सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2022 के महत्वपूर्ण जजमेंट : भाग 2

Sharafat

25 Dec 2022 7:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2022 के महत्वपूर्ण जजमेंट : भाग 2

    लाइव लॉ प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी आपके लिए बीते साल (2022) के सुप्रीम कोर्ट के 100 महत्वपूर्ण जजमेंट की सूची लेकर आया है।

    आइए इसके दूसरे भाग पर नज़र डालते हैं।

    इन जजमेंट का चयन निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर किया गया है -

    (i) आम जनता के लिए महत्व;

    (ii) कानून की विवादित स्थिति का समाधान;

    (iii) वकीलों की प्रैक्टिस के लिए उपयोगिता।

    यहां एक डिस्क्लेमर जोड़ा गया है कि सूची में शामिल निर्णय आवश्यक रूप से अच्छे या सर्वोत्तम निर्णय नहीं हैं; उनमें से कुछ विवादास्पद हैं। फिर भी ये निर्णय उनके सामान्य महत्व और मुकदमेबाजी और सामान्य सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव को देखते हुए ध्यान देने और चर्चा करने के योग्य हैं।

    100 निर्णयों की सूची तीन भागों में प्रकाशित की जा रही है और यह दूसरा भाग है जिसमें 33 जजमेंट हैं। पहला भाग [1-33 जजमेट प्रकाशित किया जा चुका है]

    सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2022 के महत्वपूर्ण जजमेंट : भाग 1

    34. केरल/गुजरात मनी लेंडर्स एक्ट जैसे राज्य अधिनियम आरबीआई अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड एनबीएफसी पर लागू नहीं होते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि केरल मनी लेंडर्स एक्ट, 1958 और गुजरात मनी लेंडर्स एक्ट, 2011 जैसे राज्य अधिनियम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विनियमित गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर लागू नहीं होंगे।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि आरबीआई अधिनियम का अध्याय IIIB अपने आप में एक पूर्ण कोड है और एनबीएफसी पर आरबीआई के लिए उपलब्ध हस्तक्षेप की शक्ति 'शुरू से अंत तक' है।

    केस : नेदुम्पिल्ली फाइनेंस कंपनी लिमिटेड बनाम केरल राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 464 | सीए 5233 0F 2012 | 10 मई 2022

    35. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर रोक लगाई; पुनर्विचार तक नए मामले दर्ज नहीं हो सकेंगे

    एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत 162 साल पुराने राजद्रोह कानून (Sedition) को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती।

    कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में केंद्र और राज्य सरकारों से उक्त प्रावधान के तहत कोई भी एफआईआर दर्ज करने से परहेज करने का आग्रह किया, जब तक इस पर पुनर्विचार नहीं हो जाता है।

    भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए। पीठ ने आदेश में कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी प्राथमिकी दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी।" कोर्ट ने कहा कि जो लोग पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत बुक हैं और जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

    केस टाइटल : एसजी वोमबाटकेरे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीसी 682/2021) एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य| 2022 लाइवलॉ (एससी) 470

    36. घरेलू हिंसा अधिनियम में 'संयुक्त परिवार' का अर्थ परिवार की तरह एक साथ रहना है, न कि जैसा हिंदू कानून में समझा जाता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी मामले में हाल के फैसले में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 (एफ) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "संयुक्त परिवार" को विस्तारित अर्थ दिया है।

    अधिनियम की धारा 2 (एफ) "घरेलू संबंध" को "दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध के रूप में परिभाषित करती है, जो किसी भी समय एक साझा घर में एक साथ रहते हैं, जब वे आम सहमति विवाह, या एक के विवाह माध्यम से या गोद लेने की प्रकृति में संबंध या संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रहने वाले परिवार के सदस्य हैं।"

    इस मामले में "घरेलू संबंध" शब्द का दायरा अदालत के विचार के लिए लाया गया, जब एक विधवा के अपने दिवंगत पति के "साझा घर" में रहने के अधिकार की जांच की गई। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने व्यापक रूप से "संयुक्त परिवार" को "एक परिवार के रूप में संयुक्त रूप से रहने वाले व्यक्ति" के रूप में पढ़ा। अदालत ने कहा कि संयुक्त परिवार का मतलब संयुक्त परिवार नहीं है जैसा कि हिंदू कानून में समझा जाता है।

    केस का टाइटल: प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी | 2022 लाइवलॉ (एससी) 474

    37.पत्नी के डाईंग डिक्लेयरेशन का इस्तेमाल क्रूरता साबित करने के लिए किया जा सकता है, भले ही पति उसकी मौत से संबंधित आरोपों से बरी हो जाए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के तहत क्रूरता के मामले में मृतक पत्नी का साक्ष्य आईपीसी की धारा 498ए के तहत आरोप के लिए एक मुकदमे में स्वीकार्य हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के कुछ फैसलों को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    शीर्ष न्यायालय ने कहा, हालांकि यह दो पूर्वशर्तों की संतुष्टि के अधीन है (1) मामले में उसकी मृत्यु का कारण प्रश्न में आना चाहिए (2) अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि आईपीसी की धारा 498ए के संबंध में स्वीकार किए जाने के लिए जो सबूत मांगे गए हैं, वे मृत्यु की परिस्थितियों से भी संबंधित होने चाहिए।

    केस टाइटल : सुरेंद्रन बनाम केरल राज्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 482

    38. उस राज्य की सरकार द्वारा छूट पर विचार किया जाएगा जहां अपराध किया गया, भले ही मुकदमे को दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस नीति के संदर्भ में छूट या समय से पहले रिहाई पर विचार किया जाना चाहिए, जो उस राज्य में लागू होती है जहां अपराध किया गया था।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा कि धारा 432 (7) सीआरपीसी के तहत उपयुक्त सरकार या तो केंद्र या राज्य सरकार हो सकती है, लेकिन दो राज्य सरकारों का समवर्ती क्षेत्राधिकार नहीं हो सकता है।

    केस : राधेश्याम भगवानदास शाह @ लाला वकील बनाम गुजरात राज्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 484

    39. राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी एजी पेरारिवलन की रिहाई के आदेश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए रिहा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल द्वारा पेरारिवलन की शीघ्र रिहाई की याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण उनकी रिहाई आवश्यक हो गई। पेरारिवलन, जिन्होंने 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी, ने अपनी सजा को माफ करने के लिए 2018 में तमिलनाडु सरकार द्वारा दी गई सिफारिश के बावजूद अपनी रिहाई में देरी से दुखी होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    केस : एजी पेरारीवलन बनाम राज्य, पुलिस अधीक्षक सीबीआई/एसआईटी/एमएमडीए, चेन्नई, तमिलनाडु के माध्यम से | 2022 लाइवलॉ (एससी) 494

    40. सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की स्थापना को बरकरार रखा कहा, एनजीटी से सीधे एससी में अपील हाईकोर्ट को कमजोर नही करती

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) एक्ट 2010 की धारा 3 की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो एनजीटी की स्थापना का प्रावधान करती है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने एनजीटी की धारा 3 के खिलाफ एमपी हाई कोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन द्वारा दी गई चुनौती को खारिज कर दिया।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 3 इस प्रकार कहती है, "3 ट्रिब्यूनल की स्थापना। - केंद्र सरकार, अधिसूचना द्वारा, ऐसी तारीख से, जो उसमें निर्दिष्ट की जा सकती है, एक ट्रिब्यूनल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल* के रूप में जाना जाएगा, जो ट्रिब्यूनल द्वारा या इस अधिनियम के तहत इस तरह के अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और अधिकार का प्रयोग करेगा।"

    केस : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ | 2022 लाइवलॉ (एससी) 495

    41. 1988 रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदला

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस नेता और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सदस्य नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 1988 के रोड रेज हादसे में सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदल दिया है।

    इस हादसे में गुरनाम सिंह नाम के व्यक्ति की मौत हो गई थी। कोर्ट ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त फैसले ने मामले में नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 3 साल के कारावास से घटाकर 1000 रुपये कर दिया था।

    केस: कानूनी प्रतिनिधियों बनाम नवजोत सिंह सिद्धू के माध्यम से जसविंदर सिंह (मृत)| 2022 लाइवलॉ (एससी) 498

    42. जीएसटी परिषद की सिफारिशें संसद और राज्य विधानसभाओं पर बाध्यकारी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि GST परिषद की सिफारिशें संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। हालांकि जीएसटी परिषद की कुछ सिफारिशें जीएसटी अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर कर की दर और कर योग्य वस्तुओं आदि के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि सभी सिफारिशें संसद और राज्य विधानमंडल पर बाध्यकारी हैं।

    केस टाइटल : यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम मैसर्स मोहित मिनरल्स थ्रू डायरेक्टर

    43. "शिक्षा लाभ कमाने का व्यवसाय नहीं है। ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होनी चाहिए" : सुप्रीम कोर्ट ने निजी मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फीस सात गुना बढ़ाने के आदेश को रद्द किया

    सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश राज्य द्वारा जारी उस सरकारी आदेश को रद्द करते हुए ये टिप्पणी की, जिसमें निजी मेडिकल कॉलेजों की शिक्षण फीस को सात गुना बढ़ाकर 24 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दिया था। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि निजी मेडिकल कॉलेजों द्वारा किए गए अभ्यावेदन पर ट्यूशन फीस बढ़ाने का सरकारी आदेश 'पूरी तरह से अस्वीकार्य और मनमाना है और केवल निजी मेडिकल कॉलेजों के पक्ष और / या उनको उपकृत करने की दृष्टि से है।

    केस टाइटल : नारायण मेडिकल कॉलेज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 929 | एसएलपी (सी) 29692970/ 2021 | 7 नवंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया

    44. सुप्रीम कोर्ट ने 1983 के संशोधन से पहले उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को पुराने नियमों द्वारा शासित करने वाले फैसले को पलटा

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक लोक सेवक की सेवा की शर्तें, जिसमें पदोन्नति और वरिष्ठता के मामले शामिल हैं, मौजूदा नियमों द्वारा शासित हैं।

    जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने वाईवी रंगैया बनाम जे श्रीनिवास राव के मामले में अपने फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि नियमों में संशोधन से पहले खाली होने वाले सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियां पुराने नियमों द्वारा शासित होंगी न कि संशोधित नियमों द्वारा।

    केस टाइटल : हिमाचल प्रदेश बनाम राज कुमार | 2022 लाइवलॉ (एससी) 502

    45.धारा 138 एनआई एक्ट- अधिकतम पेंडेंसी वाले 5 राज्यों में चेक बाउंस मामलों के लिए रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में पायलट कोर्ट स्थापित करें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों की पेंडेंसी को कम करने की दृष्टि से गुरुवार को अधिकतम पेंडेंसी वाले 5 राज्यों (महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तर प्रदेश) के 5 जिलों में रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में पायलट अदालतों की स्थापना का निर्देश दिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने चेक ‌डिसऑनर के लंबित मामलों (एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मामलों के तेजी से ट्रायल के संदर्भ में) के निस्तारण के लिए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने एक स्वत: संज्ञान मामले में कार्यवाही के लिए निर्देश पारित किया था।

    केस टाइटल : इन रे : एनआई अधिनियम 1881 की धारा 138 के तहत मामलों का त्वरित परीक्षण | 2022 लाइवलॉ (एससी) 508

    46. ​​सीलबंद कवर प्रक्रिया एक खतरनाक मिसाल कायम करती है; न्याय वितरण प्रणाली के कार्य को प्रभावित करती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सील्‍ड कवर प्रक्रिया एक 'खतरनाक मिसाल' स्थापित करती है, यह 'निर्णय की प्रक्रिया अस्पष्ट और अपारदर्शी' बनाती है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने 20 अक्टूबर 2022 को दिए एक फैसले में कहा कि यह प्रक्रिया न्याय वितरण प्रणाली के कामकाज को प्रभावित करती है और प्राकृतिक न्याय के गंभीर उल्लंघन का कारण बनती है। असाधारण परिस्थितियों में संवेदनशील जानकारी के गैर-प्रकटीकरण का उपाय उस उद्देश्य के अनुपात में होना चाहिए, जो गैर-प्रकटीकरण की पूर्ति करना चाहता है, बेंच ने कहा कि अपवाद आदर्श नहीं बनने चाहिए।

    केस ‌डिटेलः कमांडर अमित कुमार शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया |

    47. मृत्युदंडः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ट्रायल कोर्ट को राज्य और अभियुक्तों से शमनकारी परिस्थितियों की जानकारी लेनी चाहिए, दिशानिर्देश जारी किए

    सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि निचली अदालतें अक्सर मौत की सजा प्रतिशोध की भावना से देती हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कई व्यावहारिक दिशा-निर्देशों जारी किए कि अभियुक्तों की शमनकारी परिस्थितियों पर मुकदमे के चरण में ही ठीक से विचार किया जाए। अदालत ने कहा कि ज्यादातर मामलों में, शमनकारी परिस्थितियों से संबंधित जानकारी अपील के स्तर पर एकत्र की जाती है, और ऐसी जानकारी ज्यादातर दोषसिद्धि के बाद की परिस्थितियों से संबंधित होती है।

    कोर्ट ने कहा, "दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता यह है कि ट्रायल के स्तर पर अच्छी तरह से दस्तावेजीकृत शमनकारी परिस्थितियों के अभाव में, गंभीर परिस्थितियां कहीं अधिक सम्मोहक या प्रभावशाली लगती हैं, जो सजा देने वाली अदालत द्वारा बचन सिंह परीक्षण के अपूर्ण और इस प्रकार गलत आवेदन के आधार पर मृत्युदंड देने की संभावना बना देती है।"

    केस टाइटल: मनोज और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    48. अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदनों पर 6 महीने में फैसला किया जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदनों पर समयबद्ध तरीके से फैसला किया जाना चाहिए, न कि आवेदन जमा करने की तारीख से छह महीने की अवधि के बाद । सुप्रीम कोर्ट को आशंका थी कि यदि आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय नहीं लिया गया तो ऐसी नियुक्तियों का पूरा उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। "

    ... अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के उद्देश्य और लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यानी, मृत कर्मचारी के परिवार को सेवा में रहते हुए कर्मचारी की असामयिक मृत्यु पर वित्तीय कठिनाई की स्थिति में रहने और तत्काल मृतक के परिवार को उसकी असामयिक मृत्यु के परिणामस्वरूप वित्तीय सहायता के लिए नीति के तहत प्राधिकरण को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए ऐसे आवेदनों पर जल्द से जल्द विचार और निर्णय लेना चाहिए, लेकिन पूर्ण आवेदन दाखिल करने की तारीख से छह महीने की अवधि से परे ना हो। "

    केस टाइटल : मलाया नंदा सेठी बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 522

    49. मध्यस्थता अधिनियम -एक साल से ज्यादा से लंबित धारा 11 (5) और 11 (6) के तहत आवेदनों का निपटारा 6 महीने के भीतर करें : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा

    हाईकोर्ट द्वारा मध्यस्थों की नियुक्ति के लिए आवेदनों को जल्द से जल्द तय करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यदि मध्यस्थों की जल्द से जल्द नियुक्ति नहीं की जाती है और मध्यस्थों की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 (5) और 11 (6) के तहत आवेदनों को वर्षों तक लंबित रखा जाता है तो यह अधिनियम के उद्देश्य और लक्ष्य को विफल कर देगा और यह एक प्रभावी वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के महत्व को खो सकता है।

    केस टाइटल : मैसर्स श्री विष्णु कंस्ट्रक्शन बनाम द इंजीनियर इन चीफ मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस सर्विस और अन्य 2022 लाइवलॉ (एससी) 523

    50. पुलिस को यौनकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए, छापे और रेस्‍क्यू ऑपरेशन के दौरान मीडिया को उनकी तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए

    सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों के लिए भी उपलब्‍ध है, निर्देश दिया कि पुलिस को यौनकर्मियों के साथ सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। मौखिक या शारीरिक रूप से उनके साथ दुव्यवहार नहीं करना चा‌हिए। इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि मीडिया को रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन की रिपोर्ट करते समय यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए, या उनकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, यदि मीडिया ग्राहकों के साथ यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित करता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 सी के तहत दृश्यता के अपराध को लागू किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य। Criminal Appeal No. 135 of 2010

    51. सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित वनों के लिए न्यूनतम एक किमी ESZ अनिवार्य किया

    सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में निर्देश दिया कि प्रत्येक संरक्षित वन में एक किलोमीटर का इको सेंसिटिव जोन (ESZ) होना चाहिए। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि ESZ के भीतर किसी भी स्थायी ढांचे की अनुमति नहीं दी जाएगी।

    राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के भीतर खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती। साथ ही इस प्रकार अनुमति नहीं दी जाएगी। यदि मौजूदा ESZ एक किमी बफर जोन से आगे जाता है या यदि कोई वैधानिक साधन उच्च सीमा निर्धारित करता है तो ऐसी विस्तारित सीमा मान्य होगी। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने टीएन गोदावर्मन थिरुमलपद मामले में दायर आवेदनों में निर्देश पारित किए।

    इन रे: टीएन गोडावर्मन थिरुमलपाद बनाम भारत संघ | 2022 लाइवलॉ (एससी) 540

    52. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों की बड़ी साजिश मामले में जकिया जाफरी की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में गोधरा ट्रेन नरसंहार में राज्य के उच्च पदाधिकारियों और अन्य संस्थाओं को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दिया।

    जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनीं।

    केस टाइटल : जाकिया अहसान जाफरी और अन्य बनाम गुजरात राज्य और अन्य |2022 लाइवलॉ (एससी) 558

    53. सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना मामले में विजय माल्या को 4 महीने की कैद की सजा सुनाई; उसे 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर जमा करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) को कोर्ट की अवमानना मामले में चार महीने की कैद और 2000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। माल्या को 2017 में भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाले बैंकों के एक संघ द्वारा दायर एक मामले में पारित आदेशों के उल्लंघन में अपने बच्चों को 40 मिलियन अमरीकी डालर हस्तांतरित करने का दोषी पाया गया था। अदालत ने आज सजा सुनाते हुए कहा कि माल्या ने अपने आचरण के लिए कोई पछतावा नहीं दिखाया और सजा की सुनवाई के दौरान उसके सामने पेश नहीं हुआ।

    केस टाइटल : भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बनाम डॉ विजय माल्या

    54. ' लोकतंत्र कभी भी पुलिस राज्य नहीं हो सकता' : सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के महत्व पर जोर दिया, अनावश्यक गिरफ्तारी और रिमांड को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए

    सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में "जेल नहीं जमानत" नियम के महत्व पर जोर दिया और अनावश्यक गिरफ्तारी और रिमांड को रोकने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए। सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो के मामले में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ द्वारा दिए गए फैसले में स्वीकार किया गया कि भारत में जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है।

    फैसले में कहा गया, " भारत में जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है। हमारे सामने रखे गए आंकड़े बताते हैं कि जेलों के 2/3 से अधिक कैदी विचाराधीन कैदी हैं। इस श्रेणी के कैदियों में से अधिकांश को एक संज्ञेय अपराध के पंजीकरण के बावजूद गिरफ्तार करने की भी आवश्यकता नहीं हो सकती है जिन पर सात साल या उससे कम के लिए दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया है। वे न केवल गरीब और निरक्षर हैं, बल्कि इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। इस प्रकार, उनमें से कई को विरासत में अपराध की संस्कृति मिली है।"

    केस टाइटल : सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | 2022 लाइवलॉ (एससी) 577

    55. बॉम्बे ब्लास्ट मामले के दोषी अबू सलेम को पुर्तगाल सरकार के साथ प्रत्यर्पण संधि के तहत 25 साल की जेल के बाद रिहा किया जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1993 के बॉम्बे ब्लास्ट मामले में अबू सलेम को दी गई आजीवन कारावास की सजा को भारत में उसके प्रत्यर्पण की तारीख से 25 साल पूरे होने पर माफ किया जाना चाहिए, जैसा कि भारत द्वारा संप्रभु आश्वासन दिया गया है।

    भारत सरकार ने सलेम को भारत प्रत्यर्पित करते समय पुर्तगाल गणराज्य को यह आश्वासन दिया था कि उसकी सजा 25 वर्ष से अधिक नहीं होगी। कोर्ट ने आदेश दिया, "अपीलकर्ता की 25 वर्ष की सजा पूरी करने पर, केंद्र सरकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिए भारत के राष्ट्रपति को सलाह देने और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ-साथ अदालतों के आदेशों के पालन करने सिद्धांत के आधार पर अपीलकर्ता को रिहा करने के लिए बाध्य है।

    केस टाइटल : अबू सलेम बनाम महाराष्ट्र राज्य आपराधिक अपील 679/2015]

    56. 'रिहाई की तारीख बे बाद हिरासत अनुच्छेद 21 का उल्लंघन' : सुप्रीम कोर्ट ने सजा की अवधि के बाद जेल में रखने पर दोषी को 7.5 लाख का मुआवजा दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य को बलात्कार के एक दोषी को मुआवजे के रूप में 7.5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है, जिसे सजा की अवधि के बाद जेल में रखा गया था। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मई 2022 में दिए गए एक फैसले में कहा " जब एक सक्षम अदालत, दोषसिद्धि पर, एक आरोपी को सजा सुनाती है और अपील में, सजा की पुष्टि के बाद सजा को संशोधित किया गया था और फिर अपीलीय निर्णय अंतिम हो गया था, दोषी को केवल उस अवधि तक हिरासत में रखा जा सकता है, जब तक वह उक्त अपीलीय निर्णय के आधार पर कानूनी रूप से हिरासत में हो सकता है।"

    केस : भोला कुम्हार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 589

    57. किशोर पर बालिग की तरह ट्रायल चलाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन : जेजेबी को मनोवैज्ञानिकों/ मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किशोर न्याय बोर्ड में बाल मनोविज्ञान या बाल मनोरोग में डिग्री के साथ अभ्यास करने वाले पेशेवर शामिल नहीं होते हैं, तो यह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (अधिनियम) की धारा 15 (1) के प्रावधान के तहत अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं या अन्य विशेषज्ञों की सहायता लेने के लिए बाध्य होगा।

    प्रारंभ में 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को किशोर माना जाना था और बोर्ड द्वारा उन पर ट्रायल चलाया जाना था। 2015 के अधिनियम के लागू होने के बाद ही, जघन्य अपराध में शामिल 16 से 18 वर्ष के बीच के किशोरों के लिए एक अलग श्रेणी का चयन किया गया था, जो यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन के अधीन थे कि क्या उन्हें बोर्ड द्वारा एक किशोर के रूप में पेश किया जाना है या अधिनियम की धारा 15 के तहत बाल न्यायालय द्वारा एक वयस्क के रूप में। चूंकि प्रारंभिक मूल्यांकन की रिपोर्ट तय करती है कि आरोपी बच्चे पर एक किशोर के रूप में ट्रायल चलाया जाएगा या एक वयस्क के रूप में, कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे की 'मानसिक क्षमता और परिणामों को समझने की क्षमता' का मूल्यांकन नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता है।

    केस : बरुण चंद्र ठाकुर बनाम मास्टर भोलू और अन्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 593

    58. सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली साल 2009 में दाखिल याचिका खारिज किया। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 2009 में एक हिमांशु कुमार और 12 अन्य द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया।

    कोर्ट ने कहा कि न केवल झूठे आरोप बल्कि आपराधिक साजिश के लिए भी कार्रवाई की जा सकती है। याचिकाकर्ता के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने की केंद्र की याचिका के संबंध में कोर्ट ने कहा कि वह उस पर कार्यवाही नहीं कर रहा है।

    जस्टिस पारदीवाला ने कहा, "हम इसे छत्तीसगढ़ राज्य पर छोड़ते हैं कि वह अंतरिम आवेदन में बयानों के संदर्भ में ऊपर चर्चा की गई कानून के अनुसार उपयुक्त कदम उठाए। हम स्पष्ट करते हैं कि यह केवल आईपीसी की धारा 211 के अपराध तक ही सीमित नहीं होगा। साजिश या किसी अन्य अपराध का मामला भी सामने आ सकता है। हमने कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं की है। हम आगे कार्यवाही नहीं कर रहे हैं, लेकिन उचित कदम उठाने के लिए राज्य पर छोड़ते हैं। धारा 211 या किसी अन्य के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।"

    केस टाइटल : हिमांशु कुमार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 598

    59. सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते हैं। अविवाहित महिलाओं को भी 20-24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात कराने की अधिकार है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है।

    कोर्ट ने कहा, "सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं।" कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है। यह मुद्दा इस बात से संबंधित है कि क्या अविवाहित महिला, जिसकी गर्भ सहमति से संबंध से उत्पन्न होती है, को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के नियम 3बी से बाहर रखा जाना वैध है। नियम 3बी में उन महिलाओं की श्रेणियों का उल्लेख है जिनकी 20-24 सप्ताह की गर्भ समाप्त की जा सकती है।

    केस : X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली सरकार | 2022 लाइवलॉ (एससी) 809

    60. ' जमानत की शर्तें अनुपातिक होनी चाहिए' : सुप्रीम कोर्ट ने कहा ज़ुबैर को ट्विट करने से रोकने का सामान्य आदेश अनुचित होगा

    सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद ज़ुबैर मामले में फैसले में माना है कि अदालतों द्वारा लगाई गई जमानत की शर्तें, उन्हें थोपने के उद्देश्य से गठजोड़ के अलावा, उक्त उद्देश्य के लिए आनुपातिक होनी चाहिए - इस प्रकार अभियुक्तों की स्वतंत्रता और आपराधिक न्याय के प्रवर्तन के बीच संतुलन बनाना होगा।

    जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने फैसला सुनाया। जस्टिस ओका ने कहा, "हमने छूट और भेदभाव दोनों के आधार पर याचिकाओं को खारिज कर दिया है।" जस्टिस ओका ने कहा कि भारत के बाहर दी जाने वाली सेवाओं के लिए जीएसटी के अतिरिक्त क्षेत्रीय आवेदन के संबंध में याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए तर्क को खुला रखा गया है, क्योंकि यह एक अन्य पीठ के समक्ष विचाराधीन है। टूर ऑपरेटर हज पर जीएसटी लगाने को चुनौती दे रहे हैं, जो पंजीकृत निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का इस आधार पर लाभ उठाते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 245 के अनुसार अतिरिक्त क्षेत्रीय गतिविधियों पर कोई टैक्स कानून लागू नहीं हो सकता है। उनका तर्क है कि भारत के बाहर उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगाया जा सकता है।

    हज ग्रुप ऑर्गनाइजर कोई धार्मिक समारोह आयोजित नहीं करते, जीएसटी से छूट नहीं मांग सकते : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हज ग्रुप ऑर्गनाइजर्स (एचजीओ) या प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स (पीटीओ) जीएसटी अधिनियम के तहत जारी मेगा छूट अधिसूचना के अनुसार अपनी सेवाओं के लिए माल और सेवा कर (जीएसटी) से छूट नहीं मांग सकते।( ऑल इंडिया हज उमराह टूर ऑर्गनाइज़र एसोसिएशन मुंबई बनाम भारत संघ और अन्य) अधिसूचना ने "किसी भी धार्मिक समारोह के संचालन" के लिए छूट प्रदान की, जैसा कि इसके खंड 5 (बी) में कहा गया है।

    कोर्ट ने कहा कि एचजीओ खुद कोई धार्मिक समारोह आयोजित नहीं कर रहे हैं और केवल हज यात्रा की सुविधा दे रहे हैं। Also Read - सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2022 के महत्वपूर्ण जजमेंट : भाग 1 हज तीर्थयात्रा सऊदी अरब में मक्का और आसपास के पवित्र स्थानों की पांच दिवसीय धार्मिक तीर्थयात्रा है।

    भारत के हज यात्रियों को तीर्थयात्रा करने में सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार और सऊदी अरब साम्राज्य के बीच हर साल एक द्विपक्षीय समझौता किया जाता है। उक्त समझौता एक निश्चित संख्या में तीर्थयात्रियों को निर्धारित करता है, जो भारत से हज कर सकते हैं। इस कोटे का 30% एचजीओ को आवंटित किया जाता है और शेष हज समिति को सौंपा जाता है, जो एक वैधानिक निकाय है।

    केस : ऑल इंडिया हज उमराह टूर ऑर्गनाइजर एसोसिएशन मुंबई बनाम भारत संघ

    62. सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के तहत ED के गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा; कोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002 के प्रावधानों को बरकरार रखा, जो प्रवर्तन निदेशालय (ED) के गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी और जब्ती की शक्ति से संबंधित है।

    कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो ईडी की गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्तियों से संबंधित हैं। अदालत ने अधिनियम की धारा 24 के तहत सबूत के उल्टे बोझ को भी बरकरार रखा और कहा कि अधिनियम के उद्देश्यों के साथ इसका "उचित संबंध" है।

    अदालत ने पीएमएलए अधिनियम की धारा 45 में जमानत के लिए "दो शर्तों (जुड़वां शर्तें)" को भी बरकरार रखा और कहा कि निकेश थरचंद शाह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी संसद 2018 में उक्त प्रावधान में संशोधन करने के लिए सक्षम थी।

    केस : विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ | 2022 लाइवलॉ (एससी) 633

    ईडी अधिकारी  "पुलिस अधिकारी" नहीं हैं, अनुच्छेद 20(2) गिरफ्तारी को बाद उपलब्ध है, समन के चरण में नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी जो धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत धन शोधन मामलों की जांच कर रहे हैं, वे "पुलिस अधिकारी" नहीं हैं। इसलिए, ईडी अधिकारियों द्वारा पीएमएलए अधिनियम की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयान अपराध की आय की जांच करते समय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) ( खुद ही अपराध का दोषी ठहराने के खिलाफ अधिकार) से प्रभावित नहीं होते हैं।

    कोर्ट ने हालांकि माना कि एक आरोपी का बचाव जिस पर मनी लॉन्ड्रिंग अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया है कि उसका बयान साक्ष्य में अस्वीकार्य है जैसा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 द्वारा वर्जित है (जो पुलिस को इकबालिया बयानों को सबूत में अस्वीकार्य बनाता है) पर मामला दर मामला पर विचार किया जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम के अनुच्छेद 20(3) और धारा 25 के तहत संरक्षण समन के स्तर पर लागू नहीं किया जा सकता है और औपचारिक गिरफ्तारी के बाद ही उठाया जा सकता है।

    केस: विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (SC ) 633 |एसएलपी (सीआरएल) 4634/ 2014 | 27 जुलाई 2022 |

    अनुसूचित अपराध से बरी किए गए व्यक्ति के खिलाफ पीएमएलए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अनुसूचित अपराध से बरी किए गए व्यक्ति पर धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इस मामले में लोकायुक्त पुलिस ने उप राजस्व अधिकारी रहे आरोपी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ई) के साथ पठित धारा 13(2) के तहत मामला दर्ज किया है।

    ट्रायल के लंबित रहने के दौरान, प्रवर्तन निदेशालय ने आरोपी, उसकी पत्नी और बेटे के खिलाफ मामला दर्ज किया और विशेष अदालत के समक्ष पीएमएलए अधिनियम की धारा 3 के तहत शिकायत दर्ज की। बाद में विशेष न्यायाधीश (लोकायुक्त) ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत यह कहते हुए पूर्वोक्त अपराधों से बरी कर दिया कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए सबूत उन्हें दोषी ठहराने के लिए अपर्याप्त थे।

    आरोपी ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 277 के तहत एक आवेदन दिया जिसमें पीएमएलए अधिनियम से संबंधित मामले में आरोप मुक्त करने की मांग की गई थी। एक अभियुक्त की मृत्यु हो गई और उसके बाद ट्रायल कोर्ट ने अन्य अभियुक्तों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अनुसूचित अपराधों का घटित होना "अपराध की आय" को जन्म देने के लिए मूल शर्त थी; और अनुसूचित अपराध का गठन पीएमएलए अधिनियम के तहत कार्यवाही के लिए एक पूर्व शर्त है। हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए आरोपमुक्त करने के इस आदेश को निरस्त कर दिया।

    केस : प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पार्वती कोल्लूर बनाम राज्य |

    63. सुप्रीम कोर्ट ने 1 जनवरी 2016 से न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यायिक अधिकारियों के वेतन वृद्धि का निर्देश दिया

    न्यायिक अधिकारियों के वेतन ढांचे में संशोधन की जरूरत पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1 जनवरी 2016 से बढ़ा हुआ वेतनमान लागू करने का आदेश दिया।

    भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी औ जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र और राज्यों को अधिकारियों को 3 किस्तों में बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया - 3 महीने में 25%, अगले 3 महीनों में 25% और शेष राशि का भुगतान 30 जून 2023 तक।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वेतन संरचना में तुरंत संशोधन करना अनिवार्य है क्योंकि न्यायिक अधिकारी राज्य और केंद्र द्वारा गठित वेतन आयोग के दायरे में नहीं आते हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, "वास्तव में, कुछ राज्यों में सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान 5 साल में एक बार और केंद्र सरकार में 10 साल में एक बार बढ़ाए जाते हैं। न्यायिक अधिकारी राज्य और केंद्र द्वारा गठित वेतन आयोग द्वारा कवर नहीं किए जाते हैं। इसलिए वेतन संरचना को तुरंत संशोधित करने की आवश्यकता है।" Also Read - कर्नाटक सरकार ने मैरिटल रेप के लिए पति पर मुकदमा चलाने का समर्थन किया; सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट जजमेंट के पक्ष में हलफनामा दाखिल जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों की सेवा शर्तों की समीक्षा के लिए अखिल भारतीय न्यायिक आयोग के गठन के लिए अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की याचिका पर विचार करते हुए शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्देश जारी किए गए थे।

    केस टाइटल: ऑल इंडिया जज एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य

    64. जैविक पिता की मौत के बाद मां द्वारा अपने बच्चे को दूसरे पति का सरनेम देने में कुछ भी असामान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जैविक पिता की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां बच्चे का उपनाम तय कर सकती है और उसे अपने नए परिवार में शामिल कर सकती है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें एक मां को अपने बच्चे का उपनाम बदलने और अपने नए पति का नाम केवल 'सौतेले पिता' के रूप में रिकॉर्ड में दिखाने का निर्देश दिया था।

    अदालत ने कहा कि इस तरह का निर्देश लगभग ''क्रूर और इस बात से बेखबर है कि यह बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को कैसे प्रभावित करेगा ?'' इस अपील में मां (जिसने पहले पति की मौत के बाद दूसरी शादी कर ली) और बच्चे के मृत जैविक पिता (दादा-दादी) के माता-पिता के बीच विवाद बच्चे को दिए जाने वाले उपनाम को लेकर था।

    बच्चे के उपनाम को बहाल करने के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जारी एक निर्देश (संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 की धारा 10 के तहत एक याचिका का निपटारा करते हुए) को चुनौती देते हुए मां ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जहां तक बच्चे के पिता के नाम का संबंध है, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि जहां कहीं भी रिकॉर्ड में अनुमति हो, प्राकृतिक पिता का नाम दिखाया जाएगा और यदि इसकी अनुमति नहीं है, तो मां के नए पति का नाम सौतेले पिता के रूप में दिखाया जा सकता है।

    केस टाइटल-अकिला ललिता बनाम श्री कोंडा हनुमंत राव

    65.धारा 313 सीआरपीसी- सभी प्रतिकूल सबूतों को सवालों के रूप में रखा जाए; स्पष्टीकरण के सिर्फ एक अवसर पर सब अवसरों को एक साथ ना जोड़ा जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 313 सीआरपीसी के तहत किसी आरोपी की जांच करते समय, सभी प्रतिकूल सबूतों को सवालों के रूप में रखना होता है ताकि आरोपी को अपना बचाव व्यक्त करने और अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर मिल सके।

    सीजेआई एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, "यदि सभी परिस्थितियों को एक साथ जोड़ दिया जाता है और आरोपी को खुद को समझाने का एक भी अवसर प्रदान किया जाता है, तो वह तर्कसंगत और समझदार स्पष्टीकरण देने में सक्षम नहीं हो सकता है।"

    अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक आरोपी यह साबित करने में विफल रहता है कि इस तरह की चूक वास्तव में ट्रायल को समाप्त नहीं करती है, तब तक वह यह साबित करने में विफल रहता है कि उसके साथ गंभीर पूर्वाग्रह पैदा हुआ है। अदालत आरोपी द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 ('आईपीसी') की धारा 307 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 27 के तहत समवर्ती रूप से दोषी ठहराया गया था। अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन का मामला यह था कि वह और सह-आरोपी शिकायतकर्ता के घर गए और उसे बाहर बुलाया। शिकायतकर्ता के बाहर आने पर अपीलार्थी ने देशी पिस्टल से उस पर फायरिंग कर दी। निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराने के लिए मृतक की मां की गवाही पर भरोसा किया था।

    केस : जय प्रकाश तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 658

    66.बलात्कार के अलावा यौन उत्पीड़न के मामलों का इन- कैमरा ट्रायल हो, यौन इतिहास से जुड़े सवालों को अनुमति न दें : सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को कहा

    न्यायालयों के यौन अपराधों के पीड़ितों के साथ संवेदनशील तरीके से निपटने के महत्व को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने वाली महिलाओं के लिए पीड़ा और उत्पीड़न से बचने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।

    अदालत ने निर्देश दिया कि यौन उत्पीड़न से संबंधित सभी मामलों में बंद कमरे में सुनवाई की अनुमति दी जानी चाहिए। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327 के अनुसार, केवल बलात्कार के मामलों में बंद कमरे में सुनवाई अनिवार्य है। कोर्ट ने इस दायरे का विस्तार किया है।

    इसके अलावा, अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किया कि पीड़ित से जिरह संवेदनशील और सम्मानजनक तरीके से की जाए। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि यौन उत्पीड़न के शिकायतकर्ताओं के लिए कानूनी कार्यवाही अधिक कठिन होती है क्योंकि वे आघात और सामाजिक शर्म से निपटते हैं। इस प्रकार, ऐसे मामलों को उचित रूप से संभालने के लिए न्यायालयों की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।

    केस टाइटल : XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य

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