हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-12-22 04:30 GMT
High Courts

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (16 दिसंबर, 2024 से 20 दिसंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन यदि 5 वर्ष बाद किया जाता है तो उस पर निर्णय राज्य करेगा, नियुक्ति प्राधिकारी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन 5 वर्ष की अनुमेय सीमा से परे किया जाता है, तो मामले पर विचार करना नियुक्ति प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जस्टिस जे.जे. मुनीर ने माना कि उत्तर प्रदेश सेवा में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियम, 1974 के अनुसार आवेदन राज्य के समक्ष रखा जाना चाहिए, जो उस पर निर्णय लेगा।

न्यायालय ने कहा, “नियम 1974 के नियम 5 के प्रावधान को पढ़ने से प्रासंगिक और भौतिक तथ्यों के बारे में कानून के अलावा, जिसके आधार पर पांच वर्ष से अधिक की देरी को माफ करने की शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए, यह पता चलता है कि पांच वर्ष से अधिक की देरी के लिए अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने में देरी को माफ करने की शक्ति राज्य सरकार में निहित है, न कि नियुक्ति प्राधिकारी में।”

केस टाइटल: काजल कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - ए संख्या 7793/2024]

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंटरफेथ कपल को दी सुरक्षा, कहा- स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 के तहत मुस्लिम लड़के के हिंदू लड़की से शादी करने पर कोई रोक नहीं

एक अंतरधार्मिक जोड़े की सहायता के लिए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि विवाह अधिकारी के समक्ष एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़के की शादी की सुविधा प्रदान की जाए। ऐसा करते हुए, अदालत ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 4 के तहत अंतर-धार्मिक विवाह पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

चीफ़ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा, "पर्सनल लॉ में निषेध है कि मुस्लिम कानून के तहत मुस्लिम लड़का हिंदू लड़की से शादी नहीं कर सकता। हालांकि, अगर शादी 1954 के अधिनियम की धारा 4 के तहत होती है तो कोई रोक नहीं है।

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यति नरसिंहानंद X पोस्ट मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऑल्ट-न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर 6 जनवरी तक रोक लगाई। यह गिरफ्तारी यति नरसिंहानंद के कथित भड़काऊ भाषण के संबंध में X (पूर्व में ट्विटर) पर उनके पोस्ट को लेकर दर्ज FIR के संबंध में की गई थी।

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि जुबैर कोई खूंखार अपराधी नहीं है। साथ ही अगली सुनवाई (6 जनवरी) तक देश छोड़ने पर रोक लगाते हुए पुलिस के साथ जांच में सहयोग करने की शर्त पर उसे राहत प्रदान की।

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भूमि संरक्षित वन के रूप में वर्गीकृत होने पर स्वामित्व के बावजूद पेड़ों को काटने का अधिकार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति भारतीय वन अधिनियम के तहत संरक्षित वन के रूप में वर्गीकृत भूमि का वैध स्वामी है तो भी वह ऐसी भूमि पर पेड़ों को नहीं काट सकता।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "यदि यह मान लिया जाए कि वादी वाद भूमि के स्वामी हैं तो भी उन्हें पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा करने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जबकि इसके संरक्षण के लिए भारतीय वन अधिनियम, 1927 में धारा 35 सुप्रा को शामिल किया गया।"

केस टाइटल: गज्जन सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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07 फरवरी को होंगे सभी बार एसोसिएशनों के चुनाव : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया है कि राष्ट्रीय राजधानी में सभी बार एसोसिएशनों के चुनाव 07 फरवरी, 2025 को होंगे। जस्टिस यशवंत वर्मा, जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस सी हरि शंकर की फुल बेंच ने वकीलों द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रस्तुतीकरणों पर विचार करने के साथ-साथ चुनाव शीघ्रता से कराने के लिए उठाए जाने वाले विभिन्न प्रारंभिक कदमों को ध्यान में रखते हुए तिथि तय की।

न्यायालय ने आदेश दिया, "दिल्ली में सभी बार एसोसिएशनों के चुनाव अब 07 फरवरी 2025 को होंगे, बशर्ते कि उस प्रक्रिया में कोई कानूनी बाधा या बाधा उत्पन्न न हो।"

केस टाइटल: नितिन कुमार एडवोकेट बनाम बार काउंसिल ऑफ दिल्ली एवं अन्य तथा अन्य संबंधित मामले

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मुस्लिम कानून | अदालत का यह दायित्व कि आपसी सहमति और समझौते की स्वैच्छिकता का पता लगाने के बाद मुबारत द्वारा तलाक का समर्थन करे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मुस्लिम जोड़े को तलाक का आदेश दिया, जिन्होंने मुबारत के माध्यम से आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया था। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट के असबी के.एन. बनाम हाशिम एम.यू. के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि जहां मुबारत की पारस्परिक प्रकृति की प्रामाणिकता सत्यापित हो गई है, वहां न्यायालयों को आगे जांच नहीं करनी चाहिए और केवल तलाक को मंजूरी देनी चाहिए।

केस टाइटल: अरशद हुसैन बनाम शाहनीला निशात

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बिना मेडिकल एक्सपर्ट की राय के चोट की प्रकृति के बारे में सामान्य गवाह की मौखिक गवाही हत्या से मौत साबित करने के लिए अपर्याप्त: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के आरोप में तीन महिलाओं को बरी करने का फैसला बरकरार रखा, जबकि फैसला सुनाया कि मृतक को लगी चोट की प्रकृति के बारे में सामान्य गवाहों की मौखिक गवाही (मेडिकल एक्सपर्ट की पुष्टि के बिना) हत्या से मौत साबित करने के लिए अपर्याप्त है।

जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस जितेंद्र कुमार की खंडपीठ ने कहा, "कथित हमले के कारण हत्या से मौत साबित करने के लिए सामान्य गवाहों के मौखिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं। केवल मेडिकल साइंस के एक्सपर्ट गवाह ही चोट की प्रकृति और मृतक की मौत ऐसी चोट के कारण हुई थी या नहीं, इस बारे में राय दे सकते हैं। लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं है। इसलिए अभियोजन पक्ष कथित चोट के कारण हत्या से मौत को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।"

केस टाइटल: अभिषेक कृष्ण गुप्ता बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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कथित घटना से इनकार करने वाले गवाहों के बयान के आधार पर बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ POCSO केस रद्द नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को प्रथम दृष्टया अपना मत व्यक्त किया कि धारा 161 (IO के समक्ष) के तहत दर्ज गवाहों के बयानों के आधार पर पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ दर्ज POCSO केस रद्द करना संभव नहीं है, जिन्होंने कथित घटना के बारे में पीड़िता के विपरीत राय दी।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा, "धारा 161 और धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों के आधार पर कार्यवाही रद्द करने का मेरा प्रथम दृष्टया मत है। मुझे एक भी ऐसा निर्णय दिखाइए, जिसमें धारा 161 और धारा 164 के तहत दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए कार्यवाही रद्द की जा सके।"

केस टाइटल: बी एस येदियुरप्पा और आपराधिक जांच विभाग

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S.187 BNSS | 10 वर्ष तक के कारावास के दंडनीय अपराधों के लिए पुलिस हिरासत पहले चालीस दिनों के भीतर होनी चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 187 के अनुसार, दस वर्ष तक के कारावास के दंडनीय अपराधों के मामलों में 15 दिन की पुलिस हिरासत पहले चालीस दिनों के भीतर मांगी जानी चाहिए।

इसने स्पष्ट किया कि धारा 187 BNSS में प्रयुक्त शब्दावली "दस वर्ष या उससे अधिक" के लिए दंडनीय अपराध है, यह स्पष्ट करते हुए कि 10 वर्ष या उससे अधिक का अर्थ होगा कि दण्ड की सीमा 10 वर्ष है, न कि 10 वर्ष तक की सजा। न्यायालय ने कहा कि यदि दण्ड की अवधि 1-10 वर्ष के बीच है तो धारा 187(3) BNSS के तहत पुलिस हिरासत के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता, क्योंकि 10 वर्ष तक के दंडनीय अपराधों की जांच 60 दिनों में पूरी होनी चाहिए।

केस टाइटल: कर्नाटक राज्य और कलंदर शफी और अन्य

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ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी पर नियोक्ता को केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार 10% ब्याज देना होगा : झारखंड हाईकोर्ट

जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की एकल पीठ ने माना कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 7 (3-ए) के अनुरूप केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, यदि नियोक्ता ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी करते हैं तो उन्हें 10% की दर से ब्याज देना होगा।

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सऊदी अरब में जन्मे "रोहिंग्या शरणार्थी" को सजा पूरी होने के बावजूद जेल में बंद रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

सऊदी अरब में जन्मे और रोहिंग्या शरणार्थी होने का दावा करने वाले व्यक्ति के मामले पर विचार करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने कहा कि कथित तौर पर विदेशी पासपोर्ट रखने के लिए उसकी सजा पूरी होने के बाद शहर की सेंट्रल जेल में उसे हिरासत में रखना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

इसने आगे निर्देश दिया कि जब तक व्यक्ति की राष्ट्रीयता पर निर्णय नहीं हो जाता और उसे उसके देश वापस नहीं भेज दिया जाता, तब तक उसे असम के एक हिरासत केंद्र में रखा जाए।

केस टाइटल: अहमद अलमक्की उर्फ अहमद बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, रिट याचिका नंबर 1818/2023

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अपग्रेड किए गए पदों पर पेंशन लाभ रिटायरमेंट के बाद भी दिए जा सकते हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने रिटायर पुलिस महानिरीक्षक की पेंशन को अपग्रेड किए गए पुलिस महानिदेशक पद के वेतनमान के आधार पर संशोधित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी पद से समय से पहले रिटायरमेंट का विकल्प चुनता है और उसके बाद उक्त पद को अपग्रेड किया जाता है तो भी वह नए अपग्रेड किए गए पद पर दिए जाने वाले पेंशन लाभों का हकदार होगा।

टाइटल: बी.एस. दानेवालिया (अब मृत) एल.आर. बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य के माध्यम से

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"प्यार किसी बाधा को नहीं मानता": माया एंजेलो का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिंदू लड़की को मुस्लिम लड़के के साथ रहने की अनुमति दी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक हिंदू लड़की को मुस्लिम लड़के के साथ 'लिव-इन रिलेशनशिप' जारी रखने की अनुमति देते हुए अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता माया एंजेलो को उद्धृत करते हुए कहा कि प्यार किसी भी बाधा को नहीं पहचानता। 13 दिसंबर को पारित आदेश में जस्टिस भारती डांगरे और ज‌स्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने लड़की को रिहा करने का आदेश दिया और कहा कि वह एक वयस्क है और उसे अपनी 'पसंद के अधिकार' का प्रयोग करने का अधिकार है।

केस टाइटल: एबीसी बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक रिट याचिका (स्टाम्प) 24433/2024)

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हिंदू उत्तराधिकार कानून पुनर्विवाह के बाद मृत पति की संपत्ति का वारिस होने पर विधवाओं को अयोग्य नहीं ठहराता: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पुनर्विवाह के बाद विधवा को अपने मृत पति की संपत्ति में हिस्सा लेने या उसका उत्तराधिकारी बनने से रोकता हो।

जस्टिस आर सुब्रमण्यम और जस्टिस सी कुमारप्पन की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि हिंदू पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 पुनर्विवाह पर एक विधवा को विरासत में संपत्ति से अयोग्य घोषित करता है, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने के बाद इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया था। खंडपीठ ने आगे कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, केवल पूर्व-मृत बेटे की विधवा या पूर्व-मृतक बेटे के पूर्व मृतक बेटे की विधवा या भाई की विधवा को पुनर्विवाह पर अयोग्य ठहराया गया था। हालांकि, 2005 के संशोधन के माध्यम से, इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया गया था।

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NI Act | कॉलेज को कंपनी के बराबर नहीं माना जा सकता, प्रिंसिपल चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्तरदायी नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act (NI Act)) की धारा 138 के तहत शुरू की गई कार्यवाही रद्द की, क्योंकि उन्होंने चेक पर हस्ताक्षर किए, जिसे अपर्याप्त निधि के कारण वापस कर दिया गया।

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने माना कि प्रिंसिपल ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में चेक पर हस्ताक्षर नहीं किए और चूंकि कॉलेज को कंपनी के बराबर नहीं माना जा सकता, इसलिए अधिनियम की धारा 141 के तहत परक्राम्य दायित्व वर्तमान मामले में प्रभावी नहीं होगा।

केस टाइटल: के. सुंदरी बनाम सी. ए. आर. पी. मारी

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प्राइवेट कॉलेज चलाने वाली चैरिटेबल सोसायटी के सदस्य 'लोक सेवक': केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोपूर्त ने कहा कि जो प्राधिकरण एक निजी फार्मेसी कॉलेज में प्रवेश देने, फीस लेने आदि का फैसला कर सकता है, वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत परिभाषित एक 'लोक सेवक' है। अदालत कैपिटेशन राशि के संग्रह के संबंध में एक मुद्दे से निपट रही थी।

न्यायालय ने कहा कि संस्थान में प्रवेश और फीस का निर्धारण केरल मेडिकल (निजी चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश का विनियमन और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 के प्रावधान द्वारा शासित है। जस्टिस के. बाबू ने कहा कि चूंकि अधिकारी मौजूदा कानूनों के दायित्व के तहत 'राज्य कार्य' का निर्वहन कर रहे हैं, इसलिए वे सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं और लोक सेवक हैं।

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धारा 175 बीएनएसएस | मजिस्ट्रेट 'रबर स्टाम्प' की तरह एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकते, खासकर पारिवारिक विवादों से उत्पन्न शिकायतों में: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने धारा 175(3), बीएनएसएस के तहत एक शिकायत के आधार पर सीजेएम के निर्देश पर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसे “रबर-स्टैम्प निर्णय लेना” कहा और सीजेएम की ओर से पूर्ण न्यायिक निरीक्षण का अवलोकन किया।

यह माना गया कि आरोपी के खिलाफ मामले के प्रथम दृष्टया अस्तित्व के बारे में स्वतंत्र निर्धारण करने के लिए कोई न्यायिक दिमाग नहीं लगाया गया था। बीएनएसएस की धारा 175(3) (धारा 156(3), सीआरपीसी के अनुरूप) एक मजिस्ट्रेट को एक सूचना प्राप्त होने पर पुलिस अधिकारी द्वारा जांच का आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है जो एक संज्ञेय अपराध के होने का खुलासा करती है।

केस टाइटल : गोरधन लाल सोनी एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

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अनुकंपा रोजगार प्रदान करते समय अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि अनुकंपा रोजगार प्रदान करने के मामलों में बच्चे के जन्म के स्रोत पर विचार करना और अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के साथ भेदभाव करना निंदनीय है।

जस्टिस अनन्या बंदोपाध्याय ने कहा कि “परिवार में कमाने वाले की मृत्यु की स्थिति में उत्पन्न वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिए अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का उद्देश्य अचानक संकट और दरिद्रता को कम करने के लिए पर्याप्तता का साधन सुनिश्चित करता है, जिसे एक परिपत्र के आधार पर अस्पष्ट और अनुचित रूप से अस्वीकार नहीं किया जा सकता है जो स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है कि बच्चे के वंश के आधार पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए उसके अधिकार का न्याय किया जाए।"

टाइटल: लछमीना देवी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य।

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बाद में लागू किया जा रहा POCSO Act टकराव की स्थिति में SC/ST Act पर प्रभावी होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया कि यदि POCSO Act और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के प्रावधानों के बीच टकराव होता है तो POCSO Act के प्रावधान लागू होंगे, क्योंकि इसे बाद में लागू किया गया था। इसने यह भी पुष्टि की कि दो विशेष कानूनों के प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में दायर की गई नियमित जमानत याचिका हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई योग्य है।

केस टाइटल: XXXX बनाम हरियाणा राज्य

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