वैवाहिक बलात्कार का इतिहास और वर्तमान स्थिति
Lakshita Rajpurohit
24 May 2022 7:59 PM IST
"Truth: Rape does indeed happen between girlfriend and boyfriend, husband and wife. Men who force their girlfriends or wives into having sex are committing rape, period. The laws are blurry, and in some countries marital rape is legal. But it still is rape.'' Patti Feuereisen, Invisible Girls: The Truth About Sexual Abuse
दिल्ली हाईकोर्ट के हाल ही में आये निर्णय से फिर से एक बार वैवाहिक बलात्कार [Marital Rape] का मुद्दा देश के गलियारों में उछला है परंतु इस बार भी निर्णय विभाजित (split judgement) राय पर आधारित है।
"मैरिटल रेप" से आशय पत्नी की सहमति के बगैर उसे यौन संबंध बनाने के लिये विवश करने से है। ऐसे कृत्य अन्यायपूर्ण हैं, परंतु फिर भी महिलाओं को नीचा दिखाने और अपमानित करने के लिए ऐसा असामान्य व्यवहार कई देशों में अपराध नहीं हैं।
• इतिहास-
सर मैथ्यू हेल (1609-1676) द्वारा हिस्ट्री ऑफ द प्लेज ऑफ द क्राउन में लिखा गया कि "पति अपनी वैध पत्नी पर स्वयं द्वारा किए गए बलात्कार का दोषी नहीं हो सकता, क्योंकि उनकी आपसी सहमति और करार के द्वारा पत्नी पति को इस तरीके से खुद को समर्पित करती है कि रिश्ते में सहमति संबंधी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती।"
विवाह और सेक्सुअलिटी के इन विचारों को अधिकांश पश्चिमी देशों में 1960 और 70 के दशक में चुनौती नारीवाद की दूसरी लहर (second wave of feminism) के माध्यम से दी गई थी, जिससे महिला को अपने शरीर से संबंधित सभी मामलों में आत्म निर्णय करने और सहमति वापस लेने का अधिकार प्रदान किया गया। साथ ही इसमें वैवाहिक बलात्कार से सरंक्षण भी दिया गया। 1970 के दशक से पहले विवाह के भीतर बलात्कार के अभियोजन के लिए बहुत कम कानूनी प्रणालियों को अनुमति थी, परंतु धीरे–धीरे जब मुद्दे उठने लगे तो इसका प्रभाव भी अधिक प्रसारित होता गया इसी का परिणाम था कि अधिकांश देशों ने 20वीं सदी के उत्तरार्ध में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया।
आज वर्तमान में विश्व के लगभग 100 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया गया हैं, परंतु दुर्भाग्य से भारत विश्व के उन 36 देशों में से एक है जहां वैवाहिक बलात्कार को आज भी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
हालांकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये आपराधिक कानूनों में कई बड़े संशोधन किये गए हैं, परंतु वैवाहिक बलात्कार का अपराध की श्रेणी में न होना महिलाओं की गरिमा और उनके मानवाधिकारों का अवमूल्यन करता है।
• भारत में वैवाहिक बलात्कार की स्थिति
भारत में वैवाहिक बलात्कार महिलाओं द्वारा अधिक व्यापक रूप से अनुभव किया जाने वाला व्यवहार है। यह महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा और शारीरिक शोषण का एक प्रकार माना जाता रहा है। इसका मुख्य कारण समाज की पितृसत्तात्मक [patriarchy] व्यवस्था है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के NHFS-5 राउंड के अनुसार 35% महिलाओं ने उनके पतियों द्वारा स्वयं पर होने वाली शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक हिंसा को स्वीकार किया है।
कानून में बलात्कार जैसे कृत्य को भारतीय दंड संहिता[ IPC] की धारा 375/376 के अधीन एक अपराध माना गया है, जिसके अनुसार यदि किसी पुरुष द्वारा किसी महिला की सहमति या इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाया जाता है तो वह कार्य बलात्कार हैं। इसके अतिरिक्त इस धारा में कुल 6 श्रेणियों में सहमति संबंधित उपबंध और 2 अपवाद शामिल हैं।
मुख्य बात यह है की इसमें "mens rea" ( व्यक्ति की आपराधिक मनोस्थिति) अभिव्यक्त रूप से उल्लेखित नहीं है। यानी ड्राफ्टर्स ने मात्र सहमति के आधार पर ही इस कार्य को अपराध माना है, व्यक्ति का mens rea हो या ना हो इस अपराध के गठन के लिए आवश्यक नहीं हैं, परंतु फिर भी अन्तिम अपवाद द्वारा इस धारा में पत्नी के साथ उसकी सहमति बिना पति द्वारा स्थापित यौन संबंधों को बलात्कार का दर्जा नहीं दिया गया।
अपवाद 2- अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा यौन संबंध या यौन कृत्य, पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है।
(माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अब पत्नी की आयु 18 वर्ष मानी है। इंडिपेडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2018 मामले में)
इस अपवाद के शब्दांशों को पढ़ कर और भी स्पष्ट हो जाता है कि जब 1860 अंग्रेजों द्वारा यह विधि बनाई गई थी उस समय वैवाहिक बलात्कार को दरकिनार कर दिया गया था, शायद उनका इरादा ऐसे पतियों को सरंक्षण देने का था। हमारे विधितंत्र द्वारा आज भी इसी कोलोनियल लॉ का अनुसरण किया जाता हैं क्योंकि जो बात अपराध ही नहीं है उसका प्रवर्तन [Enforcement] कैसा?
हालांकि कुछ अन्य विधिक प्रावधान है, जिनमें पत्नियों के साथ हो रहे शारीरिक यौन शोषण के विरुद्ध सरंक्षण प्रदान किया गया है जो निम्नलिखित है, जैसे-
1. आईपीसी धारा 498A- पत्नी पति के विरुद्ध क्रूरता जिसमें यौन शोषण भी शामिल है, उसके आधार पर परिवाद दाखिल करवा सकती हैं।
2. आईपीसी धारा 354- के अधीन लज्जा भंग का परिवाद कर सकती हैं। (निमेष भाई भारत भाई देसाई बनाम गुजरात राज्य,2018)
3. आईपीसी धारा 377- प्रकृति विरूद्ध किए कृत्य के लिए पीड़ित पत्नी शिकायत दर्ज़ करवा सकती हैं। [दिलीप पांडे व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य]
4. आईपीसी धारा 376B- पत्नी जो अपने पति से अलग रह रही हैं चाहे सैप्रेशन की डिक्री के अंतर्गत या अन्यथा, उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बलात्कार है तथा इसमें 2 से 7 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
5. व्यक्तिगत कानून (personal Law acts) के अधीन- लैंगिक क्रूरता के आधार पर पत्नी पति से तलाक ले सकती है।
6. घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम- यौन दुर्व्यवहार के आधार पर मजिस्ट्रेट के समक्ष पिटीशन फाइल कर सकती है, परंतु पति को प्रोटेक्शन ऑर्डर के उलंघन पर ही होगी।
उपरोक्त प्रावधानों के तर्ज पर ही विधायिका मैरिटल रेप जैसे कृत्य को अपराध बनाने से स्वयं को रोकती आ रही है। पत्नियां अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को इन प्रावधानों में चुनौती दे सकती हैं परंतु आईपीसी की धारा 375 में नहीं।
• जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध बनाने की अनुशंसा की थी कि इस कानून की समाप्ति से महिलाएं उत्पीड़क पतियों से सुरक्षित होंगी, वैवाहिक बलात्कार से उबरने के लिये आवश्यक सहायता प्राप्त कर सकेंगी और घरेलू हिंसा एवं यौन शोषण से स्वयं की रक्षा में सक्षम होंगी। साथ ही यह कोई नया अपराध नहीं होगा मात्र इसके अपवाद 2 में संशोधन करना होगा, जिससे इसमें पत्नी हो भी समाहित किया जा सकेगा।
• इसके चलते सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा- इसका विवाह संस्था पर विघटनकारी प्रभाव पड़ेगा और निजता के अधिकार का भी उल्लंघन होगा। इसका कानूनी प्रावधानों जैसे धारा 498A IPC और घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, की भांति ही इसका दुरुपयोग होगा।
• न्यायपालिका का पक्ष- कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि यदि पति के रूप में किसी भी पुरुष को 375IPC में राहत दे दी जाये तो यह उस महिला के गरिमापूर्ण जीवन जीने (अनुच्छेद 21) और समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उलंघन होगा। और 375 का अपवाद 2 इन मूल अधिकारों की परिधि पर खरा नहीं उतरता है। इन असमानताओं पर काबू पाना विधायिका का कार्य है क्योंकि पतियों की ऐसी हरकतों से पत्नियों की आत्मा आहत होती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी अपना विभाजित फ़ैसला देते हुए कहा कि जहां तक पति का सहमति के बिना पत्नी के साथ संभोग का प्रश्न है, यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए- जस्टिस राजीव शकधर।
हालांकि, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि धारा 375 का अपवाद 2 संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। यह विवेकपूर्ण अंतर और उचित वर्गीकरण पर आधारित है।
स्पष्ट है कि आगे की राह सुप्रीम कोर्ट के उचित दिशानिर्देशों के प्रकाश में और निर्णय के आधार पर ही तय की जायेगी।
नोट- लेख के संबंध में राय व्यक्तिगत है।