POCSO अधिनियम का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है, न कि युवा वयस्कों की सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को आपराधिक बनाना : दिल्ली हाईकोर्ट
Sharafat
13 Nov 2022 12:43 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है न कि युवा वयस्कों के सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना।
जस्टिस जसमीत सिंह ने पिछले माह आईपीसी की धारा 363/366/376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा धारा 6/17 के तहत दर्ज एक मामले में एक आरोपी को जमानत देने के आदेश में यह टिप्पणी की।
जब कथित पीड़िता महिला जून 2021 में 17 साल की थी तो उसके परिवार ने उसकी शादी एक व्यक्ति से कर दी थी, लेकिन वह उसके साथ नहीं रहना चाहती थी। अक्टूबर 2021 में वह आरोपी के घर आई जो उसका दोस्त था और वह उसे पंजाब ले गया जहां उसने और महिला ने शादी की। उसके पिता ने आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई।
जस्टिस सिंह ने कहा,
"मेरी राय में POCSO का इरादा 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। इसका मतलब कभी भी युवा वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराधी बनाना नहीं है। हालांकि इसे प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से देखा जाना चाहिए। ऐसे मामले हो सकते हैं जहां यौन अपराध के पीड़ित को दबाव या आघात के तहत समझौता करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।"
आरोपी 31 दिसंबर, 2021 से न्यायिक हिरासत में था। उसके वकील ने पिछले महीने अदालत को बताया कि लड़की ने अपने माता-पिता से सुरक्षा की मांग करते हुए पहले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
जस्टिस सिंह ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश का अवलोकन करते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि उसने अपनी मर्जी से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां बयान दिया कि उसके माता-पिता उसे और उसके पति को नुकसान पहुंचाने की धमकी दे रहे हैं।
अदालत ने 20 अक्टूबर को महिला से चेंबर में बातचीत की। उसने अदालत को बताया कि जब वह किशोर अवस्था में थी तब उसकी शादी एक व्यक्ति से हुई थी लेकिन वह उसके साथ नहीं रहना चाहती थी। उसने अदालत को आगे बताया कि उसने अपने दोस्त से, जो उसके पिता की शिकायत पर दर्ज मामले में आरोपी है, अपनी मर्जी से और बिना किसी दबाव के शादी की। उसने अदालत से कहा कि वह आज भी उसके साथ रहना चाहती है।
जस्टिस सिंह ने कहा,
"इस प्रकार, यह ऐसा मामला नहीं है, जहां लड़की को लड़के के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया। वास्तव में, सुश्री 'ए' खुद आवेदक के घर गई और उससे शादी करने के लिए कहा। पीड़िता के बयान से यह स्पष्ट होता है कि यह दोनों के बीच एक रोमांटिक रिश्ता है और यह कि उनके बीच यौन संबध सहमति से बने।"
अदालत ने कहा कि हालांकि एक नाबालिग की सहमति का कोई कानूनी प्रभाव नहीं होता, लेकिन जमानत देते समय प्यार से पैदा हुए सहमति संबंध के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, "पीड़ित के बयान को नजरअंदाज करना और आरोपी को मौजूदा मामले में जेल में रहने देना, अन्यथा न्याय की विकृति होगी।"
अदालत ने यह भी कहा कि यह संज्ञान में है कि उसके समक्ष कार्यवाही जमानत देने की है न कि एफआईआर को रद्द करने की। इसने आगे कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां अभियुक्त की स्लेट को मिटा दिया गया हो।
अदालत ने आगे कहा कि वर्तमान मामले की परिस्थितियों में आवेदक उपरोक्त कारणों से जमानत का हकदार है।
अदालत ने अपने आदेश में विजयलक्ष्मी बनाम राज्य मामले में मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि " बाल शोषण के पीड़ितों और पीड़ितों की रक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए बनाया गया कानून, समाज के वर्गों को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए कुछ लोगों के हाथों में एक टूल बन सकता है।"
"इस अदालत ने धर्मेंद्र सिंह बनाम राज्य (एनसीटी सरकार) बेल एपीपीएल 1559/2020 में आरोपी और नाबालिग पीड़िता के बीच पारस्परिक शारीरिक संबंध की संभावना को ध्यान में रखते हुए आरोपी को जमानत दी। अदालत ने यह भी निर्धारित किया कि POCSO अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्ति की जमानत पर विचार करते समय तय मापदंडों का पालन किया जाए।"
टाइटल : एके बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली और एएनआर
साइटेशन : 2022 लाइवलॉ (दिल्ली) 1077
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें