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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत विशेष न्यायिक और कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत विशेष न्यायिक और कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएस) ने पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता की जगह ले ली है और यह 1 जुलाई, 2024 को लागू हो गई है। यह नया कानूनी ढांचा भारत में विभिन्न न्यायिक और कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की शक्तियों और भूमिकाओं को रेखांकित करता है। लाइव लॉ हिंदी की पिछली पोस्ट में हमने बीएनएसएस के तहत दी गई आपराधिक अदालतों की श्रेणियों पर चर्चा की है।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, विभिन्न प्रकार के मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति, अधिकार क्षेत्र और अधीनता के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करती है। इन...

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का एडवाइजरी जूरिस्डिक्शन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का एडवाइजरी जूरिस्डिक्शन

भारत के सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय देने का अधिकार है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के महत्वपूर्ण मामलों पर न्यायालय की राय लेने की अनुमति देता है, जब इसे आवश्यक समझा जाता है।अनुच्छेद 143 और इसकी उत्पत्ति भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 सुप्रीम कोर्ट को सलाहकारी क्षेत्राधिकार प्रदान करता है। यह क्षेत्राधिकार राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के किसी भी कानून या तथ्य के प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट को उसकी...

जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अनुसार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की शक्तियां
जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अनुसार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की शक्तियां

जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का अध्याय V भारत में जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण पर केंद्रित है। यह अध्याय राज्य बोर्डों के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करने, अपशिष्टों के नमूने लेने और उनका विश्लेषण करने की शक्तियों और प्रक्रियाओं को रेखांकित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल निकाय प्रदूषण मुक्त रहें। नीचे इस अध्याय के प्रमुख खंडों की सरलीकृत व्याख्या दी गई है।जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का अध्याय V, राज्य बोर्डों को जल प्रदूषण को नियंत्रित...

कपिला हिंगोरानी बनाम बिहार राज्य: मानवाधिकार न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक मामला
कपिला हिंगोरानी बनाम बिहार राज्य: मानवाधिकार न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक मामला

परिचय9 मई, 2003 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कपिला हिंगोरानी बनाम बिहार राज्य के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस मामले में बिहार में सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों के कर्मचारियों की गंभीर दुर्दशा को संबोधित किया गया था, जिन्हें लगभग एक दशक से वेतन नहीं मिला था, जिसके कारण वे भुखमरी और आत्महत्या से मर रहे थे। यह मामला अपने मानवीय दृष्टिकोण और अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की राज्य की जिम्मेदारी की पुष्टि के लिए उल्लेखनीय है। कपिला हिंगोरानी बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट...