ताज़ा खबरे
NI Act में चेक का विशेष रूप से क्रॉस
इस एक्ट की धारा 124 चेक के विशेष क्रॉस से संबंधित है। एक चेक विशेषत: रेखांकित कहा जाएगा जब दो समानान्तर रेखाओं के बीच किसी बैंक का नाम कुछ संक्षेपाक्षर शब्दों के साथ या बिना इसके बढ़ा दिया गया है अर्थात् जहाँ चेक का क्रॉस किसी बैंक के नाम से किया गया है। इस बैंक का नाम ऊपरवाल (बैंक) से भिन्न होगा।विशेष क्रॉस में यह चीज़ें होती हैंदो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना। हालांकि केवल बैंक का नाम एवं "एकाउन्ट पेयी" बिना इन रेखाओं के लिखना, विशेष क्रॉस होगा।किसी विशेष बैंक का नाम लिखना आवश्यक है। बिना इन...
NI Act की धारा 123 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 123 चेक के क्रॉस से संबंधित है। इस धारा में चेक जहाँ चेक के मुख भाग के बाय तरफ ऊपर केवल दो आड़ी समानान्तर रेखाएं कुछ संक्षेपाक्षर शब्दों के साथ या बिना उसके हो, तो उसे साधारण या सामान्य क्रॉस कहते हैं।दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना आवश्यक केवल दो समानान्तर रेखाएं हो अपने आप में क्रॉस हैं।यह सामान्तया चेक के मुख भाग पर सबसे ऊपर बायीं तरफ होनी चाहिए।कुछ संक्षेपाक्षण शब्द जैसे "एण्ड कं० " इत्यादि दोनों रेखाओं के बीच लिखा जा सकता है।"परक्राम्य नहीं है" या " अपरक्रामणीय" शब्दों को...
सीजेआई पर 'गृह युद्ध' टिप्पणी मामले में निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की मांग
सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मंजूरी मांगी गई। इस मांग लेकर अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखा गया है।एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR)द्वारा भेजे गए पत्र के अनुसार, दुबे ने कहा,"सुप्रीम कोर्ट देश को अराजकता की ओर ले जा रहा है" और "चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना देश में हो रहे गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं।"यह टिप्पणी राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों...
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (14 अप्रैल, 2025 से 18 अप्रैल, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।सेल एग्रीमेंट के तहत प्रस्तावित क्रेता संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे का दावा करने वाले तीसरे पक्ष पर मुकदमा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेल एग्रीमेंट के तहत प्रस्तावित क्रेता किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ संपत्ति में विक्रेता के हितों की सुरक्षा के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए...
हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 अप्रैल, 2025 से 18 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।UP Revenue Code | सह-भूमिधर संयुक्त स्वामित्व के कानूनी बंटवारे के बाद ही अपने हिस्से के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन की मांग कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 80(1) या 80(2) के तहत गैर-कृषि भूमि उपयोग घोषणा का यह अर्थ नहीं है...
UP Revenue Code | सह-भूमिधर संयुक्त स्वामित्व के कानूनी बंटवारे के बाद ही अपने हिस्से के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन की मांग कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 80(1) या 80(2) के तहत गैर-कृषि भूमि उपयोग घोषणा का यह अर्थ नहीं है कि भूमि का सह-भूमिधरों के बीच बंटवारा हो चुका है।अधिनियम की धारा 80 (4) की व्याख्या करते हुए जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव और जस्टिस शेखर बी. सराफ की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अगर सह-भूमिधरों में से कोई एक संयुक्त स्वामित्व वाली भूमि के गैर-कृषि उपयोग के लिए आवेदन करना चाहता है तो या तो सभी सह-भूमिधरों को एक साथ आवेदन करना होगा, या अगर...
क्या हर शादी के वादे से मुकरना Section 376 IPC के तहत Rape माना जा सकता है?
Naïm Ahamed v. State (NCT of Delhi) नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम कानूनी सवाल का समाधान किया कि क्या शादी का वादा निभाने में असफल होना Rape (बलात्कार) के अपराध की श्रेणी में आता है। इस फैसले में Court ने स्पष्ट किया कि हर ऐसा मामला जिसमें शादी का वादा पूरा नहीं हुआ, उसे Rape नहीं माना जा सकता जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि शुरू से ही आरोपी की मंशा (Intention) धोखा देने की थी।Court ने यह भी कहा कि Consent (सहमति) का विश्लेषण करते समय व्यक्ति की समझदारी, परिस्थिति, और सबूतों (Evidence)...
अपीलीय न्यायालय की शक्तियां : धारा 427 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय न्याय व्यवस्था में "अपील" (Appeal) एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी आरोपी (Accused) या अभियोजन पक्ष (Prosecution) को निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का अधिकार प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी आदेश या सजा (Sentence) से संतुष्ट नहीं है, तो वह अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) में जाकर न्याय मांग सकता है।धारा 427 बी.एन.एस.एस., 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि एक अपीलीय न्यायालय को क्या-क्या अधिकार...
Partnership को समाप्त करने के मुकदमों में Court Fee कैसे लगेगी – Rajasthan Court Fees Act, 1961 की धारा 34
भागीदारी (Partnership) एक ऐसा कानूनी संबंध है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी व्यवसाय को मिलकर चलाते हैं और उससे होने वाले लाभ और हानि को आपस में बाँटते हैं। लेकिन समय के साथ, कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं जब भागीदारों के बीच मतभेद हो जाते हैं और वे अपनी भागीदारी समाप्त करना चाहते हैं। ऐसे मामलों में अक्सर Suit for Dissolution of Partnership यानी भागीदारी समाप्त करने का मुकदमा दायर किया जाता है।Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 34 ऐसे मामलों में लागू होती...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 4, 5 और 6 के अंतर्गत राजस्व बोर्ड की स्थापना, सदस्यता और कार्यस्थल
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) राज्य में भूमि से संबंधित प्रशासन को संचालित करने वाला एक प्रमुख कानून है। इस अधिनियम के अंतर्गत जो सबसे महत्वपूर्ण संस्था बनाई गई है, वह है राजस्व बोर्ड (Board of Revenue)। यह बोर्ड भूमि से जुड़े मामलों में सर्वोच्च स्तर की संस्था मानी जाती है।इस लेख में हम इस अधिनियम की धारा 4 (Section 4), धारा 5 (Section 5) और धारा 6 (Section 6) को विस्तार से सरल हिंदी में समझेंगे। साथ ही उदाहरण (Illustration) के ज़रिए इन प्रावधानों को और...
अनुचित आलोचना: विधेयकों की स्वीकृति के लिए सुप्रीम कोर्ट की समयसीमा के विरुद्ध उपराष्ट्रपति की टिप्पणी
राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा कार्रवाई करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का तीखा हमला काफी अमानवीय है। उपराष्ट्रपति ने अपनी टिप्पणियों (हाल ही में दिए गए एक निर्णय द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है?) से ऐसा लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहकर देश के लिए विनाश का संकेत दे दिया है कि राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर एक निश्चित समयसीमा के भीतर निर्णय लेना...
जब कानून अंतिम उपाय बन जाता है: भावनात्मक अपील और भारतीय न्यायपालिका पर बढ़ता बोझ
“हर शिकायत वास्तविक हो सकती है, लेकिन हर शिकायत कानूनी नहीं होती।”आज के कानूनी परिदृश्य में, भारतीय अदालतें ऐसे विवादों में फंस रही हैं जो पारंपरिक कानूनी गलतियों के दायरे से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। जो पहले अधिकारों को लागू करने और संवैधानिक सवालों को निपटाने के लिए आरक्षित स्थान हुआ करता था, वह अब पहले से कहीं ज़्यादा बार पारस्परिक नाटक, भावनात्मक नतीजों और कानूनी से ज़्यादा व्यक्तिगत लगने वाले विवादों का एक साउंडिंग बोर्ड बन गया है।यह एक सूक्ष्म लेकिन बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है: यह विचार...
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बेबुनियाद विश्वास और अंधविश्वास फैला रहे हैं - क्या हमारे कानूनों में सुधार किए जाने की आवश्यकता है?
जैसा कि नाम से पता चलता है, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर (एसएमआई) वर्तमान डिजिटल युग में लोगों की धारणा पर बहुत अधिक प्रभाव रखते हैं। इंटरनेट पर ऐसे एसएमआई कंटेंट को देखने और शेयर करने वाले डिजिटल उपभोक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ताओं की विचारधारा, कार्य और व्यवहार पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।सोशल मीडिया टूल के माध्यम से बड़े पैमाने पर लोगों को प्रभावित करने की यह शक्ति दोधारी तलवार की तरह काम करती है। हालांकि यह शैक्षिक और कुछ सामाजिक उद्देश्यों के लिए लाभकारी भूमिका निभाता है,...
भारत को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप न्यायिक स्वतंत्रता के मानक विकसित करने चाहिए: जस्टिस मदन बी लोकुर
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने भारत में न्यायिक स्वतंत्रता के लिए ऐसे मानकों के विकास का आह्वान किया है जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप हों।अंतर्राष्ट्रीय न्याय आयोग (आईसीजे) द्वारा “भारत में न्यायिक स्वतंत्रता: तराजू पर सवाल” शीर्षक से एक रिपोर्ट के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए जस्टिस लोकुर ने न्यायिक नियुक्तियों, देरी, पारदर्शिता, विविधता, सांप्रदायिकता और जवाबदेही पर खुली, स्वतंत्र और स्पष्ट चर्चा की आवश्यकता पर बल दिया।“इसलिए हमें चर्चा के बाद अंतरराष्ट्रीय मानकों...
तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल: संविधानवाद को कायम रखना
राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के बारे में संवैधानिक स्थिति स्थापित और स्पष्ट है। उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कार्यों का निर्वहन करना होता है। अब यह अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटेन में संवैधानिक सम्राट के समान है। वह आम तौर पर मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे होते हैं, सिवाय इसके कि संवैधानिक रूप से ऐसा कुछ और निर्धारित हो। "वह उनकी सलाह के विपरीत कुछ नहीं कर सकते और न ही उनकी सलाह के बिना कुछ कर सकते हैं।"...
NI Act में चेक पर खींची जाने वाली लाइन्स का मतलब
चेक पर जो लाइन खींची जाती है उसे क्रॉस कहा जाता है। उसके अलग अलग मतलब होते हैं। चेकों के क्रॉस सम्बन्धी प्रावधान परक्राम्य लिखत अधिनियम की धाराएं 123 से 131 तक उपबन्धित हैं। 1974 में अधिनियम 33 की धारा 2 से इन उपबन्धों को ड्राफ्ट पर भी प्रयोज्य किया गया।चेकों को क्रॉस की प्रथा बहुत अद्यतन प्रारम्भ की है। मि० इरविन एक बैंक कर्मचारी जिन्होंने समाशोधन गृह के विचार को प्रस्तुत किया था, क्रॉस को भी प्रारम्भ किया था, इसलिए उन्हें क्रॉस के पिता के रूप में कहा जा सकता है। प्रारम्भ में चेकों पर बैंकर्स...
NI Act में इंस्ट्रूमेंट से रिलेटेड एविडेन्स
इस एक्ट की धारा 118 में इंस्ट्रूमेंट से रिलेटेड कुछ सबूतों के संबंध में उपधारणा की गयी है। जैसे-डेट के सम्बन्ध में उपधारणालिखतों में यह उपधारणा होती है कि प्रत्येक परक्राम्य लिखत पर जो तिथि होती है वह उस तिथि पर लिखत रचा या लिखा गया होगा, जब तक कि इसके प्रतिकूल साबित न किया जाए।प्रतिग्रहण के समय की उपधारणायह कि प्रत्येक विनिमय पत्र इसके लिखे जाने के युक्तियुक्त समय के युक्तियुक्त समय के पश्चात् एवं परिपक्वता के पूर्व प्रतिग्रहीत किया गया होगा। हालांकि यह उपधारणा नहीं होती है कि प्रतिग्रहण का...
सेल एग्रीमेंट के तहत प्रस्तावित क्रेता संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे का दावा करने वाले तीसरे पक्ष पर मुकदमा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेल एग्रीमेंट के तहत प्रस्तावित क्रेता किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ संपत्ति में विक्रेता के हितों की सुरक्षा के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता, जिसके साथ अनुबंध की कोई गोपनीयता नहीं है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल विक्रेता को ही संपत्ति में अपने हितों की सुरक्षा की मांग करने का अधिकार है, क्योंकि सेल एग्रीमेंट प्रस्तावित क्रेता को कोई मालिकाना अधिकार प्रदान नहीं करता। चूंकि इस तरह के समझौते के माध्यम से संपत्ति में कोई कानूनी हित हस्तांतरित नहीं होता,...
केवल संपत्ति का स्पष्ट विवरण न होना या वसीयत करने वाले की मृत्यु वसीयत के तुरंत बाद होना वसीयत को अमान्य नहीं कर सकता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक निर्णय में स्पष्ट किया कि वसीयत के निष्पादन को लेकर संदेह केवल अस्पष्ट दावों पर आधारित नहीं हो सकता।कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की वसीयत को इस आधार पर अमान्य नहीं ठहराया जा सकता कि वसीयतकर्ता की मृत्यु वसीयत के तुरंत बाद हो गई या वसीयत में संपत्ति का विस्तृत विवरण नहीं दिया गया।जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा,“कौन-सी परिस्थितियाँ संदेहास्पद मानी जाएंगी, इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता, न ही पूरी तरह सूचीबद्ध किया जा...
उपराष्ट्रपति के अनुच्छेद 142 को 'न्यूक्लियर मिसाइल' कहने पर कपिल सिब्बल जताई आपत्ति, क्या कुछ कहा?
सीनियर एडवोकेट और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ "न्यूक्लियर मिसाइल" के रूप में कर रहा है। सिब्बल ने कहा कि उन्हें इस बात का गहरा दुख है कि एक संवैधानिक पदाधिकारी ऐसी टिप्पणी कर रहा है।मीडिया को संबोधित करते हुए सिब्बल ने कहा सुबह जब मैं उठा और अखबारों में उपराष्ट्रपति की टिप्पणी पढ़ी तो मुझे बहुत दुख...