हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

9 March 2025 4:30 AM

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (03 मार्च, 2025 से 07 मार्च, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पत्नी को पढ़ाई बंद करने के लिए मजबूर करना उसके सपनों को नष्ट करने के समान, यह मानसिक क्रूरता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक महिला के पक्ष में तलाक का निर्णय देते हुए कहा कि पत्नी को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करना या उसे पढ़ाई जारी न रखने की स्थिति में लाना मानसिक क्रूरता है और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत तलाक का आधार बनता है।

    ऐसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि यह ऐसा मामला नहीं था, जहां महिला अपनी गलती का फायदा उठा रही थी, बल्कि ऐसा मामला था, जहां वह वैवाहिक दायित्वों के नाम पर अपने सपनों और करियर का त्याग कर रही थी।

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    POCSO ACT | नाबालिग पीड़िता के बहुत करीब लेटना 'शीलभंग' के बराबर, हालांकि कोई प्रत्यक्ष यौन इरादा न होने पर 'गंभीर यौन उत्पीड़न' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग पीड़िता के होंठ दबाना और उसके बहुत करीब लेटना भारतीय दंड संहिता के तहत उसकी शील भंग करने का अपराध हो सकता है, लेकिन अगर प्रत्यक्ष यौन इरादा नहीं है तो यह POCSO अधिनियम के तहत गंभीर यौन हमले का अपराध नहीं हो सकता।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, "पीड़िता के होंठ छूने और दबाने या उसके बगल में लेटने से महिला की गरिमा का हनन हो सकता है और उसकी शील भंग हो सकती है, लेकिन किसी प्रत्यक्ष या अनुमानित यौन इरादे के अभाव में, उक्त कृत्य POCSO अधिनियम की धारा 10 के तहत आरोप कायम रखने के लिए आवश्यक कानूनी सीमा को पूरा नहीं करते।" न्यायालय एक अभियुक्त द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 354 (महिला की शील भंग करना) तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत अपराधों के लिए उसके विरुद्ध आरोप तय करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी।

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    असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए नेट उत्तीर्ण होना न्यूनतम मानदंड, एम.फिल करने वाले एक्सटेंशन लेक्चरर को पद पर बने रहने का अधिकार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एम.फिल डिग्री धारक एक्सटेंशन लेक्चरर जिन्होंने यूजीसी नेट उत्तीर्ण नहीं किया है, उन्हें सेवा में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें सेवा से मुक्त किया जाना आवश्यक है। न्यायालय ने कहा कि यूजीसी विनियम, 2010 के अनुसार संशोधित सेवा नियम, 1986, सहायक प्रोफेसर के पद के लिए एम.फिल डिग्री धारकों को नेट से कोई छूट प्रदान नहीं करते हैं।

    जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने कहा, "एक बार अयोग्य होने के बाद याचिकाकर्ता नीति दिशा-निर्देशों, दिनांक 04.03.2020/02.11.2023 के अनुसार एक्सटेंशन लेक्चरर के रूप में नियुक्त होने का हकदार नहीं है, उसे सेवा में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है, और उसे इसके अनुसार मुक्त/विमुक्त किया जाना आवश्यक है।"

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    एक बार अल्पसंख्यक संस्थान घोषित होने के बाद संगठन हमेशा अपना अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि एक बार किसी संगठन को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे दिया जाता तो उसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिलती रहेगी। उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह इस दर्जे को बरकरार रखने के लिए नियमित रूप से राज्य प्राधिकारियों से संपर्क करे।

    अल्पसंख्यक विद्यालय के दर्जे को चुनौती देने वाला मामला चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस सी. चटर्जी (दास) की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया जिसने रिट याचिका को खारिज कर दिया।

    टाइटल: तपस पाल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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    लाइव टीवी डिबेट के दौरान 'मनुस्मृति' के पन्ने फाड़ना प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने RJD प्रवक्ता को राहत देने से किया इनकार

    यह देखते हुए कि लाइव टीवी डिबेट में 'मनुस्मृति' के पन्ने फाड़ना प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की प्रवक्ता और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की पीएचडी स्टूडेंट प्रियंका भारती के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया।

    भारती पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 के तहत कथित तौर पर समाचार चैनलों इंडिया टीवी और टीवी9 भारतवर्ष द्वारा आयोजित लाइव डिबेट के दौरान मनुस्मृति के कुछ पन्ने फाड़ने का आरोप लगाया गया, जहां वह राजद की प्रवक्ता के रूप में भाग ले रही थीं।

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    [अनुकंपा नियुक्ति] कर्मचारी की मृत्यु की तिथि पर लागू कानून, नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किए जाने की तिथि से परे लागू होगा: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक दशक पुराने मामले में याचिकाकर्ता को अनुकंपा नियुक्ति से राहत प्रदान करते हुए कहा कि ऐसी नियुक्ति को नियंत्रित करने वाली नीति संबंधित व्यक्ति की मृत्यु की तिथि पर लागू होनी चाहिए, न कि ऐसी नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किए जाने की तिथि पर।

    जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण और जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी की खंडपीठ अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (AVVNL) द्वारा एकल जज के उस निर्णय के विरुद्ध दायर विशेष अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ताओं को अनुकंपा नियुक्ति के लिए प्रतिवादी पर विचार करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड एवं अन्य बनाम मुकेश कुमार बेरवा

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    असली माता-पिता की अनुमति के बिना बच्चा गोद नहीं ले सकते सौतेले माता-पिता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि सौतेले माता-पिता द्वारा गोद लेने की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि बच्चे के जैविक माता-पिता गोद लेने के लिए सहमति न दें। न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि CARA (केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी) गोद लेने के कानूनी निहितार्थों के कारण गोद लेने के लिए जैविक माता-पिता की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता को कम नहीं कर सकती।

    इस प्रकार जस्टिस सी.एस. डायस ने कहा कि जैविक माता-पिता के अपने बच्चे की हिरासत पर मौलिक और वैधानिक अधिकार को CARA द्वारा माफ या शिथिल नहीं किया जा सकता है, लेकिन ऐसे अधिकारों का निर्धारण केवल एक सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।

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    कैजुअल लीव के दौरान कर्मचारी की मौत पर उदार पारिवारिक पेंशन नहीं दी जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि कैजुअल लीव के दौरान सड़क दुर्घटना में CRPF सब-इंस्पेक्टर की मृत्यु उन्नत पारिवारिक पेंशन (Liberalized Family Pension) या अनुग्रह राशि (Ex-Gratia Compensation) के लिए योग्य नहीं होगी।

    अदालत ने माना कि सेवा नियमों के तहत अवकाश को ऑन ड्यूटी के रूप में वर्गीकृत करना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि मृत्यु और आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के बीच कोई प्रत्यक्ष कारणात्मक संबंध न हो। अदालत ने निर्णय दिया कि उन्नत पारिवारिक पेंशन या अनुग्रह राशि प्राप्त करने के लिए, मृत्यु ऐसी परिस्थितियों में होनी चाहिए जो आधिकारिक कर्तव्यों के प्रदर्शन से संबंधित हों।

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    मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार की एकमात्र जीवित सदस्य होने के नाते विवाहित बेटी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के उस आदेश के खिलाफ चुनौती खारिज की, जिसमें राज्य को प्रतिवादी को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश दिया गया, जो मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी है जिसका पति भी कार्यरत था और कमाता था।

    जस्टिस अवनीश झिंगन और जस्टिस प्रमिल कुमार माथुर की खंडपीठ ने हीना शेख बनाम राजस्थान राज्य (हीना शेख मामला) में न्यायालय की फुल बेंच के निर्णय पर कैट की निर्भरता की पुष्टि की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है।

    टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम श्रीमती रिंकी शर्मा

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    किसी पुरुष को विवाहित महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं, खासकर तब जब वह उसकी अपनी बहन लगती हो: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने एक व्यक्ति की याचिका पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी लिव-इन पार्टनर, जो उसकी सगी बहन लगती है और किसी अन्य व्यक्ति से विवाहित है, उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है।

    ऐसा करते हुए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति से कानूनी रूप से विवाहित महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, खासकर तब जब वह उसकी अपनी बहन लगती हो।

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    केवल विरोध या नारेबाजी से अनुच्छेद 19 के सीमित अधिकारों का उल्लंघन नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट द्वारा जारी एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला को यह बताने का निर्देश दिया गया था कि उसे बीएनएसएस की धारा 130 के तहत एक वर्ष की अवधि के लिए शांति बनाए रखने के लिए पचास हजार रुपये के बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। जस्टिस वी जी अरुण ने कहा कि सार्वजनिक प्रदर्शन करने के लिए दर्ज अपराधों का हवाला देकर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को लापरवाही से सीमित नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटलः शर्मिना एस बनाम सब डिविजनल मजिस्ट्रेट

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    निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र के अधीन, अगर सेवा शर्तें DSEAR, 1973 जैसे वैधानिक के तहत शासितः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि यदि किसी निजी गैर-सहायता प्राप्त विद्यालय की सेवा शर्तें दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम, 1973 (DSER) जैसे वैधानिक प्रावधानों के जरिए शासित हैं, तो वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार के अधीन है।

    केस टाइटल एंड नंबरः जयति मोजुमदार बनाम प्रबंध समिति श्री सत्य साईं विद्या विहार एवं अन्य | डब्ल्यू.पी.(सी) 15997/2024, सीएम एपीपीएल। 67225/2024, 72263/2024,5411/2025

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    स्कूलों में स्टूडेंट के स्मार्टफोन इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक सही नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट ने जारी किए दिशा-निर्देश

    स्कूलों में स्टूडेंट द्वारा स्मार्टफोन के विनियमित उपयोग पर दिशा-निर्देश जारी करते हुए जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि नीति के तौर पर स्टूडेंट को स्कूल में स्मार्टफोन ले जाने से नहीं रोका जाना चाहिए लेकिन इस तरह के उपयोग को विनियमित और निगरानी की जानी चाहिए।

    न्यायालय ने कहा, "जहां स्मार्टफोन की सुरक्षा के लिए व्यवस्था करना संभव है, वहां स्टूडेंट को स्कूल में प्रवेश करते समय अपने स्मार्टफोन जमा करने और घर लौटते समय उन्हें वापस लेने की आवश्यकता होनी चाहिए।"

    टाइटल: वाई वी बनाम केन्द्रीय विद्यालय और अन्य।

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    मालिक द्वारा कंपनी को हस्तांतरित नहीं की गई निजी संपत्ति की वसूली की कार्यवाही में नीलामी नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि जब किसी निजी व्यक्ति और उसकी कंपनी के बीच संपत्ति का कोई हस्तांतरण नहीं होता है, तो संपत्ति को ऋण वसूली के उद्देश्य से कंपनी की संपत्ति नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिए कि बैलेंस शीट में संपत्ति का उल्लेख पाया जाता है, बिक्री विलेख के अभाव में इसे कंपनी की संपत्ति नहीं बनाया जाएगा।

    जस्टिस पंकज भाटिया ने कहा, "यह सुझाव देने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि कंपनी के पक्ष में कोई पंजीकृत बिक्री विलेख था, केवल संपत्ति को बैलेंस शीट में दिखाए जाने के कारण, कंपनी संपत्ति का मालिक नहीं होगा।

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