधे बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    'स्वयंवर' अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार, इसकी जड़ें रामायण, महाभारत में खोजी जा सकती हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि स्वयंवर यानी अपनी पसंद से शादी करना कोई आधुनिक घटना नहीं है और इसकी जड़ें प्राचीन इतिहास में खोजी जा सकती हैं, जिसमें रामायण महाभारत जैसी पवित्र पुस्तकें भी शामिल हैं।

    जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने यह कहते हुए कि अनुच्छेद 21 इस मानवाधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करता है, आरोपी व्यक्ति के खिलाफ लड़की का अपहरण करने के आरोप में दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।

    केस टाइटल- टेक चंद बनाम पंजाब राज्य और अन्य [CRM-M-5992-2023]

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    अगर हत्या के दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी जाती है तो अन्य अपराधों के लिए सजा साथ-साथ चलेगी: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यदि किसी अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा दी जाती है और किसी अन्य आरोप के लिए एक और निश्चित अवधि की सजा दी जाती है तो दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी न कि एक के बाद एक।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने दोषियों रामचंद्र रेड्डी और अन्य की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह स्पष्टीकरण दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को एससी नंबर 02/2007 में 25.11.2010 को पारित दोषसिद्धि के आक्षेपित आदेश के संदर्भ में सजा सुनाई गई है, जो कि साथ-साथ चलेगी।

    केस टाइटल: रामचंद्र रेड्डी और अन्‍य और कर्नाटक राज्य

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    अभियोजन साक्ष्य पूरा होने के बाद अतिरिक्त दस्तावेज तैयार किया जा सकता है, यदि यह महत्वपूर्ण है और चूक वास्तविक गलती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अभियोजन साक्ष्य पूरा होने के बाद अतिरिक्त दस्तावेज पेश किया जा सकता है, यदि ऐसे दस्तावेज की चूक वास्तविक गलती है और दस्तावेज को महत्वपूर्ण माना जाता है।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ अतिरिक्त सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रही थी, जिसमें अभियोजन पक्ष को साक्ष्य पूरा करने के बाद अभियुक्तों का मकसद दिखाने के लिए एफआईआर पेश करने की अनुमति दी गई। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 307 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चला रहे अभियुक्त ने अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने का विरोध किया।

    केस टाइटल: केरल के थचनलिल श्याजू वी राज्य

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    घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही, IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के लिए एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती: हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (डीवी अधिनियम) के तहत पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता के लिए एफआईआर दर्ज करने पर कोई रोक नहीं लगाती है।

    याचिकाकर्ता-पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय धर की पीठ ने ये टिप्पणी की, जिसमें उनके खिलाफ उनकी पत्नी-शिकायतकर्ता द्वारा दायर शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 498ए और 109 के तहत दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी गई थी।

    केस टाइटल: दानिश चौहान बनाम डीजीपी जम्मू-कश्मीर

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    कला केंद्र का प्रदर्शन लाइसेंस तब रद्द नहीं किया जा सकता, जब पॉक्सो एक्ट के तहत कथित अपराध परिसर में नहीं किया गया हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नटराज सांस्कृतिक कला केंद्र, नासिक के कलाकारों का लाइसेंस मालिक के खिलाफ दर्ज अपराध के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि कथित अपराध कला केंद्र के परिसर में नहीं किया गया। जस्टिस आरजी अवाचट ने कहा कि चूंकि मालिक को अपराध से बरी कर दिया गया है, इसलिए रद्द करने का आधार अब मौजूद नहीं है।

    अदालत ने कहा, "यह अधिकारियों का मामला नहीं है कि उक्त अपराध कला केंद्र के परिसर में किया गया। चूंकि जिस आधार पर याचिकाकर्ता का लाइसेंस रद्द किया जाना है, वह अब मौजूद नहीं है और उक्त आधार पर लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता है, यहां पर लगाए गए आदेश रद्द किए जाने के लिए उत्तरदायी हैं।"

    केस टाइटल- नटराज सांस्कृतिक कला केंद्र इसके मालिक विशाल नंदकिशोर गंगावणे बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य के माध्यम से।

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    शादियों के लिए मामूली किराए पर धर्मशाला किराए पर देना व्यावसायिक नहीं, प्रोपर्टी टैक्स नहीं लगेगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि अगर धर्मशाला को विवाह आयोजित करने के लिए मामूली किराए पर प्रदान किया जाता है तो यह व्यावसायिक उद्देश्य नहीं होगा। जस्टिस रिंटू बाहरी और जस्टिस मनीषा बत्रा की खंडपीठ ने कहा कि धर्मशालाएं प्रोपर्टी टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। भूमि और भवनों पर याचिकाकर्ता के टैक्स का आकलन किया गया और निर्धारिती को निर्धारित प्रपत्रों में बकाया सहित मांग की सूचना दी गई।

    केस टाइटल: दौलत राम खान बनाम हरियाणा राज्य

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    बीमा पॉलिसी में दिए गए समय के बावजूद, बीमाकर्ता की देयता तब शुरू होती है, जब प्रीमियम भुगतान और कवर नोट जारी किया जाता है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक फैसले में स्पष्ट किया कि बीमाकर्ता की देयता उसी क्षण से शुरू हो जाती है, जब बीमाधारक की ओर से बीमा प्रीमियम का भुगतान किया जाता है और उसे कवर नोट जारी किया जाता है। इसलिए, एक बीमाकर्ता अपने दायित्व से केवल इसलिए नहीं बच सकता है, क्योंकि बीमा पॉलिसी ने पॉलिसी शुरू करने के लिए एक अलग तिथि का उल्लेख किया था।

    केस टाइटल: श्रीमती रेणुका सेठी व अन्य बनाम बाबू साहू और अन्य।

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    राज्य मानवाधिकार आयोग सेवा मामलों पर विचार नहीं कर सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि केरल राज्य मानवाधिकार आयोग के पास सेवा मामलों पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन की खंडपीठ ने मालाबार सीमेंट्स लिमिटेड (मैसर्स) बनाम के बाबूराजन और अन्य (2019) और जिला पर्यटन संवर्धन परिषद, सचिव बनाम केरल राज्य का प्रतिनिधित्व सचिव और अन्य (2021) के फैसले पर भरोसा किया, जहां दोनों मामलों में यह माना गया कि केरल राज्य मानवाधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम, 2001 के विनियम 17 (एफ) के संदर्भ में यदि मामला सेवा मामलों से संबंधित है तो आयोग एक शिकायत को खारिज कर सकता।

    केस टाइटल: मानव संसाधन विकास संस्थान (आईएचआरडी) बनाम केरल राज्य मानवाधिकार आयोग और अन्य।

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    राज्य धारा 80 सीपीसी का अनुपालन नहीं करने पर पार्टी का दावा खारिज करने के लिए प्रार्थना नहीं कर सकता, अगर उसने लिखित बयान में आवश्यकता को हटा दिया है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि एक राज्य प्राधिकरण बाद के चरण में धारा 80 सीपीसी के गैर-अनुपालन के संबंध में आपत्ति नहीं उठा सकता है यदि उसने अपने लिखित बयान में इस मुद्दे को नहीं उठाया है।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि भले ही धारा 80 सीपीसी के तहत प्रावधान अनिवार्य है, इसे संबंधित प्राधिकरण द्वारा माफ किया जा सकता है- इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सीपीसी की धारा 80 के तहत नोटिस का मूल उद्देश्य राज्य और उसके अधिकारियों को विवाद को हल करने का अवसर देना है जिससे राज्य के मूल्यवान समय और धन की बचत हो। हालांकि, यह एक प्रक्रियात्मक कानून है। हालांकि, सीपीसी की धारा 80 का प्रावधान अनिवार्य है लेकिन प्रतिवादियों द्वारा इसे माफ किया जा सकता है। प्रतिवादियों द्वारा दायर लिखित बयान पर विचार किया जाए तो यह स्पष्ट है कि विचारण न्यायालय के समक्ष कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी। यहां तक कि उक्त आपत्ति पहली बार बहस के दौरान ही उठाई गई है। ...चूंकि सीपीसी की धारा 80 की आवश्यकता को प्रतिवादियों द्वारा माफ किया जा सकता है और लिखित बयान में इसे नहीं उठाया जा सकता है, इस न्यायालय का विचार है कि एक बार प्रतिवादियों ने सीपीसी की धारा 80 की आवश्यकता को माफ कर दिया है, प्रतिवादी वाद की अपरिपक्व प्रकृति के आधार पर अनुपयुक्त नहीं हो सकता।

    केस टाइटल: प्रबंध निदेशक निगम लामता परियोजना बालाघाट बनाम भेजनालाल (अब मृतक) व अन्य।

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    यदि मोटर दुर्घटना में लगी चोट से संबंध स्थापित हो तो मृत्यु के लिए मुआवजा देय: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के फैसले में संशोधन किया, जिसने जयपुर के 58 वर्षीय व्यक्ति की मृत्यु के मुआवजे को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया था कि मोटर दुर्घटना के दौरान लगी चोटों और उसके बाद की मौत के बीच कोई संबंध नहीं था।

    जस्टिस बीरेंद्र कुमार की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा: "रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह साबित करे कि 15.12.2008 को अपनी मृत्यु से पहले टी.पी. विश्वनाथ नैय्यर अपने पैर के फ्रैक्चर से पहले ही ठीक हो चुके थे, जो दुर्घटना के कारण हुआ था। इसलिए अन्य जटिलताओं के विकास के कारण मृत्यु को चोट के साथ कोई संबंध नहीं कहा जा सकता, बल्कि रिकॉर्ड पर लगातार सामग्री यह बताती है कि दाहिने पैर की ऊपरी और निचली दोनों हड्डियों का फ्रैक्चर संक्रमण के कारण मृत्यु तक जारी था। साथ ही यह कि फ्रैक्चर के कारण शरीर का हिलना-डुलना बंद हो गया, जिससे किडनी खराब होने सहित अन्य मेडिकल जटिलताएं पैदा हो गईं।”

    केस टाइटल: दिवंगत टी. पी. विश्वनाथ नैय्यर व अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और 3 अन्य।

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    धारा 243 सीआरपीसी | ट्रायल कोर्ट अभियुक्त द्वारा प्रस्तावित गवाह को प्रक्रिया जारी करने के लिए बाध्य है, जब तक कि यह न्याय के लक्ष्य को विफल करने का प्रयास न हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अभियुक्त की ओर से उद्धृत किए गए एक गवाह को बुलाने की प्रार्थना को खारिज कर दिया गया था, जहां यह इंगित करने के लिए कुछ भी नहीं था कि अभियुक्त ने इस तरह के प्रस्तावित गवाह की जांच की मांग करके न्याय के उद्देश्यों को विफल करने का प्रयास किया था।

    जस्टिस के बाबू की सिंगल जज बेंच ने न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट, प्रथम श्रेणी, कलामसेरी के आक्षेपित आदेश को खारिज करते हुए कहा, "जब तक यह स्थापित नहीं हो जाता है कि किसी गवाह को बुलाने का आवेदन चिढ़ने या देरी करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के लिए किया गया है, तब तक ट्रायल कोर्ट के पास अभियुक्त द्वारा उद्धृत किसी भी गवाह की उपस्थिति को बाध्य करने के लिए प्रक्रिया जारी करने का कोई विवेक नहीं है। ट्रायल कोर्ट एक ऐसे मामले में अभियुक्त द्वारा प्रस्तावित गवाह को प्रक्रिया जारी करने के लिए बाध्य है, जहां यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि अभियुक्त का प्रयास न्याय के उद्देश्य को विफल करना है।"

    केस टाइटल: अनिल कुमार और अन्य बनाम केरल राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एनआई एक्ट की धारा 138 को रद्द करने की याचिका सुनवाई योग्य नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर याचिका, जिसमें निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत एक अभियुक्त को दी गई सजा को रद्द करने की मांग की गई है, सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता वुप्पलप्ति सतीश कुमार ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दो जनवरी, 2023 को दी गई सजा को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    केस टाइटल: वुप्पलापती सतीश कुमार और वीटीएच सोर्स कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड।

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    दत्तक ग्रहण के पंजीकृत विलेख के मौजूद होने पर अधिकारी जन्म रिकॉर्ड में बदलाव के लिए सिविल कोर्ट के फैसले पर जोर नहीं दे सकते: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि दत्तक ग्रहण का पंजीकृत विलेख (registered deed of adoption) हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत एक बच्चे को गोद लेने की वैधता को साबित करने के लिए पर्याप्त है, और जन्म रिकॉर्ड में परिवर्तन के लिए इस प्रकार के विलेख पर जोर देने के लिए सिविल कोर्ट की डिक्री की कोई आवश्यकता नहीं है।

    अदालत याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अदालत के सामने यह सवाल था कि क्या सक्षम अधिकारी सक्षम अदालत की डिक्री के अभाव में जन्म रिकॉर्ड को बदलने से इनकार कर सकते हैं।

    केस टाइटल: खोजेमा सैफुद्दीन डोडिया बनाम जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रार/मुख्य अधिकारी, धोराजी नगरपालिका

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    राज्य मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन पर मुआवजे का आदेश देने का अधिकार क्षेत्र रखता है : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) के पास मानवाधिकारों के उल्लंघन होने पर मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश देने अधिकार है। चीफ जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन की खंडपीठ ने ऐसे मामले में आदेश पारित किया, जिसमें कोट्टायम नगर पालिका द्वारा भेदभावपूर्ण तरीके से और नोटिस जारी किए बिना स्ट्रीट वेंडर को बेदखल कर दिया गया।

    केस टाइटल: कोट्टायम नगर पालिका और अन्य बनाम अध्यक्ष, केरल राज्य मानवाधिकार आयोग और अन्य।

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    समान आधारों और सामग्रियों के आधार पर बाद के डिटेंशन ऑर्डर में डिटेनू की पिछली नजरबंदी का उल्लेख नहीं होने पर आदेश टिकाऊ नहीं: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में डिटेंशन ऑर्डर खारिज करते हुए कहा कि वास्तव में यह उल्लेख किए बिना कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पहले से ही इसी सामग्री के आधार पर हिरासत में लिया गया, बाद के डिटेंशन ऑर्डर को पारित करने के लिए उन्हीं आधारों और सामग्री का उपयोग करना, न केवल अवैधता है, साथ ही हिरासत में लेने वाले प्राधिकरण की ओर से विवेक के उपयोग की कमी को भी दर्शाता है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने डिटेंशन ऑर्डर को चुनौती दी, जिसके तहत उसे देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ किसी भी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित कार्य करने से रोकने के लिए निवारक निरोध के तहत रखा गया।

    केस टाइटल: खालिद नजीर वागे बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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