बच्चे की कस्टडी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का प्राथमिक उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि किसके संरक्षण में बच्चे का सर्वोत्तम हित आगे बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
18 July 2022 12:11 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि बच्चे की कस्टडी से संबंधित मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट याचिका में, कोर्ट किसी भी क़ानून से स्वतंत्र, एक अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है और इसमें कोर्ट सर्वोपरि तौर पर यह पता लगाता है कि बच्चे के सर्वोत्तम हित में क्या सही है।
"...बच्चे की कस्टडी मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट का नियोजन किसी क़ानून के अनुसार नहीं, बल्कि इससे मुक्त होता है। कोर्ट द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अधिकार क्षेत्र ऐसे मामलों में अपनी अंतर्निहित न्यायसंगत शक्तियों पर निर्भर करता है और यह नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा के लिए अभिभावक के तौर अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है और इसकी जांच की प्रकृति एवं उसका दायरा और इच्छित परिणाम 'कोर्ट ऑफ इक्विटी' के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल पर निर्भर होता है। नाबालिग बच्चों के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का प्राथमिक उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि किसके संरक्षण में बच्चे का सर्वोत्तम हित संभव होगा।"
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने एक मां की याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन कुछ दिशानिर्देश भी जारी किये। याचिकाकर्ता मां ने सुप्रीम कोर्ट से बंदी प्रत्यक्षीकरण प्रकृति में रिट आदेश जारी करने और उसके दो नाबालिग बच्चों का पता लगाकर उसे सौंपने का सरकार को निर्देश देने की मांग की थी, ताकि वे अमेरिका के ओहियो स्थित एक कोर्ट द्वारा 30 जुलाई को पारित आदेश के अनुपालन में अमेरिका से प्रत्यर्पित किया जा सके।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
वर्ष 2008 में शादी करने के बाद, याचिकाकर्ता अपने पति के साथ अमेरिका चली गई। इसके बाद मई, 2009 में वे चेन्नई लौटे और 07.10.2009 को याचिकाकर्ता ने अपनी बेटी को जन्म दिया। जनवरी 2012 में, परिवार पहले कैनसास और फिर ओहियो में स्थानांतरित हो गया। इस दौरान याचिकाकर्ता ने बेटे को जन्म दिया। 2016 में, याचिकाकर्ता ने ओहियो के क्लीवलैंड स्टेट यूनिवर्सिटी में नामांकन कराया।
चूंकि उसके पति की नौकरी छूट गई और वह विस्कॉन्सिन चला गया, याचिकाकर्ता और उसके बच्चे आठ अन्य लड़कियों के साथ एक घर में साझे तौर पर रहने लगे। स्नातक करने के बाद उसे ओहियो में नौकरी मिल गयी। जून, 2019 में, याचिकाकर्ता का पति अपनी पत्नी को बिना बताये नाबालिग बच्चों को लेकर मिशिगन के लिए रवाना हो गया, जहां वह उस समय तैनात थे। याचिकाकर्ता के पति ने उसके कानूनी दस्तावेज भी ले लिये थे और ओहियो छोड़ने से पहले उसने स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि वह महिला मानसिक रूप से बीमार है और एक मानसिक वार्ड से भागी हुई है। जिसकी वजह से याचिकाकर्ता के पास कोई उपाय नहीं बचा था। याचिकाकर्ता ने ओहियो में तलाक की शिकायत के साथ-साथ अपने बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा के लिए आपातकालीन प्रस्ताव दायर किया। दिनांक 17.06.2019 को अस्थाई अभिरक्षा प्रदान की गई, जिसका पालन उसके पति ने नहीं किया। आखिरकार, 30.07.2021 को पार्टियों के बीच एक साझा पेरेंटिंग योजना तैयार की गई, जिसके माध्यम से उन्हें अपने बच्चों की संयुक्त अभिरक्षा प्रदान की गई। दोनों पक्षों में यह सहमति बनी थी कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष की सहमति के बिना और न्यायालय को सूचित किए बिना स्थानांतरित नहीं होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि 17.08.2021 को संयुक्त अभिरक्षा से बचने के लिए पति बच्चों के साथ भारत चला गया। साझा पेरेंटिंग योजना को ओहियो कोर्ट द्वारा 09.02.2022 को समाप्त कर दिया गया था, क्योंकि पति ने सहमति डिक्री का उल्लंघन किया था और याचिकाकर्ता को बच्चों के स्थानीय अभिभावक और कानूनी संरक्षक के रूप में घोषित किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
बेंच ने कहा कि एक बच्चे की कस्टडी के दावे से संबंधित मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में प्राथमिक कर्तव्य यह पता लगाना है कि क्या मामले के तथ्यों से यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे की कस्टडी अवैध है, जैसा कि 'नित्यानंद राघवन' में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यवस्था दी गयी थी। यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि क्या बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति की देखभाल और अभिरक्षा में सौंपा जाना है। 'सैयद सलीमुद्दीन बनाम डॉ. रुखसाना और अन्य (2001) 5 एससीसी 247' मामले में भी यही सिद्धांत दोहराया गया था। बेंच ने देखा कि अभिभावक के प्रतिस्पर्धी दावों पर विचार करते हुए, यह देखना होगा कि बच्चे के कल्याण और हित में सबसे अच्छा क्या होगा। इसने भारतीय और साथ ही विदेशी निर्णयों की एक श्रृंखला का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी परिस्थितियों में, कस्टडी की लड़ाई में पार्टियों के कानूनी अधिकारों पर नाबालिग बच्चे का कल्याण प्रबल होगा। जैसा कि मैकग्राथ (शिशु) के स्वत: संज्ञान मामले में कोर्ट ऑफ अपील द्वारा व्यवस्था दी गयी थी कि बच्चे के नैतिक और धार्मिक कल्याण को उसकी शारीरिक स्वास्थ्य के साथ माना जाना चाहिए। बेंच ने 'वॉकर बनाम वॉकर एंड हैरिसन' मामले में न्यूजीलैंड कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया जिसमें यह व्यवस्था दी गयी थी कि भौतिक विचार गौण मामले हैं और स्थिरता, सुरक्षा, प्यार और समझ देखभाल और मार्गदर्शन, जोशीले और करुणा के संबंध एक बच्चे के चारित्रिक, व्यक्तित्व और प्रतिभा विकास के लिए आवश्यक हैं। इसी तरह की परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के अवलोकन पर, बेंच ने कहा कि कोमिटी ऑफ कोर्ट्स के समुदाय के सिद्धांत, अंतरंग संबंध, हिरासत के संबंध में विदेशी अदालतों द्वारा पारित आदेश, माता-पिता की नागरिकता और बच्चे के सर्वोत्तम हित के विचार को नजरंदाज नहीं कर सकते हैं।
केस का नाम: राजेश्वरी चंद्रशेखर गणेश बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य।
उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एससी) 605
मामला संख्या और दिनांक: 2021 की रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 402 | 14 जुलाई 2022
कोरम: जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला
हेडनोट्सः भारत का संविधान - बच्चे की अभिरक्षा के मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट - एक बच्चे की अभिरक्षा के दावे से संबंधित मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट की मांग वाली याचिका में, मुख्य मुद्दा जिस पर विचार किया जाना चाहिए वह यह है कि क्या मामले के तथ्यों से यह कहा जा सकता है कि बच्चे की अभिरक्षा अवैध है - क्या बच्चे के कल्याण की आवश्यकता के अनुसार उसकी वर्तमान कस्टडी बदल दी जानी चाहिए और बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति की निगरानी और अभिरक्षा में सौंप दिया जाना चाहिए - जब भी नाबालिग बच्चे की कस्टडी से संबंधित मामला कोर्ट के समक्ष उठता है, मामला पक्षकारों के कानूनी अधिकारों पर विचार करने पर नहीं, बल्कि बच्चे के हित और कल्याण की सर्वोत्तम सेवा के एकमात्र और प्रमुख मानदंड पर तय किया जाना है। - कल्याण एक सर्वव्यापी शब्द है - इसमें भौतिक कल्याण शामिल है - जबकि भौतिक विचारों का अपना स्थान है, वे गौण मामले हैं - अधिक महत्वपूर्ण हैं स्थिरता और सुरक्षा, प्यार और देखभाल और मार्गदर्शन, बच्चे के अपने चरित्र, व्यक्तित्व और प्रतिभा के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक जोशीले और करुणामय संबंध - बाल कस्टडी मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट का नियोजन किसी भी क़ानून के अनुसार नहीं, बल्कि स्वतंत्र है – कोर्ट द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अधिकार क्षेत्र ऐसे मामलों में अपनी अंतर्निहित न्यायसंगत शक्तियों पर निर्भर करता है और यह नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा के लिए अभिभावक के तौर अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है और इसकी जांच की प्रकृति एवं उसका दायरा और इच्छित परिणाम 'कोर्ट ऑफ इक्विटी'के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल पर निर्भर होता है- नाबालिग बच्चों से संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का प्राथमिक उद्देश्य, यह निर्धारित करना है कि किसके संरक्षण में बच्चे के सर्वोत्तम हितों को आगे बढ़ाया जाएगा। [पैराग्राफ 75, 80, 81, 86, 88, 89]
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