जानिए हमारा कानून
सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिकूल कब्जे पर सिद्धांतों को सारांशित किया
सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार और अन्य बनाम जोसेफ और अन्य में अपने हालिया फैसले में प्रतिकूल कब्जे से संबंधित कई सिद्धांतों पर चर्चा की। कोर्ट ने कहा, “कब्जा खुला, स्पष्ट, निरंतर और दूसरे पक्ष के दावे या कब्जे के प्रतिकूल होना चाहिए। इस सबंध में सभी तीन क्लासिक आवश्यकताओं, यानी एनईसी 6, यानी, निरंतरता में पर्याप्त; एनईसी क्लैम, यानी, प्रचार में पर्याप्त; और एनईसी प्रीकैरियो, यानी, स्वामित्व और ज्ञान से इनकार करते हुए, प्रतियोगी के प्रतिकूल, को सह-अस्तित्व में होना चाहिए।इस संबंध में, न्यायालय ने...
प्रोबेट क्या होता है, वसीयत का प्रोबेट से क्या संबंध है
कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी संपत्ति के संबंध में कहीं भी वसीयत कर सकता है। एक व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति के संबंध में वह व्यक्ति वसीयत से संबंधित कोई भी निर्णय ले सकता है। यह भी ज़रूरी नहीं है कि वसीयत किसी ब्लड रिलेशन में ही की जाए। वसीयत का एक्जीक्यूशन वसीयत करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद होता है। यदि वसीयत करने वाले व्यक्ति की मौत हो गई है तब जिस व्यक्ति के हित में वसीयत की गई है वह वसीयत के एक्जीक्यूशन का दावा कर सकता है।एक तरह से देखें तो वसीयत का एक्जीक्यूशन ही प्रोबेट होता...
पुराना वाहन बेचने पर खरीदने वाला ट्रांसफर नहीं करवाए तब मालिक क्या नुकसान हो सकते हैं
वाहन व्यक्ति की संपत्ति है। कई मौकों पर वाहन खरीदने और बेचने पड़ते हैं। वाहनों से संबंधित सभी लेखा जोखा सरकार द्वारा क्षेत्रीय परिवाहन कार्यालय के माध्यम से अपने पास रखा जाता है। किसी भी वाहन को बेचने पर उसके मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर ट्रांसफर करवाया जाता है। ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है। आजकल केवल स्टांम्प के माध्यम से वाहन बेचे जाने का चलन भी चल रहा है जो गैर कानूनी है। कई वाहन ऐसे हैं जो बगैर ट्रांसफर के ही कई लोगों को बिक...
भारत का संविधान और आपातकाल
शादाब सलीम 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति (तत्कालीन) फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। देश में इमेरजेंसी के बाद संविधान में संशोधन करने की मांग ज़ोरों पर रही। भारत के संविधान के अंतर्गत आपातकालीन समय के लिए कुछ व्यवस्थाएं की गई हैं। इन व्यवस्थाओं के अंतर्गत आपातकालीन परिस्थितियों में भारत के संविधान की स्थिति बदल जाती है। भारत का...
उपभोक्ता फोरम में किस तरह के केस लगाएं जा सकते हैं और क्या है इसकी प्रक्रिया
उपभोक्ता फोरम भी एक अदालत है और उसे कानून द्वारा एक सिविल कोर्ट को दी गई शक्तियों की तरह ही शक्तियां प्राप्त हैं। उपभोक्ता अदालतों की जननी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 है। इस अधिनियम के साथ उपभोक्ता फोरम की शुरुआत हुई। उपभोक्ता का मतलब ग्राहक होता है। पहले इंडिया में उपभोक्ता के लिए कोई परफेक्ट लॉ नहीं था जो सिर्फ ग्राहकों से जुड़े हुए मामले ही निपटाए। किसी भी ग्राहक के ठगे जाने पर उसे सिविल कोर्ट में मुकदमा लगाना होता था। इंडिया में सिविल कोर्ट पर काफी कार्यभार है ऐसे में ग्राहकों को परेशानी का...
मानहानि के कानून के बारे में जानें खास बातें
मानहानि भी समाज की एक बड़ी समस्या है। व्यक्तियों,संस्था एवं कंपनी इत्यादि की समाज में बड़ी प्रतिष्ठा और साख़ होती है और ऐसी साख़ से व्यक्ति, संस्था या कंपनी आय भी अर्जित करती है। अब यदि किसी व्यक्ति द्वारा बगैर सबूतों और झूठे तथ्यों के आधार पर कोई बात ऐसी व्यक्ति,संस्था या कंपनी के बारे में कही जाए या छापी जाए या लिखी जाए या फिर इशारे किए जाए तब मानहानि का विषय खड़ा हो जाता है।मानहानि कैसे होती हैमान का मतलब सम्मान से है और हानि मतलब उस सम्मान का नुकसान। इसे इंग्लिश में डिफेमेशन कहा जाता है। यह कानून...
जानिए अदालत स्टे ऑर्डर कब पारित करती है?
किसी भी सिविल केस में किसी कार्य या लोप पर अदालत द्वारा लगाई जाने वाली रोक को आम बोलचाल की भाषा में स्टे कहा जाता है। हालांकि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 में इसे अस्थाई निषेधाज्ञा कहा गया है, इंग्लिश में इसे टेम्परेरी इनजंक्शन कहा जाता है।कार्य का मतलब होता है किसी काम को करना और लोप का मतलब होता है किसी काम को नहीं करना। कोई भी सिविल मुकदमा इन दो चीज़े पर ही आधारित होता है। जैसे किसी की मालिकाना ज़मीन पर कोई अन्य व्यक्ति किसी बिल्डिंग का निर्माण कर रहा है तब यह कार्य है, यदि अदालत ऐसे कार्य...
किसी झूठे सिविल केस का बचाव कैसे करें? जानिए खास बातें
भारत के कानून में जनता पर सिविल और आपराधिक दो तरह के दायित्व सौंपे गए हैं। आपराधिक मामले में सीधे राज्य द्वारा कोई प्रकरण चलाया जाता है और सिविल मामलों में व्यथित व्यक्ति को अपना प्रकरण स्वयं ही चलाना होता है।कई मौके ऐसे होते हैं जहां पर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति पर झूठे आधारों पर सिविल प्रकरण अदालत में दर्ज़ करवा देता है जिससे प्रतिवादी को परेशान किया जा सके। भारत के कानून में यह ज़रूरी नहीं है कि कोई भी सिविल मुकदमा शुरू से लेकर अंत तक पक्षकारों को लड़ना ही पड़े। सिविल मुकदमे काफी जटिल और तार्किक...
धारा 156 (3) और 202 सीआरपीसी : सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व संज्ञान और संज्ञान को बाद के चरण में मजिस्ट्रेट की शक्ति का फर्क समझाया
हाल ही के एक फैसले (कैलाश विजयवर्गीय बनाम राजलक्ष्मी चौधरी और अन्य) में, सुप्रीम कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत प्राथमिकी दर्ज करने और अध्याय XV (मजिस्ट्रेट को शिकायत) के तहत संज्ञान लेने के बाद कार्यवाही और पूर्व-संज्ञान चरण में जांच करने के लिए एक मजिस्ट्रेट की शक्ति के बीच अंतर को स्पष्ट किया।सीआरपीसी की धारा 156(3) में कहा गया है कि एक मजिस्ट्रेट जिसे संहिता की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने का अधिकार है, संज्ञेय अपराध के लिए जांच का आदेश दे सकता...
पुलिस चालान पेश करने में देरी करे तब अभियुक्त को मिल सकती है डिफॉल्ट जमानत
किसी गैर जमानती अपराध में पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्तुत किए गए व्यक्ति के पास जमानत का अधिकार होता है। यदि अदालत इस बात पर प्रथम दृष्टया सहमत होती है कि आरोपी जमानत पर छोड़ा जा सकता है तो अभियुक्त को नियमित जमानत दे दी जाती है। जमानत भी अलग अलग तरह की होती हैं। नियमित जमानत,अंतरिम जमानत की तरह डिफॉल्ट जमानत भी है।भारत के कानून में डिफॉल्ट जमानत के प्रावधान क्रिमिनल प्रोसीज़र कोड, 1973 की धारा 167(2) में मिलतें...
ऐसे अपराध जिनमें अदालत सिर्फ़ नाममात्र का जुर्माना लगाकर छोड़ देती है
भारत में चलने वाले कानूनों में तरह तरह के अपराध हैं। छोटे बड़े सभी तरह के अपराध हैं। हर अपराध में सज़ा भी उस अपराध की गंभीरता को देखते हुए निर्धारित की गई है। फांसी की सज़ा से लेकर सौ रुपये के जुर्माना तक की सज़ा है। कुछ छोटे अपराध ऐसे हैं जहां अदालत के पास एक माह, छः माह तक के कारावास की सज़ा देने की शक्ति है। लेकिन अदालत उदारता के साथ ऐसे छोटे अपराधों में कारावास की सज़ा नहीं देकर नाममात्र का जुर्माना लगा देती है। क्योंकि भारत की जेलों में इतने अपराधी हो चुके हैं कि अपराधियों को रखने एवं उनकी देखरेख...
बेटा या बेटी का अपने पिता की संपत्ति पर क्या अधिकार है
कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक संपत्तियां अर्जित करता है। ऐसी संपत्ति चल और अचल दोनों प्रकार की होतीं हैं। किसी व्यक्ति के पास अचल संपत्ति में बैंक खाता, एफडी, शेयर्स, वाहन, डिबेंचर, नक़दी, गोल्ड सिल्वर इत्यादि अनेक चीज़ें होती हैं। अचल संपत्ति में व्यक्ति के पास घर, प्लॉट, फ्लैट, कृषिभूमि इत्यादि होतें हैं। यह सभी संपत्ति व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार से अर्जित करता है। मुख्य रूप से यह संपत्तियां व्यक्ति को तीन प्रकार से प्राप्त होतीं हैं।1 स्वयं अर्जित संपत्तिऐसी संपत्ति व्यक्ति स्वयं अर्जित...
एक हिस्सेदार दूसरे हिस्सेदार को संपत्ति बेचने से कैसे रोक सकता है
परिवारों में पैतृक संपत्ति विवाद का घर हो जाती है। अनेक परिवारों को संपत्ति के संबंध में लड़ते देखा जा सकता है। कभी कभी पैतृक संपत्ति का बंटवारा नहीं हो पाता है। यदि हिस्सेदारों में आपसी सहमति से संपत्ति का बंटवारा हो जाए तब सरलतापूर्वक संपत्ति का बंटवारा हो जाता है लेकिन यदि आपसी सहमति से संपत्ति का बंटवारा नहीं होता है तब स्थिति विवाद की बन जाती है। यदि आपसी सहमति से बंटवारा किया जाना है तब तो हिस्सेदार अपने अपने हिस्से के संबंध में विभाजन लेख बनाकर सब रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर्ड करवा सकते हैं।...
केशवानंद भारती मामले से जुड़े 50 रोचक तथ्य
Kesavananda Bharati case- केशवानंद भारती श्रीपादगलवरु एंड अन्य बनाम केरल राज्य एंड अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इतिहास की एक ऐसी घटना है जो कल्पना से परे है। ऐसा कहा जाता है कि इस निर्णय ने भारत के संविधान की रक्षा की और भारत में अधिनायकवादी शासन या एक दलीय सरकार के शासन को आने से रोका। 13 जजों की बेंच के 7 जजों के बहुमत के फैसले ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के मामले में 11 जजों की बेंच के फैसले को पलट दिया, जिसमें 24वें, 25वें और 29वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा था,...
गिरफ्तारी का वारंट कब जारी किया जाता है
आमतौर पर गिरफ्तारी वारंट का नाम सुनकर किसी भी व्यक्ति में भय पैदा हो जाता है। इस भय का लाभ उठाकर कई लोग छल कपट भी कर लेते हैं। गिरफ्तारी वारंट जारी करने और उसके एक्जीक्यूशन के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1908 में व्यवस्थित प्रक्रिया दी गई है। दंड प्रक्रिया संहिता ही वह कानून है जिसके ज़रिए भारत में गिरफ्तारी वारंट की उत्त्पति हुई है। संहिता की धारा 70 से 80 तक गिरफ्तारी वारंट के संबंध में प्रावधान है।किसके द्वारा जारी किया जाता हैगिरफ्तारी का वारंट सदैव किसी अदालत या फिर सेमी ज्यूडिशियल कोर्ट जैसे...
जानिए घरेलू हिंसा का केस किसे कहते हैं
पति पत्नी के बीच विवादों के अधिक बढ़ जाने पर घरेलू हिंसा के केस अत्यंत चर्चित होते हैं। दो लोग साथ रहकर गृहस्थी बनाते हैं लेकिन आपसी मतभेद बड़े विवादों को जन्म देते हैं और फिर मामला अदालत तक जा पहुंचता है। ऐसे में महिलाओं द्वारा पति और उसके रिश्तेदारों पर घरेलू हिंसा कानून में कार्यवाही की जाती है।क्या है घरेलू हिंसा कानूनभारत में महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा की रोकथाम के उद्देश्य से बनाया गया चर्चित अधिनियम 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' है। वर्ष 2005 में भारत की संसद...
किसी पार्टी को कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा ?
चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी (AAP) को नेशनल पार्टी का दर्जा दे दिया है। साथ ही चुनाव आयोग ने NCP, CPI और TMC से नेशनल पार्टी का दर्जा वापस ले लिया है। अब हमारे देश में कुल छह राष्ट्रीय पार्टियां हैं- कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और आम आदमी पार्टी (AAP)। इसके साथ ही राष्ट्रीय लोक दल से राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया है।कोई भी पार्टी नेशनल पार्टी तब बनती है, जब उसे लोकसभा या...
स्टॉकिंग: अगर कोई पीछा करे तो कहां करें शिकायत?
What to do if you are being stalked- केस रूपन देओल बजाज बनाम केपीएस गिल। पहले दोनों जन का परिचय जान लीजिए। 1980 के दशक के अंतिम दौर में सुपरकॉप के नाम से जाने जानेवाले पुलिस अधिकारी केपीएस गिल की तूती बोलती थी। वहीं, रूपन देओल बजाज एक सीनियर महिला आईएएस अधिकारी थी।तारीख आती है 18 जुलाई 1988। उस समय गिल पंजाब के पुलिस महानिदेशक थे। रूपन देओल बजाज पंजाब के फाइनेंस डिपार्टमेंट में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थीं। गृह सचिव की मेज़बानी में एक पार्टी का आयोजन होता है। पार्टी में रुपन देओल भी गई थीं। ...
चेक बाउंस केस में सज़ा होने पर क्या किया जाए
चेक बाउंस के केस दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। अदालतों में चेक बाउंस केस की अधिकता हो गई है। चेक बाउंस का प्रकरण परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता है। इस केस में अदालत यह उपधारणा लेकर चलती है कि अभियुक्त ने चेक किसी आर्थिक जिम्मेदारी के बदले ही दिया होगा। इस कारण चेक बाउंस के अधिकतर प्रकरणों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दे दी जाती है। चेक बाउंस के बहुत कम प्रकरण ऐसे होते है जिनमे अभियुक्त बरी किए जाते है।कितनी...