26 साल पुराना रैश ड्राइविंग मामला: सुप्रीम कोर्ट ने बस ड्राइवर पर 2000 रुपये का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

1 July 2021 8:37 AM GMT

  • 26 साल पुराना रैश ड्राइविंग मामला: सुप्रीम कोर्ट ने बस ड्राइवर पर 2000 रुपये का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पहले तेज रफ्तार और लापरवाही से वाहन चलाने से हुई दुर्घटना के मामले में आरोपी-बस चालक को 2000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।

    सुरेंद्रन-बस चालक ने 16.02.1995 को कार को टक्कर मारी, जिससे कार चालक घायल हो गया। सुरेंद्रन पर भारतीय दंड सहिंता (आईपीसी) की धारा 279, 337 और 338 के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था।

    प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सुरेंद्रन को आईपीसी की धारा 279 और 338 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और उसे छह महीने के कारावास की सजा सुनाई और 500 / - रुपये का जुर्माना लगाया, जो कि आईपीसी की धारा 337 के तहत एक महीने के साधारण कारावास की सजा को खत्म कर रहा था। सत्र न्यायालय और बाद में उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा।

    सुरेंद्रन ने अपील में प्रस्तुत किया कि घर में उसकी पत्नी और उसके चार बच्चें हैं। वह एक गरीब परिवार से आता है। घर में एकमात्र रोटी कमाने वाला सदस्य है और अगर 21 साल से अधिक समय के बाद जेल भेजा जाता है तो उसे अपूरणीय क्षति होगी। वह पूरे समय जमानत पर था।

    जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए कहा कि,

    "अपीलकर्ता की दोषसिद्धि की पुष्टि हुई है। हालांकि, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए विशेष रूप से तथ्य यह है कि घटना को 26 साल बीत चुके हैं, हम आईपीसी की धारा 279 और धारा 338 के तहत छह महीने के कारावास की सजा को जुर्माने में बदलने के लिए इच्छुक हैं। आईपीसी की धारा धारा 279 और धारा 338 के तहत छह महीने की सजा को 2000 रुपये के जुर्माने से प्रतिस्थापित किया जाता है, जबकि धारा 337 आईपीसी के तहत जुर्माने की सजा बरकरार रखी जाती है।"

    कानून क्या कहता है?

    भारतीय दंड सहिंता की धारा 279 सार्वजनिक मार्ग पर तेज गति से वाहन चलाने या सवारी करने को अपराध बनाती है। यह प्रावधान कहता है कि जो कोई भी सार्वजनिक रास्ते पर किसी भी वाहन या सवारी को तेजी या लापरवाही से चलाता है कि मानव जीवन को खतरे में डालता है या किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट लगने की संभावना है, तो उसे कारावास की सजा देकर दंडित किया जाएगा। यह सजा एक अवधि के लिए जो छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो एक हजार रुपये तक हो सकता है, या दोनों की सजा दी जा सकती है।

    भारतीय दंड सहिंता की धारा 337 दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्य से चोट पहुंचाने से संबंधित है, जो कोई भी किसी व्यक्ति को तेजी से या लापरवाही से किसी भी कार्य से चोट पहुंचाता है, जिससे मानव जीवन, या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा होता है, तो उसे कारावास की सजा देकर दंडित किया जाएगा। यह सजा एक अवधि के लिए जो छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो पांच सौ रुपये तक हो सकता है या दोनों की सजा दी जा सकती है।

    भारतीय दंड सहिंता की धारा 338 कहता है कि दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्य से गंभीर चोट पहुंचाना जो कोई व्यक्ति लापरवाही से मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए किसी भी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है तो उसे कारावास की सजा देकर दंडित किया जाएगा। यह सजा एक अवधि के लिए जो दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो एक हजार रुपये तक हो सकता है या दोनों की सजा दी जा सकती है।

    मामला: सुरेंद्रन बनाम पुलिस उप निरीक्षक [CrA 536 of 2021 ]

    कोरम: जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह

    Citation: LL2021 SC 279

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story