सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (तीन जनवरी, 2022 से सात जनवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
सेक्शन 397 आईपीसी: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हथियार के उपयोग के लिए यह आवश्यक नहीं कि अपराधी ने वास्तव में उसे फायर किया या घोंपा हो, उसे दिखाना या लहराना ही पर्याप्त
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना और जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की तीन-जजों की बेंच ने हाल में दिए गए फैसले के जरिए भारतीय दंड संहिता के तहत डकैती के अपराध संबंधित कानून की दो महत्वपूर्ण स्थितियों को स्पष्ट किया। अदालत के समक्ष प्रश्न था कि अगर आग्नेयास्त्र का इस्तेमाल नहीं किया गया है तो क्या आईपीसी की धारा 397 के तहत आरोप सही रहेगा।
केस शीर्षक: राम रतन बनाम मध्य प्रदेश राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सुप्रीम कोर्ट ने 2021-21 के लिए नीट- यूजी और नीट- पीजी में अखिल भारतीय कोटा में मौजूदा ओबीसी/ ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत काउंसलिंग की इजाजत दी
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए मौजूदा 27% कोटा और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण के आधार पर 2021-22 प्रवेश के लिए अखिल भारतीय कोटा में नीट-पीजी और नीट-यूजी के लिए काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दी।
कोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण की संवैधानिकता को बरकरार रखा। ईडब्ल्यूएस (रुपये 8 लाख सकल वार्षिक आय कट-ऑफ) निर्धारित करने के मानदंड के संबंध में, कोर्ट ने मौजूदा प्रवेश वर्ष के लिए मौजूदा मानदंडों को संचालित करने की अनुमति दी ताकि प्रवेश प्रक्रिया में और देरी न हो। हालांकि, ईडब्ल्यूएस मानदंड के भविष्य के आवेदन, जिसे जुलाई 2019 के कार्यालय ज्ञापन में निर्धारित किया गया है, याचिकाओं के अंतिम परिणाम के अधीन होगा।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पीएमएलए अपराध संबंधी अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते समय पीएमएलए एक्ट की धारा 45 की कठोरता लागू होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार धन शोधन निवारण अधिनियम, Prevention of Money Laundering Act (पीएमएलए) के तहत अपराध के संबंध में अग्रिम जमानत के लिए प्रार्थना करने के बाद, पीएमएलए की धारा 45 में अंतर्निहित सिद्धांतों और कठोरता को लागू किया जाना चाहिए। हालांकि आवेदन आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत है।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि अदालत का यह कर्तव्य है कि वह पीएमएलए एक्ट की धारा 45 के जनादेश सहित अधिकार क्षेत्र के तथ्यों की जांच करे, जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को खारिज करते हुए कहा उक्त टिप्पणियां की। तेलंगाना हाईकोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम संबंधित अपराध में आरोपी को अग्रिम जमानत दी थी।
केस शीर्षक: सहायक निदेशक प्रवर्तन निदेशालय बनाम डॉ वीसी मोहन
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ट्रिब्यूनल के फैसलों की समीक्षा केवल क्षेत्राधिकार वाला हाईकोर्ट ही कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक ट्रिब्यूनल के किसी भी फैसले (प्रशासनिक ट्रिब्यूनल अधिनियम, 1985 की धारा 25 के तहत पारित एक फैसले सहित) की जांच केवल उस हाईकोर्ट द्वारा की जा सकती है, जिसके पास उक्त ट्रिब्यूनल पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र है। कोर्ट ने संविधान पीठ द्वारा एल चंद्रकुमार फैसले में निर्धारित शासन का उल्लेख किया, "संविधान के अनुच्छेद 323 ए और 323 बी के तहत बनाए गए ट्रिब्यूनल के सभी निर्णय हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के समक्ष जांच के अधीन होंगे, जिसके अधिकार क्षेत्र में संबंधित ट्रिब्यूनल आता है।"
केस: भारत संघ बनाम अलपन बंद्योपाध्याय
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भूमि अधिग्रहण के कारण अपनी संपत्ति के कब्जे से वंचित व्यक्ति को तुरंत मुआवजा दिया जाए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति जमीन के अधिग्रहण के कारण अपनी संपत्ति के कब्जे से वंचित हो जाता है तो उसे तुरंत मुआवजा दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि अगर उसे तुरंत मुआवजा नहीं दिया जाता है, तो वह जमीन पर कब्जा करने की तारीख से भुगतान की तारीख तक मुआवजे की राशि पर ब्याज का हकदार होगा। इस मामले में, मुद्दा ब्याज का भुगतान करने के दायित्व के संबंध में था, चाहे वह कब्जा लेने की तारीख से शुरू हो या केवल अवार्ड की तारीख से।
केस का नाम: गयाबाई दिगंबर पुरी (मृत्यु) बनाम एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
किसी राज्य में सामान्य रूप से रह रहा एससी/ एसटी व्यक्ति दूसरे राज्य में कोटे का दावा नहीं कर सकता जहां उसने प्रवास किया है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति को उसके मूल राज्य के संबंध में जिसका वह स्थायी या सामान्य रूप से निवासी है, किसी अन्य राज्य में उसके प्रवास पर उस राज्य के संबंध में उसे ऐसा नागरिक नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 42 के अनुसार, अनुसूचित जाति के सदस्य द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में बिक्री, उपहार या वसीयत पर प्रतिबंध है, जो अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं है।
केस : भादर राम (डी) बनाम जस्सा राम
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
2015 के संशोधन से पहले गठित मध्यस्थ ट्रिब्यूनल काम नहीं करेगा यदि वह धारा 12 (5) के तहत तटस्थता खंड का उल्लंघन करता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 में 2015 के संशोधन से पहले एक मध्यस्थता खंड के अनुसार गठित एक मध्यस्थ ट्रिब्यूनल अपना जनादेश खो देगा यदि वह सातवीं अनुसूची के साथ पठित धारा 12 (5) के तहत तटस्थता खंड का उल्लंघन करता है, जिसे 2015 के संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 12(5) के संशोधित प्रावधान के विपरीत मध्यस्थों की नियुक्ति को निर्धारित करने वाले मध्यस्थता खंड को प्रभावी नहीं किया जा सकता है।
केस : एलोरा पेपर मिल्स लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आरबीआई के पास एसआईडीबीआई जैसे वित्तीय संस्थानों पर व्यापक पर्यवेक्षी शक्तियां, इसके निर्देश वैधानिक तौर पर बाध्यकारी : सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एसआईडीबीआई द्वारा जारी बांडों पर मूल राशि और ब्याज के विलंबित भुगतान के संबंध में एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "आरबीआई के पास एसआईडीबीआई जैसे वित्तीय संस्थानों पर व्यापक पर्यवेक्षी शक्तियां हैं जिसके आधार पर आरबीआई द्वारा जारी कोई भी निर्देश, आरबीआई अधिनियम या बैंकिंग विनियमन अधिनियम से शक्ति प्राप्त कर जारी निर्देश वैधानिक रूप से बाध्यकारी हैं।"
केस : स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया बनाम मेसर्स सिब्को इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
दोषी कर्मचारी का विभागीय कार्यवाही में अपनी पसंद के एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने का कोई संपूर्ण अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दोषी कर्मचारी का विभागीय कार्यवाही में अपनी पसंद के एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने का कोई संपूर्ण अधिकार नहीं है और इसे नियोक्ता द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस मामले में, हाईकोर्ट ने अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना कर रहे दोषी कर्मचारी को बैंक के पूर्व कर्मचारी के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी।
यह कहा गया कि विनियमन 44 केवल एक कानूनी व्यवसायी द्वारा प्रतिनिधित्व को प्रतिबंधित करता है, और यहां तक कि इसे भी सक्षम प्राधिकारी की मंज़ूरी के साथ निश्चित रूप से अनुमति है, और एक वकील को नियुक्त करने पर भी कोई पूर्ण रोक नहीं है, कर्मचारी को एक बैंक के सेवानिवृत्त कर्मचारी की सेवाओं का लाभ उठाने से रोका नहीं जा सकता है।
केस : राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक (आरएमजीबी) बनाम रमेश चंद्र मीणा
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
राज्य सरकार के उपक्रमों के लिए आय कटौती- ' आयकर अधिनियम की धारा 40 (ए) (ii बी) में "एक्सक्लूसिविटी" उपक्रमों की संख्या पर आधारित नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने केरल स्टेट बेवरेजेज कॉरपोरेशन की उस दलील को खारिज कर दिया है जिसमें उसने कहा था कि वह अपनी आय से राज्य सरकार द्वारा लगाई गए शुल्क की कटौती का हकदार है। बेवरेजेज कॉरपोरेशन का दावा इस आधार पर था कि राज्य सरकार द्वारा शराब के व्यापार के लिए दिया गया लाइसेंस ' एक्सक्लूसिव' नहीं था।
आयकर अधिनियम की धारा 40 (ए) (ii बी), जो सरकार को भुगतान किए गए उन शुल्कों को संदर्भित करती है जो आय से कटौती योग्य नहीं हैं, शब्द "विशेष रूप से" का उपयोग करती है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस शब्द को "विशेष रूप से" शामिल उपक्रमों की संख्या के आधार पर नहीं समझा जाना चाहिए।
केस : केरल स्टेट बेवरेजेज मैन्युफैक्चरिंग एंड मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम सहायक आयकर आयुक्त
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सिर्फ इसलिए कि पक्ष ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 (4) के तहत अर्जी दाखिल की है, अदालत के लिए मामले को मध्यस्थ ट्रिब्यूनल को भेजना अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि एक पक्ष द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 (4) के तहत एक आवेदन दायर किया गया है, न्यायालय की ओर से हमेशा ऐसे मामले को मध्यस्थ ट्रिब्यूनल को भेजना अनिवार्य नहीं है।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, "जब प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि अवार्ड में ही एक पेटेंट अवैधता है, एक विवादास्पद मुद्दे पर एक निष्कर्ष दर्ज ना करके, ऐसे मामलों में, न्यायालय मध्यस्थ ट्रिब्यूनल को एक अवसर देने के लिए मध्यस्थता कार्यवाही फिर से शुरू करने के एक पक्ष के अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकता।"
केस : आई-पे क्लियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जिस कर्मचारी ने पदोन्नति से इनकार किया, वो सिर्फ इसलिए वित्तीय अपग्रेडेशन का हकदार नहीं होगा क्योंकि उसे क्योंकि उसे गतिरोध का सामना करना पड़ाः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एक नियमित पदोन्नति की पेशकश की जाती है, लेकिन वित्तीय अपग्रेडेशन का हकदार बनने से पहले कर्मचारी द्वारा इससे इससे कर दिया जाता है, तो वह केवल इसलिए वित्तीय अपग्रेडेशन के लिए हकदार नहीं होगा क्योंकि उसे गतिरोध का सामना करना पड़ा है। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारी जिन्होंने नियमित पदोन्नति के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, वे दिनांक 9.8.1999 के कार्यालय ज्ञापन के तहत परिकल्पित वित्तीय अपग्रेडेशन लाभों से वंचित हैं।
केस : भारत संघ बनाम मंजू अरोड़ा
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
किसी आपराधिक ट्रायल में बरी होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई असर या प्रासंगिकता नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक ट्रायल में बरी होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई असर या प्रासंगिकता नहीं होगी। दोनों मामलों में सबूत के मानक अलग-अलग हैं और कार्यवाही अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उद्देश्यों के साथ संचालित होती है, जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की बेंच ने औद्योगिक न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश को खारिज करते हुए कहा, जिसने महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम को ड्राइवर को बहाल करने का निर्देश दिया था जिसकी सेवाओं को अनुशासनात्मक जांच के बाद समाप्त कर दिया गया था।
केस: महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम बनाम दिलीप उत्तम जयभाय