BNSS की सेक्शन 170 क्या कहती है?
Shadab Salim
14 Oct 2024 5:59 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) जिसे पहले CrPC कहा जाता था, की धारा 170 पुलिस को ऐसी शक्ति प्रदान करती है जो अपराध रोकने के लिए भी गिरफ्तारी कर सकती है और ऐसी गिरफ्तारी के बाद गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत लेनी होती है।
सेक्शन 170
BNSS की धारा 170 पुलिस को दी गई एक शक्ति माना गया है। जैसा कि पुलिस किसी भी व्यक्ति को किसी भी नॉन कॉग्निजेबल ऑफेंस में बगैर वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है। अगर कोई वारंट कोर्ट द्वारा जारी किया गया है तभी पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार करती है पर पुलिस को कॉग्निजेबल ऑफेंस में सीधे गिरफ्तार करने की शक्ति प्राप्त है।
कभी-कभी यह होता है कि किसी व्यक्ति को किसी अपराध करने से रोकना होता है और अपराध किया ही नहीं जाता है बल्कि करने का प्रयास होता है। कानून ने पुलिस को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें और समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखें। पुलिस केवल अपराध होने के बाद ही कार्य नहीं करती है बल्कि उसकी पहली जिम्मेदारी तो यह है कि वह अपराध होने से से ही रोके।
धारा 170 को एक टीके की तरह माना जा सकता है जहां पर किसी रोग को होने के पहले ही रोकने का प्रयास किया जाता है। इसी प्रकार धारा 170 पुलिस को ऐसी शक्ति देती है कि वह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके किसी भविष्य में होने वाले अपराध को रोक दें क्योंकि पुलिस की जिम्मेदारी है वह नागरिकों को सुरक्षित रखें।
धारा 170 के अंतर्गत पुलिस को यह शक्ति है कि किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर सकती है भले ही उसने कोई अपराध नहीं किया हो। अगर पुलिस अधिकारी को यह लगता है कि अगर उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वह व्यक्ति कोई न कोई अपराध जरूर कर देगा और ऐसा अपराध संज्ञेय अपराध होता है।
जैसे कि पुलिस को किसी व्यक्ति के बारे में यह लगता है कि वह नगर में आवारा घूम रहा है और लोगों की संपत्ति पर नजर रख रहा है अगर उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वे व्यक्ति कोई लूट डकैती यह चोरी जैसी घटना कारित कर देगा जोकि एक संज्ञेय अपराध है।
इस स्थिति में पुलिस अपनी 170 में मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है जिसके द्वारा कोई भी संगीन जुर्म किए जाने की संभावना है।
यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि धारा 170 में गिरफ्तार तभी किया जा सकता है जब गिरफ्तारी के अलावा अपराध होने से रोका नहीं जाता हो। अगर पुलिस बगैर गिरफ्तार किए ही अपराध को होने से रोक सकती है तो वह गिरफ्तार करने के पूर्व अपराध को रोकने का प्रयास करें पर फिर भी यह लगता है कि नहीं अब अपराध रोका नहीं जा सकता तब पुलिस अधिकारी अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए किसी संगीन जुर्म करने वाले व्यक्ति को जुर्म होने से पहले ही गिरफ्तार कर ले।
आमतौर पर देखा जाता है कि मोहल्ले कॉलोनी में कुछ लोगों का आपस में झगड़ा हो जाने पर पुलिस दोनों पक्षों पर धारा 170 की कार्यवाही कर देती है। पुलिस ऐसी कार्रवाई इसलिए करती है कि दोनों पक्षों को गिरफ्तार कर लिया जाए और दोनों के बीच में किसी बड़े विवाद को होने से रोका जाए जिससे गंभीर चोट या फिर हत्या जैसे अपराध को होने से रोक दिया जाए।
इस धारा में जेल कब जाना होता है
धारा 170 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को न्यायिक अभिरक्षा में जेल नहीं भेजा जाता है बल्कि केवल पुलिस हिरासत में रखा जाता है। पुलिस ऐसी गिरफ्तारी करके व्यक्तियों के संबंध में रजिस्टर में जानकारी अंकित करती है और उन्हें पुलिस थाने में बने हुए हवालात में रखती है पर यहां ध्यान देना होगा कि भले ही पुलिस धारा 170 के अंतर्गत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करें उसे किसी भी सूरत में 24 घंटे से ज्यादा हवालात में नहीं रखा जा सकता।
24 घंटे होने के पूर्व पुलिस को ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को छोड़ना ही पड़ता है क्योंकि यह किसी भी व्यक्ति को मिला एक संवैधानिक अधिकार है कि पुलिस बगैर मजिस्ट्रेट की अनुमति के किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती है। कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में रहेगा या न्यायिक अभिरक्षा में रहेगा इसका निर्णय मजिस्ट्रेट करता है पुलिस नहीं करती है।
जब कभी पुलिस धारा 170 के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी करती है तब ऐसी गिरफ्तारी केवल 24 घंटे तक के लिए होती है। धारा 170 में कहीं भी प्रतिभूति या बंधपत्र का उल्लेख नहीं किया गया है। यह धारा पुलिस को केवल गिरफ्तार करने की शक्ति देती है इस धारा में कहीं भी जमानत जैसी बात का उल्लेख नहीं है पर व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। पुलिस जब भी किसी व्यक्ति को धारा 170 के अंतर्गत गिरफ्तार करती है तब उसे एसडीएम की कोर्ट में प्रस्तुत करती है। पुलिस यहां पर कानून के दूसरे प्रावधानों का सहारा लेकर व्यक्ति से जमानत भी भरवा देती है।
BNSS की धारा 126 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार होता है कि अगर उसे किसी व्यक्ति के बारे में यह सूचना मिलती है कि उसके द्वारा कोई अपराध किया जाना संभव है तब कार्यपालक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति से प्रतिभूति ले सकता है। मतलब की जमानत ले सकता है फिर उस व्यक्ति की ओर से किसी दूसरे व्यक्ति को जमानत लेना होती है। ऐसा व्यक्ति जमानत लेने के लिए एक सक्षम व्यक्ति होता है।
दूसरा व्यक्ति यह घोषणा करता है कि जिस व्यक्ति की व जमानत ले रहा है वह भविष्य में किसी भी तरह का अपराध नहीं करेगा और उसकी निगरानी उस दूसरे व्यक्ति द्वारा की जाएगी जिस व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास प्रस्तुत किया जाता है। उस व्यक्ति द्वारा भी यह बंधपत्र दिया जाता है कि उसके द्वारा भविष्य में कोई भी अपराध नहीं किया जाएगा जिसके संदेह के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया है।
इसे कुछ ऐसे समझ लिया जाए कि किसी कॉलोनी में 2 लोगों का आपस में झगड़ा हुआ उस झगड़े के बाद दोनों ही पक्ष पुलिस थाने पर गए। पुलिस थाने के पुलिस अधिकारियों ने दोनों ही पक्षों को हवालात में बैठा लिया इसके बाद उन्हें अगले दिन 24 घंटे पूरे होने के पहले एसडीएम की कोर्ट में प्रस्तुत किया और पुलिस अधिकारियों ने एसडीएम को इस बात का संज्ञान लिया कि इन दोनों द्वारा किसी बात को लेकर आपस में विवाद किया जा रहा था और अगर इन दोनों से प्रतिभूति नहीं ली गई तो यह संभावना है कि यह दोनों आपस में किसी बड़े जुर्म को अंजाम दे देंगे।
जैसे कि इन दोनों में से किसी की हत्या तक हो सकती है तब एसडीएम उन दोनों ही लोगों से एक बंधपत्र लेता है तथा दोनों ही लोगों से प्रतिभूति मांगता है और यह वचन मांगता है कि उनके द्वारा किसी भी सूरत में भविष्य में कोई भी अपराध नहीं किया जाएगा।
BNSS की धारा 170 के अंतर्गत गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्तियों के संबंध में पुलिस अधिकारियों द्वारा रिकॉर्ड रखे जाते हैं। जब भी किसी व्यक्ति के ऊपर धारा 170 लागू होती है उसे गिरफ्तार किया जाता है तब उसे एक मुकदमे की तरह समझा जाता है तथा वह उसके पुलिस रिकॉर्ड में गिना जाता है। यह माना जाता है कि इस व्यक्ति को धारा 170 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है।
धारा 170 को साधारण शब्दों में यूं समझ लिया जाए कि यह एक संपूर्ण शक्ति है जो पुलिस को प्राप्त होती है अर्थात गिरफ्तारी भी वही करती है और किसी व्यक्ति को छोड़ती भी वही है पर उसके लिए एक सीमा निर्धारित कर दी गई है। पुलिस ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का रिकॉर्ड संरक्षित कर देती है जिससे उन्हें भविष्य में इस बात की जानकारी होती है कि यह व्यक्ति कोई आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति तो नहीं है।