कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

Shadab Salim

20 May 2022 7:19 AM GMT

  • कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

    हम कई दफा छोटे छोटे मामलों में कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड भरने के बारे में सुनते हैं। कॉलोनी मोहल्ले में आसपास के लोगों से किसी तरह का विवाद होने पर या छोटे मोटे धरने प्रदर्शन इत्यादि के मामलों में भी कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड जैसी चीज देखने को मिलती हैं।

    कभी कभी थोड़ी मारपीट हो जाने पर पुलिस मारपीट का मुकदमा दर्ज नहीं करती है, अपितु शिकायतकर्ता की शिकायत पर आरोपी से बांड भरने को कहती है। ऐसा बॉन्ड कलेक्टर की कोर्ट में लिया जाता है।

    हमारे देश में पुलिस का कर्तव्य अपराध होने पर प्रकरण दर्ज करना ही नहीं, बल्कि अपराधों को रोकना भी है। अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ शक्तियां भी दी गई हैं और ये शक्तियां कलेक्टर और एस डी एम को भी उपलब्ध हैं। उन्हें भी यह शक्तियां है कि वह अपराध को रोकने का प्रयास करें।

    थोड़ी बहुत मारपीट के मामलों में शिकायतकर्ता और आरोपी बाद में राजीनामा कर लेते हैं, क्योंकि लोग भी यह चाहते हैं कि बाद में कोई भी किसी तरह का विवाद बाकी नहीं रहे। इस वजह से छोटे मामलों में पुलिस सीधे प्रकरण दर्ज कर मुकदमा नहीं बनाती है, क्योंकि अगर पुलिस मुकदमा बनाएगी और बाद में पीड़ित और आरोपी आपस में राजीनामा कर लेंगे तो सरकार का धन भी बरबाद होगा और पुलिस का समय भी। इस लिहाज से पुलिस छोटे मामलों में सीधे मुकदमा दर्ज करने से गुरेज करती है।

    कोई भी अपराध होने पर पुलिस भविष्य के लिए अपराध रोकने का प्रयास करती है। वह पीड़ित और आरोपी को समझाती है और आरोपी से कलेक्टर के समक्ष उपस्थित होकर बॉन्ड भरकर यह कहने को कहते हैं कि एक तय समय तक वह किसी भी तरह का कोई अपराध नहीं करेगा और अगर ऐसा अपराध करेगा तो उसे जुर्माना भरना होगा।

    पुलिस एक इस्तगासा आवेदन एस डी एम की कोर्ट में प्रस्तुत करती है और वह एस डी एम को कहती है कि इस व्यक्ति को बॉन्ड भरने के लिए नोटिस जारी किया जाए। ऐसा नोटिस एस डी एम कोर्ट से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 के तहत जारी किया जाता है। इस नोटिस में एस डी एम साहब आरोपी व्यक्ति को एक बॉन्ड भरने के लिए कहते हैं।

    ऐसा नोटिस मिलने के बाद अगर आरोपी चाहे तो एस डी एम को यह कह सकता है कि उसके खिलाफ पुलिस द्वारा झूठी शिकायत की गई है और उसने किसी तरह का कोई अपराध नहीं किया है और भविष्य में भी कोई अपराध नहीं करेगा और उससे किसी भी तरह का कोई बॉन्ड लिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आरोपी के ऐसे अभिवचन पर कोर्ट जांच करती है और पुलिस से सबूत मांगती है कि वह बताए कि आरोपी से बॉन्ड लिया जाना क्यों जरूरी है।

    अगर शिकायत झूठी पाई जाती है तो कोर्ट आरोपी से किसी तरह का बॉन्ड नहीं लेती है, लेकिन अगर आरोपी बॉन्ड भरने के लिए तैयार हो जाए तो अदालत फिर एक कागज पर उससे यह लिखवा कर लेती है कि अगर वह एक निश्चित समय के भीतर कोई अपराध करता है तो एक निश्चित धनराशि उससे जब्त की जा सकती है।

    ऐसे बॉन्ड में अमूमन छः महीने या एक साल की समयावधि होती है और धनराशि दस हज़ार से पचास हज़ार रुपए तक तय की जाती है। अगर अदालत चाहे तो आरोपी से किसी तरह का कोई जमानतदार भी मांग सकती है, ऐसा जमानतदार अपनी ओर से आरोपी की जमानत लेता है और वह यह ग्यारंटी लेता है कि अगर आरोपी ने किसी तरह का कोई अपराध किया तो उस जमानतदार से ऐसी धनराशि ज़ब्त की जा सकती है।

    हालांकि ऐसा बांड आरोपी को सरलता से नहीं भरना चाहिए क्योंकि इससे एक रिकॉर्ड बन जाता है। बाद में फिर आरोपी को एक बड़े अपराधी के रूप में भी पेश किया जा सकता है। अगर शिकायत झूठी की गई है तो आरोपी को कोर्ट से यह कहना चाहिए कि वह उचित जांच करे।

    अगर जांच में यह तय हो गया कि शिकायत झूठी थी तब किसी तरह का कोई बॉन्ड नहीं भरना होगा। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 116 के तहत बॉन्ड भरना ही होता है।

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