घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही, IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के लिए एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती: हाईकोर्ट
Brij Nandan
24 Feb 2023 3:20 PM IST
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (डीवी अधिनियम) के तहत पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता के लिए एफआईआर दर्ज करने पर कोई रोक नहीं लगाती है।
याचिकाकर्ता-पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय धर की पीठ ने ये टिप्पणी की, जिसमें उनके खिलाफ उनकी पत्नी-शिकायतकर्ता द्वारा दायर शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 498ए और 109 के तहत दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी गई थी।
एकल-न्यायाधीश संजय धर ने कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही का दायरा और आईपीसी के तहत क्रूरता के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के बाद शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही का दायरा पूरी तरह से अलग है।
कोर्ट ने कहा,
"डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही में, घरेलू हिंसा की शिकार को मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता है और उसके पक्ष में कुछ सुरक्षात्मक आदेश भी दिए जा सकते हैं, लेकिन आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य अपराध के अपराधी को दंडित करना है। इसलिए, डीवी एक्ट और आईपीसी के प्रावधान अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं।"
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप पूरी तरह से घिनौने थे और याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने और परेशान करने की दृष्टि से थे।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि पत्नी ने पहले ही डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत एक आवेदन दायर किया था, इसलिए उसे धारा 498ए अपराध के लिए याचिकाकर्ता-पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके माता-पिता और देवर सहित उसके सभी रिश्तेदारों को प्राथमिकी में शामिल किया गया है, जो दर्शाता है कि पत्नी (प्रतिवादी संख्या 3) केवल याचिकाकर्ता को परेशान करना चाहती है।
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने कहा कि केवल इसलिए कि पत्नी ने डीवी अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर किया है, उसे याचिकाकर्ता के खिलाफ उसके पति द्वारा उसके खिलाफ की गई कथित क्रूरता के कृत्यों की जांच के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता है।
याचिकाकर्ता के इस तर्क पर विचार करते हुए कि विवादित प्राथमिकी में उसके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं हैं, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की भूमिका के संबंध में याचिकाकर्ता की प्राथमिकी में लगाए गए आरोप बहुत विशिष्ट प्रकृति के हैं। प्राथमिकी में यह विशेष रूप से कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी संख्या 3 से नकद और कार की मांग की थी और यह भी विशेष रूप से कहा गया है कि याचिकाकर्ता दहेज की मांग के संबंध में उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता था, इसलिए उपरोक्त विवाद योग्यता के बिना है।
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: दानिश चौहान बनाम डीजीपी जम्मू-कश्मीर
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (जेकेएल) 37
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