हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

27 Oct 2024 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (21 अक्टूबर, 2024 से 25 अक्टूबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    उचित भर्ती प्रक्रिया के बिना आकस्मिक श्रमिकों के नियमितीकरण का अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्रधारी सिंह की सिंगल जज बेंच ने पीएनबी के एक अस्थायी कर्मचारी की बर्खास्तगी और नियमितीकरण दावों से जुड़ी याचिकाओं पर फैसला सुनाया। अदालत ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के अवैध समाप्ति के निष्कर्ष को बरकरार रखा, लेकिन बहाली से राहत को 2.5 लाख रुपये के मौद्रिक मुआवजे में संशोधित किया।

    अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का हवाला देते हुए कार्यकर्ता के नियमितीकरण के दावे को खारिज कर दिया, जो यह स्थापित करते हैं कि आकस्मिक श्रमिक उचित भर्ती प्रक्रिया के बिना नियमितीकरण का दावा नहीं कर सकते हैं, और यह कि केवल सेवा में बने रहने से नियमितीकरण अधिकार प्रदान नहीं होते हैं। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जबकि समाप्ति औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25F का उल्लंघन करती है, बहाली अस्थायी श्रमिकों को समाप्त करने में प्रक्रियात्मक उल्लंघन के लिए एक स्वचालित उपाय नहीं है।

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    प्रतिवादी लिखित बयान दाखिल किए बिना CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत वाद खारिज करने की मांग कर सकता है: हाईकोर्ट

    संपत्ति टाइटल विवाद की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार मुकदमा शुरू होने और नोटिस जारी होने के बाद प्रतिवादी को CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत वाद खारिज करने की मांग करने का अधिकार है भले ही लिखित बयान दाखिल न किया गया हो।

    ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी का वाद खारिज करने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश तथ्यों और कानून दोनों के आधार पर गलत था।

    केस टाइटल: ज्योत्सना मिश्रा और अन्य बनाम गौर बरन ओझा

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    दिव्यांगता पेंशन तभी अस्वीकार की जा सकती है, जब मेडिकल बोर्ड यह रिकॉर्ड करे कि सैन्य सेवा में शामिल होने के समय बीमारी मौजूद थी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि सैन्य सेवा में दिव्यांगता पेंशन तभी अस्वीकार की जा सकती है, जब सेवा में शामिल होने के समय मेडिकल बोर्ड यह रिकॉर्ड करे कि अधिकारी की चिकित्सा स्थिति ने उसे सैन्य सेवा के लिए अयोग्य बना दिया है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा कि दिव्यांगता पेंशन किसी सैन्य अधिकारी तभी अस्वीकार की जा सकती है, जब संबंधित व्यक्ति को सैन्य सेवा में स्वीकार किए जाने के समय मेडिकल बोर्ड द्वारा उसके किसी बीमारी से ग्रस्त होने के बारे में कुछ नोटिंग दर्ज की जाती है, जो हालांकि यह निष्कर्ष निकालती है कि वह अभी भी भर्ती होने के लिए अयोग्य नहीं है।

    केस टाइटल: काला सिंह बनाम भारत संघ और अन्य

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    हाईकोर्ट जज एक्ट के तहत पारिवारिक पेंशन राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष पर भी लागू: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत "पारिवारिक पेंशन" नियम उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग अधिनियम, 2010 के तहत राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन पर लागू होंगे।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा कि हालांकि उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग अधिनियम, 2010 और उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (अध्यक्ष के वेतन और भत्ते और सेवा की शर्तें) नियम, 2011 में अध्यक्ष के लिए 'पारिवारिक पेंशन' का विशेष रूप से प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन विधानमंडल ने इसके लिए न्यायाधीश अधिनियम, 1954 को पढ़ा था।

    केस टाइटल: जस्टिस विनोद चंद्र मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [WRIT - A No. - 7743 of 2019]

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    हाईकोर्ट के विपरीत वन न्यायाधिकरण के पास समीक्षा की कोई 'अंतर्निहित शक्ति' नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईक्कौर्ट की पांच जजों की खंडपीठ ने माना है कि केरल निजी वन (वेस्टिंग और असाइनमेंट) अधिनियम के तहत गठित ट्रिब्यूनल के पास समीक्षा की कोई अंतर्निहित शक्ति नहीं है और इस प्राधिकरण को समीक्षा की अनुमति देने वाले प्रावधानों का पता लगाया जाना चाहिए।

    ऐसा करते हुए खंडपीठ ने कहा कि धारा 8B (3) के तहत ट्रिब्यूनल की समीक्षा की शक्ति को अधिनियम की धारा 8 B(1) में उल्लिखित आधारों के अलावा अन्य आधारों पर नहीं बढ़ाया जा सकता है।

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    कर्मचारी के आधिकारिक कर्तव्यों से असंबंधित लंबित आपराधिक मामले के कारण सेवानिवृत्ति लाभ रोकना जीवन के अधिकार का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभों को केवल आपराधिक कार्यवाही के लंबित होने के आधार पर रोकना, जिसका आधिकारिक कर्तव्यों से कोई लेना-देना नहीं है, अनुचित और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि ये वे स्रोत हैं जिनके द्वारा कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद अपनी आवश्यकताओं की व्यवस्था करता है।

    कोर्ट ने कहा, “पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ विभाग के साथ उसके द्वारा की गई सेवाओं के लिए कर्मचारी की कमाई है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसे लाभों को वापस लेना या रोकना याचिकाकर्ता को जीवन के अधिकार से वंचित करने के बराबर है, क्योंकि पुनर्विचार लाभ वे स्रोत हैं जिनके द्वारा याचिकाकर्ता और उसका परिवार अपनी रोटी और अन्य आवश्यकताओं की व्यवस्था करता है।”

    केस टाइटलः श्रीमती सुनीता दीक्षित बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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    2021 विदेश मंत्रालय की अधिसूचना से पहले ओसीआई कार्डधारक एमबीबीएस प्रवेश के लिए भारतीय नागरिक या विदेशी राष्ट्रीय श्रेणी के तहत पात्र: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारत के विदेशी नागरिक (ओसीआई) कार्डधारक, जिन्होंने गृह मंत्रालय (एमईए) की 04.03.2021 की अधिसूचना से पहले अपने ओसीआई कार्ड प्राप्त किए हैं, वे एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए भारतीय राष्ट्रीय श्रेणी या विदेशी राष्ट्रीय श्रेणी में विचार किए जाने के पात्र हैं।

    संदर्भ के लिए, विदेश मंत्रालय की 04.03.2021 की अधिसूचना ने एनईईटी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के उद्देश्य से भारत में अपनी पढ़ाई कर रहे ओसीआई कार्डधारकों को भारतीय राष्ट्रीय श्रेणी से विदेशी राष्ट्रीय श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया।

    केस टाइटल: देवदर्शिनी उमापति बनाम मेडिकल काउंसलिंग कमेटी और अन्य।(W.P.(C) 12263/2024 & CM APPL. 50961/2024)

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    आर्मी पब्लिक स्कूल अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' नहीं, रोजगार विवाद रिट अधिकार क्षेत्र के तहत विचारणीय नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि आर्मी पब्लिक स्कूल (APS) और उनकी शासी संस्था, आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी (AWES), भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "राज्य" के रूप में योग्य नहीं हैं।

    इसके परिणामस्वरूप जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने स्पष्ट किया कि निजी संविदात्मक शर्तों द्वारा शासित APS शिक्षकों से संबंधित रोजगार विवादों को अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    केस टाइटल: शिवाली शर्मा बनाम आर्मी पब्लिक स्कूल, अध्यक्ष AWES के माध्यम से

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    मैटरनिटी बेनेफिट एक्ट के प्रावधान संविदात्मक शर्तों पर लागू होंगे, संविदा कर्मचारियों पर भी लागू होंगे: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि मैटरनिटी बेनेफिट एक्ट (Maternity Benefits Act) के प्रावधान नियोक्ता द्वारा किसी महिला को मेटरनिटी बेनेफिट से वंचित करने के लिए निर्धारित किसी भी संविदात्मक शर्तों पर लागू होंगे।

    चीफ जस्टिस केआर श्रीराम और जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने कहा कि मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट के लाभ संविदा कर्मचारियों पर भी लागू होंगे। नियोक्ता उन्हें ऐसे लाभों से वंचित करने के लिए रोजगार के अनुबंध पर भरोसा नहीं कर सकता।

    केस टाइटल: एमआरबी नर्सेज एम्पावरमेंट एसोसिएशन बनाम प्रिंसिपल सेक्रेटरी और अन्य

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    रिश्वत जैसे अनैतिक लेन-देन को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत लागू नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रिश्वत की राशि परक्राम्य लिखत (एनआई) अधिनियम के तहत कानूनी रूप से लागू करने योग्य दायित्व नहीं बनती है।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा, "रिश्वत के रूप में किया गया भुगतान, एक अवैध और अनैतिक लेनदेन होने के कारण, कानूनी रूप से लागू करने योग्य दायित्व नहीं बनता है। इस प्रकार, विद्वान ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से निष्कर्ष निकाला है कि इस मामले में कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण मौजूद नहीं था, और एक गैरकानूनी कार्य को आगे बढ़ाने के लिए जारी किया गया चेक परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत आपराधिक दायित्व को जन्म नहीं दे सकता है।"

    केस टाइटलः सुरिंदर सिंह बनाम राम देव

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    उच्च योग्यता अनिवार्य बुनियादी योग्यता का स्थान नहीं ले सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल वर्मा ने मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा सेवा (शिक्षण संवर्ग) भर्ती नियम, 2018 के तहत अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री की अनिवार्य आवश्यकता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह माना कि उम्मीदवारों के पास उस विषय में विशिष्ट स्नातक योग्यता होनी चाहिए, जिसे वे पढ़ाना चाहते हैं, भले ही उसी विषय में उच्च योग्यता हो।

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    बलात्कार के मामले में DNA प्रोफाइलिंग के न्यायालय के आदेश के बाद आरोपी ब्लड का सैंपल देने से मना कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बलात्कार के मामले में आरोपी की DNA प्रोफाइलिंग की अनुमति देने वाला न्यायिक आदेश अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोष के खिलाफ संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश पारित करने के बाद भी ब्लड का सैंपल देने से मना करने का विकल्प आरोपी के पास होगा।

    जस्टिस अरुण मोंगा की एकल पीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता के पास यह विकल्प है कि वह विचाराधीन DNA test के लिए अपना ब्लड सैंपल दे या नहीं। यदि वह विचाराधीन DNA टेस्ट के लिए अपना ब्लड सैंपल नहीं देना चाहता है तो याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होकर अपना ब्लड सैंपल देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि उस स्थिति में उसे इस तरह के इनकार के कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।"

    केस टाइटल: रोहित कुमार बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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    CrPC की धारा 82 के तहत आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करने के लिए कोई 'पूर्ण निषेध' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत के लिए दायर आवेदन पर विचार करने के खिलाफ कोई 'पूर्ण निषेध' नहीं है, जिसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 के तहत गिरफ्तारी या उद्घोषणा जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि अदालत को न्याय के हित में अत्यंत असाधारण मामलों में मामले की योग्यता पर विचार करने का अधिकार है।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ का यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य 2024 लाइव लॉ (SC) 232 में फैसला सुनाया था कि अगर कोई आरोपी गैर-जमानती वारंट और सीआरपीसी की धारा 82 (1) के तहत उद्घोषणा लंबित है तो वह अग्रिम जमानत का हकदार नहीं होगा।

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    पति के पत्नी की सहमति के बिना उसका सोना गिरवी रखना IPC की धारा 406 के तहत आपराधिक विश्वासघात: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पति की दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 के तहत अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसका सोना गिरवी रखने के लिए आपराधिक विश्वासघात का दोषी पाया गया था। जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने माना कि अपराध के सभी तत्व सिद्ध होते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "इस मामले में अभियोजन पक्ष का तर्क यह है कि पीडब्लू1 की मां ने पीडब्लू1 को 50 सोने के आभूषण उपहार में दिए और पीडब्लू1 ने उन्हें ट्रस्टी के रूप में बैंक लॉकर में रखने के लिए आरोपी को सौंप दिया। आरोपी ने सोने के आभूषणों को बैंक लॉकर में रखने के बजाय बेईमानी से गबन किया और उस संपत्ति को मुथूट फिनकॉर्प में गिरवी रखकर अपने इस्तेमाल के लिए बदल लिया। इस तरह ट्रस्ट का उल्लंघन किया और पीडब्लू1 को उससे नुकसान उठाना पड़ा। इस प्रकार, इस मामले में IPC की धारा 406 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए तत्व पूरी तरह से तैयार किए गए। ऐसे मामले में यह मानने का कोई कारण नहीं है कि आरोपी ने IPC की धारा 406 के तहत दंडनीय अपराध किया।"

    केस टाइटल: सुरेन्द्र कुमार बनाम केरल राज्य

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    दिल्ली पुलिस विशेष शाखा की नियमावली में निहित विवरण गोपनीय, आरटीआई अधिनियम के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा मैनुअल में निहित विवरण गोपनीय प्रकृति के हैं और सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त हैं। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि गोपनीय प्रकृति के कारण, विवरण सार्वजनिक डोमेन में नहीं लाया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा, "जबकि आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है, न्यायालय को संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के बारे में भी उतना ही सावधान रहना चाहिए जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।"

    केस टाइटलः हरकिशनदास निझावन बनाम सीपीआईओ, दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा और अन्य।

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    पति को ट्रांसजेंडर कहना मानसिक क्रूरता के बराबर: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पति के पक्ष में दिया गया तलाक बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि पत्नी द्वारा अपने पति को हिजड़ा (ट्रांसजेंडर) कहना मानसिक क्रूरता के बराबर है।

    जस्टिस सुधीर सिंह एवं जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा, "यदि फैमिली कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों की जांच माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आलोक में की जाए तो यह सामने आता है कि अपीलकर्ता-पत्नी के कृत्य एवं आचरण क्रूरता के बराबर हैं। सबसे पहले प्रतिवादी-पति को हिजड़ा (ट्रांसजेंडर) कहना और उसकी मां को ट्रांसजेंडर को जन्म देने वाला कहना क्रूरता का कार्य है।"

    केस टाइटल: XXXX बनाम XXXXX

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    FIR दर्ज होने मात्र से शस्त्र लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल FIR दर्ज करना उसके शस्त्र लाइसेंस को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। जस्टिस मोहित कुमार शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक मामले की सुनवाई की, जहां याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जिला मजिस्ट्रेट, सुपौल ने याचिकाकर्ता के हथियार लाइसेंस को रद्द कर दिया था। डीएम के अनुसार, एफआईआर दर्ज करने का मतलब याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होना है, जिसके कारण वह शस्त्र लाइसेंस रखने के लिए अयोग्य हो जाता है।

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    [NDPS Act] 180 दिन की सीमा के भीतर चार्जशीट के साथ फोरेंसिक रिपोर्ट जमा नहीं होने पर आरोपी डिफॉल्ट जमानत का हकदार: कलकत्ता हाईकोर्ट

    NDPS मामले में जमानत के लिए एक आवेदन से निपटने के दौरान कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा किए गए आवेदन को स्वीकार कर लिया है, जिसने इस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत मांगी थी कि उसके खिलाफ दायर आरोप पत्र 180 दिनों की वैधानिक सीमा के भीतर फोरेंसिक रिपोर्ट के बिना प्रस्तुत किया गया था।

    जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस अपूर्वा सिन्हा रे की खंडपीठ ने कहा: निर्विवाद तथ्य के मद्देनजर कि वर्तमान मामले में आरोपपत्र, हालांकि 180 दिनों की अवधि के भीतर दायर किया गया था, एफएसएल रिपोर्ट के साथ नहीं था, और यह कि एफएसएल रिपोर्ट याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी की तारीख से 180 दिनों से अधिक समय तक दायर पूरक आरोप-पत्र के हिस्से के रूप में दायर की गई थी और वैधानिक जमानत के लिए आवेदन करने के बाद, हमें यह मानना होगा कि 180 दिनों की समाप्ति पर, याचिकाकर्ता वैधानिक जमानत/डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार बन गया, और विद्वान ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उस विशेषाधिकार का विस्तार नहीं करके गलती की।

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    निजी स्कूलों में शिक्षकों के खिलाफ बर्खास्तगी के आदेश के लिए शिक्षा निदेशालय की मंजूरी अनिवार्य, पूर्वव्यापी मंजूरी कानून में कायम नहीं रह सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली ‌हाईकोर्ट के जस्टिस हरि शंकर और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की खंडपीठ ने हाल ही में एक शिक्षक को सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि शिक्षा निदेशालय द्वारा शिक्षक को सेवा से बर्खास्त करने के लिए पूर्वव्यापी स्वीकृति डीएसई अधिनियम की धारा 8(2) और डीएसई नियमों के नियम 120(2) के तहत अनिवार्य रूप से कानून में टिक नहीं सकती।

    अपीलकर्ता, एक सहायक शिक्षक 1988 में एक स्कूल (प्रतिवादी) में अस्थायी आधार पर सेवा कर रहा था और जून 2013 तक उसी पद पर बना रहा।

    केस टाइटल: आशा रानी गुप्ता बनाम रविंदर मेमोरियल पब्लिक स्कूल और अन्य

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    हिरासत के दौरान आरोपी द्वारा अपना मोबाइल फोन न दिखाना 'असहयोग' नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि हिरासत में रहने के दौरान आरोपी द्वारा पुलिस को अपना मोबाइल फोन न दिखाना 'असहयोग' नहीं माना जा सकता, क्योंकि आरोपी को संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण प्राप्त है।

    जस्टिस डॉ. वी.आर.के. कृपा सागर की एकल पीठ पूर्व सांसद एन. सुरेश बाबू और व्यवसायी अवुतु श्रीनिवास रेड्डी (याचिकाकर्ता) की जमानत याचिकाओं पर विचार कर रही थी। अभियोजन पक्ष का कहना है कि याचिकाकर्ताओं ने YSRCP पार्टी के 70 अन्य लोगों के साथ जबरन TDP के राज्य कार्यालय में प्रवेश किया और TDP समर्थकों और कर्मचारियों पर हमला किया।

    केस टाइटल: अवुथु श्रीनिवास रेड्डी बनाम स्टेशन हाउस अधिकारी (आपराधिक याचिका नंबर 6295 और 6306 वर्ष 2024)

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