समान आधारों और सामग्रियों के आधार पर बाद के डिटेंशन ऑर्डर में डिटेनू की पिछली नजरबंदी का उल्लेख नहीं होने पर आदेश टिकाऊ नहीं: जेकेएल हाईकोर्ट

Shahadat

20 Feb 2023 10:29 AM IST

  • समान आधारों और सामग्रियों के आधार पर बाद के डिटेंशन ऑर्डर में डिटेनू की पिछली नजरबंदी का उल्लेख नहीं होने पर आदेश टिकाऊ नहीं: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में डिटेंशन ऑर्डर खारिज करते हुए कहा कि वास्तव में यह उल्लेख किए बिना कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पहले से ही इसी सामग्री के आधार पर हिरासत में लिया गया, बाद के डिटेंशन ऑर्डर को पारित करने के लिए उन्हीं आधारों और सामग्री का उपयोग करना, न केवल अवैधता है, साथ ही हिरासत में लेने वाले प्राधिकरण की ओर से विवेक के उपयोग की कमी को भी दर्शाता है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने डिटेंशन ऑर्डर को चुनौती दी, जिसके तहत उसे देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ किसी भी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित कार्य करने से रोकने के लिए निवारक निरोध के तहत रखा गया।

    याचिकाकर्ता ने अन्य बातों के साथ-साथ इस आधार पर अपनी याचिका को आधार बनाया कि मौजूदा मामले में वैधानिक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया गया, क्योंकि पूरी सामग्री जो डिटेंशन ऑर्डर का आधार बनी है और डिटेंशन का परिणामी आदेश हिरासत में लिए गए व्यक्ति को प्रदान नहीं किया गया। यह कि हिरासत में लेने के आदेश को पारित करते समय हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की ओर से पूरी तरह से विवेक नहीं लगाया गया।

    याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने यह कहते हुए आदेश पारित करने को सही ठहराया कि हिरासत में लिया गया आदतन अपराधी है, क्योंकि उसके खिलाफ कई एफआईआर लंबित हैं। इस आधार पर हिरासत में लेने वाले अधिकारी को हिरासत में लेने का आदेश पारित करना उसके अधिकार क्षेत्र में है। चूंकि इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने की पूरी संभावना है।

    जस्टिस धर ने मामले पर निर्णय देते हुए कहा कि निष्पादन रिपोर्ट, जो डिटेंशन रिकॉर्ड का हिस्सा है, उससे पता चलता है कि पुलिस डोजियर की प्रति हिरासत में लिए गए व्यक्ति को बिल्कुल भी प्रदान नहीं की गई।

    पीठ ने यह भी कहा कि डिटेंशन के आधार में तीन एफआईआर का संदर्भ दिया गया, यानी एफआईआर नंबर 183/2016, 191/2016 और 313/2017 और यह उत्तरदाताओं के लिए न केवल इन एफआईआर की प्रति प्रस्तुत करने के लिए ही नहीं, बल्कि इन एफआईआर की जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयान और अन्य सामग्री जिसके आधार पर उक्त एफआईआर में याचिकाकर्ता की संलिप्तता दिखाई गई है।

    याचिकाकर्ता के इस तर्क पर विचार करते हुए कि डिटेंशन का विवादित आदेश बासी घटनाओं के आधार पर पारित किया गया, जिसका राज्य की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के लिए कथित तौर पर प्रतिकूल गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है, पीठ ने कहा कि आधार नजरबंदी से पता चला कि इसमें संदर्भित घटनाएं वर्ष 2016, 2017 और 2018 से संबंधित हैं, जो कि डिटेंशन के विवादित ऑर्डर को पारित करने से पहले क्रमशः छह साल, पांच साल और चार साल से अधिक है।

    पीठ ने रिकॉर्ड किया,

    "वास्तव में जिन घटनाओं और एफआईआर को डिटेंशन में लेने का आधार बनाया गया, वे पहले याचिकाकर्ता को डिटेंशन में लेने का आधार रही हैं, जो आदेश नंबर 19/डीएमके/पीएसए/2018 दिनांक 04.10.218 के अनुसार बनाया गया, जिसे इस न्यायालय द्वारा एचसीपी नंबर 363/2018 का निस्तारण करते हुए रद्द कर दिया गया।"

    डिटेंशन ऑर्डर में अवैधता की ओर इशारा करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि बाद के डिटेंशन ऑर्डर को पारित करने के लिए उन्हीं आधारों और सामग्री का उपयोग करते हुए वास्तव में यह उल्लेख किए बिना कि याचिकाकर्ता को पहले इसी सामग्री के आधार पर डिटेंशन में लिया गया, स्पष्ट रूप से इस ओर से विवेक न लगाने का सुझाव देता है। डिटेंशन में लेने का अधिकार है और इसलिए यह इसे टिकाऊ नहीं बनाता है।

    याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने डिटेंशन में लिए गए व्यक्ति को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया, बशर्ते कि किसी अन्य मामले में उसकी आवश्यकता न हो।

    केस टाइटल: खालिद नजीर वागे बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

    साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 2023

    कोरम: जस्टिस संजय धर

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