बच्‍चों का गवाह के रूप में परीक्षण नहीं करना अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं है, जबकि वयस्क गवाह उपलब्ध हैं: तेलंगाना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

14 Feb 2022 7:32 AM GMT

  • बच्‍चों का गवाह के रूप में परीक्षण नहीं करना अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं है, जबकि वयस्क गवाह उपलब्ध हैं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसला में कहा कि बच्चों को अदालत में नहीं बुलाया जा सकता है और जब तक बहुत जरूरी नहीं है और मामले को साबित करने के लिए अन्य गवाह नहीं है, तब तक उन्हें गवाह के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा, कि जब वयस्क गवाह उपलब्ध हों तो बच्चों का परीक्षण नहीं करना अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं है।

    जस्टिस जी राधा रानी ने यह टिप्पणी निचली अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई के दरमियान की, जिसमें आईपीसी की धारा 448 (घर में घुसना), 354 (दुष्कर्म के इरादे से महिला पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया गया था।

    अभियोजन का मामला यह था कि शिकायतकर्ता जो कि 35 वर्ष की आयु की पीड़िता है, ने आरोपी के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कराई है कि आरोपी ने उसके घर में आपराधिक रूप से अतिचार किया, उसकी शील भंग की और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। उसने शोर मचा दिया, कॉलोनी के लोग जाग गए और आरोपी को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन वह भागने में सफल रहा।

    आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और जांच पूरी करने के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया था। प्रधान सहायक सत्र न्यायाधीश ने आरोप तय किए थे।

    रिकॉर्ड पर मौजूदा मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों पर विचार के बाद आरोपी को सभी मामलों में बरी कर दिया गया था। निचली अदालत ने पाया था कि अभियोजन पक्ष की ओर से गवाहों के साक्ष्यों में विसंगति है। इसके अलावा, ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि पीड़िता के नाबालिग बच्चों, जो घटना के समय घर में सो रहे थे, की जांच न करना अभियोजन मामले के लिए घातक था।

    उक्त दोषमुक्ति से व्यथित, राज्य ने इस आधार पर आपराधिक अपील दायर की कि अभियुक्तों को बरी करने में निर्दिष्ट कारण टिकाऊ नहीं थे और निचली अदालत के फैसले को रद्द करने की प्रार्थना की।

    कोर्ट का फैसला

    हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत यह समझने में विफल रही कि पीड़िता एक युवा विधवा थी, एक आदिवासी महिला जिसके दो नाबालिग बच्चे थे। वह एक झोपड़ी में रह रही थी और मजदूरी करके अपनी आजीविका चला रही थी।

    निचली अदालत ने कहा था कि घर के दरवाजे को अंदर से बंद नहीं करना तार्किक नहीं लगा है, लेकिन यह देखने में विफल रहा कि वह एक झोपड़ी में रह रही थी, जहां घर में मजबूत दरवाजे और बोल्ट नहीं हो सकते थे।

    निचली अदालत की यह टिप्पणी कि बच्चों का परीक्षण न होना अभियोजन के मामले के लिए घातक था, यह भी तर्क के अनुकूल नहीं है। निचली अदालत ने पीड़िता और अन्य गवाहों के साक्ष्य पर विश्वास न करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "बच्चों को अदालत में नहीं बुलाया जा सकता है और जब तक कि यह बहुत आवश्यक न हो और उक्त तथ्यों को साबित करने के लिए कोई अन्य गवाह न हो, उन्हें गवाहों के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है। जब वयस्क गवाह उपलब्ध थे, पीड़िता के साथ-साथ पड़ोसी और अन्य व्यक्ति भी घटना के बारे में बात कर सकते थे, तो घटना को साबित करने के लिए बच्चों का परीक्षण नहीं करने को घातक नहीं माना जाता है।"

    हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य पर विचार करने में त्रुटि की है और अभियुक्तों को कुछ छोटी विसंगतियों पर बरी कर दिया है, जो अभियोजन मामले के लिए घातक नहीं थे।

    नतीजतन, ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और आपराधिक अपील को अनुमति दी। आरोपी को कारावास व अर्थदंड की सजा सुनाई गई।

    केस टाइटल: आंध्र प्रदेश राज्य बनाम अजमीरा रघु

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (तेलंगाना) 12

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