आपराधिक कार्यवाही में दस्तावेजों की प्रति प्राप्त करने का अधिकार : BNSS, 2023 की धारा 230
Himanshu Mishra
17 Oct 2024 6:17 PM IST
भारत के नए आपराधिक कानून, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है और 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी हो गया है। यह संहिता आपराधिक न्याय प्रक्रिया को आधुनिक और सरल बनाने के उद्देश्य से लागू की गई है।
धारा 230 इस संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो पुलिस रिपोर्ट के आधार पर आरंभ किए गए मामलों में अभियुक्त (Accused) और पीड़ित (Victim) को आवश्यक दस्तावेज़ों की प्रतियां प्रदान करने से संबंधित है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को उसके खिलाफ पेश किए गए सभी साक्ष्यों (Evidence) की जानकारी हो और यदि पीड़ित की ओर से कोई वकील (Advocate) प्रतिनिधित्व कर रहा है, तो उसे भी सभी दस्तावेज़ उपलब्ध कराए जाएं।
इससे पहले कि हम धारा 230 के प्रावधानों में जाएं, यह जानना ज़रूरी है कि धारा 227 और 229 का क्या महत्व है। धारा 227 आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत के नियम बताती है, जबकि धारा 229 मामूली अपराधों (Petty Offences) से निपटने के तरीकों पर चर्चा करती है। इन विषयों पर अधिक जानकारी के लिए, आप Live Law Hindi पर पहले के लेखों को पढ़ सकते हैं।
दस्तावेज़ों की समय पर आपूर्ति: निष्पक्ष बचाव का अधिकार (Right to Fair Defense)
धारा 230 में यह प्रावधान है कि जब भी किसी मामले की शुरुआत पुलिस रिपोर्ट के आधार पर होती है, तो मजिस्ट्रेट (Magistrate) को अभियुक्त और पीड़ित (अगर वह किसी वकील द्वारा प्रतिनिधित्व कर रहा है) को तुरंत सभी आवश्यक दस्तावेज़ों की प्रतियां प्रदान करनी चाहिए।
यह प्रक्रिया पारदर्शिता (Transparency) और न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता (Fairness) सुनिश्चित करने के लिए है। यह दस्तावेज़ बिना किसी देरी के दिए जाने चाहिए और अभियुक्त की पेशी की तारीख से अधिकतम चौदह दिनों के भीतर उपलब्ध कराने चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि किसी अभियुक्त को 5 जुलाई को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, तो इन दस्तावेज़ों को 19 जुलाई तक उपलब्ध कराना अनिवार्य है। इस सख्त समय सीमा का उद्देश्य यह है कि अभियुक्त और पीड़ित दोनों को पर्याप्त समय मिल सके ताकि वे दस्तावेज़ों की समीक्षा कर सकें और अपने कानूनी कदम उठाने के लिए तैयारी कर सकें।
कौन-कौन से दस्तावेज़ दिए जाने चाहिए: संपूर्ण सूची
धारा 230 उन विशिष्ट दस्तावेज़ों को सूचीबद्ध करती है जो अभियुक्त और पीड़ित को उपलब्ध कराए जाने चाहिए:
1. पुलिस रिपोर्ट (Police Report): पुलिस रिपोर्ट वह दस्तावेज़ है जो पुलिस द्वारा की गई जांच का सारांश (Summary) है और अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही का आधार बनता है। इसमें कथित अपराध (Alleged Offence) और जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों का विवरण होता है।
2. प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report, FIR): यह धारा 173 के तहत दर्ज की जाती है और एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो आपराधिक जांच की शुरुआत करता है। इसमें अपराध की प्रकृति (Nature), शामिल व्यक्तियों के नाम, समय और स्थान जैसी महत्वपूर्ण जानकारी होती है।
3. गवाहों के बयान (Statements of Witnesses): धारा 230 के अनुसार, अभियोजन पक्ष द्वारा गवाह के रूप में बुलाए जाने वाले व्यक्तियों के धारा 180(3) के तहत दर्ज किए गए बयान भी अभियुक्त को उपलब्ध कराए जाने चाहिए। हालांकि, कुछ हिस्सों को पुलिस द्वारा धारा 193(7) के तहत गोपनीय (Confidential) रखने का अनुरोध किया जा सकता है। इस अनुरोध को मजिस्ट्रेट द्वारा जांचा जाएगा और तय किया जाएगा कि इन बयानों का कौन सा हिस्सा अभियुक्त को दिया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि किसी मामले में कई गवाह हैं, तो कुछ बयानों में ऐसी संवेदनशील जानकारी हो सकती है जो गवाह की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो। ऐसी स्थिति में, पुलिस कुछ हिस्सों को छिपाने का अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस अनुरोध का मूल्यांकन करके निर्णय ले सकते हैं कि कौन-सा हिस्सा अभियुक्त को साझा किया जाए।
4. स्वीकृतियां और अन्य बयान (Confessions and Other Statements): यदि कोई स्वीकृति या अन्य बयान धारा 183 के तहत दर्ज किया गया है, तो वह भी अभियुक्त को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को जांच के दौरान की गई किसी भी स्वीकृति की जानकारी हो।
5. अन्य संबंधित दस्तावेज़ (Other Relevant Documents): कोई भी अन्य दस्तावेज़ या उसके अंश जो धारा 193(6) के तहत पुलिस रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट को अग्रेषित किए गए हैं, उन्हें भी शामिल किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अभियुक्त के पास सभी आवश्यक सामग्रियों तक पहुँच हो जो मामले का हिस्सा हैं।
दस्तावेज़ों की आपूर्ति के अपवाद और शर्तें (Exceptions and Conditions for Furnishing Documents)
धारा 230 में कुछ अपवाद और शर्तें भी दी गई हैं जो दस्तावेज़ों की आपूर्ति से संबंधित हैं। पहला प्रावधान यह अनुमति देता है कि मजिस्ट्रेट उन बयानों के किसी भी हिस्से को, जिन्हें पुलिस द्वारा छिपाने का अनुरोध किया गया है, कारणों पर विचार करने के बाद साझा कर सकते हैं।
यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को जानकारी का अधिकार हो और साथ ही गवाहों की सुरक्षा या गोपनीयता से भी समझौता न हो।
दूसरा प्रावधान उन स्थितियों पर ध्यान देता है जहां कोई दस्तावेज़ बहुत बड़ा हो, जैसे लंबी जांच रिपोर्ट या तकनीकी रिकॉर्ड की प्रतियां।
यदि मजिस्ट्रेट यह तय करते हैं कि दस्तावेज़ की भौतिक प्रति प्रदान करना संभव नहीं है, तो वे इसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Means) से उपलब्ध करा सकते हैं, या अभियुक्त और पीड़ित को अदालत में दस्तावेज़ों का निरीक्षण करने की अनुमति दे सकते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दस्तावेज़ों की आपूर्ति (Electronic Means of Document Delivery)
धारा 230 में यह भी प्रावधान है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप (Electronic Form) में दस्तावेज़ उपलब्ध कराना भी उचित आपूर्ति माना जाएगा।
यह प्रावधान न्यायिक प्रणाली को आधुनिक बनाता है और तकनीक के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। इससे दस्तावेज़ों की तेजी से और समय पर आपूर्ति हो सकती है, जो अदालतों के प्रशासनिक बोझ को कम करता है और चौदह दिन की समय सीमा का पालन सुनिश्चित करता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी मामले में कई दस्तावेज़ शामिल हैं, तो अदालत उन्हें एक सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म (Secure Electronic Platform) के माध्यम से साझा कर सकती है। अभियुक्त या उनके वकील ऑनलाइन इन दस्तावेज़ों तक पहुंच सकते हैं, जिससे प्रक्रिया समय सीमा के भीतर पूरी हो जाती है।
पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना: धारा 230 का महत्व (Ensuring Transparency and Fairness: The Importance of Section 230)
धारा 230 का प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि पुलिस रिपोर्ट के आधार पर आरंभ की गई कार्यवाही में अभियुक्त और पीड़ित के अधिकारों का पालन हो। यह अनिवार्य करता है कि अभियुक्त को सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ समय पर उपलब्ध कराए जाएं, जिससे उन्हें अपनी बचाव की तैयारी के लिए उचित अवसर मिले।
धारा 227 और 229 के साथ संबंध (Relationship with Sections 227 and 229)
धारा 230 की आवश्यकताएँ धारा 227 और 229 में स्थापित सिद्धांतों पर आधारित हैं। धारा 227 मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही की शुरुआत की रूपरेखा प्रस्तुत करती है और यह सुनिश्चित करती है कि आपराधिक मामले में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार हो। धारा 229 मामूली अपराधों से संबंधित प्रक्रिया बताती है और उनके त्वरित निपटान के विकल्प प्रस्तुत करती है।
इन धाराों की पूर्ण जानकारी के लिए, आप Live Law Hindi पर पहले के लेख पढ़ सकते हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 230 अभियुक्त और पीड़ित के अधिकारों को प्राथमिकता देती है। यह सुनिश्चित करती है कि सभी दस्तावेज़ समय पर उपलब्ध कराए जाएं, साथ ही आवश्यक अपवादों के तहत गोपनीयता का भी ध्यान रखा जाए।