सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : जानिए सुप्रीम कोर्ट में कैसा रहा पिछला सप्ताह

LiveLaw News Network

3 July 2021 7:20 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : जानिए सुप्रीम कोर्ट में कैसा रहा पिछला सप्ताह

    28 जून 2021 से 3 जुलाई 2021 तक सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रवेश वर्ष 2021-22 में कर्नाटक के छात्रों के लिए एनएलएसआईयू के 25% आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू), बेंगलुरु द्वारा जारी संशोधित प्रवेश अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसमें 2021-22 शैक्षणिक वर्ष से कर्नाटक के छात्रों के लिए 25% होरिजोन्टल रिजर्वेशन प्रदान किया गया था। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने एनएलएसआईयू की संशोधित प्रवेश अधिसूचना में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए 23 जुलाई को निर्धारित कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी) को चलने की अनुमति दी।

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    "अगर उन्होंने कुछ गलत किया है तो ये प्रधानमंत्री पर हैं कि वो कार्य करें " : सुप्रीम कोर्ट ने वीके सिंह को केंद्रीय मंत्री पद से हटाने की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री, जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह द्वारा भारत-चीन एलएसी मुद्दे पर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी करके शपथ भंग करने की घोषणा के लिए दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ एलएसी मुद्दे पर भारत के उल्लंघन पर तमिलनाडु के मदुरै में 7 फरवरी 2021 को वीके सिंह द्वारा दिए गए भाषण के संबंध में कार्यकर्ता चंद्रशेखरन रामासामी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सिंह ने कथित तौर पर कहा था "... कोई नहीं आप में से किसी को भी यह नहीं पता है कि हमने अपनी धारणा के अनुसार कितनी बार उल्लंघन किया है। हम इसकी घोषणा नहीं करते। चीनी मीडिया इसे कवर नहीं करता है ... मैं आपको आश्वस्त करता हूं, यदि चीन ने 10 बार उल्लंघन किया है, तो हमें अपनी धारणा के अनुसार इसे कम से कम 50 बार करना चाहिए। "

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    यौन अपराध पीड़ितों के नाम का जिक्र किसी भी कार्यवाही में नहीं किया जाना चाहिए, अधीनस्थ अदालतें सावधानी बरतें : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सत्र न्यायालय के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें बलात्कार पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया है। बेंच ने कहा कि सभी अधीनस्थ अदालतों को सावधान रहना चाहिए कि किसी भी कार्यवाही में बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर न करें। बेंच ने कहा कि, "यह अच्छी तरह से स्थापित है कि इस तरह के मामलों में किसी भी कार्यवाही में पीड़ित के नाम का उल्लेख नहीं किया जाना है। हमारा विचार है कि सभी अधीनस्थ अदालतें ऐसे मामलों से निपटने के दौरान भविष्य में सावधान रहें।"

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    लोन पर मोहलत : एनपीए घोषित करने के लिए 23 मार्च के फैसले से 90 दिनों की गणना हो : सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने 23 मार्च 2021 के फैसले के स्पष्टीकरण और संशोधन की मांग वाली याचिका को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें उसने ऋण खातों को गैर-निष्पादित संपत्ति ( एनपीए) के रूप में घोषित करने पर रोक हटा दी थी।

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    "हम यहां राज्यपाल को सलाह देने के लिए नहीं हैं " : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्यपाल को एमएलसी नियुक्त करने के लिए दिशा-निर्देश की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत महाराष्ट्र के राज्यपाल को राज्य की विधान परिषद में नामांकन के लिए मानदंड तय करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील प्राची देशपांडे से कहा कि सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के लिए दिशानिर्देश निर्धारित नहीं कर सकता है, और संविधान में मौजूद प्रावधान में संशोधन नहीं कर सकता।

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    यौन उत्पीड़न : वकील के क्लर्क को जुलाई से तीन महीने के लिए सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करने से रोका

    सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के परिसर में एक वकील के क्लर्कअशोक सैनी के प्रवेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट की जेंडर सेंसिटाइजेशन एंड इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी (जीएसआईसीसी) द्वारा उन्हें यौन उत्पीड़न का दोषी पाए जाने के बाद यह फैसला लिया गया है। उन्हें एक जुलाई, 2021 से 30 सितंबर, 2021 तक तीन महीने की अवधि के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया है। इस आशय के एक नोटिस में, सर्वोच्च न्यायालय की लिंग संवेदीकरण आंतरिक शिकायत समिति (GSICC) (Gender Sensitization Internal Complaints Committee) द्वारा जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि क्लर्क अशोक सैनी को 1 जुलाई से 30 सितंबर, 2021 तक न्यायालय परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया है।

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    "किसी और की विफलता के लिए चिकित्सा पेशेवर क्यों जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं?" : सीजेआई एनवी रमाना

    सीजेआई एनवी रमाना ने राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के अवसर पर अपने भाषण में ड्यूटी के दौरान डॉक्टरों पर हो रहे क्रूर हमलों पर चिंता व्यक्त की। सीजेआई ने कहा कि, "यह दुखद है कि ड्यूटी के दौरान हमारे डॉक्टरों पर बेरहमी से हमला किया जा रहा है। किसी और की विफलता के लिए चिकित्सा पेशेवर क्यों जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं?" न्यायमूर्ति रमाना ने देश में डॉक्टरों और चिकित्सा बुनियादी ढांचे के संबंध में अन्य मुद्दों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार में चिकित्सा निकायों और संबंधित एजेंसियों को इन चिंताओं को दूर करने के लिए एक साथ काम करना होगा।

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    अधिकारियों को बेवजह तलब करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को आगाह करते हुए झारखंड हाईकोर्ट का आदेश खारिज किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अग्रिम जमानत के मामले में झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें ''आपराधिक न्याय प्रणाली की बेहतरी'' के लिए राज्य के अधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थिति होने के लिए कहा गया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने उपरोक्त फैसले पर आपत्ति जताई और सभी हाईकोर्ट को ऐसे मामले में ''अनावश्यक रूप से अधिकारियों को समन'' करने के लिए आगाह किया है,जो समाप्त हो गया है। खंडपीठ 9 और 13 अप्रैल 2021 के झारखंड हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

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    यदि समझौता जिसके आधार पर डिक्री पारित की गई थी, शून्य या शून्य होने योग्य था तो नियम 3 ए के तहत प्रतिबंध आकर्षित होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि समझौता जिसके आधार पर डिक्री पारित की गई थी, शून्य या शून्य होने योग्य था तो नियम 3 ए के तहत प्रतिबंध को आकर्षित किया जाएगा। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि इस तरह की सहमति डिक्री से बचने के लिए एक सहमति डिक्री के किसी पक्षकार के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय अदालत का दरवाजा खटखटाना है जिसने समझौता दर्ज किया है और अलग वाद सुनवाई योग्य नहीं है।

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    यदि समझौता जिसके आधार पर डिक्री पारित की गई थी, शून्य या शून्य होने योग्य था तो नियम 3 ए के तहत प्रतिबंध आकर्षित होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि समझौता जिसके आधार पर डिक्री पारित की गई थी, शून्य या शून्य होने योग्य था तो नियम 3 ए के तहत प्रतिबंध को आकर्षित किया जाएगा। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि इस तरह की सहमति डिक्री से बचने के लिए एक सहमति डिक्री के किसी पक्षकार के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय अदालत का दरवाजा खटखटाना है जिसने समझौता दर्ज किया है और अलग वाद सुनवाई योग्य नहीं है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने आगरा जेल में बंद 13 कैदियों की रिहाई की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया; अपराध के समय किशोर थे

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 14 से 22 साल की अवधि के लिए आगरा जेल में बंद 13 कैदियों को रिहा करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि इन कैदियों को अपराध के समय किशोर होने के बावजूद रिहा करने से इनकार कर दिया गया है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की दलील पर विचार किया और याचिका के साथ-साथ अंतरिम जमानत के लिए आवेदन में नोटिस जारी किया है।

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    बंटवारे के बावजूद हिंदू संयुक्त परिवार वापस लौट सकता है और संयुक्त परिवार की स्थिति को जारी रखने के लिए फिर से जुड़ सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिए एक फैसले में कहा कि हिंदू संयुक्त परिवार, जिसका भले ही बंटवारा हो गया हो, वापस लौट सकता है और संयुक्त परिवार की स्थिति को जारी रखने के लिए फिर से जुड़ सकता है। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि पक्षकारों के कृत्यों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले विभाजन के बाद पक्षकार फिर से जुड़ गईं। इस मामले में तीन भाइयों के बीच दिनांक 07.11.1960 का बंटवारा दर्ज किया गया। इस अपील में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या 1979 में खरीदी गई कोई विशेष गृह संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति है या नहीं। अपीलकर्ता का मामला यह था कि भू-संपत्ति को लैंड सीलिंग एक्ट से बचाने के लिए तीन भाइयों के बीच विभाजन दिनांक 07.11.1960 दर्ज किया गया था और प्रत्येक शाखा को अलग करने और संयुक्त परिवार की स्थिति में बदलाव लाने का कोई इरादा नहीं था। यह तर्क दिया गया था कि संयुक्त हिंदू परिवार की स्थिति में वापस आने के लिए तीन भाइयों के बीच पुनर्मिलन हुआ था, जो कि 07.11.1960 के बाद पक्षकारों के कृत्यों और आचरण से पूरी तरह साबित होता है।

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    26 साल पुराना रैश ड्राइविंग मामला: सुप्रीम कोर्ट ने बस ड्राइवर पर 2000 रुपये का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पहले तेज रफ्तार और लापरवाही से वाहन चलाने से हुई दुर्घटना के मामले में आरोपी-बस चालक को 2000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। सुरेंद्रन-बस चालक ने 16.02.1995 को कार को टक्कर मारी, जिससे कार चालक घायल हो गया। सुरेंद्रन पर भारतीय दंड सहिंता (आईपीसी) की धारा 279, 337 और 338 के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सुरेंद्रन को आईपीसी की धारा 279 और 338 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और उसे छह महीने के कारावास की सजा सुनाई और 500 / - रुपये का जुर्माना लगाया, जो कि आईपीसी की धारा 337 के तहत एक महीने के साधारण कारावास की सजा को खत्म कर रहा था। सत्र न्यायालय और बाद में उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा।

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    सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस पर डिस्कोर्स शुरू करना अनिवार्य: CJI रमाना

    CJI एनवी रमाना ने बुधवार को 17वें जस्टिस पीडी देसाई स्मारक व्याख्यान में "कानून के शासन" विषय पर भाषण दिया। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस पर एक ड‌िस्कोर्स शुरू करना अनिवार्य है। "जबकि कार्यपालिका के दबाव के बारे में बहुत चर्चा हो रही है, यह चर्चा शुरू करना भी अनिवार्य है कि सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।" CJI ने हालांकि स्पष्ट किया कि इसे इस अर्थ में नहीं समझा जाना चाहिए कि न्यायाधीशों और न्यायपालिका को जो हो रहा है उससे पूरी तरह से अलग होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश "हाथीदांत के बने महल" में नहीं रह सकते हैं और सामाजिक मुद्दों से संबंधित प्रश्नों का निर्णय नहीं कर सकते हैं।

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    'केवल शासक बदलने का अधिकार अत्याचार के खिलाफ गारंटी नहीं': सीजेआई एनवी रमाना

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना ने बुधवार को कहा कि कुछ वर्षों में केवल एक बार शासक बदलने का अधिकार अत्याचार के खिलाफ गारंटी नहीं है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, "असली में शासन चलाने की शक्ति जनता के पास ही है, यह विचार मानवीय गरिमा और स्वायत्तता की धारणाओं में भी पाए जाते हैं। एक सार्वजनिक विचाए जो तर्कसंगत और उचित दोनों है, को मानवीय गरिमा के एक अंतर्निहित पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए और इसलिए कामकाजी लोकतंत्र उचित रूप से आवश्यक है। "

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    सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के लिए अलग और पर्याप्त फंड के आवंटन की मांग वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका खारिज की, जिसमें न्यायपालिका के लिए अलग और पर्याप्त फंड के आवंटन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। सीजेआई रमाना, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की बेंच जनहित याचिका की बहाली के लिए किए गए आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसे मार्च में पूर्व सीजेआई एसए बोबडे के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने गैर अभियोजन के लिए खारिज कर दिया था।

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    सीए परीक्षा : ऑप्ट-आउट के लिए आर-पीसीआर की जरूरत नहीं, छात्र अपने या परिजन को COVID संबंधी परेशानी होने पर ऑप्ट-आउट विकल्प ले सकते हैं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) को निर्देश दिया कि वह 5 जुलाई से शुरू होने वाली सीए परीक्षा में उम्मीदवार को "ऑप्ट-आउट" विकल्प दे,जो उसके लिए COVID से संबंधित कठिनाइयों के लिए अपने या परिवार के सदस्य के लिए एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा जारी चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगे। न्यायालय ने "ऑप्ट-आउट" विकल्प की मांग के लिए आरटी-पीसीआर प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की आईसीएआई की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया।

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    वकीलों द्वारा मुवक्किलों को बेईमानी से सलाह देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत, जुर्माना लगे : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वकीलों द्वारा मुवक्किलों को बेईमानी से सलाह देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की एक पीठ के मार्च के फैसले से उत्पन्न एक एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने एकल न्यायाधीश के उस फैसले की पुष्टि की थी जिसमें याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के कर्मचारियों होने के कारण केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के माध्यम से वैकल्पिक उपचार के लिए भेज दिया था।

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    सिर्फ भारत के सुप्रीम कोर्ट में कोई एकल जज द्वारा अंतरिम चरण में पारित प्रक्रियात्मक निर्देश के खिलाफ आ सकता है, यूएस सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं होगा

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को टिप्पणी की, "यह केवल भारत के सुप्रीम कोर्ट में होता है कि कोई एकल न्यायाधीश द्वारा अंतरिम चरण में पारित प्रक्रियात्मक निर्देश के खिलाफ आ सकता है। यूएस सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं होगा।" ये टिप्पणी दिल्ली उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए विचार को चुनौती देने के संबंध में थी कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दिग्गज कंपनी मर्क के विभिन्न विंग के बीच ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए एक मुकदमा रिकॉर्ड पर सामग्री के आधार पर तय किया जा सकता है, बिना किसी और तुरंत साक्ष्य को रिकॉर्ड के, और यह कि क्या कोई साक्ष्य दर्ज किया जाना है, यह प्रश्न वकीलों को अंतिम रूप से सुनने के बाद निर्धारित किया जाएगा।

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    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने स्टूडेंट्स को प्रमोट करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनएलएसआईयू की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस आदेश में हाईकोर्ट ने एनएलएसआईयू के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें उसने कानून के छात्र को बीए एलएलबी (ऑनर्स) का चौथा वर्ष में प्रवेश देने से इनकार कर दिया था। मामले की सुनवाई होते ही न्यायाधीशों ने कहा कि मामले को दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।

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    सेवा में प्रवेश का तरीका दिव्यांग लोगों की पदोन्नति के लिए प्रासंगिक मानदंड नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीडब्ल्यूडी कोटे के तहत पदोन्नति के लिए सेवा में प्रवेश का तरीका प्रासंगिक मानदंड नहीं है। "भर्ती के स्रोत से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए लेकिन मुख्य बात यह है कि कर्मचारी पदोन्नति के लिए विचार के समय एक पीडब्ल्यूडी है। 1995 का अधिनियम उस व्यक्ति के बीच भेद नहीं करता है जिसने दिव्यांग होने के कारण सेवा में प्रवेश किया हो सकता है और एक व्यक्ति जो सेवा में प्रवेश करने के बाद दिव्यांग हो सकता है, " न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि शारीरिक तौर पर दिव्यांग व्यक्तियों को पदोन्नति में भी आरक्षण का अधिकार है।

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    राज्यों को 31 जुलाई तक 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' योजना लागू करनी चाहिए; प्रवासियों के लिए सामुदायिक रसोई चलाएं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि सभी राज्यों को 31 जुलाई तक "एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड" योजना लागू करनी चाहिए। यह योजना प्रवासी श्रमिकों को देश के किसी भी हिस्से से राशन लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों के लाभ और कल्याण के लिए कई अन्य निर्देश भी पारित किए।

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    "अनुच्छेद 21 में जीने के मौलिक अधिकार में भोजन का अधिकार और अन्य बुनियादी आवश्यकताएं शामिल " : सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के दिशानिर्देशों में कहा

    संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीने के मौलिक अधिकार की व्याख्या मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार को शामिल करने के लिए की जा सकती है, जिसमें भोजन का अधिकार और अन्य बुनियादी आवश्यकताएं शामिल हो सकती हैं, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (29 जून 2021) को दिए अपने फैसले में सभी राज्यों को "एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड" योजना को लागू करने और प्रवासियों के लिए सामुदायिक रसोई चलाने का निर्देश देते हुए कहा। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि गरीब लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना सभी राज्यों और सरकारों का बाध्य कर्तव्य है।

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    "चुनिंदा" तरीके से चुनौती" : सुप्रीम कोर्ट ने COVID के दौरान सेंट्रल विस्टा का काम ना रोकने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि की

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें COVID महामारी की दूसरी लहर के दौरान सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के काम को रोकने की याचिका खारिज कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस विचार से सहमति व्यक्त की कि याचिकाकर्ताओं ने एक परियोजना को "चुनिंदा" तरीके से चुनौती दी थी। पीठ ने कहा, "उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण एक संभावित दृष्टिकोण है। आपने एक परियोजना को चुनिंदा रूप से चुनौती दी।"

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    फिरौती के लिए अपहरण : 364 ए के तहत दोषसिद्धि के लिए मौत या चोट पहुंचाने का खतरा साबित करना अनिवार्य

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 364 ए के तहत 'फिरौती के लिए अपहरण' के अपराध के लिए किसी व्यक्ति के अपहरण को साबित करना ही पर्याप्त नहीं है। यह भी साबित किया जाना चाहिए कि अपहृत व्यक्ति को मौत या चोट पहुंचाने का खतरा था या अपहरणकर्ता ने अपने आचरण से एक उचित आशंका को जन्म दिया कि ऐसे व्यक्ति को मौत के घाट उतारा जा सकता है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ धारा 364 ए आईपीसी (शेख अहमद बनाम तेलंगाना राज्य) के तहत एक व्यक्ति की सजा के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर विचार कर रही थी।

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