संविधान के अंतर्गत महिलाओं के विशेष अधिकार और ऐतिहासिक फैसले

Himanshu Mishra

15 Oct 2024 6:37 PM IST

  • संविधान के अंतर्गत महिलाओं के विशेष अधिकार और ऐतिहासिक फैसले

    Santhini बनाम Vijaya Venketesh मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केवल वैवाहिक विवादों (Matrimonial Disputes) पर नहीं, बल्कि महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव (Discrimination) के मुद्दे पर भी चर्चा की।

    इस फैसले ने न्यायपालिका के दृष्टिकोण को सामने रखा, जो यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को न्याय तक समान पहुंच (Equal Access to Justice) मिले, खासकर व्यक्तिगत विवादों में।

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनों की व्याख्या इस तरह से होनी चाहिए, जो महिलाओं की गरिमा (Dignity) और समानता (Equality) को बनाए रखे।

    संविधान के अंतर्गत महिलाओं के विशेष अधिकार (Affirmative Rights under the Constitution)

    अदालत ने अनुच्छेद 15(3) (Article 15(3)) का उल्लेख किया, जो राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions) बनाने की अनुमति देता है।

    इसके अलावा, अनुच्छेद 243-D और 243-T का भी उल्लेख किया गया, जो पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करते हैं। ये प्रावधान समाज में भेदभाव के विरुद्ध और महिलाओं की समान भागीदारी (Equal Representation) को प्रोत्साहित करने के लिए संविधान की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

    महिलाओं के साथ भेदभाव को उजागर करने वाले प्रमुख फैसले (Key Precedents Highlighting Gender-Based Discrimination)

    अदालत ने कई महत्वपूर्ण फैसलों का विश्लेषण किया जो महिलाओं के प्रति भेदभाव के मुद्दों पर आधारित थे:

    1. Mackinnon Mackenzie & Co. Ltd. बनाम Audrey D'Costa (1987) – इस मामले में अदालत ने समान कार्य के लिए समान वेतन (Equal Pay for Equal Work) के सिद्धांत को लागू किया। कोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया कि पुरुष और महिला स्टेनोग्राफरों (Stenographers) के वेतन में अंतर लिंग (Gender) के आधार पर नहीं है। अदालत ने इसे अवैध भेदभाव करार दिया और दोनों के लिए समान वेतन की मांग को मान्यता दी।

    2. Vishaka बनाम राजस्थान राज्य (1997) – इस ऐतिहासिक फैसले में कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश तय किए गए। कोर्ट ने लैंगिक समानता (Gender Equality) और CEDAW (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) के तहत भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

    3. Arun Kumar Agrawal बनाम National Insurance Co. (2010) – अदालत ने माना कि परिवार के लिए महिला द्वारा किए गए घरेलू कार्य (Household Work) को कम करके नहीं आंका जा सकता। अदालत ने निर्देश दिया कि यदि किसी गृहिणी (Homemaker) की दुर्घटना में मृत्यु होती है, तो उसके योगदान का मूल्यांकन उचित मुआवजे (Compensation) के आधार पर होना चाहिए, और इसे केवल एक नौकर (Servant) या घरेलू कर्मचारी के काम से नहीं जोड़ा जा सकता।

    समाज में भेदभाव और महिलाओं की गरिमा (Societal Discrimination and Women's Dignity)

    अदालत ने Voluntary Health Association of Punjab बनाम Union of India (2013) में महिला भ्रूण हत्या (Female Foeticide) के मुद्दे पर चर्चा की।

    इस मामले में अदालत ने कहा कि महिला और पुरुष बच्चों के समान अधिकार (Equal Rights) होते हैं, और समाज की किसी भी अवधारणा (Concept) को उनकी संवैधानिक पहचान (Constitutional Identity) और गरिमा के साथ समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    Charu Khurana बनाम Union of India (2015) में अदालत ने फिल्म उद्योग में प्रचलित भेदभाव का संज्ञान लिया, जहां महिलाओं को मेक-अप आर्टिस्ट (Make-Up Artist) बनने की अनुमति नहीं थी और उन्हें केवल हेयर ड्रेसर (Hair-Dresser) के रूप में कार्य करने की अनुमति थी। कोर्ट ने कहा कि समान अवसर (Equal Opportunity) से वंचित करना न केवल भेदभाव है, बल्कि यह महिला की व्यक्तिगत गरिमा (Individual Dignity) का उल्लंघन भी है।

    परिवार न्यायालयों में लिंग-संवेदनशील न्याय (Gender-Sensitive Justice in Family Courts)

    Santhini मामले में अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि परिवारिक विवादों में महिलाओं को अक्सर ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अदालत ने यह भी कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में देरी का सबसे अधिक नुकसान महिलाओं को होता है।

    Mona Aresh Goel बनाम Aresh Satya Goel (2000) और Anindita Das बनाम Srijit Das (2006) जैसे मामलों में यह सिद्धांत स्थापित हुआ कि महिलाओं की सुविधा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वे आर्थिक और सामाजिक बोझ से बच सकें।

    सुप्रीम कोर्ट के Santhini बनाम Vijaya Venketesh फैसले ने न्यायिक प्रणाली में लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण (Gender-Sensitive Approach) की आवश्यकता पर जोर दिया।

    अदालत ने यह स्पष्ट किया कि न्याय तक पहुंच, समान वेतन, और कार्यस्थल पर सुरक्षा महिलाओं के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) हैं और इनका सम्मान होना चाहिए।

    इस फैसले के माध्यम से, न्यायालय ने यह संदेश दिया कि संरचनात्मक असमानताओं (Structural Inequalities) को समाप्त करने और समाज में महिलाओं को उनका उचित स्थान दिलाने के लिए कानून और न्यायिक प्रक्रिया का संवेदनशील होना आवश्यक है।

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