साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 - एक चश्मदीद की गवाही दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, बशर्ते यह उत्कृष्ट गुणवत्ता की होः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Manisha Khatri

15 Nov 2022 6:00 AM GMT

  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 - एक चश्मदीद की गवाही दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, बशर्ते यह उत्कृष्ट गुणवत्ता की होः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक चश्मदीद की गवाही दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, बशर्ते कि यह उत्कृष्ट गुणवत्ता की होनी चाहिए।

    जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने कहा-

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 के मद्देनजर, हमें इस कानूनी सिद्धांत को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि एक चश्मदीद का बयान दोषसिद्धि का आधार बन सकता है। सिद्धांत के रूप में, सरकारी वकील के इस तर्क को खारिज करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि, इस पहलू पर पूरी कानूनी यात्रा करने से पता चलता है कि इस तरह के अकेले चश्मदीद गवाह की गवाही उत्कृष्ट गुणवत्ता की होनी चाहिए। यदि इस तरह के बयान पर भौंहें चढ़ाई जा सकती हैं या संदेह हो सकता है तो उसके आधार पर दोषसिद्धि को रिकॉर्ड करना या पुष्टि करना सुरक्षित नहीं है।

    मामले के तथ्य यह हैं कि अपीलकर्ता को एक महिला की हत्या के मामले में आरोपी बनाया गया था और बाद में उसे हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। उसकी सजा मुख्य रूप से शिकायतकर्ता की गवाही के साथ-साथ साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत उसके द्वारा दिए गए बयान पर आधारित थी। शिकायतकर्ता मृतक की बहन और मामले की एकमात्र चश्मदीद गवाह है। भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत अपनी दोषसिद्धि से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।

    अपीलकर्ता ने प्रस्तुत किया कि मामले में एकमात्र चश्मदीद गवाह की गवाही अंतर्विरोधों से युक्त थी। आगे यह भी बताया गया कि कई अन्य गवाहों द्वारा दिए गए बयान अभियोजन की कहानी की पुष्टि नहीं करते हैं। साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत अपने बयान की वैधता का विरोध करते हुए, अपीलकर्ता ने जोर देकर कहा कि उसके खिलाफ खोजे गए साक्ष्य कानून की नजर में अस्वीकार्य थे क्योंकि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था कि रिकवरी के समय, वह पुलिस की हिरासत में था।

    वहीं राज्य ने तर्क दिया कि चश्मदीद/प्रत्यक्षदर्शी की गवाही विश्वसनीय थी और अभियोजन की कहानी के अनुरूप थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत दिया गया अपीलकर्ता का बयान बेदाग था।

    हाईकोर्ट ने पक्षकारों की दलीलों और निचली अदालत के रिकॉर्ड की जांच करते हुए अपीलकर्ता के तर्कों में योग्यता पाई। शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयान की जांच करते हुए, अदालत ने पाया कि उसकी गवाही ने उसके आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं किया। यह देखते हुए कि वह मामले में एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी थी, अदालत ने कहा कि उसका बयान इतने विश्वास योग्य नहीं था कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि का आधार बन सके।

    अदालत ने इसके बाद साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत अपीलकर्ता के बयान पर अपना ध्यान आकर्षित किया। यह देखा गया कि अभियोजन पक्ष यह स्थापित करने में बुरी तरह विफल रहा है कि अपीलकर्ता के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री की रिकवरी के समय, वह हिरासत में था। इसलिए, कोर्ट ने नोट किया कि वह दोषपूर्ण रिकवरी के आधार पर अभियुक्त की दोषसिद्धि पर अपनी स्वीकृति की मुहर नहीं लगा सकता है-

    चूंकि अभियोजन यह साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है कि 'गमछे' की रिकवरी के समय अपीलकर्ता हिरासत में था, तो रिकवरी को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है। एकमात्र चश्मदीद गवाह कविता (पीडब्ल्यू-1) ने यह नहीं बताया कि जब उसने अपीलकर्ता को अपने घर से बाहर आते देखा था, तो उसने कोई 'गमछा' पहना हुआ था। चूंकि 'गमछे' की बरामदगी सिद्ध नहीं हुई है, इसलिए उस पर खून के धब्बे होने की बात महत्वहीन हो जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि अपीलकर्ता की गिरफ्तारी का स्थान भी अत्यधिक संदिग्ध है। गिरफ्तारी ज्ञापन से पता चलता है कि अपीलकर्ता को अमरवाड़ा से गिरफ्तार किया गया था जबकि कविता (पीडब्ल्यू-1) और एस.एस. राजपूत, सब इंस्पेक्टर (पीडब्ल्यू-5) ने बयान दिया कि एएसआई तिवारी ने सागर से अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया था।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देकर बरी करना उचित पाया। तद्नुसार अपील स्वीकार कर ली गई और उसकी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल- मनीष बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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