एमएसएमई अधिनियम की धारा 19 सभी प्रकार की चुनौतियों पर लागू होती है: गुजरात हाईकोर्ट

Shahadat

15 Nov 2022 11:06 AM GMT

  • Gujarat High Court

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एमएसएमई अधिनियम की धारा 19, जो आपूर्तिकर्ता के पक्ष में पारित किसी भी आदेश, अवार्ड या डिक्री को चुनौती देने के लिए पूर्व शर्त के रूप में प्रदान की गई राशि का 75% जमा करने का प्रावधान करती है। सभी चुनौती आवेदनों पर लागू होती है। डिक्री, निर्णय, आदेश एमएसएमई परिषद, स्वतंत्र मध्यस्थता या न्यायालय द्वारा पारित किया गया या नहीं।

    जस्टिस उमेश ए त्रिवेदी की पीठ ने माना कि यदि अधिनियम की धारा 19 को केवल परिषद द्वारा पारित निर्णय पर लागू किया जाता है तो अधिनियम की धारा 19 के तहत 'डिक्री' शब्द का उपयोग निरर्थक हो जाएगा, क्योंकि परिषद पारित नहीं कर सकती है। आगे यह उस धारा के उद्देश्य को भी विफल कर देगा जो लघु उद्योगों यानी आपूर्तिकर्ता के हित को सुरक्षित करना है।

    इसमें एमएसएमई परिषद के समक्ष किसी भी कार्यवाही में एमएसएमई के पक्ष में पारित कोई भी डिक्री, निर्णय या आदेश, स्वतंत्र मध्यस्थता या न्यायालय के समक्ष कोई कार्यवाही शामिल है।

    तथ्य

    विवाद के आधार पर पार्टियों को मध्यस्थता के लिए भेजा गया। मध्यस्थ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। तदनुसार, प्रतिवादी ने वर्ष 2002 में ए एंड सी अधिनियम की धारा 34 के तहत 10 से अधिक वर्षों के अंतराल के बाद अवार्ड को चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने एमएसएमई होने का दावा करते हुए चुनौती की कार्यवाही में आवेदन दायर किया, जिसमें अनुपालन न करने का दावा किया गया। ए एंड सी अधिनियम की धारा 19 के मद्देनजर और उस आधार पर याचिका खारिज करने के लिए सम्मानित राशि का 75% जमा करने की अनिवार्य आवश्यकता है।

    निचली अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर अर्जी खारिज कर दी। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने भारतीय संविधान के A.226 के तहत विशेष सिविल आवेदन के माध्यम से आदेश को चुनौती दी।

    पार्टियों का विवाद

    याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित आधारों पर आक्षेपित आदेश को चुनौती दी:

    1. याचिकाकर्ता रजिस्टर्ड एमएसएमई है और उसे एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 19 के लाभ सहित सभी लाभ प्राप्त होने चाहिए। इसलिए निर्धारित आवश्यकता का अनुपालन किए बिना उसके पक्ष में दिए गए निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    2. न्यायालय को स्वयं ही आवेदक को इस तरह की जमा राशि जमा करने का निर्देश देना चाहिए और न कि केवल तब जब एमएसएमई इस आशय का आवेदन करता है।

    3. इसी तरह का प्रावधान ब्याज अधिनियम, 1993 की धारा 7 में निहित है, जो अवार्ड के समय प्रचलित है और परिणामी चुनौती है। हालांकि, इसे एमएसएमईडी की धारा 32(1) द्वारा निरस्त कर दिया गया।

    4. अधिनियम, 1993 की धारा 32(2) के तहत ब्याज इस अधिनियम को अधिकार हस्तांतरित करने का प्रावधान है।

    5. अधिनियम की धारा 19 सभी आवेदनों पर लागू होती है, न कि केवल अधिनियम की धारा 18 के तहत संदर्भ के अनुसार, एमएसएमई परिषद द्वारा पारित अवार्ड या आदेश के लिए है। इसलिए यह स्वतंत्र मध्यस्थ द्वारा पारित वर्तमान निर्णय पर पूरी तरह से लागू होता है।

    प्रतिवादी ने निम्नलिखित आपत्तियां उठाईं:

    1. याचिकाकर्ता ने न तो मध्यस्थता की कार्यवाही के दौरान और न ही 10 वर्षों की लंबी अवधि के बाद इस तथ्य का खुलासा किया कि यह ब्याज अधिनियम, 1993 के तहत लघु उद्योग के रूप में रजिस्टर्ड है या

    2. एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 ने लंबी देरी के बाद इस तरह के किसी भी विशेषाधिकार का दावा करने के अपने अधिकार को माफ कर दिया।

    3. याचिकाकर्ता ए एंड सी अधिनियम की धारा 19 पर भी भरोसा नहीं कर सकता, क्योंकि अधिनिर्णय और चुनौती याचिका अधिनियम के लागू होने से बहुत पहले दायर की गई।

    4. अधिनियम के लाभ का दावा करने के लिए यह दिखाना महत्वपूर्ण है कि इकाई अधिनियम के तहत 'आपूर्तिकर्ता' के रूप में रजिस्टर्ड है। हालांकि, याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं है कि उसके द्वारा दिया गया रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट अधिनियम की धारा 8(1) के अनुसार है।

    5. जब तक रजिस्ट्रेशन और संबंधित प्रावधान के तथ्य को न्यायालय के ध्यान में नहीं लाया जाता है, तब तक न्यायालय आवेदक को 75% राशि जमा करने की आवश्यकता नहीं कर सकता।

    धारा 19 केवल एमएसएमई परिषद द्वारा पारित अवार्ड पर लागू होता है। हालांकि, वर्तमान निर्णय स्वतंत्र मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित किया जाता है। इसलिए इसका कोई आवेदन नहीं होगा।

    न्यायालय द्वारा विश्लेषण

    न्यायालय ने पाया कि चुनौती याचिका वर्ष 2002 में दायर की गई कि ब्याज अधिनियम, 1993 प्रचलित है। उस अधिनियम की धारा 7 में एक समान प्रावधान है। एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 32(1) ने ब्याज अधिनियम को निरस्त कर दिया और उप-खंड (2) ने मौजूदा दावों को बचा लिया, क्योंकि वे एमएसएमईडी अधिनियम के तहत दावे है। इसलिए याचिकाकर्ता का अधिकार अब 2006 अधिनियम की धारा 19 के तहत है।

    न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता ने 2006 के अधिनियम के तहत एमएसएमई के रूप में अपने रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट न्यायालय के समक्ष दायर किया। यह माना गया कि यह अनिवार्य है कि आवेदन पर विचार करने से पहले आवेदक को आवश्यक राशि जमा करनी होगी।

    इसके बाद न्यायालय ने एमएसएमई परिषद द्वारा पारित नहीं किए जाने और इस कारण से धारा के दायरे से बाहर होने के संबंध में आपत्ति पर विचार किया। न्यायालय ने कहा कि यदि अधिनियम की धारा 19 को केवल परिषद द्वारा पारित पुरस्कार पर लागू किया जाता है तो धारा 19 के तहत 'डिक्री' शब्द का प्रयोग निरर्थक हो जाएगा, क्योंकि परिषद डिक्री पारित नहीं कर सकती। इसके अलावा, यह भी होगा छोटे पैमाने के उद्योगों यानी आपूर्तिकर्ता के हितों को सुरक्षित करने के लिए धारा के उद्देश्य को विफल करना।

    तदनुसार, न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश रद्द कर दिया और प्रतिवादी को 6 सप्ताह के भीतर आवश्यक राशि जमा करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: स्पनपाइप एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम गुजरात राज्य, आर/स्पेशल सिविल एप्लीकेशन नंबर 8109/2013

    दिनांक: 20.10.2022

    याचिकाकर्ता के वकील: बी.एस. पटेल, सीनियर एडवोकेट, चिराग बी पटेल और उमंग ओझा, एडवोकेट।

    प्रतिवादी के लिए वकील: आकाश छाया, एजीपी।

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