हिरासत के दौरान आरोपी द्वारा अपना मोबाइल फोन न दिखाना 'असहयोग' नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

21 Oct 2024 9:01 AM IST

  • हिरासत के दौरान आरोपी द्वारा अपना मोबाइल फोन न दिखाना असहयोग नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि हिरासत में रहने के दौरान आरोपी द्वारा पुलिस को अपना मोबाइल फोन न दिखाना 'असहयोग' नहीं माना जा सकता, क्योंकि आरोपी को संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण प्राप्त है।

    जस्टिस डॉ. वी.आर.के. कृपा सागर की एकल पीठ पूर्व सांसद एन. सुरेश बाबू और व्यवसायी अवुतु श्रीनिवास रेड्डी (याचिकाकर्ता) की जमानत याचिकाओं पर विचार कर रही थी।

    अभियोजन पक्ष का कहना है कि याचिकाकर्ताओं ने YSRCP पार्टी के 70 अन्य लोगों के साथ जबरन TDP के राज्य कार्यालय में प्रवेश किया और TDP समर्थकों और कर्मचारियों पर हमला किया।

    राज्य द्वारा जमानत याचिका का विरोध करने के लिए दिए गए कारणों में से एक यह था कि बाबू पुलिस को अपना मोबाइल फोन उपलब्ध कराने में विफल रहे। इसने तर्क दिया कि मामले की आगे की जांच के लिए मोबाइल फोन महत्वपूर्ण है।

    न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के संकेत भद्रेश मोदी बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो (2024 लाइव लॉ (दिल्ली) 5) के मामले का हवाला दिया, जहां यह देखा गया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटीकृत सुरक्षा के मद्देनजर, जांच के दौरान जब्त किए गए डिजिटल डिवाइस या गैजेट के पासवर्ड या किसी अन्य समान विवरण का खुलासा करने के लिए अभियुक्त को मजबूर नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय का मानना ​​था कि पुलिस को मोबाइल फोन उपलब्ध कराने में विफलता को असहयोग नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभियुक्त को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण प्राप्त है।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "उपर्युक्त सिद्धांतों के आलोक में हिरासत में रहते हुए अभियुक्तों द्वारा अपने मोबाइल फोन जमा करने में विफलता को अभियुक्तों द्वारा असहयोग नहीं कहा जा सकता। जांच एजेंसी को केवल इसलिए आगे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य हासिल करने में बाधा महसूस नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वह अभियुक्तों से मोबाइल फोन जब्त नहीं कर सकी।"

    यहां न्यायालय ने कहा कि पुलिस द्वारा भौतिक वस्तुएं और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र किए गए। इसने उल्लेख किया कि लगभग 34 अभियुक्तों को जमानत पर रिहा किया गया। कहा कि पिछले वर्षों के उनके व्यवसाय, निवास और उपलब्धता से संकेत मिलता है कि वे कानून की प्रक्रिया से बचने की संभावना नहीं रखते हैं।

    इसने राय दी कि निरंतर हिरासत अनावश्यक थी। इस प्रकार इसने याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों को जमानत दी।

    केस टाइटल: अवुथु श्रीनिवास रेड्डी बनाम स्टेशन हाउस अधिकारी (आपराधिक याचिका नंबर 6295 और 6306 वर्ष 2024)

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