सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
27 July 2025 12:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (21 जुलाई, 2025 से 25 जुलाई, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
स्टूडेंट्स के कल्याण के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की, कहा- मानसिक स्वास्थ्य अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग
स्टूडेंट्स के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का एक अभिन्न अंग है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य जीवन के अधिकार से अविभाज्य है। साथ ही उन्होंने कोचिंग सेंटरों और शैक्षणिक संस्थानों की विषाक्त रैंक और परिणाम संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आलोचना की।
Cause Title: SUKDEB SAHA VERSUS THE STATE OF ANDHRA PRADESH & ORS.
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अभियुक्त के प्रति कोई पूर्वाग्रह न उत्पन्न हुआ हो तो संज्ञान के बाद शिकायत में संशोधन किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संज्ञान के बाद शिकायत में संशोधन किया जा सकता है, बशर्ते कि अभियुक्त के प्रति कोई 'पूर्वाग्रह' न उत्पन्न हुआ हो और शिकायतकर्ता की क्रॉस एक्जामिनेशन का इंतज़ार किया जा रहा हो।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (IN Act) की धारा 138 के तहत शिकायत में संशोधन करने के शिकायतकर्ता के अनुरोध स्वीकार कर लिया। खंडपीठ ने कहा कि कोई जिरह पूरी नहीं हुई और "देसी घी (दूध उत्पाद)" को "दूध" में बदलने का सुधार टाइपोग्राफिकल त्रुटि थी, जो कानूनी नोटिस और शिकायत दोनों में दिखाई दे रही थी, जिससे अभियुक्त के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं था।
Cause Title: Bansal Milk Chilling Centre VERSUS Rana Milk Food Private Ltd. & Anr.
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S. 156(3) CrPC| शिकायतकर्ता ने धारा 154(3) के तहत उपाय नहीं अपनाने पर मजिस्ट्रेट द्वारा FIR दर्ज करने का आदेश अमान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (25 जुलाई) को CrPC की धारा 156(3) के तहत पुलिस जांच का निर्देश देने वाला मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया, क्योंकि शिकायतकर्ता ने धारा 154(3) के तहत वैकल्पिक उपाय नहीं अपनाए थे। न्यायालय ने कहा कि पुलिस जाँच का निर्देश देने वाला मजिस्ट्रेट का आदेश अनियमित हो सकता है, लेकिन अगर शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है। मजिस्ट्रेट ने जांच का आदेश देने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल किया है तो उसे अवैध नहीं कहा जा सकता। इसलिए आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।
Cause Title: ANURAG BHATNAGAR & ANR. VERSUS STATE (NCT OF DELHI) & ANR.
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सिर्फ जुर्माना भरने से कर चुनौती देने का हक नहीं जाता – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 129 के तहत हिरासत में लिए गए सामान की रिहाई के लिए केवल जुर्माना का भुगतान करके, करदाता को वैधानिक अपील दायर करने के अधिकार को माफ करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जीएसटी शासन के तहत पारगमन के दौरान हिरासत में लिए गए सामानों की रिहाई के लिए केवल जुर्माना का भुगतान कार्यवाही समाप्त नहीं करता है जब तक कि CGST ACT की धारा 129 (3) के तहत औपचारिक, तर्कसंगत आदेश पारित नहीं किया जाता है।
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NEET स्टूडेंट की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजों और कोचिंग में स्टूडेंट्स की मानसिक सेहत के लिए दिशा-निर्देश दिए
भारत में छात्रों की आत्महत्या के मुद्दे को संबोधित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने आज (25 जुलाई) स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग सेंटरों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने विशाखापट्टनम में अपने छात्रावास की छत से गिरने के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मरने वाली 17 वर्षीय नीट उम्मीदवार के मामले का फैसला करते हुए पंद्रह बाध्यकारी निर्देश जारी किए।
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धोखाधड़ी से प्राप्त आदेशों पर विलय का सिद्धांत लागू नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने विलय नियम के अपवादों की रूपरेखा प्रस्तुत की
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि हाईकोर्ट का कोई निर्णय, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा, धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया तो पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पुनर्विचार की मांग करने के बजाय हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करके उसे चुनौती दे सकता है।
न्यायालय ने कहा कि विलय का सिद्धांत (जहा निचली अदालत का निर्णय हाईकोर्ट के आदेश के साथ विलीन हो जाता है) उस स्थिति पर लागू नहीं होगा, जहां विवादित निर्णय/आदेश धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया हो।
Cause Title: VISHNU VARDHAN @ VISHNU PRADHAN VS. THE STATE OF UTTAR PRADESH & ORS. (& Connected Cases)
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498A की FIR में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, मामले परिवार कल्याण समितियों को सौंपे जाएं: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (क्रूरता अपराध) के दुरुपयोग को रोकने के लिए परिवार कल्याण समिति (FWC) की स्थापना के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों का समर्थन किया। न्यायालय ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
Case : Shivangi Bansal vs Sahib Bansal
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रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता की धारणा होती है, इसकी वैधता पर विवाद करने वाले पक्ष पर सबूत का भार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को दोहराया कि रजिस्टर्ड 'वसीयत' के उचित निष्पादन और प्रामाणिकता की धारणा होती है और सबूत का भार वसीयत को चुनौती देने वाले पक्ष पर होता है। ऐसा मानते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें विवादित भूमि में अपीलकर्ता/लासुम बाई का हिस्सा कम कर दिया गया था और रजिस्टर्ड वसीयत और मौखिक पारिवारिक समझौते के आधार पर उनका पूर्ण स्वामित्व बरकरार रखा।
Cause Title: METPALLI LASUM BAI (SINCE DEAD) AND OTHERS VERSUS METAPALLI MUTHAIH(D) BY LRS.
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SEBI Act | अवैतनिक जुर्माने पर ब्याज पूर्वव्यापी रूप से लागू, देयता न्यायनिर्णयन आदेश से उत्पन्न होगी: सुप्रीम कोर्ट
सेबी द्वारा अदा न किए गए जुर्माने पर ब्याज लगाने से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि अदा न किए गए जुर्माने की राशि पर ब्याज पूर्वव्यापी रूप से लगाया जा सकता है और चूककर्ता की ब्याज भुगतान की देयता मूल्यांकन आदेश में निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति तिथि से अर्जित होगी। न्यायालय ने कहा कि मूल्यांकन आदेश में देयता स्पष्ट हो जाने के बाद, सेबी द्वारा कोई अलग से मांग नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है।
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अगर संयुक्त अपील में किसी मृत व्यक्ति के कानूनी वारिसों को शामिल नहीं किया गया, तो अपील खत्म हो सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 जुलाई) को स्पष्ट किया कि CPC के Order XLI Rule 4 के तहत एक उपाय (जो एक पक्ष को दूसरों की ओर से अपील करने की अनुमति देता है यदि डिक्री सामान्य आधार पर आधारित है) तब लागू नहीं होती है जब सभी प्रतिवादी संयुक्त रूप से अपील करते हैं और एक प्रतिस्थापन के बिना मर जाता है।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जहां अपीलकर्ताओं/प्रतिवादियों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी दूसरी अपील को CPC के Order XII Rule 3 के अनुसार निरस्त कर दिया गया था, इस आधार पर कि वे प्रथम अपीलीय द्वारा उनके खिलाफ पारित 'संयुक्त और अविभाज्य' डिक्री का विरोध करते हुए प्रतिवादी (जिसकी दूसरी अपील के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई) के कानूनी प्रतिनिधियों को समय पर प्रतिस्थापित करने में विफल रहे न्यायालय।
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जम्मू कश्मीर पुलिस अधिकारी को हिरासत में दी गई यातना, सुप्रीम कोर्ट ने 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का दिया आदेश
हिरासत में हिंसा के विरुद्ध संवैधानिक सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित संयुक्त पूछताछ केंद्र (JIC) में पुलिस कांस्टेबल को कथित हिरासत में यातना दिए जाने की केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जाँच कराने का आदेश दिया।
न्यायालय ने इस दुर्व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों को तत्काल गिरफ़्तार करने का निर्देश दिया और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को अपीलकर्ता-पीड़ित खुर्शीद अहमद चौहान को उनके मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन की क्षतिपूर्ति के रूप में 50,00,000/- रुपये (पचास लाख रुपये) का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।
Cause Title: KHURSHEED AHMAD CHOHAN Versus UNION OF TERRITORY OF JAMMU AND KASHMIR AND ORS.

