न्यायालय दोषी कर्मचारी के विरुद्ध आरोपों की सत्यता का निर्णय करने के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
Shahadat
14 March 2025 12:30 PM

राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में जारी आरोप-पत्र के विरुद्ध सामान्यतः रिट याचिका तब तक नहीं दायर की जा सकती, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि आरोप-पत्र ऐसे प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही आरंभ करने के लिए सक्षम नहीं है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा आरोप-पत्र में हल्के या नियमित तरीके से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता तथा प्रारंभिक चरण में आरोप-पत्र को निरस्त करने की मांग करने के बजाय दोषी कर्मचारी को अनुशासनात्मक प्राधिकारी के समक्ष जवाब प्रस्तुत करना चाहिए तथा कार्यवाही के समापन की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
न्यायालय याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें प्रारंभिक जांच के पश्चात याचिकाकर्ता को एक आरोप-पत्र सौंपा गया। इसमें शिकायतकर्ता द्वारा दायर शिकायत में जांच करने में उसकी ओर से लापरवाही का आरोप लगाया गया। इस आरोप-पत्र को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, जिसमें आरोपों के निराधार होने के आधार पर इसे निरस्त करने की मांग की गई।
दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,
"इस सवाल पर कि याचिकाकर्ता की ओर से लापरवाही हुई या नहीं, याचिकाकर्ता अपना जवाब दाखिल करके तथा अपने बचाव के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करके अपना बचाव कर सकता है। किसी भी मामले में यह न्यायालय आरोपों की सत्यता का निर्णय करने के लिए जांच अधिकारी या अनुशासनात्मक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकता।"
न्यायालय ने उड़ीसा राज्य बनाम संग्राम केशरी मिश्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर प्रकाश डाला गया कि जांच पूरी होने से पहले सामान्यतः, आरोप-पत्र को इस आधार पर खारिज नहीं किया जाता कि आरोप गलत है, क्योंकि आरोप की सत्यता का पता लगाना अनुशासनात्मक प्राधिकारी का कार्य है।
तदनुसार, याचिका इस स्वतंत्रता के साथ खारिज कर दी गई कि याचिकाकर्ता जांच अधिकारी/अनुशासनात्मक प्राधिकारी के समक्ष याचिका में उठाए गए अपने बचाव को उठा सकता है।
केस टाइटल: जगदीश प्रसाद बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।