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क्या राष्ट्रीय सुरक्षा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्राकृतिक न्याय से ऊपर हो सकती है?
मुख्य मुद्दा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा (Freedom of Speech and National Security)Madhyamam Broadcasting Ltd. v. Union of India के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विशेष रूप से प्रेस की आज़ादी, एक लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद है और इसे सिर्फ इस आधार पर नहीं छीना जा सकता कि सरकार को कोई खतरा महसूस हो रहा है। Article 19(1)(a) के अंतर्गत आने वाला यह अधिकार केवल तब ही सीमित किया जा सकता है जब उसके लिए ठोस और न्यायोचित (Justified) कारण हों। केवल...
SC/ST Act का विस्तार क्षेत्र
एक मामले में यह तर्क किया गया था कि किसी व्यक्ति को उसकी उपस्थिति के बिना बोर्ड पर यह प्रदर्शित करके भी अपमानित किया जा सकता है कि अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित लोगों को किसी स्थान में प्रवेश करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जायेगा, को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है, इसके कारण कोई कृत्य सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 7 (1) (घ) को आकर्षित करते हुए अस्पृश्यता के आधार पर अपमान, न कि वर्ष 1989 को अधिनियम संख्यांक 33 की धारा 3 (x) के अधीन यथा अनुचिंतित अपमान हो सकता है।अधिनियम...
SC/ST Act में Proportionality of Sentence
Proportionality of Sentence के पक्ष पर उसे अभियुक्त के दाण्डिक आचरण की आपराधिकता के अनुसार विहित किया जाना है। दण्डादेशित करने की प्रणाली को ऐसी रीति में प्रवर्तित होना है, जो समाज की सामूहिक अन्तरात्मा को प्रदर्शित कर सके और उसे तथ्यों से इस तरह से उद्भूत होना चाहिए, जैसे दिया गया मामला मांग करता है। किस प्रकार के मामलों में मृत्युदण्ड प्रदान किया जाना चाहिए, विभिन्न न्यायिक निर्णयों में विचार-विमर्श की विषयवस्तु रही है। इसी तरह से ये दिशानिर्देश, जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, (जो मृत्यु...
SC/ST Act के अंतर्गत प्रकरण में की गयी कमियों का विचारण
SC/ST Act से जुड़े एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि मामले के तथ्यों पर बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहा जा सकता है कि अभियोजन सशक्त और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करके अभिकथित अपराध को साबित करने में विपन्न रूप में विफल हुआ है। अन्य शब्दों में वर्तमान मामला मुख्य अभियोजन साक्षियों के साक्ष्य अनेक विरोधों के साथ अस्थिर तथा कमजोर चरण पर आधारित है। पुनः अधिकांश अभियोजन साक्षीगण विद्रोही हो गये हैं और अभियोजन मामले का कोई स्वतन्त्र साक्षी समर्थन नहीं किया है। रूचिकर रूप में, कोई पहचान...
SC/ST Act के अपराधों में समय समय पर आए Judgement की महत्वपूर्ण बातें
इस एक्ट में न्यूनतम दण्डादेश पर विधि अधिनियम की धारा 3 (1) ऐसी अवधि के लिए दण्ड का प्रावधान करती है, जो 6 मास से कम की नहीं होगी, परन्तु जो 5 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने के साथ हो सकेगी। इसलिए, केवल प्रश्न यह है कि क्या उच्च न्यायालय संविधि के द्वारा अनुचिन्तित न्यूनतम दण्ड से कम दण्डादेश प्रदान कर सकता है। जहाँ न्यूनतम दण्डादेश का प्रावधान किया गया हो, वहाँ न्यायालय न्यूनतम दण्डादेश से कम दण्डादेश अधिरोपित नहीं कर सकता है। यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के...
राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धाराएं 52 और 53 : वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए आवश्यक शुल्क
राजस्थान कोर्ट फीस और मुकदमों का मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के अध्याय VI में वसीयत (प्रोबेट) और उत्तराधिकार पत्र (लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अध्याय की धाराएं 50 से 58 तक हैं, जो इन दस्तावेजों के लिए आवेदन, शुल्क निर्धारण, और अन्य संबंधित प्रक्रियाओं को स्पष्ट करती हैं। विशेष रूप से, धाराएं 52 और 53 इन प्रक्रियाओं में न्यायालय की भूमिका और शुल्क के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं।धारा 52: वसीयत या उत्तराधिकार पत्र की अनुमति धारा 52 के...
क्या किसी फैसले को केवल इस आधार पर दोबारा परखा जा सकता है कि बाद के फैसले में पहले के निर्णय को गलत बताया गया है?
सुप्रीम कोर्ट ने Government of NCT of Delhi v. K.L. Rathi Steels Ltd. (2023) के मामले में एक अहम सवाल पर विचार किया क्या किसी अदालत के फैसले की समीक्षा (Review) केवल इसलिए की जा सकती है क्योंकि किसी बाद के फैसले में पहले के निर्णय (Precedent) को पलट दिया गया है? यह सवाल न केवल सिविल कानून बल्कि संवैधानिक कानून से भी जुड़ा हुआ है, और यह Code of Civil Procedure, 1908 की Order XLVII Rule 1 के तहत Review की सीमाओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण है। इस मामले में दो जजों की बेंच — जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस...
BNSS 2023 की धारा 444 और 445: पुनरीक्षण के दौरान पक्षकारों की सुनवाई और आदेशों का प्रमाणन
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय 32 में पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। इस अध्याय की धारा 444 और धारा 445 दो ऐसे महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जो पुनरीक्षण की प्रक्रिया में पक्षकारों की सुनवाई और हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय के निर्णयों के अमल से संबंधित हैं। ये धाराएं प्रक्रिया की पारदर्शिता, न्यायिक व्यवस्था की कार्यकुशलता और न्याय के निष्पादन की दिशा में अत्यंत उपयोगी भूमिका निभाती हैं।इस लेख में हम धारा 444 और 445 को क्रमशः विस्तारपूर्वक और सरल हिंदी में...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 40-ए से 44 : लम्बरदारों की सेवा समाप्ति और ग्राम सेवकों की नियुक्ति
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 में ग्राम स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्था और राजस्व संग्रहण के सुचारु संचालन के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 40-ए से लेकर धारा 44 तक विशेष रूप से लम्बरदार व्यवस्था को समाप्त कर ग्राम सेवकों की नई व्यवस्था को लागू करने की दिशा में बनाई गई हैं। इन धाराओं में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि ग्राम सेवकों की नियुक्ति कैसे होगी, उनकी सूची कैसे बनाई जाएगी, खाली पदों को कैसे भरा जाएगा और उन्हें कितना पारिश्रमिक दिया जाएगा। यह लेख इन सभी धाराओं को सरल भाषा...
क्या विवाह पूरी तरह टूट जाने पर अदालत इसे मानसिक पीड़ा मानकर विवाह को समाप्त कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने राकेश रमन बनाम कविता (2023) के अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी के बीच रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है, वे लंबे समय से अलग रह रहे हैं, और उनके बीच कोई भावनात्मक या सामाजिक जुड़ाव नहीं बचा है, तो यह स्थिति 'क्रूरता' (Cruelty) के रूप में मानी जा सकती है।भले ही Hindu Marriage Act, 1955 में “Irretrievable Breakdown of Marriage” को तलाक का स्वतंत्र आधार नहीं माना गया है, लेकिन कोर्ट ने माना कि ऐसी स्थिति में विवाह को जबरन जीवित रखना दोनों पक्षों पर अत्याचार (Cruelty)...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36 : भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) में ग्रामीण प्रशासन और भूमि अभिलेखों के रख-रखाव से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।इनमें से धारा 32 से लेकर 36 तक की धाराएँ विशेष रूप से पटवारियों, गिरदावर कानूनगो, रिकॉर्ड निरीक्षक तथा सदर कानूनगो जैसे अधिकारियों के कार्यक्षेत्र, नियुक्ति, योग्यता, निरीक्षण व्यवस्था और आम नागरिकों की सूचनाएं देने की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करता है जिससे आमजन, किसान तथा राजस्व...
राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम 1961 की धारा 50 और 51 के अनुसार वसीयत और उत्तराधिकार पत्र के लिए आवेदन
धारा 50 – वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) के लिए आवेदनयह धारा बताती है कि जब कोई व्यक्ति किसी मृतक (Deceased) की संपत्ति के लिए वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) प्राप्त करना चाहता है, तो उसे एक आवेदन (Application) करना होता है। इस आवेदन के साथ मृतक की पूरी संपत्ति का मूल्यांकन (Valuation) दो प्रतियों (Duplicates) में देना जरूरी होता है। यह मूल्यांकन अधिनियम की अनुसूची III के भाग I में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार होना चाहिए। इस आवेदन को...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 443 : हाईकोर्ट की पुनर्विचार याचिकाओं को स्थानांतरित करने या वापस लेने की शक्ति
परिचयभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 एक नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता है, जो देश की न्यायिक व्यवस्था को अधिक आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लागू की गई है। इस संहिता में पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित विस्तृत प्रावधान अध्याय 32 (धारा 438 से लेकर धारा 447 तक) में किए गए हैं। इस लेख में हम धारा 443 को विस्तारपूर्वक सरल हिंदी में समझने का प्रयास करेंगे, जो हाईकोर्ट को पुनरीक्षण मामलों को स्थानांतरित करने अथवा अपने पास वापस लेने की विशेष शक्ति प्रदान करती है। धारा 443 का उद्देश्य और...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 32 से 36: भू अभिलेख निरीक्षण प्रणाली और संबंधित अधिकारियों की भूमिका
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) में ग्रामीण प्रशासन और भूमि अभिलेखों के रख-रखाव से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।इनमें से धारा 32 से लेकर 36 तक की धाराएँ विशेष रूप से पटवारियों, गिरदावर कानूनगो, रिकॉर्ड निरीक्षक तथा सदर कानूनगो जैसे अधिकारियों के कार्यक्षेत्र, नियुक्ति, योग्यता, निरीक्षण व्यवस्था और आम नागरिकों की सूचनाएं देने की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करता है जिससे आमजन, किसान तथा राजस्व...
क्या NDPS Act के तहत ट्रायल में देरी होने पर जमानत दी जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने मो. मुस्लिम बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) के फैसले में यह अहम सवाल उठाया कि क्या एनडीपीएस कानून (NDPS Act) के तहत किसी आरोपी को जमानत (Bail) दी जा सकती है जब ट्रायल में अत्यधिक देरी हो रही हो?इस फैसले में यह साफ किया गया कि यदि ट्रायल लंबा खिंचता है और आरोपी को बिना दोषी ठहराए सालों तक जेल में रखा जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत मिलने वाले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Life and Liberty) का उल्लंघन हो सकता है। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 का मतलब (Meaning of...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 441 और 442 के अंतर्गत एडिशनल सेशन जज तथा हाईकोर्ट की पुनर्विचार शक्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) देश में आपराधिक प्रक्रिया का नया आधार है, जो पुरानी प्रक्रिया संहिता की जगह लेकर 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है।इस संहिता का अध्याय बत्तीस (Chapter XXXII) पुनरीक्षण (Revision) और संदर्भ (Reference) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इस लेख में हम धारा 441 और 442 के माध्यम से यह समझने का प्रयास करेंगे कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) और हाईकोर्ट (High Court) को किन-किन परिस्थितियों में...
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 48 और 49: उन Suits का मूल्य निर्धारण जिनके लिए कोई विशेष प्रावधान मौजूद नहीं है
धारा 48 का उद्देश्य उन वादों (Suits) की वैल्यू तय करना है जिनके लिए इस अधिनियम (Act) या किसी अन्य कानून (Law) में स्पष्ट रूप से कोई वैल्यू निर्धारण का तरीका नहीं दिया गया है।उपधारा (1) कहती है कि यदि किसी वाद (Suit) की वैल्यू तय करने के लिए अदालत की अधिकारिता (Jurisdiction) के उद्देश्य से कोई विशेष प्रावधान मौजूद नहीं है, तो उस वाद की वैल्यू वही मानी जाएगी जो कोर्ट फीस (Court Fees) निकालने के लिए मानी जाती है। यानी, जिस रकम के आधार पर कोर्ट फीस ली जाती है, वही रकम अदालत की अधिकारिता तय करने के...
क्या केवल प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना यूएपीए के तहत अपराध माना जा सकता है?
परिचय: कोर्ट के सामने उठे मौलिक संवैधानिक सवाल (Fundamental Constitutional Issues)सुप्रीम कोर्ट ने अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2023) के निर्णय में एक बेहद अहम सवाल पर विचार किया — क्या केवल किसी प्रतिबंधित संगठन (Banned Organization) का सदस्य (Member) होने मात्र से कोई व्यक्ति अपराधी माना जा सकता है? यह मामला Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) की धारा 10(अ)(i) (Section 10(a)(i)) की वैधता और व्याख्या (Interpretation) से जुड़ा था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 29 30 और 31 में बताए गए राजस्व अधिकारियों और पटवारियों से जुड़े प्रावधान
धारा 29 – अधिकारियों की अस्थायी अनुपस्थिति में कार्यभार का प्रबंधनधारा 29 एक ऐसी स्थिति के बारे में है जब कोई राजस्व अधिकारी अस्थायी रूप से अपने कार्य से अनुपस्थित हो जाता है। यह अनुपस्थिति किसी भी कारण से हो सकती है, जैसे – अवकाश पर जाना, बीमार होना, या अन्य प्रशासनिक कारणों से कुछ समय के लिए कार्य से दूर रहना। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधिकारी की अनुपस्थिति के दौरान उसके कार्यालय का कार्य बाधित न हो और जनता को कोई असुविधा न हो। इस धारा में दो प्रकार की स्थितियाँ बताई गई हैं।...
राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 46 और 47: सामान्य अपीलों में शुल्क
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan C ourt Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालयों में दायर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) और अपीलों (Appeals) पर लगने वाले शुल्क (Court Fees) और उनके मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।इस अधिनियम की धाराएँ 46 और 47 विशेष रूप से मुआवजा संबंधित आदेशों के विरुद्ध अपीलों और सामान्य अपीलों में शुल्क निर्धारण से संबंधित हैं। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तृत...



















