कोर्ट आदेशों के बावजूद भारत में सड़क दुर्घटनाएं क्यों कम नहीं हो रही हैं?

LiveLaw News Network

2 Aug 2022 5:10 AM GMT

  • कोर्ट आदेशों के बावजूद भारत में सड़क दुर्घटनाएं क्यों कम नहीं हो रही हैं?

    सडकों पर बने गड्ढों में गिरने से होने वाली मौतें, कहीं न कहीं हमारी पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती हैं। मौजूदा विकास दर और हाइवे निर्माण के जरिए हम कितनी ही अपनी पीठ थपथपा लें, सड़क दुर्घटनाओं से जमीनी हकीकत खुद ही बयां होती है। बरसात में सड़कें इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि सड़कों का कभी अस्तित्व भी था, यह पता नहीं लगता। एक उदाहरण पर्याप्त होगा। महाराष्ट्र स्थित अंबरनाथ निवासी अंकित थाइवा एक दिन नवी मुंबई के घनसोली में काम करने जा रहा था। उसकी मोटरसाइकिल कांतिबदलापुर रोड पर सड़क के गड्ढे में फंस गई। मोटरसाइकिल पर से नियंत्रण खत्म हो गया। मोटरसाइकिल कल्याण डोंबिवली नगर परिवहन की बस की चपेट में आ गई मनपाड़ा पुलिस के अनुसार अंकित बस के नीचे आ गया और उसकी मौत हो गई।

    किसी भी सड़क पर बने गड्ढे जानलेवा होते हैं। ये गड्ढे केवल एक राज्य की समस्या नहीं, बल्कि देशव्यापी समस्या हैं। गंभीर दुर्घटनाओं की एक वजह ये गड्ढे भी होते हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार गड्ढों में गिरकर सबसे ज्यादा मौतें (3,428) उत्तर प्रदेश में हुई। इसके बाद महाराष्ट्र (1,410), मप्र (1,244), पश्चिम बंगाल (783) का स्थान आता है। केंद्र सरकार का सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय हर वर्ष 'भारत में सड़क दुर्घटनाएं' रिपोर्ट के जरिए गड्ढों के कारण हुई सड़क दुर्घटनाओं का डेटा भी उपलब्ध कराता है। रिपोर्ट के अनुसार गड्ढों के चलते 2019 में 4,775 और 2020 में 3,564 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। इन सड़क दुर्घटनाओं में 2019 में 2,140 और 2020 में 1,471 मौतें हुईं। वर्ष 2020 में गड्ढों के कारण 1.2 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं हुईं। सड़क दुर्घटनाओं में 1.45 फीसदी मौतें हुई।

    अब सवाल यह उठता है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं? दुर्घटनाओं का खमियाजा न केवल पीड़ितों, उनके परिवारों को असामयिक मौतों, चोटों और घटनाओं के रूप में भुगतना पड़ता है, बल्कि पूरे परिवार आय और उनकी अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा था कि दुर्घटना में मारे गए लोगों के कानूनी उत्तराधिकारी प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी के कारण अप्रत्याशित त्रासदी के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। मुम्बई की बात करें तो बीएमसी, पीडब्ल्यूडी और मुम्बई मेट्रोपॉलिटन रीजन डवलपमेंट अथॉरिटी यहां होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। बीएमसी के पास सड़कों के रख-रखाव के लिए बजट है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में दो हजार किमी सड़क की मरम्मत और रख-रखाव के लिए भारी भरकम बजट है। यह धन कहां खर्च हो रहा है?

    सरकारों और अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि सड़कों की गुणवत्ता की जांच करें और निगरानी करें। नगर निकायों के अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे खतरनाक गड्ढों पर नजर रखें और उनको शीघ्रता से ठीक करवाएं। ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन, पार्किंग उल्लंघन और जुर्माना वसूलने की तस्वीरें खींचने में लगे पुलिस अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों को ये गड्ढे दिखाई नहीं देते। सरकारी अधिकारी शहर में गड्ढों के मुद्दों को बड़ी आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं। इसकी कीमत बेकसूर और निरीह लोगों को कई बार अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ती है। पूर्व में, बंबई हाइकोर्ट ने हर वार्ड के सड़क विभाग से जुड़े इंजीनियरों के मोबाइल नंबर, टोल-फ्री टेलीफोन नंबर समाचारपत्रों में प्रकाशित कराने का भी निर्देश दिया था, ताकि लोग कॉल करके गड्ढों से संबंधित शिकायतें दर्ज करा सकें। एक तरफ जहां देश में नए-नए हाइवे का निर्माण हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ गड्ढों की अनदेखी हो रही है। इन जानलेवा गड्ढों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

    (यह लेख बॉम्बे हाईकोर्ट एडवोकेट आभा सिंह ने लिखी है।)

    ट्विटर: @abhasinghlawyer

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