राज्य को राज्य की ओर से हुई गलती के कारण से रिटायर अधिकारी को दी गई अतिरिक्त राशि वसूलने का अधिकार नहीं : कलकत्ता हाईकोर्ट
Amir Ahmad
12 Dec 2024 5:30 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस राजशेखर मंथा और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने माना कि यदि राज्य की ओर से हुई गलती के कारण कर्मचारी को अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया तो राज्य को रिटायर अधिकारी को दी गई अतिरिक्त राशि वसूलने का अधिकार नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि के तथ्य
याचिकाकर्ता मूल रूप से भारतीय वायु सेना (IAF) में था। बाद में वह रिटायर हो गया और वर्ष 1995 में उसे पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय स्वयंसेवी बल द्वारा प्लाटून कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया। अपनी नौकरी के आरंभ में राज्य सरकार ने गलती से उसे वही वेतन दिया जो उसे IAF में अपने कार्यकाल के दौरान मिल रहा था।
दूसरी ओर 22 सितंबर 1995 के सर्कुलर में दिए गए सरकार के नियमों के अनुसार पुनर्नियुक्त सैन्य पेंशनभोगियों को राज्य द्वारा एक निश्चित वेतनमान दिया जाता था न कि उनकी पिछली सैन्य स्थिति या वेतन के आधार पर।
इसके बावजूद, याचिकाकर्ता के उच्च वेतन को वर्ष 2019 में उनकी रिटायरमेंट तक उनकी वर्तमान स्थिति के साथ समायोजित नहीं किया गया, जिसमें राज्य ने उनके वेतन से प्राप्त अतिरिक्त राशि की वसूली करने की मांग की थी।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस फैसले को पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी, जिसने एक साथ उन्हें ऐसी वसूली से संरक्षण दिया लेकिन इस तरह के गलत वेतनमान को जारी रखने की अनुमति नहीं दी।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका के माध्यम से इस फैसले को फिर से चुनौती दी।
याचिकाकर्ता द्वारा तर्क दिया गया कि, सबसे पहले राज्य सरकार ने 22 सितंबर 1995 के परिपत्र के बावजूद, भारतीय वायु सेना से उनके अंतिम आहरित वेतन के आधार पर उन्हें अतिरिक्त राशि का भुगतान करके अपनी ओर से गलती की है।
दूसरे उन्होंने तर्क दिया कि न्यायाधिकरण के 7 अप्रैल 2011 के आदेश के बावजूद राज्य ने उन्हें उच्च वेतन प्रदान करना जारी रखा। याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उक्त गलती हाईकोर्ट और न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही के लंबित रहने के कारण अधिकारियों द्वारा अनिर्णय के कारण हुई।
न्यायालय के निष्कर्ष और अवलोकन
न्यायालय ने पाया कि पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए संरक्षण के बावजूद राज्य ने 1995 के परिपत्र के अनुसार निर्धारित वेतनमान पर लौटने के बजाय याचिकाकर्ता को उच्चतम वेतनमान प्रदान करने की अपनी गलत गलती जारी रखी, जो राज्य की ओर से एक गलती थी।
न्यायालय ने यह भी पाया कि अधिकारियों की ओर से अनिर्णय के प्रतिवादी के तर्क ने निरंतर अधिक भुगतान को पूरी तरह से उचित नहीं ठहराया।
न्यायालय ने कर्नल बी.जे. अक्कारा बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान की वसूली के खिलाफ राहत किसी अंतर्निहित अधिकार पर आधारित नहीं है बल्कि अनुचित कठिनाई को रोकने के लिए समानता और न्यायिक विवेक पर आधारित है।
ऐसी राहत तब दी जाती है जब कर्मचारी वास्तव में मानता है कि वह भुगतान का हकदार है और उसने इसे पहले ही खर्च कर दिया है।
इन टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता के वेतन से 7 अप्रैल, 2011 तक कोई अतिरिक्त निकासी की वसूली नहीं की जानी चाहिए।
लेकिन राज्य मई, 2011 से याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति की तारीख तक भुगतान किए गए अतिरिक्त वेतन के लिए सभी अतिरिक्त राशि वसूलने का हकदार होगा।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि वसूली याचिकाकर्ता के टर्मिनल लाभों के माध्यम से छह किस्तों में व्यवहार्य रूप से की जा सकती है।
यह भी निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता की पेंशन से पुनर्गणना की जानी चाहिए और सेवानिवृत्ति की तारीख से बकाया राशि पर 7% ब्याज के साथ भुगतान किया जाना चाहिए।
अदालत ने माना कि महालेखाकार (ए एंड ई), पश्चिम बंगाल के कार्यालय और अन्य प्रतिवादियों द्वारा दो सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को पेंशन भुगतान आदेश जारी किया जाना चाहिए।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका का निपटारा किया गया।