भारत में सड़क सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का क्या दृष्टिकोण रहा है?

Himanshu Mishra

14 Oct 2024 6:09 PM IST

  • भारत में सड़क सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का क्या दृष्टिकोण रहा है?

    डॉ. एस. राजसीकरण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Dr. S. Rajaseekaran v. Union of India) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सड़क सुरक्षा के गंभीर मुद्दों पर ध्यान दिया। अदालत ने बताया कि सुरक्षा नियमों के उचित पालन की कमी और प्रभावी कानून के क्रियान्वयन (Implementation) की कमी के कारण हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है।

    इस फैसले में सरकार और अन्य संबंधित विभागों की जिम्मेदारियों को विस्तार से समझाया गया है, ताकि सड़क दुर्घटनाओं (Road Accidents) और उससे होने वाली हानियों को कम किया जा सके।

    प्रमुख कानूनी प्रावधान और मुद्दे (Key Legal Provisions and Issues)

    इस फैसले में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (Motor Vehicles Act, 1988) और उसमें किए गए संशोधनों (Amendments) का मुख्य रूप से उल्लेख किया गया। साथ ही, अनुच्छेद 32 (Article 32) के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के अधिकार का भी उपयोग किया गया, जिससे यह मामला जनहित याचिका (Public Interest Litigation - PIL) के रूप में स्वीकार किया गया।

    अदालत ने सड़क सुरक्षा को एक जनहित का मुद्दा (Public Concern) माना और इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता जताई।

    जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन समिति का गठन (Creation of the Justice K.S. Radhakrishnan Committee)

    सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन समिति (Justice K.S. Radhakrishnan Committee on Road Safety) का गठन किया, जो सड़क सुरक्षा के सुधार के लिए आवश्यक सिफारिशें (Recommendations) प्रस्तुत करने और उनकी निगरानी (Monitoring) के लिए जिम्मेदार है। अदालत ने जोर दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें इस समिति के साथ समन्वय (Coordination) करके सुरक्षा उपायों को लागू करें।

    अदालत द्वारा संबोधित मुख्य मुद्दे (Fundamental Issues Addressed by the Court)

    • राज्य सड़क सुरक्षा परिषदें (State Road Safety Councils): अदालत ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 215 (Section 215) के तहत सभी राज्यों को सड़क सुरक्षा परिषदों का गठन करना अनिवार्य है। कई राज्यों द्वारा इस निर्देश का पालन नहीं करने पर उन्हें तत्काल परिषद का गठन करने का आदेश दिया गया।

    • लीड एजेंसी का गठन (Establishment of Lead Agencies): राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे लीड एजेंसियां स्थापित करें, जो लाइसेंसिंग (Licensing), वाहन पंजीकरण (Vehicle Registration) और प्रदूषण मानकों (Pollution Standards) जैसे मामलों का संचालन करें।

    • सड़क सुरक्षा निधि (Road Safety Funds): अदालत ने कहा कि प्रत्येक राज्य को सड़क सुरक्षा निधि स्थापित करनी होगी, जो यातायात उल्लंघनों (Traffic Violations) से मिलने वाले जुर्माने से वित्तपोषित होगी और सुरक्षा उपायों के लिए खर्च की जाएगी।

    • सड़क इंजीनियरिंग और डिज़ाइन (Road Engineering and Design): सड़क दुर्घटनाओं के पीछे सड़कों की खराब गुणवत्ता और डिज़ाइन की खामियां (Poor Road Quality and Design) को प्रमुख कारण बताया गया। अदालत ने काले धब्बों (Black Spots) की पहचान और सुधार के लिए ऑडिट (Audit) अनिवार्य किया।

    ट्रैफिक कंट्रोल और निगरानी उपाय (Traffic Calming and Surveillance Measures)

    अदालत ने निर्देश दिया कि संवेदनशील स्थानों, जैसे स्कूल और अस्पतालों (Schools and Hospitals) के पास ट्रैफिक कंट्रोल उपाय (Traffic Calming Measures) लागू किए जाएं। इसके साथ ही, राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया कि वे कैमरों और निगरानी उपकरणों (Surveillance Equipment) का उपयोग करके यातायात नियमों के उल्लंघन पर नजर रखें। अदालत ने विशेष गश्ती दल (Special Patrol Forces) बनाने का भी आदेश दिया।

    महत्वपूर्ण मिसालें (Important Judgments)

    इस फैसले में अदालत ने पं. परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (Pt. Parmanand Katara v. Union of India, 1989) मामले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि दुर्घटना पीड़ितों को समय पर चिकित्सा सहायता (Medical Aid) देना कानून प्रक्रिया से अधिक महत्वपूर्ण है। अदालत ने प्रत्येक जिले में ट्रॉमा केयर सेंटर (Trauma Care Center) स्थापित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

    शिक्षा और ड्राइवर प्रशिक्षण (Education and Driver Training)

    अदालत ने स्कूल पाठ्यक्रमों (School Curricula) में सड़क सुरक्षा की शिक्षा को शामिल करने का निर्देश दिया। साथ ही, ड्राइवर प्रशिक्षण (Driver Training) के लिए मान्यता प्राप्त संस्थानों (Accredited Institutes) से कंप्यूटराइज्ड ड्राइविंग टेस्ट (Computerized Driving Test) की सिफारिश की गई।

    जीपीएस और वाहन सुरक्षा उपकरण (GPS and Vehicle Safety Features)

    अदालत ने निर्देश दिया कि सार्वजनिक सेवा वाहनों (Public Service Vehicles) में GPS ट्रैकिंग उपकरण अनिवार्य रूप से लगाए जाएं। इसके अलावा, सभी वाहनों में एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (ABS) और एयरबैग (Airbags) जैसे उपकरणों की आवश्यकता बताई गई।

    अनुपालन और भविष्य की दिशा (Compliance and Future Directions)

    अदालत ने जोर दिया कि यदि इस फैसले का पालन सही तरीके से किया गया, तो हर साल हजारों जानें बचाई जा सकती हैं और दुर्घटना मुआवजे (Compensation) की राशि भी कम हो सकती है। अदालत ने उम्मीद जताई कि सरकार और सड़क सुरक्षा समिति (Road Safety Committee) मिलकर इस समस्या का प्रभावी समाधान निकालेंगे।

    डॉ. एस. राजसीकरण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय दिखाता है कि सड़क सुरक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी हितधारकों (Stakeholders) का संयुक्त प्रयास आवश्यक है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन न केवल कानूनी आवश्यकता है, बल्कि यह मानव जीवन की रक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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