हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

20 Nov 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 नवंबर, 2022 से 18 नवंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव के आरोपी आनंद तेलतुंबडे को जमानत दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत बुक किए गए आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर और दलित विद्वान प्रो. आनंद तेलतुंबडे को जमानत दे दी।

    जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने 2021 में तेलतुंबडे द्वारा दायर एक अपील पर आदेश पारित किया, जिसमें विशेष एनआईए कोर्ट द्वारा गुण-दोष के आधार पर उनकी जमानत याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद 73 वर्षीय को एनआईए ने 14 अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया था।

    डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही को केवल अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती दी जा सकती है, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत नहींः मद्रास हाईकोर्ट फुल बेंच

    मद्रास हाईकोर्ट की एक फेल बेंच ने गुरुवार को कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत की शक्ति को लागू करके नहीं केवल संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

    जस्टिस एन सतीश कुमार के इस मामले को जस्टिस पीएन प्रकाश, जस्टिस आरएमटी टीका रमन और जस्टिस एडी जगदीश चंडीरा की पीठ के पास भेजा था। जस्टिस एन सतीश कुमार की पीठ सीआरपीसी की धारा 482 के प्रावधानों को लागू करते हुए डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी। पीठ ने इन याचिकाओं पर विचार करने के बाद अपने आदेश में कहा कानूनी सवाल पर डिवीजन बेंच का हालिया फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुरूप नहीं था।

    केस टाइटल- अरुल डेनियल बनाम सुगन्या व अन्य जुड़े मामले

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    ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की धार्मिक प्रकृति 'संदिग्ध', प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत हिंदू पक्ष के मुकदमे पर कोई रोक नहीं: वाराणसी कोर्ट

    वाराणसी कोर्ट ने आज भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान (स्वयंभू) और अन्य को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का कब्जा सौंपने की प्रार्थना वाले टाइटल सूट को बरकरार रखते हुए कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की धार्मिक प्रकृति 'संदिग्ध' है और इसलिए, पूजा स्थल अधिनियम के तहत इस तरह के मुकदमे पर रोक नहीं होगा।

    कोर्ट ने अंजुमन मस्जिद समिति (जो वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) के आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें भगवान विश्वेश्वर विराजमान (स्वयंभू) और अन्य को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का कब्जा सौंपने की मांग वाले मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी गई थी।

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    एमपी फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट - अंतर-धार्मिक जोड़ों को कलेक्टर के सामने धर्मांतरण की घोषणा आवश्यक करने का प्रावधान 'प्रथम दृष्टया असंवैधानिक : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में राज्य सरकार को ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया है, जो मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 (Madhya Pradesh Freedom of Religion Act, 2021) की धारा 10 का उल्लंघन करता है। अधिनियम की इस धारा के तहत धर्म परिवर्तन करने के इच्छुक व्यक्ति को जिलाधिकारी को इस संबंध में घोषणा पत्र देने की आवश्यकता होती है।

    जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की पीठ ने इस प्रावधान को प्रथम दृष्टया असंवैधानिक पाते हुए आगे राज्य को निर्देश दिया कि यदि वे अपनी इच्छा से विवाह करते हैं तो वयस्क नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

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    वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के कब्जे की मांग वाले मुकदमे की स्थिरता को चुनौती देने मस्जिद कमेटी के आवेदन को खारिज किया

    वाराणसी की एक अदालत ने आज अंजुमन मस्जिद समिति (जो वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) के आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें भगवान विश्वेश्वर विराजमान (स्वयंभू) और अन्य को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का कब्जा सौंपने की मांग वाले मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी गई थी।

    आदेश 7 नियम 11 सीपीसी याचिका को खारिज करते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) महेंद्र कुमार पांडे की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मामले को 2 दिसंबर, 2022 को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया।

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    एनआई एक्ट| शिकायतकर्ता कंपनी के पूर्व निदेशकों पर उनके पद पर रहते हुए निवेश की गई राशि को चुकाने के लिए जारी किए गए चेक के लिए मुकदमा चलाने की मांग नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक कंपनी के दो पूर्व निदेशकों के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि जब उसने कंपनी में पैसा लगाया तो वे निदेशक थे।

    जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल न्यायाधीश की पीठ ने सुनीता और विद्या द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: सुनीता पत्नी भरतकुमार ऐतवाडे और अन्य बनाम मलिकजन पुत्र भास्कर संनक्की

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    धारा 482 सीआरपीसी| केवल एफआईआर/चार्जशीट में धारा 307 आईपीसी को शामिल करना समझौता को खारिज करने का आधार नहीं है, चोट की प्रकृति प्रासंगिक कारक: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि एक एफआईआर/ चार्जशीट में आईपीसी की धारा 307 के प्रावधान शामिल हैं, यह अपने आप में संहिता की धारा 482 के तहत याचिका को खारिज करने और पक्षों के बीच समझौते को स्वीकार करने से इनकार करने का आधार नहीं होगा।

    जस्टिस एमए चौधरी ने कहा कि इस तरह के मामलों में समझौता किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर फैसला करते समय अदालत को लगी चोट की प्रकृति, शरीर के उस हिस्से पर ध्यान देना चाहिए जहां चोटें लगी थीं (यानि क्या चोटें चोट शरीर के महत्वपूर्ण/नाजुक अंग पर लगीं हैं) और इस्तेमाल किए गए हथियारों की प्रकृति आदि।

    केस टाइटल: शेख फिरोज अहमद बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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    सीआरपीसी की धारा 164 | केवल कानूनी प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति के कारण स्वैच्छिक और सच्ची स्वीकारोक्ति कानून में अस्वीकार्य नहीं हो सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि कानूनी प्रतिनिधित्व के बिना किए गए इकबालिया बयान अपने आप में कानून में इस तरह की स्वीकारोक्ति को अमान्य नहीं करेंगे, बशर्ते स्वीकारोक्ति स्वैच्छिक और सत्य होने के दोहरे ट्रायल को पूरा करती हो।

    जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय की खंडपीठ ने कहा, "स्वयं स्वीकारोक्ति करते समय कानूनी प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति कानून में स्वीकारोक्ति को अस्वीकार्य नहीं बनाती है। स्वैच्छिक और सत्य पाई गई स्वीकारोक्ति पर भरोसा किया जा सकता है। भले ही अभियुक्त के पास उस समय कानूनी प्रतिनिधित्व न हो जब वह कबूल किया।"

    केस टाइटल: स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम मुजफ्फर अहमद राठेर @ अबू राफा व अन्य, डेथ रेफरेंस नंबर 2/2017

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    महाराष्ट्र मनी-लेंडिंग (रेगुलेशन) एक्ट के तहत अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर सिविल कोर्ट का आदेश प्रबल होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पूर्व मुकदमे में दीवानी अदालत का फैसला मनी लेंडिंग (रेगुलेशन) एक्ट, 2014 की धारा 18(2) के तहत दिए गए आदेश पर लागू होगा।

    औरंगाबाद खंडपीठ के जस्टिस संदीप वी. मार्ने ने जिला रजिस्ट्रार (मनी लेंडिंग) और अपीलीय प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया, जिसमें सिविल कोर्ट की पूर्व घोषणा के बावजूद कि यह पूर्ण बिक्री है, पार्टियों के बीच लेनदेन को बंधक घोषित किया गया।

    केस टाइटल- भानुदास पुत्र रामचंद्र शिंदे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    नियुक्ति प्रक्रिया की अमान्यता संपूर्ण मध्यस्थता खंड को अमान्य नहीं करेगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया 2015 के संशोधन अधिनियम के कारण अमान्य हो गई है, यह पूरे मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) को अमान्य नहीं करेगा।

    जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने कहा कि मध्यस्थता खंड में कई तत्व मौजूद हैं, जैसे मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया, मध्यस्थता का कानून, अनुबंध का कानून, सीट और स्थान आदि हैं। हालांकि, मूल तत्व पक्षकार विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करते हैं। इसलिए केवल इसलिए कि एक तत्व अमान्य हो गया है, यह पूरे खंड को अप्रभावी नहीं बना देगा। साथ ही अमान्य खंड को आसानी से अलग किया जा सकता है।

    केस टाइटल: राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन प्रा. लिमिटेड बनाम एनटीपीसी, एआरबी. पी. 582/2020

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    वाराणसी कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के कब्जे की मांग वाले मुकदमे को सिविल जज से जिला जज को ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका दायर

    वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) में ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi Case) का कब्जा 'भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान' को सौंपने की मांग वाले मुकदमे को सिविल जज से जिला जज को ट्रांसफर करने की मांग वाला आवेदन दायर किया गया है। जिला जज, जो वर्तमान में इसी तरह के एक अन्य मुकदमे की सुनवाई कर रहा है।

    ट्रांसफर आवेदन सीपीसी की धारा 24 (1) (बी) के तहत लक्ष्मी डेसी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर से प्रस्तुत किया गया है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के समक्ष मुकदमा ट्रांसफर किया जाए और जिला जज के समक्ष लंबित एक अन्य मुकदमे के साथ समेकित किया जाए, जो ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पूरे साल प्रार्थना करने के अधिकार की मांग करने वाली 5 हिंदू महिला उपासकों द्वारा दायर किया गया है।

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    एक राज्य के आरक्षण लाभ का दूसरे राज्य में दावा नहीं किया जा सकता, भले ही प्रवास विवाह के कारण हुआ हो: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 'अनुसूचित जनजाति' के व्यक्ति होने के आधार पर आरक्षण का दावा करने वाले एक उम्मीदवार की तरफ से दायर एक मामले में कहा कि एक राज्य के आरक्षण लाभ का दूसरे राज्य में दावा नहीं किया जा सकता, भले ही प्रवास विवाह के कारण हुआ हो। मामला एक याचिकाकर्ता महिला से जुड़ा है, जो जन्म से हरियाणा की गुर्जर जाति की थी।

    याचिकाकर्ता ने नैन सिंह से शादी की थी, जो उसी जाति के थे। याचिकाकर्ता की जाति, शादी से पहले और बाद में, एक ही रही, फर्क सिर्फ इतना है कि गुर्जर समुदाय को हिमाचल प्रदेश में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में मान्यता प्राप्त है, जबकि हरियाणा में इसे ओबीसी समुदाय के रूप में मान्यता प्राप्त है।

    केस टाइटल: प्रियंका बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एंड अन्य

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    एमएसएमई अधिनियम की धारा 19 सभी प्रकार की चुनौतियों पर लागू होती है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एमएसएमई अधिनियम की धारा 19, जो आपूर्तिकर्ता के पक्ष में पारित किसी भी आदेश, अवार्ड या डिक्री को चुनौती देने के लिए पूर्व शर्त के रूप में प्रदान की गई राशि का 75% जमा करने का प्रावधान करती है। सभी चुनौती आवेदनों पर लागू होती है। डिक्री, निर्णय, आदेश एमएसएमई परिषद, स्वतंत्र मध्यस्थता या न्यायालय द्वारा पारित किया गया या नहीं।

    जस्टिस उमेश ए त्रिवेदी की पीठ ने माना कि यदि अधिनियम की धारा 19 को केवल परिषद द्वारा पारित निर्णय पर लागू किया जाता है तो अधिनियम की धारा 19 के तहत 'डिक्री' शब्द का उपयोग निरर्थक हो जाएगा, क्योंकि परिषद पारित नहीं कर सकती है। आगे यह उस धारा के उद्देश्य को भी विफल कर देगा जो लघु उद्योगों यानी आपूर्तिकर्ता के हित को सुरक्षित करना है।

    केस टाइटल: स्पनपाइप एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम गुजरात राज्य, आर/स्पेशल सिविल एप्लीकेशन नंबर 8109/2013

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    स्थानापन्न मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए समय-परिसीमा की अवधि उसके इनकार/हटाने की तिथि से शुरू होती है, जानकारी की तारीख अप्रासंगिक: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 15 (2) के तहत एक स्थानापन्न मध्यस्थ स्थानापन्न मध्यस्थ (Substitute Arbitrator) की नियुक्ति के लिए परिसीमा अवधि मध्यस्थ को हटाने/हटाने की तारीख से शुरू होती है और जिस तारीख को उसे हटाने/बहिष्कृत करने के तथ्य की जानकारी पक्षकार को होती है, वह परिसीमा के उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है।

    जस्टिस मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि चूंकि ए एंड सी अधिनियम की धारा 15 में परिसीमा का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 137 के तहत प्रदान की गई सीमा की अवधि 3 वर्ष होगी।

    केस टाइटल: ट्राईकलर होटल्स लिमिटेड बनाम दिनेश जैन ओ.एम.पी. (टी) (कॉम.) 99/2018

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    क्रेडिट इंफोर्मेशन कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 31 मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन को प्रतिबंधित नहीं करती: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि क्रेडिट इंफोर्मेशन कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 (सीआईसी अधिनियम) की धारा 31 के तहत निहित प्रतिबंध मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन की कार्यवाही पर लागू नहीं होगा, ताकि विवादों को निर्धारित तरीके से हल किया जा सके।

    जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की एकल पीठ ने कहा कि सीआईसी अधिनियम की धारा 31 का उद्देश्य पार्टियों को सीआईसी अधिनियम के तहत निर्धारित किसी भी तरीके से शिकायतों के निवारण की मांग करने से रोकना है। इसमें कहा गया कि चूंकि सीआईसी अधिनियम की धारा 18 में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद समाधान का प्रावधान है, धारा 31 के प्रावधान मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन पर रोक नहीं लगाएंगे।

    केस टाइटल: किरणकुमार मूलचंद जैन बनाम ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड।

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    साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 - एक चश्मदीद की गवाही दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, बशर्ते यह उत्कृष्ट गुणवत्ता की होः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक चश्मदीद की गवाही दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, बशर्ते कि यह उत्कृष्ट गुणवत्ता की होनी चाहिए।

    जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने कहा- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 के मद्देनजर, हमें इस कानूनी सिद्धांत को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि एक चश्मदीद का बयान दोषसिद्धि का आधार बन सकता है। सिद्धांत के रूप में, सरकारी वकील के इस तर्क को खारिज करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि, इस पहलू पर पूरी कानूनी यात्रा करने से पता चलता है कि इस तरह के अकेले चश्मदीद गवाह की गवाही उत्कृष्ट गुणवत्ता की होनी चाहिए। यदि इस तरह के बयान पर भौंहें चढ़ाई जा सकती हैं या संदेह हो सकता है तो उसके आधार पर दोषसिद्धि को रिकॉर्ड करना या पुष्टि करना सुरक्षित नहीं है।

    केस टाइटल- मनीष बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    मध्यस्थता निर्धारित करने के बाद परामर्श समझौता पार्टियों को बाध्य नहीं करते हैं जब एमओयू दावे के आधार बनाने में मध्यस्थता क्लॉज शामिल नहीं है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    जाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मध्यस्थता निर्धारित करने के बाद परामर्श समझौता पार्टियों को बाध्य नहीं करते हैं जब एमओयू दावे के आधार बनाने में मध्यस्थता क्लॉज शामिल नहीं है।

    जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह और जस्टिस संदीप मोदगिल की पीठ ने कहा कि एमओयू के तहत मध्यस्थता के लिए कोई खंड नहीं है और खंड, अगर कोई हो, परामर्श समझौतों में है जो यहां लागू नहीं होगा क्योंकि वादी का दावा विशेष रूप से समझौता ज्ञापन पर आधारित है।

    केस टाइटल: मैसर्स सोबेन कॉन्ट्रैक्ट एंड कमर्शियल लिमिटेड बनाम क्यूंक्वेस्ट्स टेक्निकल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और अन्य

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    शिकायतकर्ता की ओर से पेश होने वाले गवाह जिसका अभियुक्त द्वारा क्रॉस एग्जामिनेशन किया जा चुका है, उसे बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि शिकायतकर्ता की ओर से पेश होने वाले गवाह जिसका अभियुक्त द्वारा क्रॉस एग्जामिनेशन किया जा चुका है, उसे बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस एम ए चौधरी ने देखा, "ट्रायल मजिस्ट्रेट द्वारा तय किया जाने वाला प्रश्न यह है कि क्या शिकायतकर्ताओं द्वारा ट्रायल किए गए गवाहों को बचाव के लिए गवाह के रूप में पेश होने के लिए कहा जा सकता है। भले ही मजिस्ट्रेट का विचार था कि इन गवाहों की क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है और सुनवाई के दौरान री-ट्रायल के दौरान, इन गवाहों को विपरीत पक्ष की ओर से बुलाना कानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं हो सकता। अधिक से अधिक इन गवाहों को उनकी आगे की जिरह के लिए शिकायतकर्ताओं के गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है, यदि उसी की आवश्यकता है।"

    केस टाइटल: अजरा व अन्य बनाम मोहम्मद अफजल बघाट

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    ओएमआर शीट के साथ छेड़छाड़ के आरोपी व्यक्ति पर मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी के लिए आईपीसी की धारा 467 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि ओएमआर शीट के साथ जालसाजी भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 467 के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करेगी, क्योंकि ओएमआर शीट आईपीसी की धारा 30 के तहत परिभाषित 'मूल्यवान सुरक्षा' के अर्थ में आती है।

    चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि 'मूल्यवान सुरक्षा' शब्द का कड़ाई से अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए और बदलते समय के साथ यह शब्द तदनुसार विकसित होगा।

    केस टाइटल: प्रीति गौतम बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन

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    POCSO अधिनियम का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है, न कि युवा वयस्कों की सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को आपराधिक बनाना: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है न कि युवा वयस्कों के सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने पिछले माह आईपीसी की धारा 363/366/376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा धारा 6/17 के तहत दर्ज एक मामले में एक आरोपी को जमानत देने के आदेश में यह टिप्पणी की।

    टाइटल : एके बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली और एएनआर

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