'केवल शासक बदलने का अधिकार अत्याचार के खिलाफ गारंटी नहीं': सीजेआई एनवी रमाना
LiveLaw News Network
1 July 2021 11:24 AM IST
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना ने बुधवार को कहा कि कुछ वर्षों में केवल एक बार शासक बदलने का अधिकार अत्याचार के खिलाफ गारंटी नहीं है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि,
"असली में शासन चलाने की शक्ति जनता के पास ही है, यह विचार मानवीय गरिमा और स्वायत्तता की धारणाओं में भी पाए जाते हैं। एक सार्वजनिक विचाए जो तर्कसंगत और उचित दोनों है, को मानवीय गरिमा के एक अंतर्निहित पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए और इसलिए कामकाजी लोकतंत्र उचित रूप से आवश्यक है। "
सीजेआई ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत में अब तक हुए 17 आम चुनावों में लोगों ने सत्तारूढ़ सरकार को आठ बार बदला है जो कि चुनावों का लगभग 50% है। आगे कहा कि यह एक संकेत है कि बड़े पैमाने पर असमानताओं, गरीबी और पिछड़ेपन के बावजूद भारत के लोग बुद्धिमान हैं।
सीजेआई रमाना ने कहा कि,
"जनता ने अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया है। अब उन लोगों की बारी है जो राज्य के प्रमुख अंगों का संचालन कर रहे हैं। वे इस पर विचार करें कि क्या वे संवैधानिक जनादेश पर खरा उतर रहे हैं।"
सीजेआई रमाना 17वें जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर के हिस्से के रूप में एक ऑनलाइन लेक्चर दे रहे थे। व्याख्यान का विषय "कानून का शासन (Rule Of Law)" था।
न्यायपालिका को विधायिका या कार्यपालिका द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है
सीजेआई ने इस बात को रेखांकित किया कि न्यायपालिका को सरकारी शक्ति और कार्रवाई की जांच करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
सीजेआई रमाना ने कहा कि न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विधायिका या कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, अन्यथा कानून का शासन खत्म हो जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी आगाह किया कि न्यायाधीशों को लोगों की भावनात्मक सोच, जिसे अक्सर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा फैलाया जाता है, से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
सीजेआई रमाना ने कहा कि,
"न्यायाधीशों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि इस तरह से सोशल मीडिया पर फैलाया गई सोच या शोर जरूरी नहीं है कि वह सही हो। नए मीडिया उपकरण जिनमें तेजी से विस्तार करने की क्षमता है, वे सही और गलत, असली और नकली, अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं और इसलिए मामलों को तय करने में मीडिया परीक्षण एक मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकता है। इसलिए स्वतंत्र रूप से कार्य करना और सभी बाहरी सहायता और दबावों का सामना करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जबकि कार्यपालिका के दबाव के बारे में बहुत चर्चा है। सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस बारे में चर्चा शुरू करना अनिवार्य है।"
कानून का इस्तेमाल राजनीतिक दमन के लिए एक उपकरण के रूप में न हो
सीजेआई रमाना ने औपनिवेशिक शासन का उल्लेख किया और कहा औपनिवेशिक शासन के समय कानून को राजनीतिक दमन के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
सीजेआई ने कहा कि अंग्रेजों ने राजनीतिक दमन के एक उपकरण के रूप में कानून का इस्तेमाल किया और इसे अंग्रेजों और भारतीयों के लिए नियमों के एक अलग सेट के साथ पार्टियों पर असमान रूप से लागू किया । यह शासन द्वारा कानून के लिए प्रसिद्ध था, न कि कानून का शासन, क्योंकि इसका उद्देश्य भारतीय विषयों को नियंत्रित करना था। न्यायिक उपचारों ने अपना महत्व खो दिया क्योंकि उन्हें औपनिवेशिक शक्ति के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए प्रशासित किया गया था, न कि उचित कानूनी द्वारा।
भारतीय संविधान को अपनाने के बाद स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों के बारे में बढ़ती चेतना के साथ "कानून का शासन" की अवधारणा बदल गई।
सीजेआई रमाना ने कहा कि,
"औपनिवेशिक अतीत से वर्तमान में कदम रखने के बाद विदेशी शासकों द्वारा औपनिवेशिक विचार से लोगों को नियंत्रित करने के लिए अपने लाभ के लिए बनाए गए कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है।"
सीजेआई ने कहा कि यह समय सवाल पूछने का है कि महामारी के दौरान आम लोगों की सुरक्षा के लिए किस हद तक कानून के शासन का इस्तेमाल किया गया।
सीजेआई ने आगे कहा कि मेरा इसका मूल्यांकन प्रदान करने का इरादा नहीं है। मेरा कार्यालय और मेरा स्वभाव दोनों मुझे ऐसा करने से रोकते हैं, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि यह महामारी आने वाले दशकों में बहुत बड़े संकटों का पर्दाफाश कर सकती है। निश्चित तौर पर हमें कम से कम यह विश्लेषण करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए कि हमने क्या सही किया और कहां गलती हुई।