सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 178: आदेश 32 नियम 8,9 एवं 11 के प्रावधान
Shadab Salim
17 Jun 2024 9:20 AM GMT
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 32 का नाम 'अवयस्कों और विकृतचित्त व्यक्तियों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद है। इस आदेश का संबंध ऐसे वादों से है जो अवयस्क और मानसिक रूप से कमज़ोर लोगों के विरुद्ध लाए जाते हैं या फिर उन लोगों द्वारा लाए जाते हैं। इस वर्ग के लोग अपना भला बुरा समझ नहीं पाते हैं इसलिए सिविल कानून में इनके लिए अलग व्यवस्था की गयी है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 32 के नियम 8,9 व 11 पर विवेचना की जा रही है।
नियम-8 वाद-मित्र की निवृत्ति (1) जब तक कि न्यायालय द्वारा अन्यथा आदिष्ट न किया जाए वाद-मित्र अपने स्थान में रखे जाने वाले योग्य व्यक्ति को पहले उपाप्त किए बिना, और उपगत खर्चों के लिए प्रतिभूति दिए बिना निवृत्त नहीं होगा। (2) नए वाद-मित्र की नियुक्ति के लिए आवेदन यह दर्शित करने वाले शपथपत्र द्वारा समर्थित होगा कि प्रस्थापित व्यक्ति ठीक है और अवयस्क के हित के प्रतिकूल उसका कोई हित नहीं है।
नियम-9 वाद-मित्र का हटाया जाना (1) जहां अवयस्क के वाद-मित्र का हित अवयस्क के हित के प्रतिकूल है या जहां उस प्रतिवादी से जिसका हित अवयस्क के हित के प्रतिकूल है, उसकी ऐसी संसक्ति है जिससे यह असंभाव्य हो जाता है कि अवयस्क के हित की संरक्षा वह उचित रूप से करेगा या जहां वह अपना कर्तव्य नहीं करता है या वाद के लम्बित रहने के दौरान [भारत] के भीतर निवास करना छोड़ देता है वहां या किसी भी अन्य पर्याप्त कारण से उसके हटाए जाने के लिए आवेदन अवयस्क की ओर से या किसी प्रतिवादी द्वारा किया जा सकेगा और यदि समनुदिष्ट हेतुक की पर्याप्ता के बारे में न्यायालय का समाधान हो जाता है तो, वह वाद-मित्र के तदनुसार हटाए जाने के लिए आदेश कर सकेगा और खर्चों के सम्बन्ध में ऐसा अन्य आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।
(2) जहां वाद मित्र इस निमित्त सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक नहीं है और ऐसे नियुक्त या घोषित संरक्षक द्वारा जो यह वांछा करता है कि वह वाद-मित्र के स्थान में नियुक्त किया जाए, आवेदन किया जाता है वहां जब तक कि न्यायालय का उन कारणों से जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार न हो कि संरक्षक को अवयस्क का वाद-मित्र नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए, वह वाद-मित्र को हटा देगा और तब वाद-मित्र होने के लिए उसके स्थान में आवेदक की नियुक्ति वाद में पहले उपगत खर्चों के सम्बन्ध में ऐसे निबन्धनों पर करेगा जो वह ठीक समझे।
नियम-11 वादार्थ संरक्षक की निवृत्ति, हटाया जाना या मृत्यु - (1) जहां वादार्थ संरक्षक निवृत्त होने की वांछा करता है या अपना कर्तव्य नहीं करता या जहां अन्य पर्याप्त आधार दिखाया जाता है वहां न्यायालय ऐसे संरक्षक को निवृत्त होने के लिए अनुज्ञा दे सकेगा या उसे हटा सकेगा और खर्चों के सम्बन्ध में ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।
(2) जहां वादार्थ संरक्षक वाद के लम्बित रहने के दौरान निवृत्त हो जाता है, उसकी मृत्यु हो जाती है या वह न्यायालय द्वारा हटा दिया जाता है वहां न्यायालय उसके स्थान में नया संरक्षक नियुक्त करेगा।
आदेश 32 के नियम 8,9 व 11 में वादमित्र या वादार्थ संरक्षक की निवृत्ति, हटाये जाने, मृत्यु आदि पर दूसरे वादमित्र या वादार्थ संरक्षक की नियुक्ति संबंधी व्यवस्था की गई है।
वाद मित्र की निवृत्ति व नये वादमित्र की नियुक्ति (नियम 8)- एक वादमित्र यदि निवृत्त होना चाहता है, तो वह अपने स्थान पर किसी दूसरे योग्य व्यक्ति की नियुक्ति करवायेगा और किए गए खर्चों के लिए प्रतिभूति देगा। इन शर्तों से न्यायालय उसे छूट भी दे सकता है। नये वाद मित्र की इस प्रकार नियुक्ति के आवेदन के साथ शपथपत्र दिया जायेगा कि वह प्रस्तावित व्यक्ति ठीक है और उसका कोई हित अवयस्क के प्रतिकूल नहीं है।
वादमित्र को हटाया जाना-
एक वाद मित्र को निम्न कारणों से हटाया जा सकता है-
(1) जहाँ उसका हित अवयस्क के हित के प्रतिकूल हो, या (2) वह प्रतिवादी से संसक्ति (मिली भगत) में है, या
(3) वाद के लम्बित रहते वह भारत को छोड़कर बाहर चला गया है, या
(4) अन्य किसी पर्याप्त कारण से।
(2) वादमित्र को हटाने के लिए आवेदन- (i) ऐसा आवेदन अवयस्क की ओर से या (ii) किसी प्रतिवादी द्वारा किया जा जावेगा।
(3) न्यायालय उस आवेदन में दिये गये कारण (समनुदिष्ट हेतुक) के पर्याप्त होने का समाधान हो जाने पर उसके अनुसार वादमित्र को हटाने का आदेश करेगा और खचों के बारे में भी उचित आदेश करेगा।
सक्षम प्राधिकारी द्वारा घोषित नियुक्त संरक्षक द्वारा आवेदन करने पर जब किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा घोषित या नियुक्त संरक्षक के अलावा अन्य व्यक्ति को वादमित्र बनाया गया हो, तो ऐसा संरक्षक वादमित्र के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकेगा। न्यायालय कारण लिखकर उस संरक्षक को अवयस्क का वादमित्र नियुक्त करने से मना कर सकता है या उसे वाद मित्र नियुक्त कर सकता है और पहले वादमित्र को हटा सकता है। किए गए खर्चों के बारे में न्यायालय उचित शर्तें लगा सकेगा।
वाद की कार्यवाहियाँ रोकना [नियम 10 (1)]- अवयस्क के वाद मित्र की निवृत्ति, हटाये जाने या मृत्यु हो जाने पर वाद की आगे की कार्यवाहियाँ उस समय तक रोक दी (स्थगित कर दी) जावेंगी, तब तक कोई नये वादमित्र की नियुक्ति न करदी जाए।
प्लीडर द्वारा लोप और नये वादमित्र की नियुक्ति [नियम 10 (2)] जब अवयस्क का प्नीडर (वकील) उचित समय में नए वादमित्र की नियुक्ति की कार्यवाही का लोप करे (नहीं करे), तो उस अवस्यक या विवादग्रस्त वाद में हित रखने वाला व्यक्ति न्यायालय में नया वादमित्र नियुक्त करने के लिए आवेदन कर सकेगा। उस पर न्यायालय उचित व्यक्ति को वादमित्र नियुक्त कर सकेगा।
वादार्थ-संरक्षक की निवृत्ति, हटाया जाना या मृत्यु (नियम-11) निम्न परिस्थितियों में न्यायालय एक वादार्थ-संरक्षक को निवृत्त होने की अनुज्ञा (इजाजत) दे सकेगा या उसे हटा सकेगा (i) यदि वह वादार्थ संरक्षक स्वयं वांछा करे, या (ii) वह अपना कर्तव्य पूरा नहीं करता, या (iii) अन्य कोई पर्याप्त आधार।
ऐसा आदेश करने के बाद खर्चों के बारे में भी न्यायालय उचित आदेश करेगा। फिर उसके स्थान पर नया संरक्षक नियुक्त किया जावेगा।
वादमित्र को हटाया जाना- जहाँ न्यायालय को यह पता चले कि किसी वाद में वादमित्र का आचरण ऐसा है कि उससे अवयस्क के हित को हानि होगी, तो क्या न्यायालय उस वादमित्र को हटा सकता है?
इस प्रश्न पर दो मत हैं-
(1) मद्रास उच्च न्यायालय के मतानुसार ऐसे वाद मित्र को न्यायालय हटा कर जहाँ संभव हो दूसरा वादमित्र नियुक्त कर सकता है।
(2) परन्तु बम्बई उच्च न्यायालय ने उपरोक्त मत से असहमति व्यक्त की है कि आदेश 31, नियम 9 के अनुसार वाद मित्र को हटाने के लिए आवेदन या तो उस अवयस्क की ओर से किया जा सकता है या प्रतिवादी की ओर से। अतः न्यायालय को स्वतः (Suo moto) कार्यवाही करने की शक्ति नहीं है।
न्यायालय धारा 151 के अधीन अन्तर्निहित शक्ति का प्रयोग कर एक अवयस्क के हितों की रक्षा कर सकता है, क्योंकि न्यायालय को सभी अवयस्कों का संरक्षक माना गया है। पर वाद लाने की इजाजत न्यायालय द्वारा उक्त आदेश परिसीमा [आदेश 32, नियम 8] जब अकिंचन के तौर के नियम 7 के अधीन मंजूर कर दी जाती है तो पिटीशन अथवा आवेदन के बारे में यह समझा जाना चाहिए कि वह उसी दिन, जिस दिन कि आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था, फाइल किया गया वादपत्र था।