हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2022-02-20 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 फरवरी, 2022 से लेकर 18 फरवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

धार्मिक संस्थानों की संपत्तियों को गलत दावों से बचाना, उनकी रक्षा करना अदालतों का कर्तव्य: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने बुधवार को कहा कि धार्मिक और चैरिटेबल संस्थानों की संपत्तियों को गलत दावों या हेराफेरी से बचाना और उनकी रक्षा करना अदालतों का कर्तव्य है।

न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड द्वारा दिल्ली के एक ट्रस्ट को पंबा क्षेत्र में नौ दिवसीय 'रामकथा' पाठ कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति वापस ले ली।

प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (केरल) 88

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मृत व्यक्ति के खिलाफ आयकर अधिनियम, 1861 की धारा 148 के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस अमान्यः दिल्‍ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मृत व्यक्ति के खिलाफ आयकर अधिनियम, 1861 की धारा 148 के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस अमान्य (null and void) है।

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने सविता कपिला बनाम सहायक आयकर आयुक्त के मामले पर एक मृत व्यक्ति के खिलाफ नोटिस और परिणामी कार्यवाही की वैधता के सवाल का जवाब देने के लिए भरोसा किया।

केस शीर्षक: धर्मराज बनाम आयकर अधिकारी

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जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 12 के तहत जुवेनाइल को जमानत देते समय जमानती और गैर-जमानती अपराध में कोई अंतर नहीं: उत्तराखंड हाईकोर्ट

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (JJ Act), 2015 की धारा 12 के आलोक में उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो स्पष्ट रूप से एक बच्चा है, जमानतदार पेश करने की शर्त या बिना शर्त के जमानत पर रिहा होने का हकदार है या इसको एक परिवीक्षा अधिकारी की देखरेख में या किसी योग्य व्यक्ति की देखरेख में रखा जाएगा। न्यायमूर्ति आर.सी. खुल्बे ने कहा कि एक किशोर के संबंध में जमानती या गैर-जमानती अपराध के बीच का अंतर समाप्त कर दिया गया है।

केस का शीर्षक: अयान अली बनाम उत्तराखंड राज्य

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एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप लगाने के लिए अभियुक्तों को पीड़ित की जाति की जानकारी होना आवश्यकः गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए, यह स्थापित किया जाना चाहिए कि आरोपी को पीड़ित की जाति की जानकारी थी।

जस्टिस बीएन कर‌िया ने कहा, "यदि हम अधिनियम की धारा 3(5) (ए) का उल्लेख करते हैं तो आरोपी को यह जानकारी होना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है। यह आरोप कही भी नहीं लगा है कि शिकायतकर्ता ने कहा कि आरोप‌ियों को यह जानकारी थी कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है।"

केस शीर्षक: राजेशभाई जेसिंहभाई दायरा बनाम गुजरात राज्य

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पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य नौजवानों के बीच के रोमांटिक संबंधों को अपने दायरे में लाना नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पोक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट) आरोपी को जमानत दे दी। उक्त आरोपी अपनी प्रेमिका 14 वर्षीय लड़की (पीड़िता) को लेकर कथित रूप से भाग गया था। कोर्ट ने कहा कि वे दोनों घर से भाग गए थे और एक मंदिर में शादी कर ली। लगभग दो साल तक साथ रहे। इस दौरान लड़की ने एक बच्चे को जन्म भी दिया।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि बच्चे को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित करना बेहद कठोर और अमानवीय होगा। आरोपी और नाबालिग पीड़ित दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं और उन्होंने शादी करने का फैसला किया।

केस टाइटल - अतुल मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और तीन अन्य

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पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दोषी ठहराने योग्य कानूनी सबूत के अभाव में दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में यह देखते हुए एक आपराधिक दोषमुक्ति अपील को खारिज कर दिया कि कानूनी सबूत के अभाव में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के साक्ष्य को अभियुक्तों की दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता है।

जस्टिस मोहन लाल और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने कहा, "एक आपराधिक मुकदमे में, यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि केवल अनुमान या संदेह कानूनी सबूत की जगह नहीं लेते हैं। संदेह, चाहे कितना भी मजबूत या संभावित हो, अपराध करने के लिए अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक कानूनी सबूत का विकल्प नहीं है। आपराधिक मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए संदेह/अनुमानों पर भरोसा करना न्याय का मजाक होगा। अभियोजन पक्ष के गवाह से, यह स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं होता है कि मृतक की हत्या अभियुक्तों द्वारा की गई थी।"

केस शीर्षक: जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ तित्ती

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जन्म और मृत्यु के देरी से हुए पंजीकरण की शुद्धता को सत्यापित करने का अधिकार केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के पास जन्म और मृत्यु के देरी से किए गए पंजीकरण, ऐसे पंजीकरण जिन्हें घटना के एक वर्ष के अंदर नहीं किया गया है, की शुद्धता को सत्यापित करने का अधिकार है। इस संबंध में कार्यपालक दंडाधिकारी को कोई अधिकार नहीं है।

केस शीर्षक: कल्लू खान बनाम एमपी और अन्य राज्य।

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पत्नी को किडनी डोनेट करने के लिए पति से एनओसी की जरूरत नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में कहा कि याचिकाकर्ता/मां द्वारा अपने बीमार बेटे को किडनी डोनेट करने के लिए प्रतिवादी/अस्पताल द्वारा उसके पति द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी न करने के आधार पर आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रहे थे, जो अस्पताल से संचार से व्यथित थी। अस्पताल ने किडनी ट्रांसप्लांट के उसके अनुरोध को खारिज कर दिया था।

केस का शीर्षक: मीना देवी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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अगर ट्रायल कोर्ट का नजरिया 'विकृत' पाया जाता है तो बरी के खिलाफ अपील में हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा कि हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित फैसले और बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करना चाहिए, अगर यह निष्कर्ष निकलता है कि ट्रायल कोर्ट का फैसला विकृत या अन्यथा अस्थिर था।

जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, मथुरा द्वारा पारित 2017 के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज करते हुए 3 व्यक्तियों को आईपीसी की धारा 302 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत बरी करते हुए उक्त टिप्पणी की।

केस शीर्षक - वीरेंद्र सिंह बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य

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यदि आरोपी का वकील पेश होने में विफल रहता है तो ट्रायल कोर्ट कानूनी सहायता वकील नियुक्त करने के लिए बाध्य : कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि हिरासत में लिए गए आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाला वकील अदालत के सामने पेश होने में विफल रहता है, तो ट्रायल कोर्ट (निचली अदालत) आरोपी के बचाव के लिए कानूनी सहायता वकील नियुक्त करने के लिए बाध्य है।

जस्टिस के एस मुदगल की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "भारत के संविधान का अनुच्छेद 39ए राज्य को आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के आधार पर न्याय तक पहुंच से वंचित नहीं करने का कर्तव्य देता है। संविधान के अनुच्छेद 39ए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम लागू किया गया है। उक्त अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय स्तर से तालुका स्तर तक कानूनी सेवा प्राधिकरणों का गठन किया जाता है। जिला अदालतों में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और अधिवक्ताओं का एक पैनल होता है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 304 के तहत असहनीय को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए विचार किया गया है।"

केस: सोमशेखर @ सोमा बनाम कर्नाटक राज्य

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पक्षकारों की सहमति से फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किसी भी आदेश में अपील सुनवाई योग्य नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने हाल ही में कहा कि फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19(2), सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 96(3) के तहत प्रावधान के समान है, जो पक्षकारों की सहमति से पारित डिक्री की अपील को प्रतिबंधित करती है।

पीठ ने कहा गया है कि यह बार धारा 19(2) के तहत और विस्तार के साथ काम करता है। इसके अनुसार पक्षकारों की सहमति से फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किसी भी आदेश में कोई अपील नहीं होगी।

केस का शीर्षक: प्रियंका देवी बनाम सतीश कुमार

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पीडब्ल्यूडी श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों को जाति के आधार पर उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति अपने आप में एक श्रेणी का गठन करते हैं। जाति, पंथ, धर्म आदि जैसे अन्य विचारों के आधार पर उस श्रेणी के सदस्यों के बीच कोई और वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।

दरअसल, याचिकाकर्ता को केवल इस तथ्य के आधार पर असम सरकार द्वारा आयोजित भर्ती से बाहर रखा गया था कि वह शारीरिक रूप से विकलांग सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार है।

केस का शीर्षक: सैदुर रहमान बनाम असम राज्य एंड अन्य।

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किसी व्यक्ति की पत्नी और बच्चे रोजगार में हों तो भी उसे अनुकंपा भत्ते के लिए विशेष विचार से वंचित नहीं किया जा सकताः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसला में कहा कि एक सरकारी कर्मचारी जिसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, उसे केवल इस कारण अनुकंपा भत्ते के लिए विशेष विचार से वंचित नहीं किया जा सकता है कि उसकी पत्नी और बच्चे कार्यरत हैं।

एक रिट याचिका की अनुमति देते हुए, जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि हालांकि सेवा से हटाए गए सरकारी कर्मचारी पेंशन/ग्रेच्युटी के हकदार नहीं हैं, सक्षम प्राधिकारी विशेष विचार के योग्य मामलों में अनुकंपा भत्ता स्वीकृत कर सकते हैं।

केस शीर्षक: एस सुरेंद्रन बनाम महानिदेशक, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और अन्य।

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मोटर दुर्घटना- गवाह नियोक्ता की अनुमति के बिना पेश हुआ, केवल इस आधार पर गवाही संदिग्ध नहीं हो सकतीः झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम, 1989 के तहत मुआवजे में वृद्धि संबंधित एक मामले में एक गवाह- उस कंपनी का महाप्रबंधक जहां मृतक काम किया करता था, की गवाही को केवल इसलिए खारिज़ करने से इनकार कर दिया कि वह विभाग प्रमुख की अनुमति के बिना पेश हुआ था।

जस्टिस गौतम चौधरी ने कहा कि निजी प्रतिष्ठान में नियम और प्रोटोकॉल सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों या सरकारी विभाग से काफी अलग होते हैं। पीठ ने कहा कि एक गवाह की सत्यता पर केवल इसलिए प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है कि उसने ट्रिब्यूनल में पेश होने से पहले संबंधित विभागीय प्रमुख से औपचारिक अनुमति नहीं ली थी।

केस शीर्षक: श्रीमती विभा सिन्हा और अन्य बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य।

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दुर्घटनाग्रस्त चालक के पास नकली ड्राइविंग लाइसेंस था, केवल इस आधार पर बीमाकर्ता को देयता से मुक्त नहीं किया जा सकताः इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना डेथ क्लेम के एक मामले हाल ही में कहा कि बीमा कंपनी को केवल इस आधार पर अपनी देयता से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वाहन चलाने वाले व्यक्ति, जिसके कारण मृतक के साथ दुर्घटना हुई थी, उसके पास उस समय विधिवत लाइसेंस नहीं था।

यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेहरू और अन्य में 2003 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि नियोक्ता से यह उम्मीद नहीं होती कि वह रोजगार के समय जारीकर्ता प्राधिकरण से ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता सत्यापित करेगा।

केस शीर्षकः नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम केवल कृष्ण अरोड़ा और अन्य

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[NDPS Act Section 37] गांजा रखने पर नियमित जमानत दी जा सकती है अगर यह वाणिज्यिक मात्रा नहीं है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आरोपी को नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act), 1985 के तहत नियमित जमानत दी। कोर्ट ने देखा कि धारा 37 के तहत निर्धारित जमानत की कठोरता उस स्थिति में लागू नहीं होती है जब जब्ती वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित नहीं है। याचिकाकर्ता/अभियुक्त को नियमित जमानत की मांग करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 और 439 के तहत याचिका दायर की गई थी, जिसके पास कथित रूप से 4.3 किलोग्राम गांजा मिला था।

केस का शीर्षक: बिक्का पार्वती बनाम राज्य लोक अभियोजक द्वारा प्रतिनिधित्व

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जब समान हितों वाले कई लोग याचिका दायर करते हैं तो कोर्ट फीस अलग-अलग देनी होगी: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि समान हित (Similar Interests) वाले कई व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका में एक ही कोर्ट फीस चुकाना उचित है। हालांकि, जब हित सिर्फ समान होते हैं, लेकिन सामान्य (Common Interest) नहीं होते हैं तो अलग से कोर्ट फीस चुकानी पड़ती है।

केस शीर्षक: बिनोद कुमार और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

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सेक्‍शन 163ए एमवीए के तहत मोटर वाहन का उपयोग स्‍थापित करना ही आवश्यक, यह साबित करने की जरूरत नहीं कि कोई और लापरवाही से गाड़ी चला रहा था: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने य‌ह पुष्टि करते हुए कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163ए के तहत यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि कोई अन्य व्यक्ति लापरवाही से वाहन चला रहा था, जिसके कारण पीड़ित की मृत्यु हुई, मृतक के परिवार को मुआवजे देना का दाय‌ित्व बीमा कंपनी पर लगाया है।

जस्टिस संदीप एन भट्ट की खंडपीठ ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के फैसले से असंतुष्ट अपीलकर्ताओं द्वारा एमवी एक्ट की धारा 173 के तहत दायर पहली अपील के संबंध में यह आदेश दिया।

केस शीर्षक: सोनालबेन भानाभाई तड़वी-मामा के माध्यम से नाबालिग और 2 अन्य बनाम मधुबेन भगुभाई तड़वी और एक अन्य

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केवल यह तथ्य कि एफआईआर प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई, धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द करने का आधार नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि केवल यह तथ्य कि आरोपी के खिलाफ एफआईआर प्रतिवाद (counterblast) के रूप में दर्ज की गई थी, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। जांच के बाद ही यह पता किया जा सकता है।

जस्टिस चीकाती मानवेंद्रनाथ राय ने कहा, "आरोप झूठे हैं या नहीं और रिपोर्ट वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट के प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई है या नहीं, यह जांच के दरमियान जांच अधिकारी द्वारा पता लगाए जाने का विषय है। इसलिए, इस स्तर पर एफआईआर को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत इस न्यायालय के हस्तक्षेप का वैध कानूनी आधार नहीं हैं।"

केस शीर्षक: श्रीमती एच मल्लेश्वरम्मा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य।

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विभागीय जांच के बिना, एफआईआर को संदर्भित कर दिया गया बर्खास्तगी आदेश दोषपूर्णः गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि पूर्ण विभागीय जांच किए बिना कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर और मामला दर्ज करने का संदर्भ देकर दिए गए बर्खास्तगी के आदेश का दोषपूर्ण होना तय है। जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका पर यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त‌ करने के लिए किए गए संचार को चुनौती दी गई थी। बेंच ने संचार को रद्द कर दिया।

केस शीर्षक: मीनाक्षीबेन लक्ष्मणभाई परलिया बनाम गुजरात राज्य

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बच्‍चों का गवाह के रूप में परीक्षण नहीं करना अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं है, जबकि वयस्क गवाह उपलब्ध हैं: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसला में कहा कि बच्चों को अदालत में नहीं बुलाया जा सकता है और जब तक बहुत जरूरी नहीं है और मामले को साबित करने के लिए अन्य गवाह नहीं है, तब तक उन्हें गवाह के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, कि जब वयस्क गवाह उपलब्ध हों तो बच्चों का परीक्षण नहीं करना अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं है।

जस्टिस जी राधा रानी ने यह टिप्पणी निचली अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई के दरमियान की, जिसमें आईपीसी की धारा 448 (घर में घुसना), 354 (दुष्कर्म के इरादे से महिला पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया गया था।

केस टाइटल: आंध्र प्रदेश राज्य बनाम अजमीरा रघु

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जब आरोपों से सम्मानजनक रूप से बरी न हो, सेवा में फिर से बहाली अधिकार के रूप में प्रवाहमान नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने पर सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली एक अकाउंटेंट की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब सरकारी कर्मचारी को सम्मानजनक तरीके से अपराध से बरी नहीं किया गया है तो नौकरी में उसकी पुनर्बहाली अधिकार के तौर पर प्रवाहित नहीं हो सकती।

लेखाकार ग्रेड-I पद पर कार्यरत याचिकाकर्ता ने 19 मार्च, 2013 के उस आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके तहत उन्हें भ्रष्टाचार निवारण कानून, 1988 की धारा 7 और 15 के तहत दोषसिद्धि के आधार पर सीसीएस (सीसीए) नियमावली, 1965 के नियम 19 (i) के तहत उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। उनके खिलाफ आरोप था कि याचिकाकर्ता ने एक विक्रेता को बकाया राशि जारी करने की प्रक्रिया के लिए रिश्वत लेने का प्रयास किया।

शीर्षक: जहान सिंह बनाम ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ट्राइफेड और अन्य

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