दुर्घटनाग्रस्त चालक के पास नकली ड्राइविंग लाइसेंस था, केवल इस आधार पर बीमाकर्ता को देयता से मुक्त नहीं किया जा सकताः इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
16 Feb 2022 12:27 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना डेथ क्लेम के एक मामले हाल ही में कहा कि बीमा कंपनी को केवल इस आधार पर अपनी देयता से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वाहन चलाने वाले व्यक्ति, जिसके कारण मृतक के साथ दुर्घटना हुई थी, उसके पास उस समय विधिवत लाइसेंस नहीं था।
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेहरू और अन्य में 2003 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि नियोक्ता से यह उम्मीद नहीं होती कि वह रोजगार के समय जारीकर्ता प्राधिकरण से ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता सत्यापित करेगा।
मामला
दरअसल बीमा कंपनी (नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) ने एमएसीटी, गाजियाबाद के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एमएसीटी ने मृतक को 6% ब्याज के साथ 12,70,406 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
बीमा कंपनी (अपीलकर्ता) ने यह दावा किया था कि यह रिकॉर्ड में है कि दुर्घटना ट्रक चालक की लापरवाही से हुई थी। ट्रक का मालिकाना बीमाधारक के पास था। उन्होंने तर्क दिया कि दुर्घटना के समय चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
बीमा कंपनी की दलील थी कि इन तथ्यों के आलोक में दावा न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी पर मुआवजे के भुगतान की देनदारी तय करने में गलती की है और धारा 149(2 )(ए) एमवी एक्ट के अनुसार ट्रक चालक के पास कोई वैध लाइसेंस नहीं था।
अवलोकन
फैसले की शुरुआत में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल वैध ड्राइविंग लाइसेंस के अभाव में, बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करने के कर्तव्य से मुक्त नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि बीमाधारक ने लाइसेंस की वास्तविकता या अन्यथा, सत्यापित करने के लिए उचित और पर्याप्त सावधानी नहीं बरती तब भी दायित्व का विकल्प मौजूद होगा, और हर एक मामले में तथ्यों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि जांच में बीमा कंपनी ने पाया कि उल्लंघनकर्ता वाहन (ट्रक) चालक का लाइसेंस नकली था। फिर भी कंपनी ने एमसीएटी के समक्ष इस तथ्य को साबित नहीं किया कि ट्रक मालिक ने रोजगार के समय चालक के ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता को सत्यापित करने के लिए पर्याप्त सावधानी बरती थी।
कोर्ट ने कहा,
"बीमा कंपनी/अपीलकर्ता द्वारा जांच करने पर जांचकर्ता श्री अरविंद कुमार मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार ड्राइविंग लाइसेंस नकली पाया गया था, हालांकि उन्होंने अपनी रिपोर्ट की सामग्री को साबित करने के लिए विटनेस बॉक्स में प्रवेश नहीं किया था, रिपोर्ट डीलिंग असिस्टेंट के अवलोकन पर आधारित थी।
यहां तक कि जिला परिवहन अधिकारी, मुजफ्फरपुर के कार्यालय के डीलिंग असिस्टेंट की भी जांच नहीं की गई, जिससे यह साबित हो सके कि ड्राइविंग लाइसेंस की जेरोक्स कॉपी में जिला परिवहन अधिकारी की मुहर और हस्ताक्षर सही नहीं पाए गए थे।"
इसके अलावा, यह देखते हुए कि यह भी साबित नहीं हुआ था कि मालिक को पता था कि लाइसेंस नकली या अमान्य था और उसने अभी भी चालक को आपत्तिजनक वाहन चलाने की अनुमति दी थी, अदालत ने बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, "ऐसी परिस्थितियों में, यह नहीं कहा जा सकता है कि बीमित व्यक्ति/मालिक ने एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने में गलती की है, जिसका लाइसेंस बीमा कंपनी ने विद्वान न्यायाधिकरण के समक्ष फर्जी पाया है। इसलिए, इस संबंध में विद्वान न्यायाधिकरण द्वारा दर्ज निष्कर्षों में गड़बड़ी का कोई कारण नहीं है।"
कोर्ट ने माना कि केवल बीमा कंपनी ही दुर्घटना पीड़ित के आश्रितों को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी थी।
केस शीर्षकः नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम केवल कृष्ण अरोड़ा और अन्य
केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 47