हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

28 Feb 2025 5:34 AM

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 फरवरी, 2025 से 28 फरवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह केवल इसलिए अवैध नहीं कि पति-पत्नी में से कोई भी उस जिले में 30 दिनों तक नहीं रहा, जहां विवाह रजिस्टर था: बॉम्बे हाईकोर्ट

    स्पेशल मैरिज 1954 के तहत विधिवत प्रमाणित विवाह को केवल इसलिए अवैध या शून्य नहीं माना जा सकता, क्योंकि पति-पत्नी में से किसी ने अधिनियम की धारा 5 का पालन नहीं किया। जिसके अनुसार उनमें से किसी एक को 30 दिनों तक उस जिले में रहना अनिवार्य है, जहाँ उन्होंने अपना विवाह रजिस्टर कराया।

    जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह रजिस्ट्रार द्वारा एक बार विवाह प्रमाणपत्र जारी किए जाने के बाद यह विवाह की वैधता का निर्णायक सबूत होता है जब तक कि इसे कानून की अदालत द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता।

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    अग्रिम जमानत याचिका तभी स्वीकार्य, जब आरोपपत्र में आरोपी को घोषित भगोड़ा दिखाया गया हो: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने एकल जज द्वारा दिए गए संदर्भ का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत याचिका तब भी स्वीकार्य है, जब दाखिल आरोपपत्र में आरोपी को घोषित भगोड़ा दिखाया गया हो। अदालत ने आगे कहा कि अग्रिम जमानत याचिका तब भी स्वीकार्य है, जब आरोपी के खिलाफ CrPC की धारा 82 और 83 या धारा 299 के तहत कार्यवाही शुरू की गई हो या जब आरोपी को भगोड़ा अपराधी घोषित किया गया हो।

    केस टाइटल: दीपांकर विश्वास बनाम मध्य प्रदेश राज्य के माध्यम से पी.एस. ओमती, जिला जबलपुर

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    DTAA| किसी कंपनी की सहायक कंपनी वास्तव में स्थायी प्रतिष्ठान का गठन नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि एक सहायक या एक इकाई जो एक संविदाकारी राज्य में किसी अन्य इकाई द्वारा काफी हद तक नियंत्रित है, वह स्वयं उस अन्य इकाई का स्थायी प्रतिष्ठान नहीं बन जाती है।

    भारत-फिनलैंड दोहरे कराधान संधि के अनुच्छेद 5 का हवाला देते हुए, जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस रविंदर डुडेजा की खंडपीठ ने कहा, "कानून में कोई सामान्य धारणा नहीं है कि एक सहायक को कभी भी पीई के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह क्योंकि अनुच्छेद 5(8) स्वयं केवल यह बताता है कि अकेले उक्त कारक पीई प्रश्न का निर्धारक नहीं होगा। इस प्रकार अनुबंध स्पष्ट रूप से हमें डीटीएए के अनुच्छेद 5 में शामिल अन्य प्रावधानों के आधार पर तथ्यों का मूल्यांकन करने के लिए बाध्य करता है।

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    Narsinghanand 'X' Posts Case | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर लगी रोक 3 मार्च तक बढ़ाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर रोक 3 मार्च (सोमवार) तक बढ़ा दी। यह रोक यति नरसिंहानंद के 'अपमानजनक' भाषण पर कथित 'X' पोस्ट (पूर्व में ट्विटर) को लेकर उनके खिलाफ दर्ज FIR के संबंध में लगाई गई।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य के वकील द्वारा स्थगन की मांग के बाद राहत बढ़ा दी। मामले की सुनवाई 19 फरवरी को पूरी नहीं हो पाने के बाद आज फिर से शुरू की गई और इसे 24 फरवरी को स्थगित कर दिया गया।

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    कर्मचारियों की ग्रेच्युटी बकाया राशि कॉर्पोरेट देनदार की 'परिसमापन संपत्ति' का हिस्सा नहीं, इसका पूरा भुगतान किया जाना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) की पीठ ने माना कि ग्रेच्युटी बकाया राशि को ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत वैधानिक रूप से संरक्षित किया गया है, और यह दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (IBC) के तहत कॉर्पोरेट देनदार की परिसमापन संपत्ति का हिस्सा नहीं है।

    न्यायालय ने माना कि ग्रेच्युटी भुगतान IBC की धारा 53 के तहत वाटरफॉल तंत्र से बाहर है और समाधान योजना के बावजूद इसका पूरा भुगतान किया जाना चाहिए। इसने आगे कहा कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम की धारा 14 का एक प्रमुख प्रभाव है, जो यह सुनिश्चित करता है कि दिवालियापन कार्यवाही में भी कर्मचारियों के वैधानिक अधिकारों को बरकरार रखा जाए।

    केस टाइटलः मेसर्स स्टेसलिट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    Sec.219 CrPC: समेकित डिमांड नोटिस देने पर अनादरित चेक मामलों में शुल्क लागू नहीं – जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि यदि समेकित लीगल नोटिस जारी किया गया हो और कार्रवाई का कारण एक ही लेनदेन से उत्पन्न होता है तो कई अनादरित चेकों के लिए एक ही शिकायत सुनवाई योग्य है।

    अदालत ने माना कि मांग की सूचना की सेवा की तारीख से पंद्रह दिनों की समाप्ति पर याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए प्रतिवादी के पक्ष में सभी चार चेकों के लिए कार्रवाई का एक ही कारण उत्पन्न हुआ। अदालत ने कहा कि चेक जारी करने के समय या उसके अनादर पर कार्रवाई का कारण उत्पन्न नहीं होता है। अदालत ने कहा कि कार्रवाई का कारण तब उत्पन्न होता है जब आरोपी डिमांड नोटिस दिए जाने के 15 दिन बाद भुगतान करने में विफल रहता है।

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    S.15A SC/ST Act| शिकायतकर्ता को SMS, व्हाट्सएप के जरिए जमानत की सुनवाई के बारे में बताया जा सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस को सबूत/स्क्रीनशॉट पेश करने का निर्देश दिया

    हाईकोर्ट ने कहा कि SC/ST एक्ट की धारा 15ए का अनुपालन, जिसके तहत SC/ST Act के तहत आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई से पहले शिकायतकर्ता को सूचना भेजना जरूरी है, तब भी पूरा होता है, जब ऐसी सूचना SMS व्हाट्सएप के जरिए मोबाइल पर भेजी गई हो।

    उन्होंने पुलिस महानिदेशक और राज्य के प्रमुख सचिव को सभी जांच अधिकारियों/सभी पुलिस स्टेशनों के स्टेशन हाउस अधिकारियों को निर्देश देने का निर्देश दिया कि SC/ST Act के तहत अपराधों के लिए दायर जमानत याचिकाओं के लिए जब भी कोर्ट सरकारी वकील को शिकायतकर्ता/पीड़ित/पीड़ित पक्ष को सूचना भेजने का निर्देश दे, तो वे रिकॉर्ड पर मैसेज/टेक्स्ट मैसेज/व्हाट्सएप मैसेज का सबूत/स्क्रीनशॉट पेश करें। यह कोर्ट को सक्षम बनाने के लिए है।

    केस टाइटल: रमेश बैरवा बनाम राजस्थान राज्य और अन्य संबंधित आवेदन

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    NDPS Act | बिना आरोप-पत्र के 60 दिनों से अधिक न्यायिक हिरासत गैरकानूनी: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि NDPS के आरोपी को बिना आरोप-पत्र दाखिल किए न्यायिक हिरासत में रखने की अवधि FSL रिपोर्ट के निष्कर्षों पर निर्भर करती है, राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने पुलिस महानिदेशक जयपुर को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि NDPS मामलों में FSL रिपोर्ट प्राथमिकता के आधार पर 60 दिनों के भीतर प्राप्त की जाए।

    जस्टिस अनिल कुमार उपमन NDPS आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसे मार्च 2024 में गिरफ्तार किया गया। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार बरामद प्रतिबंधित पदार्थ को जब्ती अधिकारी ने अपने पिछले अनुभव के आधार पर एमडीए माना, जिसे बाद में FSL को भेज दिया गया।

    टाइटल: धीरज सिंह परमार बनाम राजस्थान राज्य

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    POCSO Act | महिला जननांग के साथ पुरुष लिंग का संपर्क 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' माना जाता है, योनि में प्रवेश जरूरी नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि योनि में प्रवेश किए बिना लेबिया मेजोरा या वल्वा के भीतर पुरुष जननांग का प्रवेश, POCSO अधिनियम की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव यौन हमले का अपराध माना जाएगा।

    कोर्ट ने कहा, “… लेबिया मेजोरा या वल्वा के भीतर पुरुष जननांग अंग का प्रवेश, वीर्य के किसी उत्सर्जन के साथ या उसके बिना या यहां तक ​​कि पीड़ित के निजी अंग में पूरी तरह से, आंशिक रूप से या थोड़ा सा प्रवेश करने का प्रयास भी POCSO अधिनियम के तहत पेनेट्रेटिव यौन हमले का अपराध माना जाएगा।”

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    अगर शादी का वादा करते समय किसी पुरुष का इरादा किसी लड़की को धोखा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाना है, तो उसकी सहमति अमान्य हो जाती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    जब शादी का वादा झूठा हो और वादा करते समय वादा करने वाले की मंशा वादा निभाने की न होकर उसे धोखा देकर यौन संबंध बनाने के लिए राजी करने की हो, तो यह 'तथ्य की गलत धारणा' है और यह लड़की की सहमति को 'नुकसान पहुंचाता' है, यह बात बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में नाबालिग से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की बलात्कार की सजा को बरकरार रखते हुए कही।

    स‌िंगल जज जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के ने आरोपी की इस दलील पर गौर किया कि पीड़िता का एकतरफा प्रेम संबंध था और इसलिए पीड़िता की उससे शादी करने की इच्छा पर उन्होंने यौन संबंध बनाए। हालांकि, न्यायाधीश ने कहा कि पीड़िता से शादी का वादा करके उसके साथ किया गया उसका रिश्ता शुरू से ही सच्चा नहीं लगता क्योंकि उसने शादी का वादा करके उसे पूरी तरह गुमराह किया।

    केस टाइटल: रूपचंद शेंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक अपील 155/2023)

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    वैवाहिक स्थिति की घोषणा की मांग करने वाले मुकदमे का निर्णय पारिवारिक न्यायालय द्वारा किया जाएगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की घोषणा से संबंधित मुकदमा फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 के दायरे में आने वाला मुकदमा होगा और फैमिली कोर्ट को इस पर निर्णय लेने का अधिकार होगा।

    जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और जस्टिस राजेश राय के की खंडपीठ ने अर्जुन रणप्पा हटगुंडी द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिन्होंने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें यह घोषित करने की मांग करने वाली उनकी याचिका को वापस कर दिया गया था कि प्रतिवादी उनकी पत्नी और बच्चे नहीं हैं। ऐसा करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि फैमिली कोर्ट के पास मुकदमे पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं है।

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    रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 47 | रजिस्टर डीड कब से संचालित होगा, यह कट ऑफ तिथि से पहले अनिवार्य प्रस्तुतिकरण को समाप्त नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    LPG वितरक और उसके रजिस्ट्रेशन से संबंधित मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि रजिस्ट्रेशन एक्ट (धारा 47) के तहत रजिस्टर दस्तावेज कब से संचालित होगा, यह धारा संबंधित पक्षों के बीच संचालित होती है, लेकिन इसे निर्धारित कट ऑफ तिथि पर/या उससे पहले रजिस्टर लीज डीड प्रस्तुत करने के अनिवार्यता को समाप्त करने के लिए बढ़ाया नहीं जा सकता।

    रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 47 पंजीकृत दस्तावेज के संचालन के समय से संबंधित है। इसमें कहा गया कि पंजीकृत दस्तावेज उस समय से संचालित होगा, जिस समय से वह संचालित होना शुरू होता, यदि उसका पंजीकरण आवश्यक नहीं होता या नहीं किया जाता न कि उसके रजिस्ट्रेशन के समय से।

    केस टाइटल: अभिषेक अग्रवाल बनाम भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य।

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    बोर्ड परीक्षा प्रमाण पत्र में नाम सिविल कोर्ट से डिक्री प्राप्त करने के बाद ही बदला जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि बोर्ड परीक्षा प्रमाणपत्रों में नाम केवल नाम परिवर्तन के संबंध में सिविल न्यायालय से डिक्री प्राप्त करने के बाद ही बदला जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि आधार कार्ड और पैन कार्ड में नाम बदलने का संदर्भ बोर्ड की ओर से किसी व्यक्ति का नाम बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है।

    चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने कहा, “अपनी पसंद से नया नाम प्राप्त करना अधिनियम के अध्याय-VI के अंतर्गत आता है, इस अर्थ में कि कोई व्यक्ति जो नया नाम प्राप्त करना चाहता है, वह सिविल न्यायालय से इस आशय की घोषणा की डिक्री प्राप्त कर सकता है कि अब से वह अपने नए प्राप्त नाम से ही जाना जाएगा। ऐसी स्थिति में डिक्री की तिथि प्रासंगिक होगी और उक्त तिथि से लागू होगी, जिसके पहले घोषणा चाहने वाले वादी को उसके पिछले नाम से ही जाना जाएगा।”

    केस टाइटलः उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य बनाम मोहम्मद समीर राव और 3 अन्य [विशेष अपील संख्या - 459/2023]

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