अग्रिम जमानत याचिका तभी स्वीकार्य, जब आरोपपत्र में आरोपी को घोषित भगोड़ा दिखाया गया हो: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

1 March 2025 8:19 AM

  • अग्रिम जमानत याचिका तभी स्वीकार्य, जब आरोपपत्र में आरोपी को घोषित भगोड़ा दिखाया गया हो: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने एकल जज द्वारा दिए गए संदर्भ का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत याचिका तब भी स्वीकार्य है, जब दाखिल आरोपपत्र में आरोपी को घोषित भगोड़ा दिखाया गया हो।

    अदालत ने आगे कहा कि अग्रिम जमानत याचिका तब भी स्वीकार्य है, जब आरोपी के खिलाफ CrPC की धारा 82 और 83 या धारा 299 के तहत कार्यवाही शुरू की गई हो या जब आरोपी को भगोड़ा अपराधी घोषित किया गया हो।

    चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा,

    इस प्रश्न के कानूनी पहलुओं और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णयों को ध्यान में रखते हुए हम यह मानने के लिए इच्छुक हैं कि दोनों परिदृश्यों में, जहां आरोपी के खिलाफ CrPC की धारा 82/83 और 299 (BNSS की धारा 84/85 और 335) के तहत कार्यवाही शुरू की गई और/या उसे घोषित अपराधी घोषित किया गया, अग्रिम जमानत के लिए आवेदन बनाए रखा जा सकता है। हालांकि आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर विचार और अनुदान उसमें शामिल अपराध की गंभीरता पर निर्भर करेगा। यहां यह उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि इस तरह की शक्ति का प्रयोग बहुत सावधानी से और न्याय के हित में केवल चरम और असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए।”

    खंडपीठ ने स्पष्ट किया,

    "इस मामले को देखते हुए भूपेंद्र सिंह और गौरव मालवीय (सुप्रा) तथा अन्य संबद्ध मामलों में एकल जज द्वारा दिए गए निर्णय, जिसमें कहा गया कि उन मामलों में अग्रिम जमानत आवेदन स्वीकार्य नहीं है, जहां आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है, कानून का सही कथन नहीं है। इस प्रकार इस निर्णय को इस सीमा तक खारिज किया जाता है। इसलिए हम मानते हैं कि अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य है, भले ही आरोप पत्र दाखिल किया गया हो, जिसमें आरोपी को भगोड़ा घोषित किया गया हो।"

    वर्तमान मामले को एकल जज ने 9 सितंबर, 2022 के आदेश के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष विचार करने के लिए भेजा।

    खंडपीठ द्वारा निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार किया गया:

    (i) क्या धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य है, यदि आरोपी के खिलाफ धारा 82 और 83 या धारा 299 के तहत कार्यवाही शुरू की गई?

    (ii) क्या धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत याचिका तब भी स्वीकार्य है, जब आरोपी को सक्षम अधिकारी द्वारा धारा 82 और 83 या धारा 299 के तहत 'भगोड़ा/घोषित अपराधी' घोषित किया जा चुका है?

    पूरा मामला

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 420, 406 और 409/34 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया।

    जांच के बाद संबंधित न्यायालय के समक्ष उसे फरार बताते हुए आरोप-पत्र दायर किया गया। फिर उसके खिलाफ धारा 82 और 83 CrPC के तहत कार्यवाही शुरू की गई। याचिकाकर्ता को घोषित अपराधी घोषित किया गया और उसके खिलाफ गिरफ्तारी का स्थायी वारंट जारी किया गया। इसके बाद उसने ट्रायल कोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एकल जज के समक्ष सुनवाई के दौरान राज्य द्वारा अग्रिम जमानत के लिए आवेदन की स्थिरता का प्रश्न उठाया गया था। एकल पीठ ने दो समान मामलों में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के विरोधाभासी आदेशों का उल्लेख करते हुए मामले को एक खंडपीठ को संदर्भित किया। न्यायालय के दोनों न्यायालय आदेश प्रकृति में भिन्न थे, क्योंकि एक ने माना कि घोषित अपराधी की अग्रिम जमानत की अर्जी स्थिरता योग्य नहीं है, जबकि दूसरे ने माना कि अर्जी पर न्यायालय द्वारा सुनवाई और निर्णय किया जा सकता है।

    एमिक्स क्यूरी और सरकारी वकील द्वारा पेश की गई दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने भूपेंद्र सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य का संदर्भ दिया, जिसमें एकल न्यायाधीश का विचार था कि जब आवेदक को फरार दिखाते हुए आरोप-पत्र दायर किया जाता है तो CrPC की धारा 438 के तहत आवेदन।

    अग्रिम जमानत के लिए तर्क स्वीकार्य नहीं था। पीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने प्रदीप शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य का संदर्भ दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपराध की गंभीरता पर विचार किया और यह कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा था और घोषित अपराधी होने के कारण उसे अग्रिम जमानत नहीं दी गई।

    इसके अलावा, भारत चौधरी और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य (2003) में सुप्रीम कोर्ट को धारा 438 CrPC के तहत शक्ति पर विचार करने का अवसर मिला, जिसमें यह माना गया कि सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी उपयुक्त मामले में शक्ति के प्रयोग के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है, भले ही संज्ञान लिया गया हो या आरोप-पत्र दायर किया गया हो।

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही संज्ञान लिया गया हो या आरोप-पत्र दायर किया गया हो यह अपने आप में उचित मामलों में न्यायालय को अग्रिम जमानत देने से नहीं रोकेगा। अग्रिम जमानत देते समय विचार करने वाला एकमात्र महत्वपूर्ण कारक अपराध की गंभीरता और हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है। इसके अलावा, एक अन्य मामले मे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अग्रिम जमानत दी कि यह CrPC की धारा 82 के तहत घोषणा की स्थिति में अग्रिम जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला है इस शर्त पर कि अपीलकर्ता आगे की जांच में सहयोग करेगा।

    विभिन्न निर्णयों पर विचार करने के बाद खंडपीठ ने कहा,

    यह दोपहर की तरह स्पष्ट है कि CrPC की धारा 438 के तहत शक्ति असाधारण शक्ति है। इसलिए इसे कम नहीं किया जा सकता। यदि यह दृष्टिकोण लिया जाता है कि सभी मामलों में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य नहीं है तो यह CrPC की धारा 438/BNSS की धारा 482 के तहत न्यायालयों को दी गई शक्ति को कम कर देगा। हालांकि, अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने के संबंध में प्रतिबंध होंगे जो अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए अपराधों की प्रकृति पर निर्भर करेगा। इस तथ्य के साथ कि अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने से किसी भी तरह से मामले की चल रही जांच में बाधा या प्रभाव नहीं पड़ता है।”

    अदालत ने माना कि दोनों परिदृश्यों में जहां CrPC की धारा 82/83 और 299 के तहत कार्यवाही चल रही है। (BNSS की धारा 84/85 और 335) के तहत आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की गई और/या उसे घोषित अपराधी घोषित किया गया है तो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य होगा।

    केस टाइटल: दीपांकर विश्वास बनाम मध्य प्रदेश राज्य के माध्यम से पी.एस. ओमती, जिला जबलपुर

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