स्तंभ
न्यायिक चुप्पी 'निर्वाचित के अत्याचार' की पुष्टि करती: पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एक जवाब
अप्रत्याशित कोनों से कोर्ट पर, विशेष कर सुप्रीम कोर्ट पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वो गंभीर राष्ट्रीय मसलों, विशेष रूप से प्रवासी संकट में हस्तक्षेप न करें। सरकारों की लगातार निष्क्रियता का परिणाम यह है कि लाखों प्रवासी मजदूरों के जीवन अकल्पनीय दुखों का ढेर लग गया है, वो सड़कों पर पैदल चल रहे हैं। भोजन, पानी, जीवन के आवश्यक साधनों की कमी से जूझ रहे हैं। इस कठिन दौर में, अदालतों को हस्तक्षेप न करने की सलाह देना आंख पर पट्टी बांधने जैसा है। दूसरा मशविरा श्री आरसी लाहोटी (पूर्व सीजेआई) की...
COVID-19 और मरीजों के अधिकार
डॉ अनीता यादव & राकेश मिश्राभारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर आता है, जहां लगभग 1.36 अरब लोग निवास करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार देता है तथा जीने के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति की यही कामना होती है कि वह और उसका परिवार सेहतमंद रहें लेकिन कई बार चाहे-अनचाहे उन्हें बीमारियां घेर लेती हैं। समकालीन समय में कोविड-19 के कारण स्थिति और भयावह होती जा रही है। भारत में लगभग 1.9 लाख के करीब कोविड-19 के मरीज हो चुके...
COVID 19 के दौर में मकान मालिक-किरायेदार विवादः मुश्किलें और हल
अनघ मिश्रऐसा लगता है कि दुनिया एक विकट स्थिति का सामना कर रही है, जिसका प्रभाव न केवल आर्थिक, राजनीतिक और संगठनात्मक मोर्चों पर दिखाई दे रहा है, बल्कि हमारे पारस्परिक और सामाजिक संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। भारत में COVID-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव काफी निराशाजनक है। विश्व बैंक और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 के लिए भारत की विकास दर को कम कर दिया है। यह भारत के आर्थिक उदारीकरण के तीन दशकों की न्यूनतम विकास दर है। केंद्र सरकार ने बीते दो महीनों में कोरोनोवायरस के...
मुस्लिम विवाह में मेहर का अर्थ और महत्व
मुस्लिम विवाह की प्रकृति का अध्ययन करने के बाद यह बात सामने आती है की मूलतः मुस्लिम विवाह की प्रकृति एक संविदा की तरह है, परंतु इस बात में विवाद अवश्य है कि मुस्लिम विवाह केवल संविदा नहीं है, वह एक संस्कार भी है। मुस्लिम विवाह को संविदा की तरह प्रस्तुत करने में मेहर की अग्रणी भूमिका है, जिस तरह विक्रय में एक संविदा होती है तथा उसमें मूल्य जो प्रतिफल होता है इसी प्रकार मुस्लिम विवाह जो संविदा है, उसमें मेहर प्रतिफल होता है। कुछ विद्वानों ने मेहर को केवल प्रतिफल नहीं बता कर एक...
हरियाणा की अदालतों में हिंदीः एक नई चुनौती
हरि किशन हरियाणा ने 11 मई, 2020 को एक अधिसूचना जारी कर कहा कि राज्य के सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में 'हिंदी' का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 में संशोधन किया। इस अधिनियम को अब हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 कहा जाता है। हरियाणा मंत्रिमंडल ने इससे पहले मई के पहले सप्ताह में अधीनस्थ न्यायालयों में हिंदी भाषा की शुरुआत को मंजूरी दी थी। विधानसभा ने फैसले के कार्यान्वयन के लिए एक विधेयक पारित किया था। 78 विधायकों, महाधिवक्ता...
ये आज़ादी महंगी है : "कानून, कैदी और कशमकश "
प्रज्ञा पारिजात सिंह( पैरोल पर छूटे कैदियों से हुई बातचीत के आधार पर लेख ) जैरमी बैंथम ने अपने उपयोगितावाद के सिद्धांत में कहा था कि अपराधी को उतनी ही सज़ा मिलनी चाहिए जितना उसे किसी अपराध को करने में फायदा हुआ है। इसके साथ ही बैंथम का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को मुनाफ़े के लिए काम करना चाहिये, चाहे वह दिखे या ना दिखे। हमारे देश सहित सभी आधुनिक जेल प्रणालियां आज इसी सिद्धांत और सुधारात्मक न्याय प्रणाली पर आधारित हैं। इस सिद्धांत पर विचारकों के बीच काफी मतभेद हैं, जो एक अलग विवाद का...
नफरत फैलाना, अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है
19 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ रिपब्लिक भारत के 21 अप्रैल और 29 अप्रैल को दो प्रसारणों के संबंध में महाराष्ट्र में दर्ज दो अलग-अलग एफआईआर के मामलों को या तो रद्द करने या सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने की मांग नहीं मानी। एफआईआर में हेट स्पीच से संबंधित आईपीसी के विभिन्न दंडात्मक प्रावधानों के साथ-साथ आपराधिक मानहानि का भी आरोप लगाया गया है। 21 अप्रैल के प्रसारण के संबंध में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने सुश्री सोनिया गांधी के खिलाफ बयान दिया और आरोप...
प्रवासी संकट: पूर्व जजों और कानूनी बिरादरी की प्रतिक्रिया का नतीजा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी संकट का संज्ञान लिया
मनु सेबेस्टियनराष्ट्रीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन के कारण दो महीनों से बहुत ही ज्यादा संकट का सामना कर रहे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का संज्ञान अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 26 मई को ले लिया। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के कारण सैकड़ों प्रवासी मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि सुप्रीम कोर्ट अब तक अनभिज्ञता की मुद्रा में रहा है और सरकार के बयान को कि-सब ठीक है- को ही सही मानता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रवासी मजदूरों से संबंधित कई मुद्दों, जैसे कि मजदूरी का भुगतान, खाद्य सुरक्षा, आश्रय...
मुस्लिम विवाह और उसके लिए आवश्यक शर्तें, वे कौन सी परिस्थितियां हैं, जिनमें मुस्लिम विवाह नहीं हो सकता
विवाह हर समाज धर्म इत्यादि की आवश्यकता है। मुस्लिम विधि में भी विवाह जिसे निकाह कहा गया है, इसकी अवधारणा रखी गयी है। दांपत्य जीवन जीने के लिए विवाह की अनिवार्यता पर प्रत्येक समाज और व्यवस्था पर बल दिया गया है। इसी प्रकार से मुस्लिम विधि में भी विवाह पर बल दिया गया है। 'पैगंबर साहब ने हदीस में बताया है कि विवाह निकाह आधा ईमान होता है। कोई भी मोमिन तब तक मुकम्मल नहीं होता जब तक वह निकाह नहीं करता।' अनेक मुस्लिम विधिवेत्ताओं ने और भारत के न्यायालय ने विवाह (निक़ाह) की परिभाषाओं को पेश किया है...
COVID 19 इमर्जेंसीः सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर विफल रहा
योगेश प्रताप सिंह और लोकेंद्र मलिकन्यायिक प्रक्रिया और कानूनी प्रणाली के प्रति लोकप्रिय और पेशेवर, असंतोष, नई घटना नहीं है। हालांकि, संकट के समय संस्थानों की विश्वसनीयता का परीक्षण होता है क्योंकि विश्वसनीयता ही किसी भी संकट में तनाव की परख का आधार होती है। 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल, जिसमें जीवन और स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को निलंबित कर दिया गया था, ने सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता का परीक्षण किया था और जहां उसने बंदी प्रत्यक्षीकरण को निलंबित कर काफी हद तक अपनी विफलता का प्रदर्शन...
वाईजैग गैस लीक मामला: पूर्ण दायित्व सिद्धांत से कठोर दायित्व सिद्धांत की ओर
आलोक चौहान भारत के विधि आयोग ने अपनी 186वीं (2003) रिपोर्ट में पर्यावरण न्यायालय बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने विधि आयोग को इस पर सुझाव देने से पहले ही इन तीन फैसलों, आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम एम वी नायडू (1999), एम सी मेहता बनाम भारत संघ (1986) और इंडियन काउंसिल फॉर एन्वायरो - लीगल एक्शन बनाम भारत संघ (1996) में पर्यावरण न्यायालय के स्थापित किए जाने की आवश्यकता की ओर इंगित किया था। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी NGT) को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण...
बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन: क्या बार काउंसिल ऑफ इंडिया किसी बार एसोसिएशन के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है?
अनुराग भास्कर पृष्ठभूमि हाल ही में, एक अभूतपूर्व कदम के तहत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अपने सचिव को निलंबित करने के फैसले को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। जवाब में, एससीबीए ने बीसीआई को लिखा कि "बीसीआई के पास एससीबीए सहित देश में किसी भी बार एसोसिएशन को नियंत्रित करने की शक्ति या अधिकार नहीं है।" जिसके बाद, बीसीआई ने एससीबीए अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ, प्रस्ताव पर...
प्रवासी मजदूरों के मामलेः सुप्रीम कोर्ट ने नए मापदंड गढ़ने का मौका गंवाया
मनु सेबेस्टियनऐसा कहा जाता है कि आंकड़ों की खूबसूरती प्रायः सच को ढंक देती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में लॉकडाउन में किए गए कामकाज के आंकड़ें जारी किए थे, जिसके मुताबिक, कोर्ट ने लॉकडाउन के एक महीने के दरमियान, 24 अप्रैल तक, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 593 मामलों की सुनवाई की और 215 मामलों में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की एक प्रेस विज्ञप्ति में इन आकंड़ों को विदेशी अदालतों में हुए कामकाज के आंकड़ों से तुलना करते हुए, कहा गया- "विभिन्न न्यायपालिकाओं के उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट...
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा हैः अमेरिकी वॉचडॉग USCIRF ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा
धार्मिक मुद्दों पर अमेरिकी वॉचडॉग यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ( USCIRF) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति में '2019 में भारी गिरावट' पर चिंता प्रकट की है। बुधवार को जारी वार्षिक रिपोर्ट में संगठन ने भारत को "विशेष चिंता का देश" श्रेणी में रखा है। 2004 के बाद USCIRF पहली बार भारत को 'विशेष चिंता का देश' श्रेणी में रखा है। रिपोर्ट में भारत को बर्मा, चीन, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, सीरिया, ताजिकिस्तान,...
केशवानंद भारती केसः जिसके बाद दुनिया ने संवैधानिक विचारों के लिए भारत की ओर देखा
कनिका हांडा, अंजलि अग्रवाल[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।]विभिन्न कानूनी प्रणालियों से कानूनी सिद्धांतों का आयात नई अवधारणा नहीं है। यह सदियों से होता रहा है। विदेशी अदालतों के फैसले बाध्यकारी नहीं होते, फिर भी प्रेरक शक्ति रूप में उनकी गिनती होती रहती है।1973 में दिया गया भारतीय फैसला, "केशवानंद भारती बनाम...
जस्टिस एचआर खन्नाः जिन्होंने चीफ जस्टिस का पद पाने के बजाय संविधान बचाना जरूरी समझा
स्वप्निल त्रिपाठी [यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] अप्रैल 1976 में, जब भारत में कुख्यात आपातकाल लागू हुआ, न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत की सुप्रीम कोर्ट के एक जज की तारीफ में एक आलेख लिखा। जज की तारीफ कारण एक फैसले में दर्ज उनकी असहमतियां थीं। 'फेडिंग होप इन इंडिया' शीर्षक से प्रकाशित आलेख में जस्टिस एचआर खन्ना...
केशवानंद भारती-2: ऐसा मामला, जिसे हम नहीं जानते मगर जरूर जानना चाहिए
स्वप्निल त्रिपाठी [यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) 4 SCC 225 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना सिद्धांत का निर्धारण किया था, जिसके अनुसार संसद कुछ मूलभूत विशेषताओं को छोड़कर संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। इस फैसले से श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व...
जजों का अधिक्रमणः केशवानंद भारती के फैसले का भयावह अंजाम
स्वप्निल त्रिपाठी[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य [(1973) 4 SCC 225] के फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया। 'मूल संरचना सिद्धांत' के अनुसार संविधान की कुछ मूलभूत विशेषताओं को छोड़कर संसद किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है।...
(केशवानंद भारती केस): प्रोफेसर कॉनराड, जो मूल संरचना सिद्धांत की प्रेरणा थे
स्वप्निल त्रिपाठी[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के मौके पर लिखी जा रही सीरीज़ का हिस्सा है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' निर्धारित किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य [(1973) 4 SCC 225] मामले में दिया गया फैसला यकीनन भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया सबसे महत्वपूर्ण फैसला है। उक्त फैसले में यह निर्धारित किया गया है कि यद्यपि संसद के पास संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने,...


















