सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

24 July 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (18 जुलाई, 2022 से 22 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    ट्रस्ट की संपत्ति को तब तक हस्तांतरित नहीं किया जा सकता जब तक कि वह ट्रस्ट और/या उसके लाभार्थियों के फायदे के लिए न हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्रस्ट की संपत्ति को तब तक हस्तांतरित नहीं किया जा सकता जब तक कि वह ट्रस्ट और/या उसके लाभार्थियों के फायदे के लिए न हो।

    जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने खासगी (देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटीज) ट्रस्ट के मामले में एक फैसले में कहा, जब कोई ट्रस्ट संपत्ति रजिस्ट्रार की पूर्व स्वीकृति के बिना [मध्य प्रदेश लोक ट्रस्ट अधिनियम, 1951 की धारा 14] और/या निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किए बिना हस्तांतरित की जाती है, तो यह हमेशा कहा जा सकता है कि ट्रस्ट की संपत्ति का उचित प्रबंधन या प्रशासन नहीं किया जा रहा है।

    केस: खासगी (देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटीज) ट्रस्ट, इंदौर और अन्य बनाम विपिन धानायाईतकर और अन्य।| 2020 की एसएलपी (सिविल) नंबर 12133] जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11(6ए) अदालतों को मध्यस्थता योग्य होने के मुद्दे पर विचार करने से नहीं रोकती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 में धारा 11(6ए) को सम्मिलित करने के बावजूद, न्यायालयों को धारा 11 के तहत गैर-मध्यस्थता और मध्यस्थों की नियुक्ति के आवेदन पर विचार करने के स्तर पर अधिकार क्षेत्र के मुद्दे की जांच करने की शक्ति से वंचित नहीं किया गया है।

    इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम एनसीसी लिमिटेड के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के विचार से असहमति व्यक्त की कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 में उप-धारा (6ए) को सम्मिलित करने के बाद, धारा 11 में न्यायालय द्वारा जांच का दायरा याचिका केवल यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि इसके सामने मौजूद पक्षकारों के लिए एक बाध्यकारी मध्यस्थता समझौता मौजूद है या नहीं।

    इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम एनसीसी लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (SC) 616 | सीए 341/ 2022 | 20 जुलाई 2022| जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना

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    किसी अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित करना उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

    किसी अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित करना उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है", सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह की अवधि के गर्भपात की अनुमति देते हुए ये कहा, जो गर्भ सहमति से बने रिश्ते से उत्पन्न हुआ था।

    25 वर्षीय महिला को राहत देने के लिए एक-पक्षीय अंतरिम आदेश पारित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया देखा कि उसका मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत कवर किया गया था। दिल्ली हाईकोर्ट जिसके समक्ष याचिकाकर्ता ने पहली बार संपर्क किया था, ने इस आधार पर अपनी अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था कि एक अविवाहित महिला की गर्भावस्था सहमति के रिश्ते वाली महिलाओं की श्रेणियों में निर्दिष्ट नहीं है, जिनकी गर्भावस्था 20-24 सप्ताह की अवधि के दौरान 2003 के गर्भपात के नियमों के अनुसार गर्भपात की जा सकती है।

    केस : X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग

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    प्रवासी मजदूरों पर संकट : 2011 की जणगनना के आधार पर राशन कार्ड जारी करना ' अन्याय' हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुखों के संबंध में अपने फैसले के अनुपालन की मांग करने वाले एक आवेदन की सुनवाई के दौरान संकेत दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए तौर-तरीकों पर काम करना होगा कि प्रवासी श्रमिकों को किसी भी कीमत पर राशन उपलब्ध कराया जाए।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि वे उचित निर्देशों के साथ आदेश पारित करेंगे, जिसमें सूखे राशन के प्रावधान के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण की प्रक्रिया को ई-श्रम पोर्टल पर तेज करने के निर्देश शामिल होंगे।

    [मामला :इन रि: प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुखों पर स्वत: संज्ञान]

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    ज्ञानवापी मामला: सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई अक्टूबर के लिए टाली, कहा- याचिका की मेंटेनिबिलिटी पर ट्रायल कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे

    ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Mosque Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि वह अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा दायर आवेदन पर वाराणसी जिला कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगा, जिसमें हिंदू वादी द्वारा दायर मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाया गया है।

    तदनुसार, पीठ ने मस्जिद कमेटी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को अक्टूबर के पहले सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया जिसमें मस्जिद के कमीशन सर्वेक्षण के सिविल कोर्ट के आदेशों को चुनौती दी गई है।

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    सेवा मुक्ति के कई साल बाद मेडिकल जांच के आधार पर सैनिक दिव्यांगता पेंशन का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि कैजुअल्टी पेंशनरी अवार्ड, 1982 के लिए पात्रता नियम के नियम 14 के तहत दिव्यांगता पेंशन का पात्र होने के लिए यह दिखाना पर्याप्त नहीं है कि एक सैनिक की बीमारी या दिव्यांगता सेवा में उत्पन्न हुई थी। यह भी स्थापित किया जाना चाहिए कि सैन्य सेवा की शर्तों ने बीमारी की शुरुआत में निर्धारण या योगदान दिया और यह कि सैन्य सेवा में ड्यूटी की परिस्थितियों के कारण ये स्थितियां बनीं।

    केस : भारत संघ और अन्य बनाम पूर्व सिपाही आर मुनुसामी

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    सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की सभी एफआईआर में अंतरिम जमानत पर मोहम्मद जुबैर की रिहाई का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यूपी पुलिस की सभी एफआईआर में मोहम्मद जुबैर को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति के अस्तित्व का पुलिस को संयम से पालन करना चाहिए।

    पीठ का विचार था कि ज़ुबैर को लगातार हिरासत में रखने का "कोई औचित्य नहीं" है और जब दिल्ली पुलिस द्वारा जांच का हिस्सा बनने वाले ट्वीट्स से आरोपों की गंभीरता उत्पन्न होती है तो उन्हें विविध कार्यवाही के अधीन किया जाता है, जिस मामले में उन्हें पहले ही जमानत दी जा चुकी है ।

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    पहले का वाद जो तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया गया है वो रेस ज्युडिकाटा के रूप में काम नहीं करेगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले का वाद जो तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया गया है वो रेस ज्युडिकाटा के रूप में काम नहीं करेगा। इस मामले में, वादी मंदिर ने 1981 में वाद के आभूषणों की सूची तैयार करने के लिए रिसीवर की नियुक्ति के लिए एक वाद दायर किया। यह वाद गुणदोष के आधार पर तय नहीं किया गया था, बल्कि इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि वादी ने अनिवार्य निषेधाज्ञा के लिए प्रार्थना की थी और टाईटल की घोषणा के लिए प्रार्थना नहीं की थी।

    बाद में, 1990 में, मंदिर ने देवता, श्री नीलायादाक्षी अम्मन के पक्ष में वाद के आभूषण के संबंध में विशिष्ट दान के अस्तित्व की घोषणा के लिए एक वाद दायर किया, और कुदावरई से वाद के आभूषण निकालने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के एक डिक्री के लिए प्रतिवादी के अधिकार के साथ हस्तक्षेप करने से रोक दिया।

    आर एम सुंदरम @ मीनाक्षीसुंदरम बनाम श्री कायरोहानासामी और नीलायादाक्षी अम्मन मंदिर | 2022 लाइव लॉ (SC) 612 | 2009 की सीए 3964-3965 | 11 जुलाई 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना

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    एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 : जमानत देने के लिए ' विश्वसनीय ' और ' सराहनीय' आधार हो कि आरोपी कथित अपराध का दोषी नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत धारा 37 (1) (बी) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "उचित आधार" का अर्थ न्यायालय के लिए यह विश्वास करने के लिए विश्वसनीय, सराहनीय आधार होगा कि आरोपी व्यक्ति कथित अपराध का दोषी नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि, धारा 37 एनडीपीएस अधिनियम के तहत, केवल इस आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है कि आरोपी के कब्जे से कुछ भी नहीं मिला है।

    उसकी हिरासत की अवधि या यह तथ्य कि आरोप पत्र दायर किया गया है और ट्रायल शुरू हो गया है, स्वयं विचार नहीं है जिसे एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत प्रतिवादी को राहत देने के लिए प्रेरक आधार के रूप में माना जा सकता है।

    नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो बनाम मोहित अग्रवाल | 2022 लाइव लॉ (SC) 613 | सीआरए 1001-1002/ 2022 | 19 जुलाई 2022 | सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्णा मुरारी और सीजेआई हिमा कोहली

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    यदि सैन्यकर्मी को लगी चोट सैन्य सेवा के कारण नहीं तो वह विकलांगता पेंशन के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सैन्य सेवा और चोटों के बीच एक कारण संबंध नहीं होने पर एक सैन्य कर्मी विकलांगता पेंशन के लिए पात्र नहीं है। जस्टिस अभय एस ओका और ज‌स्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि जब तक विकलांगता सैन्य सेवा के कारण या बढ़ जाती है और 20% से अधिक है, तब तक विकलांगता पेंशन की पात्रता उत्पन्न नहीं होती है।

    केस विवरण : यूनियन ऑफ इंडिया बनाम पूर्व नायक राम सिंह | 2022 LiveLaw (SC) 611 | CA 9654 OF 2014 | 18 July 2022 | J| जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एमएम सुंदरेश

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    अखिल भारतीय मुद्दे का मतलब यह नहीं है कि हाईकोर्ट्स को सुनवाई नहीं करनी चाहिए और केवल सुप्रीम कोर्ट को ही इस पर सुनवाई करनी चाहिए: अग्निपथ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को विभिन्न हाईकोर्ट्स में दायर याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय उसके समक्ष दायर याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया, जहां इसी तरह के मामले लंबित हैं।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने यह भी कहा कि समान याचिकाओं पर विचार करने वाले उच्च न्यायालयों को या तो याचिकाकर्ताओं को यह विकल्प देना चाहिए कि या तो उनकी याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया जाए या दिल्ली हाईकोर्ट में हस्तक्षेप में याचिकाकर्ताओं को स्वतंत्रता के साथ उनकी याचिकाओं को लंबित रखा जाए।

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    धार्मिक दान के रूप में एक संपत्ति के समर्पण का परिस्थितियों से अनुमान लगाया जा सकता है, स्पष्ट समर्पण या दस्तावेज की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धार्मिक दान के रूप में एक संपत्ति के समर्पण के लिए एक स्पष्ट समर्पण या दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती है, और परिस्थितियों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और संजीव खन्ना की बेंच ने आदिपुरम तिरुवबरनम आभूषण की 26 वस्तुओं से युक्त, जिनमें से कुछ हीरे और कीमती पत्थरों से जड़े हुए हैं, श्री कायरोहनसामी और नीलादाक्षी अम्मन मंदिर के देवता श्री नीलायादाक्षी अम्मन के बताते हुए कहा कि एक संपत्ति के निजी चरित्र के विलुप्त होने का अनुमान पर्याप्त अवधि सहित रिकॉर्ड पर मौजूद परिस्थितियों और तथ्यों से लगाया जा सकता है, जो उपयोगकर्ता को धार्मिक या सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनुमति देता है।

    आर एम सुंदरम @ मीनाक्षीसुंदरम बनाम श्री कायरोहानासामी और नीलायादाक्षी अम्मन मंदिर | 2022 लाइव लॉ (SC) 612 | 2009 की सीए 3964-3965 | 11 जुलाई 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना

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    "बरी होने के बाद आरोपी के पक्ष में दोहरा अनुमान उपलब्ध है" : सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में बरी करने के आदेश को बहाल किया

    ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटने के हाईकोर्ट के आदेश में दोष का पता लगाने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हत्या के मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कानून ट्रायल कोर्ट द्वारा उचित निर्णय के बाद आरोपी के पक्ष में दोहरा अनुमान लगाता है। हम मानते हैं कि हाईकोर्ट पहले मौके पर ही न्यायालय द्वारा दिए गए बरी के आदेश को पलटने में धीमा हो सकता था।" कोर्ट ने कानूनी मानकों के भीतर काम नहीं किया है।"

    केस शीर्षक: रवि शर्मा बनाम जीएनसीटीडी | आपराधिक अपील 410/2015

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    जमानत अर्जी में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करते वक्त सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए बयान प्रासंगिक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 के तहत दिए गए बयान गंभीर अपराध के मामले में जमानत अर्जी की मंजूरी के लिए आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करने के लिए प्रासंगिक हैं।

    न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा, "पूर्व दृष्टया, आरोप गंभीर हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि रिकॉर्ड में कोई सामग्री नहीं है।" हाईकोर्ट ने 11 साल की बच्ची से रेप और हत्या के आरोपी शख्स को जमानत मंजूर कर दी थी।

    इंद्रेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 610 | सीआरए 938/2022 | 12 जुलाई 2022 | जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम

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    [COVID-19 मुआवजा] योग्य दावेदार को मुआवजा न मिलने पर शिकायत निवारण समिति से संपर्क कर सकते हैं; समिति 4 सप्ताह के भीतर निर्णय ले: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को सभी राज्य सरकारों को यह देखने का निर्देश दिया कि पूर्व के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और फैसले के अनुसार, COVID-19 से अपनी जान गंवाने वाले व्यक्तियों के परिजनों / परिवार के सदस्यों को बिना किसी देरी के मुआवजा दी जाए।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मुआवजे का भुगतान न करने या दावे की अस्वीकृति के संबंध में शिकायत करने वाले दावेदार राज्य सरकारों द्वारा गठित शिकायत निवारण समिति से संपर्क कर सकते हैं।

    केस टाइटल: गौरव बंसल बनाम यूओआई

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    बच्चे की कस्टडी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का प्राथमिक उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि किसके संरक्षण में बच्चे का सर्वोत्तम हित आगे बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि बच्चे की कस्टडी से संबंधित मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट याचिका में, कोर्ट किसी भी क़ानून से स्वतंत्र, एक अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है और इसमें कोर्ट सर्वोपरि तौर पर यह पता लगाता है कि बच्चे के सर्वोत्तम हित में क्या सही है।

    "...बच्चे की कस्टडी मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट का नियोजन किसी क़ानून के अनुसार नहीं, बल्कि इससे मुक्त होता है। कोर्ट द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अधिकार क्षेत्र ऐसे मामलों में अपनी अंतर्निहित न्यायसंगत शक्तियों पर निर्भर करता है और यह नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा के लिए अभिभावक के तौर अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है और इसकी जांच की प्रकृति एवं उसका दायरा और इच्छित परिणाम 'कोर्ट ऑफ इक्विटी' के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल पर निर्भर होता है। नाबालिग बच्चों के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का प्राथमिक उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि किसके संरक्षण में बच्चे का सर्वोत्तम हित संभव होगा।"

    केस का नाम: राजेश्वरी चंद्रशेखर गणेश बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य।

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    सिर्फ मकान मालिक-किरायेदार के रिश्ते को नकारकर प्रतिवादी किराया जमा किए बिना वाद के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का आनंद नहीं ले सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई प्रतिवादी सिर्फ मकान मालिक-किरायेदार/पट्टादाता- पट्टेदार के रिश्ते को नकारकर किराए/नुकसान की राशि जमा किए बिना वाद के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का आनंद नहीं ले सकता है।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, "वादी के टाईटल से इनकार करने और वादी और प्रतिवादी के बीच मकान मालिक और किरायेदार के संबंध से इनकार करने के प्रस्ताव के संदर्भ में, हम यह भी कह सकते हैं कि इस तरह का इनकार सरलीकृत पट्टेदार/किरायेदार बकाया जमा करने के लिए छूट नहीं देता है और वह किराए/नुकसान की राशि जमा कराए बिना उपयोग और व्यवसाय के लिए इसका प्रयोग नहीं कर सकता है जब तक कि वह यह नहीं दिखा देता कि उसने इस तरह के भुगतान को वैध और वास्तविक तरीके से किया है। बेशक, सद्भावना का सवाल तथ्य का सवाल है, हर मामले में इसके तथ्यों के संदर्भ में निर्धारित किया जाना है लेकिन , यह एक सामान्य प्रस्ताव के रूप में निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि केवल वादी के टाईटल या मकान मालिक-किरायेदार/पट्टादाता-पट्टेदार के रिश्ते से इनकार करके, वर्तमान प्रकृति के वाद के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादी बिना किराए / नुकसान की राशि जमा किए संपत्ति का आनंद ले सकता है। न्यायालय मामले में सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XV नियम 5 की प्रयोज्यता पर निर्णय ले रहा था। इस प्रावधान के अनुसार, किराए की बकाया राशि जमा करने में चूक होने पर बेदखली के वाद में प्रतिवादी का बचाव किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि आदेश XV नियम 5 सीपीसी मौलिक सिद्धांत का प्रतीक है कि "किरायेदार के लिए उपयोग और व्यवसाय के लिए किराए या नुकसान के भुगतान में कोई छूट नहीं है, चाहे पट्टा अस्तित्व में है या यह निर्धारित किया गया है।"

    केस: आशा रानी गुप्ता बनाम सर विनीत कुमार | 2022 की सिविल अपील 4682

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    कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी सेना के अधिकारियों को निलंबित करने से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी उन्हें निलंबित करने से पहले सेना (Army) के अधिकारियों को सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा, "यहां तक कि रेगुलेशन 349 के तहत भी, इस तरह की प्रक्रिया का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"

    कर्नल विनीत रमन शारदा बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (एससी) 606 | डब्ल्यूपी (सी) 448/2022 | 14 जुलाई 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न

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    पूर्व के फैसलों पर विचार के उपरांत निर्णित शीर्ष अदालत के फैसले हाईकोर्ट पर बाध्यकारी होते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले के फैसले पर विचार करने के उपरांत आए उसके पृथक फैसले हाईकोर्ट पर बाध्यकारी होते हैं। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा इस कोर्ट के बाध्यकारी दृष्टांतों का पालन नहीं करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के विपरीत है ।

    ग्रेगरी पतराओ बनाम मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (एससी) 602 | सीए 4105-4107/2022 | 11 जुलाई 2022

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    स्टाम्प ड्यूटी की गणना के लिए बना रेडी रेकनर भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के निर्धारण का आधार नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्टाम्प शुल्क की गणना के लिए रेडी रेकनर में उल्लिखित कीमतें भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजे के निर्धारण का आधार नहीं हो सकती हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में भूमि मालिकों / दावेदारों की अपील की अनुमति देते हुए, मुख्य रूप से भूमि की प्रचलित रेडी रेकनर दरों पर निर्भर करते हुए अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की राशि में वृद्धि की।

    भारत संचार निगम लिमिटेड बनाम नेमीचंद दामोदरदास | 2022 लाइव लॉ (SC ) 603 | सीए 3478/2022 | 11 जुलाई 2022

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